अनुच्छेद 74 मेरी यादों के झरोखों से
-------------------------------------------------------------------------------------------सेठ रविशंकर जी का उनके परिजन डाईनिंग टेबल पर इन्तजार करते रहे, लेकिन ना तो वह स्वयं आये और न ही मधु वहाँ पहुँची थी,।
इंन्द्रप्रकास और प्रेम प्रकाश दोनों ही अपने पिताजी की प्रतीक्षा करते रहे थे।
इंद्रा और प्रेम की दुल्हन खाने को टेबिल पर लगाने के बाद सेठ जी और मधु की प्रतीक्षारत थीं।
किन्तु दोनों में से कोई भी अपने अपने कमरे से अब तक नहीं निकला,।
जब से मधु अनन्त से तलाक लेने के बाद अपने पिता जी के घर आई थी, ठीक तभी से घर के सभी सद्स्य पुरुषों द्वारा मधु का बिशेष ख्याल रखा जाता था।
मधु के सभी भाई एवं पिता सेठजी अपने साथ ही मधु को बैठा कर अपने संग ही भोजन कराते थे।
बाकी सभी पुरुषों के भोजन करने के पश्चात घर की दोनों महिलाए भोजन करतीं थीं।
यही परम्परा एक लंबे समय से सेठजी के घर मे चली आरही थी,जब मधु की मां सुनयना जी जीवित थी तब से यही क्रम था।
उन्होंने ही यह परम्परा का चलन किया था।
सेठ जी कभी कभी अपने प्रतिष्ठान से किसी बक्त लेट हो जाते थे और जब वह घर आते तो सुनयना जी इंद्रप्रकाश को गोद मे लिटाये डाइनिंग टेबिल पर सेठजी का इंतजार करती मिलती थी ,।
इस बारे में कई बार सेठजी ने उन्हें समझाने की भरपूर कोशिश भी की थी,किन्तु हर बार उन्होंने अपने संस्कारों की दुहाई दे कर उन्हें मजबूर कर दिया था सेठ जी को।
तब से अब तक यह परम्परा चली आई थी जिसे सेठ जी ने अपनी पत्नी की याद मान कर निर्वहन किया था।
और घर मे भी,किसी ने इसका कभी विरोध भी नही किया था ।
हाँ एक बार प्रेम की पत्नी ने जरूर इस पर नुक्ता चीनी जरूर करने की कोशिश जरूर की थी किन्तु प्रेम ने उसको समझा दिया पर वह इस परंपरा को सहर्ष स्वीकार नहीं कर सकी थी ।
किन्तु प्रेम की पत्नी वह खुलकर भी इस परम्परा का बिरोध नही कर सकती थी ।
अतः वह भी मजबूरी में मधु और सेठ जी की प्रतीक्षा करती रही,समय बीतता गया...... तो आख़िर उसके सब्र का बांध टूट गया।
दीदी मुझे तो नींद आ रही है,आप इन सब को भोजन करा देना।
प्रेम की पत्नी अनु ने जमहाई लेते हुए कहा,
और अगले पल वह यह सब कहती हुई प्रेम की दुल्हन अपने रूम की ओर बढ़ चुकी थी ।
प्रेम उसको रोकना चाहते हुए भी न रोक सका।
क्यो की इन्द्रप्रकाश ने उसके हाथ पर हाथ रखकर शांत रहने का संकेत किया था।
जाओ इंद्रा देखो पिताजी अभी तक क्यों नहीं आये हैं , और मधु अब तक अपनें कमरे में क्या कर रही है।
इंद्रप्रकाश ने अपनी पत्नी इंदिरा को आदेश दिया।
जी.......जाती हूँ. ....।
इंद्रा संक्षिप्त जबाब देकर अपने ससुर के कमरे में पहुँची।
पिताजी चलिये,सभी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।
वह एक लम्बी स्वांस लेती हुई बोली।
वर्षों बाद उसने अपने श्वसुर को अपनी सासु माँ की तस्बीर के सन्मुख रोते हुए आज देखा था।
वह अपने को रोक नही सकी और उनके निकट चली गई।
पिता जी आप तो हमारी हिम्मत है, प्लीज चलिये सभी आपका खाने पर इंतजार कर रहे हैं।
वह उनके निकट जाकर धीमे से बोली।
बेटी आज मेरा मन खाना खाने का नहीं है,जाओ तुम सब भोजन करो।
वह अपने आँसुओं को पौछते हुए बोले।
लेकिन इंद्रा वहाँ से थोडा भी ना हिली ।
वह पुनः बोली।
आप जो भी खाएं पर हमारे साथ जरूर चलो।
इंद्रा पुनः बोली।
ठीक है तुम चलो बेटी मैं आता हूँ।
सेठजी ने इंद्रा को टालना चाहा।
लेकिन वह इंद्रा थी वह वहाँ से टश से मश न हुई,।
आखिर कर सेठजी ने उसके साथ चलना स्वीकार किया।
पिताजी मधु कहाँ है।
इंद्रा ने अपने श्वसुर से पूँछा।
कुछ समय तक वह यहीं थी,पर अब पता नहीं।
सेठजी ने धीमे से कहा।
दोनों कमरे से निकल कर डाईनिंग रूम में पहुँचे, रात के ग्यारह बज चुके थे।
यूँ तो घर के सभी सदस्य सामान्यता हर दिन रात्रि के नौ वजे तक भोजन कर लिया करते थे,लेकिन सभी सदस्य एक साथ ही भोजन करते थे, सेठ जी को अपने निकट देखकर प्रेम खड़ा हुआ।
पिताजी बैठिये।
मैं दीदी को लाता हूँ।
कहता हुआ प्रेम लॉन कि ओर चला गया,लॉन में मधु क्यारियों के बीच अकेली उदास चाँद की चाँदनी में चाँद को एक टक निहार रही थी।
दीदी चलो भाबी माँ आपको बुला रहीं है।
आओ भैया देखो आज चाँद भी कितना उदास है चाँदनी भी बेबस गुमसुम कही किसी को तलाशना चाह कर भी न तलाश कर पा रही है , जानते हो क्यो और किसे वह ढूंढ रही है ?
नहीं दीदी....आपकी यह अनोखीं बातें मेरीं समझ में नहीं आतीं।
क्यों कि इन आसमान पर छाई बदलियों में चाँद कभी कभी छुप जाता है।
दीदी प्लीज उठो।
वह मधु का हाथ पकड़ कर बोला।
जाओ भैया मुझे बैसे भी भूख नहीं है।
वह धीमे से बोली।
दीदी आपको मालूम है की पिताजी आपके बिना खाना नही खाते अतः प्लीज....चलिये वह आपका खाने पर इंतजार कर रहे हैं।
वह न चाहते हुए भी प्रेम के साथ चल पड़ी।
दीदी आप चलो मैं तुम्हारी छोटी भाबीअनु को लाता हूँ,बस दो मिनाट में अभी अतिशीघ्र।
कहता हुआ प्रेम अपने कमरे में गया और अपनी पत्नी को मना कर अगले पल डाईनिंग रूम में आ चुका था,और साथ ही अब वह एक कुर्सी पर बैठ चुका था।
उसके निकट मधु बैठी थी,इंद्रा ने खाना परोसा प्रेम की पत्नी इंद्रा का सहयोग कर रही थी थोड़ी देर में खाना पूरा करने के बाद महिलाओं ने भी भोजन किया ,सेठ जी अभी तक अपने कमरे में नहीं गए अतः प्रेम ,इंद्रप्रकाश इंद्रा और प्रेम की पत्नी अनु भी वहीं रुकी थीं।
सभी लोग एक टेबिल के चारो ओर इकठ्ठे हुए थे तो भला कोई चर्चा न हो यह असम्भब था।
अतः चर्चा की शुरुआत की इंद्रा ने।
पिताजी आप मधु का पुनर्विवाह करने की कह रहे थे,बताइये बात आगे कहाँ तक आगे बढ़ी।
इंद्रा मध्यम स्वर में बोली।
सेठ जी कुछ पल शांत रहने के बाद बोले।
बेटी इंद्रा मै अब विना मधु की सहमति के कुछ नही करना चाहता हुँ।
हाँ पिताजी यह आपकी बात वहुत अच्छी है,क्यों कि हम लोग कभी कभी जल्दबाजी में गलत फैसले ले लेते हैं ।
इंद्रप्रकाश ने अपनी बात रखी।
हाँ मैं भी इंद्रप्रकाश की बात से सहमत हूं।
सेठजी ने खुलेमन से अपनी गलती स्वीकार की।
पिछली बात भूलकर अब हम मधु के नए भविष्य की चर्चा करें।
प्रेम ने बात को आगे वड़ाया।
पिताजी,आप बुरा न माने तो मैं कुछ कहूँ।
प्रेम की दुल्हन बोली।
यहाँ पर उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति को अपनी बात रखने का उसे पूरा पूरा हक है।
सेठ जी ने अनुराधा को ढाँढस बढ़ाते हुए कहा।
हमे एक बार मधु के मन की बात भी जाननी जरूरी है।
प्रेम की दुल्हन ने कहा।
हाँ यह ठीक भी है, हम लोग जब उसके जीबन का फैसला लेने जा रहे है तो उसकी इच्छा जानने में हमें कोई हर्ज ही क्या है।
इंद्रा ने अपनी स्वीकृति दी।
हाँ दीदी आप बताओ, आपकी क्या रॉय है।
प्रेम ने मधु से कहा।
बोलो मधु तुम अपनी मन की बात स्पस्ट करो।
इंद्रा ने मधु से कहा।
हाँ बेटी एक बार हम बिना कुछ जाने यह गलती कर चुके है,पर अब हम तुम्हारी राय जान कर ही आगे बढ़ना चाहते है।
सेठ जी ने स्पस्ट कहा।
मधु इन सब बातों से दूर कही विचारों में गुमसुम सी खोई हुई थी।
दीदी.........।
प्रेम ने उसे टहोका दिया।
वह हड़बड़ाकर सभी को देखती रही।
बोलो बेटी तुम्हारी क्या राय है।
इंद्रा ने उससे पूछा।
जी जी भावी माँ .........वह... वह...क्या ज़बाब दें अब हम ।
मधु कुछ न कह सकी वह नीचे सिर झुकाए बैठी रही।
पिताजी, यह कुछ भी नही बोलेगी।
इंद्रप्रकाश ने कहा।
देखिये आप गलत कह रहे है,यह फैसला मधु को ही हर हाल में लेना ही होगा ।
इंद्रा ने मधु का समर्थन किया।
जी मुझे नहीं पता , आप सब मुझसे किस विषय पर मेरी राय लेना चाहते है।
मधु धीमे से बोली।
भई वाह, यह तो वही बात हुई, कि पूरी रामायण खत्म होगई और लोगों को पता ही नहीं सीता को किसने चुराया।
प्रेम की पत्नी ने हंस कर कहा।
सभी लोग एक ठहाका लगा कर हंस पड़े।
इंद्रा ने मधु के कान में धीमे से कुछ कहा।
परिणामत: मधु का चेहरा लज्जा से रक्तवर्ण हो चुका था।
वह धीमी आवाज में बोली।
पिताजी,विवाह के नाम पर हर लड़की लड़के के मन मे वहुत खुशी होती है,पर जब पहली बार हो तो?,.....लेकिन अब मुझे न कोई ....खुशी है न ....कोई दुःख,....... अरे हम बेटियां तो यहां भी और वहॉं भी....पराई होंतीं हैं, फिर भी हम एक जिम्मेदारी अपनी बखूवी निभाती है....दोनो जगह की लाज रखती है......,हर कदम सोचकर रखती है..... कि कहीं हमारे माता पिता,.....भाईयों क़ा सिर लज्जा से नीचा न हो.....,और ससुराल में भी कोई हम से ऐसा कार्य न हो जिससे उनकी प्रतिष्ठा धूमिल हो ,खैर यह सब छोड़ो,?
अब आप मेरी शादी ही क्यों कराना चाहते है,मुझे मेरे इस हाल पर यूँ ही छोड़ दो वस प्लीज मैं आप सभी से प्रार्थना करती हूं।
कृपया मुझे अब शादी के नाम से ही नफरत सी है।
कहते कहते वह सुबकने लगी।
थोड़ी देर को वातावरण बोझिल हो चुका था।
सब लोग एक दूसरे का मुहँ ताक ने लगे,तभी प्रेम की पत्नी बोली।
दीदी हम जानते है कि आप की पहली शादी सही नही निभ सकी आप, जानती हो ताली दोनों हाथों से बजती है,कुछ आपकी भी कमी होगी कुछ उस तरफ की कमी रही और परिणाम यह तलाक पर जाकर हुआ ,पर अब जरूरी नहीं की फिर बही परिणाम हो।
क्या मैं आप लोगों को बोझ बन गई हूँ ,आप मुझे अपने घर के एक छोटे से कोने में आसरा नही दे सकते।
मधु की आवाज में दर्द ही दर्द छलक उठा था।
इंद्रा ने उसके सिर पर हाथ रखा फिर उसे समझाने की कोशिश की।
मधु,कैसी बच्चों जैसी बातेँ करती हो,कोई जरूरी नहीं कि तुम्हारे साथ फिर वही कहानी दोहराई जाए,।
पर भाबीमाँ क्या विवाह हर किसी लड़की को जरूरी है ?।
बेटी मधु,......पुत्री पराया धन कहलाती है,अमीर और गरीबों की बेटियाँ भी विवाही जाती है,यही हमारी दुनियाँ का दस्तूर है,और क्या तुम्हारे घर मे भी तो किसी की बेटी विवाह होकर ही आई है।
यह सही है पिताजी,पर मैं अपनी शादी अब नहीं कर सकती।
वह अपने दोनो हाथ जोडती हुई बोली।
लेकिन बेटी इस से हमारी,और बेटों की समाज में बेइज्जती ही होगी हम किस किस को समझाएंगे की तुम अपनी मर्जी से शादी नहीं करना चाहती हो।
सेठजी ने उसे समझाने का एक प्रयास और किया।
पिताजी मैं बायदा करती हुँ , कि कभी भी आपका सिर मेरी वजह से नींचे झुकेगा नहीं।
सेठ जी मोन हो गये उनके पास कोई उत्तर नहीं था।तभी इंद्रा अपने स्थान से उठी और मधु को अपने साथ ले कर बाहर उस कमरे से निकल गई।
पिताजी मैं इसे समझती हुँ, आप टेंसन न करे।
कहती हुई इंद्रा उसे लॉन में ले गई,कुछ पलों तक वह दोनों लॉन में घूमती रहीं रात के बारह से अधिक का समय हो चुका था चाँद भी बदलियों में लुका छिपी खेल कर अब शायद थक रहा था।
मधु एक बात पूंछूं।
इंद्रा की आवाज गम्भीर थी।
जी...भाबी माँ।
वह गुमसुम खोई सी बोली।
वायदा करो कि कुछ छुपाओगी तो नही।
जी, भाबी मां।
क्या तुम.....किशोर से शादी करना चाहती हो।
न न न न नहीं।
वह एक झटके से बोली।
क्या......।
इंद्रा के पैरों तले जमीन खिसकने लगी थी।
हाँ ....माँ ...हाँ ...आपने सही सुना...मैं अब उनकी राह का पत्थर नहीं बनना चाहूँगी।
वह धीमे पर कटु स्वर से बोली।
पर तुम ...तुम तो ............ ।
इंद्रा अपनी अधूरी बात छोड़ कर मौन हो गई।
हाँ माँ आप यही कहना चाहती हो की मैं उन से अब भी प्यार करती हूँ।
इंद्रा उसे फटी फटी नजरों से देखती रही पर वह बोली कुछ नही।
भाबी माँ यह सच है मैं उनसे प्यार ही नहीं बल्कि अब उनकी पूजा करती हूं।
तो फिर शादी में क्या एतराज है।
जी,आप बताओ ? क्या भगवान को एक बार चढ़े फूलों को पुनः चढ़ाया जाता है।
आज तू यह कैसी बहकी बहकी बात करती है,बता क्या तेरा उस से झगड़ा हुआ था क्या कभी ? ।
न नही, माँ नहीं ऐसा आप सपनों में भी नही सोचना।
तो फिर क्यों नहीं चाहती तू उसके साथ हँसी खुशी जिंदगी गुजारना।
भाबी माँ मैं अगला जन्म उनके ही लिये लूँगी, बस इस लिये अब मुझे आपका सहारा चहिए जो यह शेष जीवन तुम्हारी छाया में उनकी पूजा करते कट जाए।
ओ ह.......।
इन्द्रा कुछ पल सिर पकड़ कर वहीँ किंकर्तव्यविमूढ़ सी होकर वहीं बैठ गई।
चलो भाबी माँ अब अपने कमरे में...।
वह इंद्रा का हाथ थाम कर बोली।
.....शेष अगले अंक में पढ़े।
Written by h.k.joshi p.t.o