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मेरीं यादों के झरोंखों से भाग 19

8 अप्रैल 2022

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अनुच्छेद 19            मेरी यादों के झरोखों से 
________________________________________
आज रवि वार होने के साथ ही कालिज चार दिनों के लिये अबकाश पर था।
अतः वह स्वप्निल आँखों बाली सुन्दरी देर तक सोती रही।
उसकी भावी माँ एक वार उसके कमरे में आकर  उसे देख चुकी थी, और अब वह पुनः दूसरी बार मधु के  कमरे में आई,थी।
              और दिन तो वह कॉलिज के टाइम पर ही उठ जाया करती थी ,किन्तु आज मधु अभी तक नहीं उठी थी,अतः उसकी भावी माँ उसकी किताबों को सेल्फ़ में  सही तरह रखने हेतु मेंज पर इधर उधर पड़ी बे तरतीव किताबों को उठा उठा कर करीने से सेल्फ में रखने लगी। 
अचानक मधु की नीद खुली।
भावी मां गुड मॉर्निंग......कैसी  हैं आप ?। 
उसने उठ कर बैठते हुए कहा।
मैं ठीक हूँ तुम बताओ हमारी प्यारी बेटी आज तो घोड़े बेचकर सो रही थी । 
ओ भावीमाँ.......प्लीज अब .......इतना न खींचो.... की हम ......आपके कूचे में...... मजाक न बन.....    जाये।
वह अपनी भावीमाँ के गले  से लिपट गयी।
अरे .....रे ....क्या करती हो।
भाबी उसे छुड़ाने की आसफल कोशिश करने लगी।
वह भावी से और लिपट गयी, उसका सिर भावी के कंधे पर टिक गया,और न चाहते हुई उसकी एक सिसकी कण्ठ से बेवस हो निकल ही पड़ी।
भावी प्लीज, मुझे अपने आँचल में छिपा लो।
अरे...अरे.....क्या हुआ ........तुम्हे.......आज बड़ा प्यार आ रहा है ,अपनी....... भावी पर।
इंद्रा नें उसके सिर पर हाथ फ़िराते हुए कहा।
वह कुछ न बोली....बस उन प्यारी गहरी काली आँखों के  कोरों में बड़े बड़े मोती  रूपी आँसू झलक ने लगे थे,उसकी
भावी माँ ने उसकी ठुड्ढी पकड़ कर थोड़ा ऊपर की ओर उठाई ।
क्या बात....मधु बेटी ..इतनीं सुंदर आँखों में आँसू का मतलब क्या ? ...तुम कुछ .......कहना चाहती हो ? 
उसकी भावीमाँ कुछ देरतक उसे गम्भीर नजरों से देखती रहीं किन्तु वह स्वयं उस के दर्द को बाँट न पाई ।
भावी मां .......वह सुबक पड़ी आंखों केआँसु अव कपोलों पर आ चुके थे,और कण्ठ से वरबस एक मोटी सिसकी फूट पड़ी।
अरे अब बोलो न ,क्या किसी ने तुम्हे डांटा था।
इंद्रा दुःखी मन से बोली।
नही भाबी मां........।
,वह अपने को सभांल चुकी थी,और अब अपनी भाबी के आंचल में सर छिपाने लगी थी।
वेटी,आज तुम मुझ से .......कुछ छिपा रही हो।
 उस की भावी ने उसके सिर को अपने कंधे से सटा लिया।
और अगले क्षण उसकी भावी इन्द्रा पुन: बोली।
जब से मां जी खत्म हुई है,तब से आज तक मैंने कभी  तुम्हारी आँखों में मैनें  कभी  आँसू नही देखें थे क्या बात ...है, ...क्या अब भी कुछ नही बोलोगी। 
उसकी भावी की आँखों मे अनगिनत प्रश्न उभरते चले गये किन्तु वह उसे देखने और उसका दर्द महशूश करने के अलाबा कुछ नहीं करपाई , और फिर मधु
चुप चाप अपनी भावी माँ को निहार ने लगी......और फिर उसके रुके आँसू पुनः प्रवाहित होने लगे,कण्ठ से अनगिनत सिसकी हिचकी के रूप में कब शुरू हुई पता नही।
भावी  उसकी पीठ सहलाने लगी,कुछ समय बिताने के बाद जब मन की वेदना स्वतः शांत हो गयी,तो उसकी भावी ने उस से कहा।
अच्छा अब उठो , हाथ मुहँ धो कर जल्दी तैयार हो लो मैं तुम को नाश्ता लगाती हूँ ।
भावी उठ खड़ी हुई।
भावी मां आप मेरे पास बैठो न ,आज अचानक मुझें जानें क्या होंगया है,कि अभी  मेरा मन आपके कंधे से चिपक कर रोना चाहता है।
वह उनका हाथ पकड़ कर बच्चों की तरह जिद करती हुई बोली। 
अरे मधु सुनो आज हमें अपने गांव जाना  है और रमा बता रही थी कि पास के गांव आँचल पुर में माता दुर्गा का मेला लग रहा है।
इंद्रा श्वाश लेती हुई बोली।
उसके चेहरे पर एक फीकी मुश्कान उभरी,वह सोचने लगी यह आँचलपुर वही गांव था जहां उसका अपना  किशोर रहता था, और मधु की मुलाकात उससे दूसरी बार झील के किनारे पर अचानक मधुर- मिलन बन चुकी थी तब  किशोर उसका नाम पूछता रहा था, किंतु उस ने अपना नाम  उसे आज और अब तक नहीँ बताया था।
किशोर की वह बेताबी और  अपनत्व से मधु का रास्ता रोकना सब कुछ आंखों के सामने चल चित्र की भांति अब भी मधु की आँखों में घूंम रहा था।
अरे अभी यहीं खड़ी हो ......।
उसकी भावी जलपान टेविल पर रखती हुई बोली।
भावी...मां ....क्या आप मुझे घर पर छोड़ कर नही जा सकती हो।
वह अनमने भाव से बोली।
क्यों घूमनें में तो तुम्हें अच्छा लगता है, फिर यहाँ पर अकेली क्या करोगी।
इंद्रा मेज पर नाश्ता लगाचुकी थी।
उस गाँव में मेरे कुछ फ्रेंड्स भी रहतें हैं।
वह उदास हो बोली।
तुम्हारे भैया कह रहे थे कि तुम्हे भी साथ लेजाऊ ड्राइबर गांव में पहुँचा देगा और अब तुम बेसे भी चार पाँच दिन  कालिज नहीं जाओगी।
बिल्कुल ठीक .....भावी जी ......अरे ये तो जाएगी और बचेगी  भी।
भाबी के पीठ पीछे से रमा की अचानक आबाज़ उभरी।
आओ रमा बैठो ।
मधु की भाबी रमा से बोली।
क्या तुम तैयार होकर आई हो।
उसकी भावी ने रमा की ओर प्रश्न सूचक निगाहों से पूछा।
अच्छा तुम दोनों जलपान कर लो मैं बस जल्दी आती हूँ।
भाबी तेजी से अपने कमरे में चली गई।
अब बोल मेरी बन्नो,क्या कह रही थी.कि यहीं अकेला छोड़ दो......।
रमा ने उसे घूरते हुए पूँछा ।
रमा वहिंन पता नहीं ,मुझें क्या होगया है,जब से उन्हें देखा नहीं है तब से पता नहीं दिल क्यों उन्हें हर बक्त ढूंढता रहता है, यह सब मेरे साथ ही ऐसा क्यों और क्या अजीव होरहा  है। 
मधु ने धीमी आवाज में रमा से पूछा।
तेरे उसी रोग का ही तो इलाज के लिए मैं तुझें आँचल पुर लेजा रही हूँ।
क्या तूनें भावी माँ को भी मेरी सारी कहांनी कह दी।
मधु आतंकित हो बोली।
 नही, बस मैंने.....तो...तेरी ...यूं उदास रहने का ही कारण तेरी भावी को कह रही थी।
 वह झेपती हुई बोली।
क्या तू पागल है जो ऐसी बात उन्हें क्यों बोली।
मधु चिढ़कर अपनी सखी रमा से बोली।
और क्या करती ,जब भावीमां तेरी उदासी का कारण मुझे कसम देकर पूंछने लगीं तो।
हाय रे ,तू इतनी निर्लज्ज कैसे होगई।
मधु ने उसकी ओर घूरा।
तूभी यार क्या चीज है, एक ओर प्यार भी करती है और दूसरी ओर प्यार छिपाना भी चाहती है।
अच्छा जल्दी नाश्ता कर,मैं अभी फ्रेस होके आई ।
 कहती हुई  मधु तेजी से बाथरूम में घुसी।
रमा आराम से जल पान करती रही।
कुछ समय बाद भावी और वहदोनों एक साथ तैयार होकर बाहर निकलीं। 
ड्राइबर  इण्डिका का गेट खोलें बाहर तीनो की प्रातीक्षा कर रहा था उन सबके बैठते ही उसने इण्डिका का गेट बन्द किया।
और अगले क्षण भर में इण्डिका अपने गंतब्य की ओर हबा से बाते करती बड़ी तेजी से उड़ती जा रही थी ,रमा की सहेली की आंखों में पुनःअपने प्रियतम से  मिलने की आशा  अचानक बलवती होने लगी......।
शेषआगे पृष्ठ पर।   
 Written by H.K.Joshi।          P. T. O.
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