अनुच्छेद 14 ● मेरी यादों के झरोखों से ● ------------------------------------'------------------------------
अरे मैं कब से बक बक किये जा रहा हूँ.......और तू है कि कुछ बोलता ही नहीं है, पता नहीं यार तू भी , किन किन ख़यालों की दुनिया में अक्सर खोया-खोया हुआ रहता है।
किशोर के साथी भाष्कर ने उसे लगभग झिंझोड़ते हुए कहा।
मगर किशोर अपनी ख्वाबों की दुनियां की मस्ती में अलग ही खोया हुआ था अतः भाष्कर के हिलानें पर वह अपनें सपनों की दुनियाँ से बाहर निकला,।
उस ने देखा कि उस का प्यारा मित्र भास्कर उस की वाह थामकर उसे जोर जोर से हिला हिला कर उस से कुछ कह रहा था।
,आss...आssss.. नssss...ननssss... ।
अस्पस्ट शव्द उसके मुंह से निकले।
अरे किशोर तेरी तबियत तो ठीक है,.......क्या बात है, ऐसे यहाँ क्यों ..चुपचाप..खड़ा है, किसके.... इन्तजार में।
भाष्कर नें उसे टोक दिया।
नहीं , ववव वो मैं तेरे आने का ही तो इंतज़ार अब तक कर रहा था।
अच्छा चल...आज हम ऑलरेडी पहिले ही से लेट हो चुके हैं।
भाष्कर नें उसकी बांह पकड़ कर आगे की ओर बढ़तें हुए कहा।
थोड़ा यार और रुक जाओ मेरे भाई।
वह उस से खुशामद भरें शब्दों में बोला।
तेरा यार , आज लगता है कि कालिज जाने का इरादा ही नहीं है ?।
उसके सहपाठी भाष्कर ने उस को टहोका देते हुए पूँछा।
अरे नही ..यार..,ऐसी कोई..बात नहीं ,तुझें पता है, कि आज प्रतियोगिताओं की समाप्ति के बाद आज ही कॉलिज खुली है, इसलिए अभी तो सभी बच्चे भी नहीं आए होंगें।
किशोर कहता कहता स्वयं के विचारों में कहीं गुम हो गया।
अच्छा तो अब यहाँ से निकल भी यार, तेरे चक्कर में प्रिंसिपल साहब से आज डांट खानी पड़ सकती है, जानतें हो ,लेट होनें पर।
भाष्कर उसे समझाता हुआ बोला।
पर बह,..लड़की. अभी तक तो..आई ही नहीं और पता नहीं कि वह आज आएगी....भी या..,नहीं।..
किशोर शून्य में ताकता हुआ अपने आप से बुद बुदाया।
अबे कोंन..लड़की ...कहाँ..आएगी...तू..किस लड़की की बात कर रहा है।
वही लड़की जिसे मैं वहुत चाहता हूँ।
तू तो गया काम से बेटा ?,बरना यह इश्क ज़ालिम अच्छों अच्छों को निकम्मा और देवदास जरूर बनाकर ही छोड़ता है।
ऐसी बात नहीं है यार।
किशोर धीरे से बोला।
फिर कैसी बात है,.....पूरे दिन में पता नहीं किस-किस लड़की के सपनें देखता रहता है।
भास्कर ने उसके पीठ पर हाथ रखते हुये कहा।
किशोर की चेतना जाग्रत हुईं।
कुछ नही... यार... चल... भास्कर यार वस यूँ ही ..बात मेरें मुहँ से निकल गई.।
किशोर ने अपनें मित्र भाष्कर को पकड़ कर अपनी झेंप मिटाने के लिय उसका हाथ पकड़ कर जल्दी से आगे बढ़तें हुए खींचा।
अब चल जल्दी से देर हो रही है।
लेकिन भाष्कर अपनी जगह से एक इंच भी नहीं हिला।
वाह ! बेटा , अब हमें ही बेवकूफ बनाने लगे।
भाष्कर उसकी ओर देखकर मुश्कराया।
अब चल भी यार आज हम वहुत लेट हो गए हैं।
किशोर पुनः बोला।
वाह ,हमारी ही बिल्ली हम से ही म्याऊँ.....बता तेरी लब स्टोरी कहाँ तक आगे बड़ी ।
यहाँ से निकल तुझें सब बातें विस्तार से बताऊंगा।
किशोर नें भाष्कर को भरोसा दिलाया।
और अगलें पल दोनो मित्र विद्यालय की ओर तेजी से बढ़ने लगे,रास्ते मे उनके और भी मित्र उनसे मिलतें मिलाते गये,और सबके सब झुण्ड के झुण्ड आपस में बात करते कालिज के मुख्य गेट की ओर रास्ते में बड़ते चले गए ।
यह कालिज ग्रामीण वाहुल क्षेत्र में होने के कारण यहाँ आस पास के गाँव से लेकर नौ दस मील तक गाँवों के सभी लड़के लड़कियाँ यहाँ पैदल तथा अपनी अपनी साईकिलों से या वस, टेम्पों से ही पढ़ने आते जाते थे ।
विद्यालय के एंट्री गेट के निकट ही एक साइकिल स्टेण्ड था ,किशोर और उसका मित्र मंथर गति से चलते हुए अपनी कक्षा में पहुँच कर अपनी अपनी सीट पर जाकर बैठ गए, ।
ठीक तभी कक्षा आध्यापक महोदय ने कक्षा में प्रवेश किया।
गुड मोर्निंग ...सर।
एक साथ ध्वनि से कक्षा ध्वनित हो गुंजारित हुई।
अध्यापक महोदय के बैठनें के बाद उन्होनें सभी बच्चों को बैठने का इशारा किया, ततपश्चात..सभी वच्चे अपनी अपनी सीट पर बैठ गये।
अब कक्षा में छात्रों की उपस्तिथि प्रारम्भ हुई , उसके बाद नए और पुरानें छात्रों का एक दूसरे से परिचय आरम्भ हुआ ,।
क्यों की यह प्रतियोगिताएं अगस्त माह में आयोजित स्वतंत्रता दिवस पर की गई थी अतः उन सभी प्रतियोगिताओं की समाप्ति के बाद ही कालिज को खुले आज तीसरा दिन था, नये नये बच्चे नई नई जगहों से आये हुये थे उनका परिचय भी एक दूसरे से होना आबश्यक था।
अत: कक्षा अध्यापक ने उन सब का परिचय कराना आपस में उचित समझा ।
इसलिए सभी बच्चे उठ उठ कर अपना अपना परिचय अपनें अपने सहपाठी मित्रों का इंट्रोडक्शन लेने देनें लगे थे, जब किशोर का नम्बर आया तो उसने भी अपना परिचय सभी को दिया।
अन्त मे वह बिद्यलय की सर्वान्गसुन्दरी जिसका नाम भी उसके रुप के अनुसार मधुर और मीठा था जब उसके सामने किशोर ने अपना परिचय दिया तो वह सिर्फ किशोर को ही देखती रही,। पर उसने अपना नाम किशोर को परिचय देतें समय नहीं बताया और ना हीं उस ने किशोर का नाम पूछा।
शायद वह दोनों एक दूसरे से परिचित थे।
किशोर अपने सम्मुख अचानक देख उसे लगातर देख ता ही रहा उसने उस से भोले पन के साथ पूछा।
क्या आप हम को पहंचान ती हैं, हमने आपको कहीं देखा है, किन्तु इस समय हमें याद नहीं आ रहा है ।
प्रतिउत्तर में उस लड़की ने भी किशोर से कहा।
मुझे भी कुछ एसा ही , आपको देख कर लगता है कि शायद मै भी एक लम्बे समय से आपको पहिचाँन ती रही हूँ ,.......पर याद नहीं आरहा है कि मैंने आपकों कब और कहां .....देखा है ,।
दोनों के इस अनोखे परिचय-मिलन से पूरा का पूरा कक्ष तालियों की गडगडाहट से गूंज उठा।
और इसी के साथ कक्षा को फ्री छोड़ दिया गया। परिणामस्वरूप, छात्र-छात्राओं के झुण्ड कक्षा से निकल कर कॉलिज की फूलों बाली क्यारियों के फ़ील्ड में आकर बैठ गए।
किशोर अब बता तेरी प्रेंम कहांनी कहां तक आगे बड़ी ।
अरे यार क्या खाक आगे बढ़ी।
वह भाष्कर को टालनें के उद्देश्य से बोला।
क्यों भाई फिर किसका इंतज़ार कर रहा था तू आज।
भाष्कर उसकी ओर देखकर बोला।
अरे भाई मैं किसी का इंतज़ार क्यों भला करता जबकि तेरे हिसाब से वह लड़की ठीक नहीं है।
अबे तू जरूर कुछ छिपा रहा है, बेटा कोई ख़ुशी हो या गम अपनें दोस्त ही काम आतें हैं।
एक्जेक्टली ,यार बस तेरी हर बात में दम है।
क्रमशा .अगले ...भाग में...।
Written by H. K. Joshi P.T.O