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मेरीं यादों के झरोंखों से भाग 78

19 अप्रैल 2022

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अनुच्छेद 78                    मेरी यादों के झरोखों से 
-------------------------------------------------------------------------------------मधु को दो दिन के बाद हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया था।
दिल्ली से आये अधिकारी जाँच पड़ताल कर मधु के बयानों को नोट कर जा चुके थे ।
किशोर भी अपने घर एक माह के अबकाश पर घर आया था। 
मधु की पूरी रिपोर्ट उसने रास्ते मे ही अपनी असिस्टेंट मिस अनुप्रिया से सुन ली थी ।
              अतः वह मधु के पिता की मृत्यु की ख़बर सुनकर और मधु की अचानक तवियत खराब होनें की खबर सुन कर किशोर  अपने को रोक न सका अतः वह बिना घर  पहुँचे ही रास्ते से सीधा मधु से मिलने  हॉस्पीटल आ गया था और अब जब मधु ठीक होकर अपने पिता की कोठी पर आ चुकी तो वह अपनी स्विफ्ट डिजायर में बैठ अपने घर की ओर रबाना होना ही चाहता था कि इंद्रा दौड़ कर उसके पास आई और बोली।
किशोर मेरे बेटे क्या तुम दो दिन के लिये हमारे यहाँ मेहमान बन कर नहीं रुक सकते।
इंद्रा ने अपने दोनों हाथ जोड़ कर कहा।
भाबी माँ, प्लीज आप मेरे सामने हाथ न जोड़े।
किशोर उसका हाथ अपने मस्तिष्क पर रखते बोला।
बेटा जब से तुम आए हो ,मैंने मधु के चेहरे को  अकेले में मुश्कराता देखा है।
लेकिन भाबी माँ मधु अपनी जिद की पक्की है, आप उससे कुछ न कहें, अन्यथा वह समझेगी की मैने ही उसे अपके द्वारा उसे मजबूर किया है।
जानती हूँ, पर तुम खुद सोचो पिताजी चले गए अब कौन है , जो मेरे सिबा उसका ख्याल रखेगा ?
और मैं उसकी भावी ही नही बल्कि मैंने उसे वहुत छोटी थी ,माँ जी हमसब को छोड़ कर चली गई,तब से मैंने मधु को सम्भाला है ,उसकी हर जिद मेने हंसते हंसते पूरी की,इस लिए वह थोड़ी जिद्दी है।
 लेकिन भावीमां वह मानती नहीं ।
उसको मैं कैसे समझाऊँ  बेटा किशोर मैं खुद नहीं समझ पाई हूँ।
भाबी माँ मेरे बारे में उस से कह देना की मैं चला गया हूँ,फिर उसके चेहरे को रीडिंग करना और देखना कि वह क्या फील करती है।
किशोर ने भाबी माँ को अपना प्लान पूरी तरह समझा दिया , और अगले पल इंद्रा मधु के समक्ष कमरे में किशोर के प्लान पर कार्य करती हुई जा पहुँची, ।
उस समय मधु बेड पर लेटी हुयी किशोर की तस्बीर को अपलक निहार रही थी। 
अपने निकट भाबी माँ को आया देख उसने किशोर की तस्बीर को जल्दी से उसी पुस्तक  में छिपा दिया, और मुश्कराकर इंद्रा का ध्यान बदलने के लिये उनसे  से बोली ।
अरे भाबी माँ आप ? अकेली ही यहाँ आईं हैं, वह कहाँ हैं।
कौन कहाँ हैं।
इंद्रा जानबूझकर अनजान बनती हुई बोली।
अगले पल मधु को अपनी गलती का भान होने से उसने अपनी बात को दूसरी ओर मोड़ने की कोशिश की।
मेरा मतलब भाबी माँ आप मेरे पास आइये भाबी माँ।
इंद्रा थोड़ा हंसी और बोली।
मधु जब भी तुम खुश होती हो तो मुझे वहुत अच्छा लगता है...किन्तु आज तो तू झूठ भी तो सही नही बोल पा रही है।
ओ भाभी माँ आप तो बाल की खाल से भी झूठ पकड़ लेती हो, पर मैं आज वहुत बर्षों बाद इतनी ख़ुश हूँ कि मुझ पर कहते नही, कुछ नहीं आरहा है।
मधु कुछ  क्षण रुकी फिर बोली ।
जब  भाबी माँ आप मेरे पास हैं तो मुझे दुनियाँ की हर खुशी मिल गई ,तो अब क्या एतराज है हँसने में मुझे।
मैं तो तेरे साथ पहिले भी थी और अब भी थी फिर नई ख़ुशी कहां से आगई।
इंद्रा मधु की ओर देखकर बोली।
मधु इंद्रा की बात पर निरुत्तर हो गई।
.मुझे ऐसा लगता है कि जरूर आज से पहले का खोया हुआ  अचानक तुझें मिला है, मेरी गुड़िया को, क्यों ठीक बोला मैंने।
मधु इंद्रा की बात सुन कर मुश्कराई होंठों में पर बोली कुछ नही।
Ssssसससस.....।
इंद्रा ने होंठो पर ऊँगली रख चुप रहने का संकेत मधु को किया।
तूने किशोर को जानें से क्यों नहीं रोका ?
 इंद्रा ने सरगोशी की।,
क्या भाबी माँ वे अभी जारहें हैं।
हाँ वह चला जायेगा,तू चाहें  तो रोक सकती है।
मगर मैं ....   उन्हें कैसे रोकू भाबी प्लीज आप कुछ करो ना।
उसे रोकने के लिए मेने स्विफ्ट की चावी  चुपचाप निकाल ली है, अब तू  कम से कम आज अपने लिये रोक ले  किशोर को,मैं उनकी गाड़ी की चावी चुपचाप निकाल लाई हूँ।
ईन्द्रा ने मधु को चावी सौप दी।
हाउ स्वीट भाभी माँ ....आप कितनी  अच्छी हैं। 
उसने अपनी भावी के कपोल पर एक हल्का चुम्बन अंकित किया।
अचानक दरबाजे के नजदीक किसी की पद चाप सुनाई दी साथ ही बाहर से किसी ने मधु के कमरे का दरबाजा ठक ठकाया।
कौन है......।
मधु ने तेज आवाज में पूँछा।
जी मैं हूँ किशोर ,क्या मैं अंदर आ सकता हूँ।
वह गेट पर ही रुक कर बोला।
जी आप आइये,  वह बेड से उतरती हुई बोली ।
किशोर अंदर आया और भाभी माँ की ओर देखता हुआ बोला।
भाबी माँ मेरी गाड़ी की चाबी नही मिल रही है,प्लीज हेल्प मि।
किशोर ने वहाँ खड़ी इंद्रा से कहा।
जी हमारी माँ हैल्प तो करेंगी पर उनकी एक छोटी सी शर्त आपको माननी होगी।
मधु धीरे से बोली।
अब भाबी माँ की शर्त  ?,तुम्हारी शर्तों में फंसा हुआ पहिले से ही हूँ।
किशोर कुछ सोचकर बोला।
मधु खिलखिलाकर हँसी, एक छण को किशोर को लगा निकट के मंदिर कि सुरीली घण्टियाँ बज उठी हो,वह अपलक अपनी स्वप्नसुंदरी को निहारता रहा ठीक जब उसने मधु को पहली बार अपने नजदीक हंसते हुए देखा था, वही खनकती हंसी जो किशोर को अपने अस्तित्व भूलने पर मजबूर कर देती थी वह खोया खोया मधु को देखता रहा।
ए मिस्टर,किसी महिला को घूरते हुए  आपको शर्म नहीं आती ।
मधु ने किशोर के सम्मुख चुटकी बजाते हुए कहा।
किशोर झेप गया,वह आहिस्ता  से बोला ।
सच कहूँ,आज मैंने तुमको इस तरह खिल खिलाते हुए  वहुत दिनों बाद देखा है।
हाँ,...यह आप ने सच कहा,मुझे खुद याद नहीं कि मैं पिछली बार कब और किस बात पर हंसी, पर  मुझे झूठ पसन्द नही।
झूठ कैसा?.....आपकी.... हँसी.... वहुत......................... प्यारी है, जी ..क..र..ता.....है..  ।
आगे बोलो ,।
वह आंदोलित हो  कांपती हुई बोली।
तुम मेरी बात से नाराज तो नहीं होओगी,वायदा करो....।
किशोर ने अटकते अटकते कहा।
नहीं ...जाओ आप भी क्या कहोगे मैंने ...बायदा किया,अब आगे बोलो।
वो ...बो तुमको देखकर मेरे दिल मे आज पता नहीं क्यों कुछ कुछ रिएक्शन प्यार का होरहा है।
तो रोका किसने आपको।
भाबी माँ ने।
मधु किशोर की बात पर खिलखिला कर जोर से हंस दी।
 अच्छा बेटा मैं  तुम्हारी चाबी ढूंढती हूँ।
इंद्रा कहती हुई बाहर तेजी से निकल गई।
ये मिस्टर आपकी चाँलाकी कुछ मैं समझने लगी हूँ।
यह ना इंसाफी है,आप बायदा कर के भूल जाते हो।
नहीं हम अब भी अपने वायदे पर कायम है।
तो फिर प्यार करने की अनुमति तो दे नही रही हो।
जी, यह अधिकार आपको हमारे दोनो भैया भाभी से मांगना  ही होगा ।
रास्ता बताने के लिये धन्यबाद,।
किशोर मुश्कराया।
तभी भावी माँ चाबी लिए वहाँ आ पहुँची थी।
लो चाबी।
इंद्रा के हाथ में  किशोर की स्विफ्ट डिजायर की चाबी थी।
मधु ने हाथ बड़ा कर चाबी ले ली।
मधु चावी दो , हम अब अपने घर जाना चाहते है।
वह कुछ गम्भीर आवाज में बोला।
यहाँ आपका मन नहीं लगता क्या।
इंद्रा बोली।
भाबी माँ  मन लगता है पर ......।
किशोर चुप हो चुका था।
प्लीज किशोर आप मेरी एक इच्छा पूरी कर दो।
मधु उसके आगे गिड़गिडाई।
अब बोलों क्या इच्छा है। 
किशोर ने उस से कहा।
जी आप बुरा तो नहीँ मानेंगें।
अगर बात बुरी न हो तब तक।
किशोर ने कहा।
प्लीज मुझे माँ जी को देखने की वहुत इच्छा है और मैं अब स्वतन्त्र नहीं, पिता जी थे तो जब जी करता भाबी माँ से कहकर चली जाती थी पर आज भैया की इज्जत पर कही धब्बा न लग जाये इस बारे में सौ बार सोच कर कदम उठाती हूँ।
वह एक एक शब्द तोल तोल कर बोल रही थीं।
उसके शब्दो मे वजन था।
मैं इसमें  क्या मदद कर सकता हूँ।
किशोर  असमंजस में बोला।
इंद्रा भी मधु की बात का अर्थ नही समझ सकी थी वह मधु की ओर प्रश्नात्मक दृष्टि से देखती रही,किशोर मौन था मधु दूर कही विचारों में खोई खोई सी थी, क्षण भर को वह कमरा सन्नाटे से आच्छादित हो चुका था,कमरे में तीन लोग तीनो अपनी दुनियाँ में खोये, समय गुजरा पता नहीं कितना तभी खाना बनाने बाले भैयाजी ने आकर उन्हें सूचना दी कि आप सभी को बड़े भैया और छोटे भैया खाने की टेविल पर आप सभी का इंतज़ार कर रहे है।
सबसे पहिले भाबी माँ चिहुँक कर बोली।
भैया जी आप चलो हम वही पल भर में आते है।
पर भाबी माँ......।
मधु इंद्रा के गले लगती हुई बोली।
चल अब तैयार हो, और हिम्मत रख।
इंदिरा ने उसके गाल थपथपाए।
किशोर निकल कर डायनिंग टेबिल पर पहुँच चुका था प्रेम और इन्द्रप्रकाश ने मधु को खाने की मेज पर अपने निकट बैठाया किशोर एक खाली कुर्सी पर बैठ गया।
कुछ समय बाद अनु प्रेम की दुल्हन  और इंद्रा आ चुकी थी, सेठजी की मृत्यु के बाद से आज पहली बार पूरा घर एक साथ एकित्रित हुआ था इंद्रा और प्रेम की दुल्हन सभी को खाना परोस रही थी मधु भी उन दोनो का सहयोग करना चाहती थी । 
तभी प्रेम ने अपने बड़े भाई के कान में कुछ कहा और अगले पल इन्द्रप्रकाश ने अपनी लाडली वहिंन मधु को पुकारा।
मधु आओ हमारे पास बैठकर खाना खाओ।
जी भैया ....।
वह यन्त्र चलित सी आगे वडी और उनके नजदीक खड़ी हो गई।
आओ दीदी आप हमारे पास बैठो।
प्रेम ने मधु को हाथ पकड़ कर किशोर के नजदीक कुर्सी पर बैठा दिया,किशोर के नजदीक होने के अहसास मात्र से उसके कपोल रक्ताभ हो चुके थे नजरें लाज से भरी मेज पर रखे खाने पर टिकी हुई एक हाथ से चम्मच पकडती हुई मधु अपने सपनों में खोई,वह यूँ ही किसी छुई मुई की गुड़िया की तरह ,बैठी थी सभी पुरुष खाना खा चुके थे  अतः प्रेम और इन्द्रप्रकाश ने उठ कर बास वेसन पर अपने हाथ धोयें किशोर ने भी उनका अनुशरण किया प्रेम और इंद्रप्रकाश बात करते करते किशोर के साथ ड्रॉइंगरूम में आचुके थे।
अब आप क्या कर रहे है।
इंद्रप्रकाश ने औपचारिकता के नाते किशोर से पूछा।
जी एक नौकरी कर रहा हूँ,वस गुजारा होजाता है।किशोर ने गोल जबाब दिया।
हम आप से अपनी वहिंन की खुशियाँ मांगते है,क्या आप हमारी मधु की खुशियां  हमें लौटाएंगे।
इंद्र प्रकाश हाथ जोड़ कर बोले।
बड़े भैया आप आदेश करो वस।
किशोर ने नम्रता से कहा।
आप हमारी वहिंन को स्वीकार कर लो।
प्रेम  किशोर के पैरों की ओर झुकता हुआ बोला।
आप  इस विषय में हमारी माताजी से बात करें ,वह आज भी मधु को अपनी वधु के रूप में देखती हैं।
किशोर ने मधु के बड़े भैया को अबगत कराया।
अगर आप बुरा न माने तो हम माँजी को आज गाड़ी भेज कर  यहीं बुलबा लेते है ।
इंद्रप्रकाश ने नया प्रस्ताव रखा।
जी भैया हमे क्या एतराज है।
ठीक है जाओ प्रेम तुम माँ जी को यहाँ सपरिवार लिबाकर ले आओ।
जी भैया।
प्रेम  बड़े भैया के आदेशानुसार अपनी इण्डिका लेकर निकट किशोर के गांव आँचलपुर चला गया। इन्द्रप्रकाश ने इंद्रा को अबगत कराया माताजी के आने पर कल मधु का हाथ किशोर को सौंपना चाहता हूँ आपके क्या विचार है।
जी आपकी खुशी,  वही मेरी मधु और मेरे घर की खुशी ।
मेरी मधु खुश है तोअब मैं क्या बोलूं,बस कल की व्यवस्था देखने जाती हूँ।
इंद्रा अपनी आँखों में आये उन ख़ुशी के आंसुओं को वहने से रोकने के लिये ,मुहँ छुपाते हुए वाहर निकल गई।
तभी  मधु अपने कमरे से निकल कर अपने बड़े भाई के निकट गई और बोली।
बड़े भैया,हम मंदिर जाना चाहते है, आप हमारे साथ चलो क्योंकि प्रेम भैया यहाँ नहीं है।
तो तुम अकेली चली जाओ।
नहीं भैया, आपकी आज्ञा हो तो हम आपके मेहमान को ले जाये।
ठीक है बेटी यह तो अति उत्तम रहेगा क्योंकि आप दोनों अब नए जीवन की ओर जाने से पहिले पूर्ण निष्ठा और एक दूसरे को समझ भी लेंगे।
जी भैया ।
वह तेजी से किशोर को खुश खबरी सुनाने लपकी। किशोर तैयार होकर खड़ा था, अतः वह मधु का इंतजार कर रहा था।और फिर कुछ क्षणों के इंतजार के बाद मधु सुसज्जित होकर मंदिर जाने हेतु अपने मनमीत के संग गाड़ी में बैठ कर मंदिर की ओर बड़ी।शेष अंश.....अगले अंक  में पढ़े।
Written by H.K.Joshi....      P. T. O.
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रचनाएँ
★ मेरीं यादों के झरोंखों से ★
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यह उपन्यास ग्रामीण आँचल से एक प्रेंम की विशुद्ध गाथा है, जिसका प्रारम्भ नाइक और नायिका के अचानक प्रथम बार आमना सामना होनें से होता है, दोनों एक दूसरे को देखकर सोचतें हैं कि वह दोनों तो पहिलें कभी मिलें हैं पर नायक किशोर अपनीं नायिका को देख कर अपनीं सुध बुध खो बैठता है, उसे लगता है , वह उसे वहुत पहिलें से जानता है पर उसे याद नहीं। यहीं से दोनों एक दूसरें को देखनें हेतु लालायित रहते हैं, पर कॉलिज की भी अपनीं एक मर्यादा है, अतः दोनों मन लगाकर पढ़ते हुए भी दोनों हैं
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