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मेरीं यादों के झरोंखों से भाग 79

19 अप्रैल 2022

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अनुच्छेद 79          मेरी यादों के झरोखों से ------------------------------------------------------------------------------------------- सेठ जी की कोठी आज रंग बिरंगे बल्बों की जगमगाहट से वहुत ही सुंदर दुल्हन की तरह दिख रही थी। वर्षोँ बाद आज पुनः खुशियाँ मानों लौट के आई हों।
 ऐसा  अद्भुत नज़ारा ,चारो ओर प्रकृति का कृत्रिम स्वरूप किसी आर्केटेक्ट द्वारा कोठी की सुंदरता को बिलकुल प्राकृतिक रूप जैसा देकर निखारा गया था।                             पर्वतों के साथ वहते झरना, तो कहीं ऊँचे ऊँचे बृक्षों को रंगीन वल्बो से आकार देकर मन मोहक कला कृति का काल्पनिक स्वरूप उकेरा गया था ।
                          सब से अधिक मन मोहकता के साथ  दुल्हन की जयमाला डालने की स्टेज  को बेहद ख़ूबसूरती के साथ बनाया गया था।
 जिसे मधु ने अपनी और किशोर की कल्पना का मोहक रूप दिया था।
 दुल्हन की उस स्टेज को एक लिफ्ट के द्वारा काल्पनिक आसमान में दुल्हन लिफ्ट के सहारे आसमान से  धीरे-धीरे बादलों के रथ पर सबार होकर  अपने चिरसँगी किशोर के गले मे वरमाला डालेगी जो एक लिफ्ट द्वारा निर्मित घोड़े पर बैठा होगा, हाथ में तलबार लिए होगा।
जैसे ही वरमाला का मुहूर्त शुरू होगा,वह स्वप्न लोक की सुंदरी  वरमाला हाथ मे लिये धीमी धीमी गति से आसमान से उतरती हुई धीरे धीरे बड़ती पृथ्बी पर अपने संगी किशोर को देख कर उसके गले मे वारमाला डालकर उसे अपने पति के रूप में वरण कर लेगी, और फिर अगले पल वह उसका सपनों का राजकुमार उसको अपने हाथ से उस उड़ने बाले सफ़ेद घोडे पर बैठा कर पल भर में अपने प्रेंमलोक स्वप्नदेश को ले जाएगा। 
बस यही उन दोनों का मिलन का प्रत्यक्ष साक्ष्य आसमान और धरती के तरह मधुर मिलन  का अद्भुत ऊर्जा से भरा अद्भुत मिलन होगा।
इस थीम  की कल्पना मधु ने की थी, पर उसका साथ दिया  मधु की भाबी माँ इंद्रा ने ,।
इंद्रा ने अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देतें हुए  या यह कहें कि उन्होंने इस  योजना को सजीव बनाने हेतु कुछ बाहर के स्पेसलिस्ट आर्केटेक्ट बुलाये गये थे।सभी तैयारी पूरी हो चुकी थी। 
विवाह की शेष रश्में सादा थी न कोई सोर सराबा न कोई बेंड बाजा वस दोनो पक्षो के हितु, मित्रो को सिमित संख्या में निमंत्रण दिया गया था।
 वरमाला मुख्य आकर्षन का केंद्र था,दुल्हन को दूल्हे द्वारा घोड़े पर लेकर जाना और तत्काल दोनो प्रेमियों का सेठ जी और सुनयनाजी की आदमक़द प्रतिमाओं से आशीर्वाद लेने के बाद फिर शास्त्रीय विधि से  सात  फेरे लेकर वर बधू की सादा विदाई होना था।
वस इतना सा था उनका  पुनर्विवाह का कार्यक्रम। 
इस अद्भुत शादी की खबर किसी को भी नहीं थी। कन्या पक्ष से भी कम से कम मेहमानों को बुलाया गया था।
 अतः जब रात्रि का समय आया तो सभी मेहमान कोठी में बनाये हुए विवाह-स्थल पर आकर इकट्ठे हो चुके थे। 
                    बिद्युत ब्यबस्था बिल्कुल सही दृश्यांकन के अनरूप की गई थी,जहां जहाँ वर वधु को हाई लाईट दिखाना था वहाँ ओटोमेटिक यंत्रो की सहायता ली गई थी।
 अतः कार्य क्रम मनमुताबिक निर्धारित समय में सम्पन्न हुआ ।
दुल्हन वनी मधु धीरे धीरे आसमान से उतरकर पृथ्वी पर वर की तलाश में वरमाला हाथ में सजाए धीरे धीरे विचरण कर रही थी , उसी समय एक वीर योद्धा अपने हाथ मे तलबार लिये घोड़े पर सवार होकर आया ,और उस सर्वांगसुन्दरी ने अपने स्वप्नलोक के राज कुमार के गले मे वर माला पहनाकर उसके चरणस्पर्श किये,किन्तु उस राजकुमार ने उसे नीचे झुकने से ही पहिले ही अपने ह्रदय से लगा कर अपने हृदय साम्राज्य की रानी का अभिनन्दन किया, और अगले पल उस स्वप्न सुंदरी को अपने हाथों घोड़े पर सवार कर ले गया जहाँ उस सुन्दरी के माताजी पिताजी के चित्र लगे थे अतः उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के तत्तपश्चत वैदिक रीति से अग्नि के समक्ष सात वचन और सात फेरे लेकर वचन लेना और देना था।
वहाँ आये सभी दर्शकों को ऐसा आभाष होरहा था जैसे इस अनुपम दृश्य को एक स्वप्नावस्था की स्तिथि में मंत्र मुग्ध होकर देखते रहे हों।
मधु किशोर दोनो ने सेठ जी और सुनयनाजी के चित्रों के सम्मुख उन्हें प्रणाम कर आशीर्वाद लिया, ततपश्चात इंद्रा और इन्द्रप्रकाश ने दोनों को आशीर्वाद दिया।
मधु और किशोर के पैरों को प्रेम और उसकी दुल्हन ने स्पर्श किया,तभी वहाँ बाताबरण में तालियों की गड़ गड़ाहट सुनाई दी।
              इसी के साथ कार्यक्रम अगले पलों में दूल्हा दुल्हन शास्त्रीय रीति से वैदिक धर्मानुसार अग्नि को साक्षी मान कर प्रदक्षिणा कर एक दूसरे का संग निवाहने का वचन ले चुके थे।
 इस प्रकार दोनो का विवाह सामाजिक स्तर पर सम्पन्न हो गया, तत पश्चात भोजन का कार्यक्रम पूर्ण होने के बाद अब मधु की बिदाई होने का समय आया मधु  इंद्रा ,इन्द्रप्रकाश प्रेम और उसकी पत्नी के गले लग कर वहुत देर तक रोती रही, तत पश्चात प्रेम ने मधु को किशोर की नई स्विफ्ट में  अपनें हाथों से बैठाया,।
सफेद स्विफ़्ट  गुलाब के सुर्ख़ गुच्छों से सजी धजी खड़ी थी उसे अब ड्राइबर की जगह पर स्वयं इंद्रप्रकाश ड्रायब कर रहे थे,प्रेम आँखों मे भरे आँसुओ से डबडबाये नेत्रों से मधु की ओर देखे जा रहा था उसकी पत्नी और इंद्रा  दोनो एक दूसरे के आँसु पौछ रहीं थी,वहाँ पर उपस्थित प्रत्येक इंसान इस सनातनी बिछड़ने की परम्परा के कारण आये अपने आँखों में आँसुओं को छिपा रहा था। 
स्विफ्ट डिजायर धीमें धीमे आगे बड़ती गई और वहां उपस्थित लोगों की आँखों से ओझल हो चुकी थी  अब उस स्विफ्ट की मंजिल वह आँचल पुर गांव था एक घण्टे पश्चात वह आँचल पुर माता रानी के उस शक्ति पीठ पर जाकर रुके थे जहाँ पर मधु किशोर का प्रथम बार माता के मंदिर पर मिलन हुआ था ,मधु की इच्छा के अनुसार किशोर उसे माँ के मंदिर में ले गया और भोर वेला में दोनों चिर नव दम्पति ने माता रानी के दर्शन किये , और पूजन कर पुजारी जी ने मधु को सदा सुहागिन रहने का आशिर्बाद दिया, अब मधु उस झील की ओर बड़ी जहाँ उन दोनो का प्रेम परवान चढ़ा था,झील उसी तरह सजी सम्भली सुंदर कमलों से भरी वहुत सुंदर मनोहारी लग रही थी।
मधु दुल्हन वेश में झील के निकट पहुँची ।
आप भी चलों मैं वह शिला देखना चाहती हूँ।
आल राइट मधु।
किशोर मधु के पीछे पीछे चला ।
मधु  ठीक वही स्थान पर खड़ी थी जब प्रथम बार किशोर ने उसको आलिंगनबद्ध किया था।
देखो यह स्थान वही है।
हाँ पता है,।
किशोर ने बड़ी मासूमियत से बोला।
तो फिर मुझे अपनी बाँहो में क्यो नहीं लेते।
सॉरी, मैडम मैं बिना परमिशन कोई कदम नहीं उठा सकता।
वह कहता हुआ जोर जोर से हंसा।
ये मिस्टर यहाँ आओ।
वह भी किशोर की ओर मुश्कराती हुई बोली।
जी आया ।
वह उसके निकट पहुँचा।
उधर मुहँ करो।
क्यों ।
मुझे परमिशन नही लेनी है,इसलिये।
मधु धीरे से बोली।
कोई बात नही मेरा विचार है कि अब तो यह  हुश्न की बेशुमार दौलत अपनी ही जागीर है।
अच्छा तो आओ हम मिल कर आपसी सहमति से अपने प्यार का एक मुकाम हासिल करें।
किशोर ने उसे अपनी विशाल बाँहों में ले लिया मधु अपने अस्तित्व को समेट कर किशोर के ह्रदय से जा लगी।
  ♀♀♀ :-  ********समाप्त*******  :-♀♀♀
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रचनाएँ
★ मेरीं यादों के झरोंखों से ★
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यह उपन्यास ग्रामीण आँचल से एक प्रेंम की विशुद्ध गाथा है, जिसका प्रारम्भ नाइक और नायिका के अचानक प्रथम बार आमना सामना होनें से होता है, दोनों एक दूसरे को देखकर सोचतें हैं कि वह दोनों तो पहिलें कभी मिलें हैं पर नायक किशोर अपनीं नायिका को देख कर अपनीं सुध बुध खो बैठता है, उसे लगता है , वह उसे वहुत पहिलें से जानता है पर उसे याद नहीं। यहीं से दोनों एक दूसरें को देखनें हेतु लालायित रहते हैं, पर कॉलिज की भी अपनीं एक मर्यादा है, अतः दोनों मन लगाकर पढ़ते हुए भी दोनों हैं
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