अनुच्छेद 03 मेरी यादों के झरोखों से ------------------------------------------------------------------------------कालिज की पहली घण्टी वज रही थी, मधु अपनी सहेली रमा के इंतजार में थी कि कब रमा आए और वह दोनों सहेलियाँ एक साथ कॉलिज जा सके, दोनों सहेलियां आपस में गहरी मित्र थीं इसलिए मधु हमेशा रमा के साथ ही जहाँ जाती थी वहाँ उसके साथ हमेशा रमा होती थी, किन्तु आज रमा पता नहीं क्यों अबतक उसके पास नहीं आई थी, इसलिए मधु आज लेट होरही थी।वह सोचती रही कि अभी रमा आती ही होगी और दोनों कालिज की ओर चली जाएंगी।
वह जानती थी इस घण्टी का मतलब था विद्यालय में समय से पहुँच कर अपने शेष होम वर्क पर नजर डालने के बाद कोई कमी शेष रह गई हो तो वह छात्र उसे पूरा कर सके।
और उसके ठीक बीस मिनट बाद कॉलिज की दूसरी घण्टी जिसे आमतौर पर प्रेयर की घण्टी छात्र कहते थे ,वो भी वजने बाली थी, किन्तु रमा का अभी तक उसके यहाँ आने का कहीं कोई नामों-निशान नहीं दिख रहा था।
मधु आज के पाठ्यक्रम पर एक सरसरी नजर डालने के बाद एक दम पढ़ने के मूड में एलर्ट होकर वह कॉलिज जाने के लिये तैयार थी ,पर अभी तक उसकी प्रिये सहेली रमा अपने घर से नहीं आई थी और दिन तो वह दस पन्द्रह मिनट पहले ही आ जाती थी।
धीरे धीरे वह पन्द्रह मिनट भी अब बीत गए और फिर अब ठीक बीस मिनट बाद कालिज की दूसरी घण्टी लगनी शुरू होचुकी थी, जिसे सुनकर सभी छात्र छात्राएं और अध्य्यापक प्रार्थना स्थल पर एकित्रत होकर ईश वंदना करने के बाद कुछ मिनट प्रतिदिन शारीरिक शिक्षा का अभ्यास कराते और ततपश्चात सामान्य ज्ञान और नैतिक शिक्षा का प्रतिदिन मौखिक पाठ सम्बंधित किसी प्रेरणादायक कहानी आदि पर व्याख्या करते थे ।
बाद में इसी क्रम से विद्यालय में उसके सभी शिक्षक पूरी निष्ठा और परिश्रम के साथ बच्चों को टायम टेबिल के आधार पर शिक्षा देते थे, ।
मधु का प्रति दिन का नियम था कि वह विद्यालय समय से पहुंचती।और अपनी सहेलियों के साथ सहयोग करना उसकी आदत थी।
मधु की चार पांच ही सहेलियां थी जिन में मिथलेश,आभा ,शालिनी और रमा थी, पर रमा उन सब में उसकी फ़ास्ट फ्रेंड्स थी, वह हमेशा रमा के साथ ही आती जाती थी, अपने मन की कोई बात वह हमेशा रमा को ही बताया करती थी रमा उसके घर से दो गली छोड़ ठीक तीसरी गली में उसके घर के ठीक पीछे रहती थी ,वह जब भी विद्यालय जाती तो मधु के यहां आकर उसे अपने साथ लेकर आती और जाती थी, ।
ऐसा रमा मधु के पिताजी के कहने पर करती थी, क्यों कि मधु के पिताजी और रमा के पिता आपस में घनिष्ठ मित्र थे।
परंतु आज मधु कालिज जाने को तैयार हुई बैठी थी ,किन्तु उसकी वह प्रिय सहेली अभी तक उसके पास नहीं पहुँची थी ।
अतः मधु कुछ देर से उसकी प्रतीक्षा कर रही थी साथ ही मन में गुस्सा से भरी सोच भी रही थी "कि आने दो उस रमा की बच्ची को ? अभी सारी की सारी गलतियों का एक एक कर बदला वह उस से लेगी।"
अरे मधु तुम अभी तक स्कूल नहीं गई।
अचानक मधु की भावीमाँ इंद्रा ने उस से पूँछा।
जी भावी माँ,..... अभी तक वो .....रमा की बच्ची नहीं आई है।
अरे तो क्या वह नहीं आएगी तो क्या तुम स्कूल नहीं जाओगी।
इंद्रा ने उसे प्यार से डाँटा।
जी भावी माँ सॉरी आगे से गलती नहीं होगी।
कहती हुई मधु अपने कमरे में चली गई और अपनी कालिज की यूनिफॉर्म उतार कर चुप चाप अपने कमरे में पड़े पलँग पर लेट गईं, उसको रह रह कर अपनी सहेली रमा पर गुस्सा आ रहा था।
मधु हाई स्कूल की फ़र्स्टईयर की छात्रा थी ,उसके जन्म के छह माह वाद ही उसकी माँ सुनयनाजी चल बसी थीं, अतः जब वह छः महीने की थी तब से उसे उसकी भाबी माँ इंद्रा ने ही पाला था, अतः उसने कभी इंद्रा की बात का बुरा नहीं माना था, पर आज उसे अचानक क्या हुआ की उसका मन स्वयं रोने को हो रहा था किन्तु सबसे अधिक गुस्सा उसे रमा पर आरहा था, किन्तु साथ ही साथ वह सोचती रही,गलती सारी रमा की भी नहीं बल्कि उसकी भी है, वह क्यों रमा पर इतनी निर्भर क्यों हो गई, क्या रमा के विना अब उसका कहीं आनाजाना नहीं होगा,।
मन ने सहज प्रश्न किया।
मैं क्यो रहूँ , उस पर निर्भर ?
ढ़ेर सारी बातों को मन मे सोचती सोचती वह पता नहीं कब तक अपने ख्यालों में गुम रहती ,अचानक रमा ने उसके कमरे मे घुसकर उसे जोर से हिलाया, और बोली।
हाय रे तू अभी तैयार भी ना हुई ,? .........तुझे पता है मैं आज पहले से ही लेट होगई हूँ।
रमा अपनी झौंक में बोलती चली गई।
लेकिन मधु चुप रही वह कुछ ना बोली, वह उसे ऐसे ही देखती रही ,जबकि उसे उसपर पहिले वहुत गुस्सा आरहा था किन्तु अब उसके निकट होने पर उसका गुस्सा पता नहीं कहीं गायब हो चुका था।
ऐसे क्या देख रही है, ? .. .क्या कॉलिज नहीं चलना।
नहीं जाना।
वह धीरे से बोली।
अरे वहन तू तो इसी तरह करती है।
तूने घड़ी में टाइम देखा।
वह फिर बोली।
अचानक इंद्रा ने कमरे में प्रवेश किया और मेज पर चाय और नाश्ता रखते हुई बोली।
आज रमा तुम्हारीं सहेली का मूड खराब है।
पर भाबी माँ मैंने तो इस से कुछ कहा भी नहीं है।
मधु चुप बैठी दोनों की बातें चुप चाप सुनती रही।
चलो उठो, कल से टाइम पर कॉलिज जाना है।
इंद्रा ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा।
और अगले पल मधु अपनी भाबी माँ के कंधे पर सिर टिका कर सुबकने लगी।
चलो चाय ठंडी हो रही है।
और फिर अगले पल मधु किसी आज्ञाकारी बच्चे की भाँति अपनी सहेली के साथ चाय पीने लगी, इंद्रा अपने किचिन की ओर बड़ गई,।
आज तू लेट क्यों हो गई।
मधु ने उस से शिकायती लहज़े में कहा।
अरे वहन घर पर कुछ भैया के दोस्त आगये थे।
अगर तू कल जरा भी लेट हुई तो मैं तुझे छोड़ कर कॉलिज अकेली ही चली जाऊंगी ।
अच्छा तू ऐसा कर सकती है मेरी बन्नो ?।
रमा उस से लिपट ती बोली।
हाँ... हाँ...मैं तुझ से कहती हूँ ,कल लेट मत होना बरना कल कालिज में ही मिलूँगी।
मधु गुस्सा में भर भुनभुनाती हुई बोली।
ठीक है यार अब ज्यादा उखड़ मत ,मैं कल समय पर आजाउंगी।
कहती हुई रमा अपने घर की ओर वापिस लौट गई।
शेषांश अगले अंक में
Written by H.K.Bharafawaj