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मेरीं यादों के झरोंखों से भाग 05

5 अप्रैल 2022

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      अनुच्छेद  05                  मेरी यादों के झरोखों से   _______________________________________ ....एक टक़ दृष्टि उस आवाज  की ओर लक्षित,.थी उसकी..और...चेहरा  एक दम भाव शून्य, .था किशोर का,..और.एक दम.मष्तिष्क क्रिया-विहींन, साथ ही उसके दोनों पैर मानों जमीन ने स्वयं अपनी किसी आकर्षण शक्ति से चिपका लिए हो , और वह अपनें  दोनों पैर उसी स्थान पर से दूसरे स्थान  को लेजाने की कोशिशें भी नहीं करता  हुआ दिखता था , कैसी विक्षिप्तों जैसी ठीक  विचित्र स्थिति थी उसकी जब से उस राह पर उसकी वह सपनों की रानी उसके सामनें से गुजरती गई थी अपनीं सहेलियों के संग ,और तब से अब तक अनेक छात्र छात्राओं का आना जाना लगातार जारी था उस राह पर , क्यों कि कॉलिज की द्वतीय बैल बजकर बन्द हो चुकी थी, लेकिन किशोर के पैर फिर भी अभी भी वहीं के वहीं चिपके थे उस स्थान पर जहाँ उसकी द्वतीय बार वह स्वप्न सुंदरी उसकी ओर देख कर पाहिली बार मुश्कराई थी, बस पता नहीं ऐसा क्या था उसकी उस मधुर दिलकश मुश्कान में , बस तभी से किशोर वहीं खड़ा हुआ था इसी बीच उसके,इस अंतराल में अनेक ग्रामीण राही और  कॉलिज के जानें बालें उसके साथी उसे आश्चर्य से देखतें हुए निकलतें रहें पर लगता था उसको अपनें वजूद का कोई ध्यान ही ना हो क्योंकि वह जब से वहीं एक स्थान पर किसी स्टैच्यू के समान वहीं के वहीं..जमीन पर मानों... चिपके हुए खड़ा  था वह।
 किशोर के दोनों पैर ,और एक लम्बा..सा...अंतराल....बीत चुका था उसे लेकिन वह किशोर अब भी ठीक उसी स्थिति में जैसे वह उस अनिन्द्य सुंदरी को अपनें सामनें से आतें देख कर एक दम भाव शून्य हो गया था ठीक बैसे ही किसी स्टैच्यू के मानिंद, एक टक शून्य को निहारता हुआ ठीक वहीँ अब भी खड़ा था किशोर, मानो जमीन ने उसके पैरों को चिपका लिया हो।
 तभी उस किशोर के पीठ पीछे से किसी की आबाज आई। 
अरे.....किशोर ? यार तू  यहां पर  खड़ा हुआ क्या कर रहा है ? क्या आज कालिज नही जाने का मूड बना लिया है,।
उसके सहपाठी भाष्कर नें उस से  अचानक प्रश्न किया ,पर किशोर पर भाष्कर की  किसी बात कोई असर  ही नहीं हुआ, वह पहिले के भाँति ही शून्य में घूरता हुआ उसी पूर्व स्थिति में था।
एक बार  फिर भाष्कर नें उसे पुनः  पुकारा।

.......  ... .।
और इस बार भी कोई  उत्तर नहीं दिया उस किशोर ने।
आख़िर में भाष्कर ने उसके आँखों के सामने हवा में  हाथ लहराया पर किशोर की कोई प्रति क्रिया ना होती देख उसनें किशोर की पीठ पर एक धौल जमाते हुए  भाष्कर बोला।
क्यों दीवाने  आज कालिज नहीं...... जाना है ।
किशोर का दोस्त भास्कर उसका पुनः हाथ पकड़ कर बोला।
 आअ.....अअअ...अ आ,ये ।
उसके मुहँ से अस्पष्ट स्वर निकला, जैसे  बह गहरी नींद से  अभी अभी जागा हो ।
च,च... चलो ह ह ह हाँ।
किसोर अस्फुट सा बोला।
किशोर .......क्या बात है...आज... ,तेरी तवियत तो ठीक है। 
उस नव आगंतुक लड़के भाष्कर ने उस की पीठ पर एक  बार फिर प्यार से हाथ फिराते हुए कहा ।
न न ....नहीं यार..... बो बो .....अ रे..... अरे वह..... कहाँ है।
 किशोर  के मुहँ से अचानक कुछ अस्फुट शब्द पुनः निकले। 
 क्या बोल रहा है .... यार..तेरी तबियत तो ठीक है।
उसका दोस्त भास्कर  उसे आश्चर्य से देखता बोला।
मैं मैं ठीक हुँ.......पर वह ....वह ..अब...कहाँ ....है। 
किशोर हकलाता हुआ पुनः बोला।
मगर यार तू किसकी बात कर रहा है,  किस के बारें में पूछ रहा है।
उसका सहपाठी साथी  भाष्कर  अब चिंतित नजर आ रहा था।
अरे  वह वहीं लड़की जो कॉलिज में सबसे सुंदर है।
कौन  सी लड़की सबसे सुंदर . और....कहाँ की  है वह ,. .?.मुझें तो....तूनें.....आज..तक किसी लड़की के बारे में....कभी  कुछ.....बताया ही नहीं....था ?....... तू कैसी बहकी वाहकी बातें कर रहा है। और एसी ......बहकी ..... बातेँ क्यों कर रहा है क्या मतलब है तेरा।
भाष्कर अपनें दोनों कंधों को  उचका कर बोला।
नही यार वह अपूर्व सौंदर्य की  स्वामिनी अभी ...अभी यहाँ से..निकल...कर...गई है।
पर मैंने तो यहाँ किसी ..गाड़ी....या..लड़की बड़की..... को नहीं देखा ?
भाष्कर कुछ गर्म स्वर में बोला।
पर मैने उसे ...अभी अभी...देखा है।
किशोर अस्पस्ट शब्दों में बद्दुबुदाया।
लगता है तूने कोई भूतनी तो नहीं देखी अभी अपनें सपनों में......,चल अभी मेरे साथ अस्पताल को चल,.....लगता है तेरी आज तवियत  ठीक नहीं।
बह लड़का उसका माथा और नब्ज चैक करता  हुआ बोला।
मैं ठीक हूँ,चल ...अब....कालिज .....चले।
किशोर ने उस से कहा।
 और अगलें पल दोनों दोस्त  छुपतें छुपाते आगे उस स्थान से आगे की ओर बड़े।
दोनो दोस्त साथ साथ जब कॉलिज के जानें बाली मुख्य रोड़ पर आए तो उन्हें थोड़ी दूर कालिज का  बड़ा गेट  दिखाई देने लगा था अतः दोनो दोस्त साथ साथ  चलतें हुए गेट में प्रवेश कर चुके थे। ....प्रधानाचार्य अब अपनें दौरे पर निकल चुके थे अतः उन दोनों को देर से आया देख उन्होनें लेट आनें का कारण पूँछा।...शेष आगे पृष्ठ पर। 
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रचनाएँ
★ मेरीं यादों के झरोंखों से ★
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यह उपन्यास ग्रामीण आँचल से एक प्रेंम की विशुद्ध गाथा है, जिसका प्रारम्भ नाइक और नायिका के अचानक प्रथम बार आमना सामना होनें से होता है, दोनों एक दूसरे को देखकर सोचतें हैं कि वह दोनों तो पहिलें कभी मिलें हैं पर नायक किशोर अपनीं नायिका को देख कर अपनीं सुध बुध खो बैठता है, उसे लगता है , वह उसे वहुत पहिलें से जानता है पर उसे याद नहीं। यहीं से दोनों एक दूसरें को देखनें हेतु लालायित रहते हैं, पर कॉलिज की भी अपनीं एक मर्यादा है, अतः दोनों मन लगाकर पढ़ते हुए भी दोनों हैं
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