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मेरीं यादों के झरोंखों से भाग 77

19 अप्रैल 2022

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अनुच्छेद 77          मेरी यादों के झरोखों से ______________________________________________संसार मे आना जाना यह लगा हुआ है इसीलिये इसे सांसारिक नियम माना है, जिसकी मृत्यु हुई वह एक दिन जन्म भी लेगा, यह नियम भौतिक ,सत्य  निरन्तर शाश्वत सनातन चिरायु है।
 वह अगम सत्य सर्व मान्य है।
             बक्त एक ऐसा मरहम है जो बड़े से बड़े घावों को भर देता है,यह जीवन जितना है उतना हर हाल हर स्तिथि में मानव को जीना ही पड़ेगा।, और यह भी कटु सत्य है कि  मानव के बनाये नियमों में तो परिबर्तन की गुंजाइश है किंतु प्रकृति के नियम अटल अपरवर्तनीय ध्रुव सत्य है,किसी की कमी कोई यू ही नहीं पूरी कर देता ।
जिस पर ईश्वर की कृपा होती है उसे कोई भी कितना मिटाना चाहे वह उसे नही मिटा सकता ।
सेठ जी के परलोक गमन के बाद सेठ जी के दोनों पुत्रों ने सेठ जी की संपत्ति का बंटबारा आपस मे मिलकर हितु रिश्तेदारो के समक्ष आपसी सहमति और सर्व सम्मति से तीन भागों में विभक्त किया ,जिसमे एक सम्पत्ति के भाग की हिस्सेदारी सेठ जी की परित्यक्ता पुत्री मधु को भी दे दी गई थी।
मधु अपने पिता के ही आश्रय पर थी ,किन्तु वह लालच से दूर इस स्वार्थी दुनियाँ से अलग थी उसे पैसा नही वह प्यार की जरूरत थी जिसे परमात्मा ने उसे अव तक बंचित रखा था। 
अपने मन की दुनियाँ में अपने किशोर को,पिता की दुनियाँ में अपने  पिता को वह वहुत चाहती थी।
पिता की मृत्यु से वह एक दम टूट चुकी थी,
हरदम अकेली पड़ी पडी सिर्फ आँसुओ की दुनियाँ से नाता जोड़ना उसका भाग्य बन गया था,इंद्रा ने उसे वहुत समझाया पर वह टश से मश नही हुई ,उसे अपने छोटे भाई प्रेम से कोई घृणा नही हुई ,हाँ इतना जरूर मधु में परिवर्तन हुआ था कि वह प्रेम से कभी भी बात करने की इच्छा हमेशा हमेशा के लिये त्याग चुकी थी,।
प्रेम भी अपने पिता और मधु के प्रति किये अपने ब्यबहार से वहुत ही शर्मिंदा था ,अतः वह कभी भी मधु के सामने नहीं जाता उसे अपने किये कुकृत्यों की याद बार बार ताजा हो जाती तब वह मन ही मन अपने को दोषी मानकर प्रायिश्चित करना चाहता किन्तु अब क्या जब अवशर ही निकल गया तो क्या लाभ,अतः अपने ह्रदय की आत्मग्लानि की अनुभूति को वह सच्चे मन से मधु के सामने धो ड़ालना चाहता था ।
किंतु मधु थी कि वह उससे स्वप्नावस्था में भी नही मिलना चाहती थी ,प्रेम अपनी गलतियों का प्रायिश्चित स्वयँ करना चाहता था, वह कई बार मधु से बात करने की कोशिशें कर चुका था पर मधु की उदासीनता के कारण वह अपनीं हिम्मत नहीं जुटा पाता था।वह जब भी अपनी ओर से प्रयास करता किंतु मधु हमेशा उसे नजर अंदाज कर देती और इस तरह बच कर निकल जाती मानो प्रेम को उसने देखा ही न हो।
एक दिन मधु जब मंदिर जाने को तैयार होकर वाहर निकली तो प्रेम उसके सामने आकर उसके पैरों को स्पर्श हेतु नीचे को झुका,प्रतिक्रिया स्वरूप मधु ने अपने कदम पीछे की ओर दो कदम पीछे खींच लिए।
भैया, ऐसा करने की कोई बजह।
वह निरुत्तर उसे देखता रहा, अगले पल मधु उसकी ओर से हठ कर दूसरी ओर जाने को मुड़ी।
दीदी प्लीज .......।
वह उसकी ओर विना देखे बोला।
जाओ भैया यहाँ तुम्हारी कोई दीदी नही शायद तुम अपना रास्ता भूल गये हो जो विना पहिचान के मुझे अपनी दीदी कहते हो।
प्रेम की आँखों में बरबस पश्चाताप के आँसू निकल पड़े।
वह नीचे मधु के पैरों में गिर गया अगले पल वह किसी भोले बच्चे की तरह सिसकियाँ ले रहा था, मधु पत्थर की मूर्ती की भांति उसे देख रही थी।
वह वहुत देर तक उसके पैरों में नीचे पड़ा पड़ा रोता रहा।
दीदी मेरी प्यारी दीदी अपने छोटे भैया को मांफ कर दो।
वह उसके पैर पकड़े हुए बोला।
अगले पल मधु का हृदय द्रवित हो चुका था वह इतनी कठोर हृदय नहीं थी अतः वह सब कुछ भूल कर उस मोम की निर्मित प्रतिमा के समान  द्रवित होकर जरासी प्रेमकी पश्चाताप की गर्मी में पिघल उठी थी वह  सब कुछ भूलकर प्रेम को अपने कंधे से लगाकर लगातार सुबकती  रही वह कभी उसे पुचकारती हुई कहती।
मेरे भैया मेरे अनमोल रत्न तू  ही तो इतना कठोर बन चुका था ,तेरी बहिन तो आज भी तेरी नजरों से गिरी हुई आज वहीं की वहीं है जो पहिले थी।
उठ चल आज अपनी वहिंन की खुशी के लिये उसके साथ मंदिर चल।
मधु ने दीर्घ स्वांस छोड़ी।
प्रेम उठकर अपनी वडी वहिंन के साथ मंदिर की ओर बढ़ चला।
 मंदिर अनेक बृक्षों से आच्छादित था मन को मोहने बाला बाताबरण सहज शीतल समीर सुखदाई था वह बट बृक्ष की छाया में बैठ गया मधु पूजा कर बापिस आई औरअपने छोटे भैया को प्रसाद दिया और बोली।
भैया मेरी तो दौलत आप हो , मुझें नही चाहिए  कोई हिस्सा, पिता जी की सम्पत्ती का, मुझे बस दो रोटियों का सहारा दे दो जो वस मेरी अंतिम स्वांस तक मेरा चैन न खोने दे।
वह कुछ पल को रुक कर अपनी श्वांशों को नियंत्रत कर बोली।
  भैया मैं अब चैन से अंतिम साँसे तेरे आश्रय में बिना तेरी इज्जत मिट्टी में मिलाय ,लेना चाहती हूँ , मैं भी पिताजी की तरह हमेशा हमेशा के लिए शान्ति के साथ एक दिन चली जाँऊगी।
मधु के सीने में दबा दर्द आँखों के रास्ते वह निकला।
मेरी दीदी तुम मुझ से बड़ी हो,मुझे सजा देदो पर वहिंन अपनी नजरों से मुझें मत गिराओ, मैं तुम से मुहँ मोड़कर अपने पिता जी को खो बैठा, और अव आपको बड़े भईया भाबी को  सदा सदा के लिये नही खो सकता, वहिंन जब जब मैंने तेरी छोटी भाभी की झूठी बात पर यकीन किया तब तब मैंने अपना सब कुछ खो दिया है।
भैय्या, जो होना था वह तो हो गया,अब वर्तमान पर ध्यान दो।
मधु ने  प्रेंम को समझाने की कोशिश की।
अचानक वही महापुरुष स्वामीजी मधु की ओर आते दिखाई दिए वह मन्द गति से चलते मधु के निकट जाकर खड़े हो गये और  हाथ उठा कर बोले।
वत्स ,जीवन मे संघर्ष आते और जाते है वही मानव सफ़ल हुआ  है जो सत्य के इन परीक्षा भरें रास्तों से गुजरा हो।
स्वामी जी महाराज को देख मधु उनके पैरों में झुकी और आशीर्वाद प्राप्त किया।
जाओ बेटी अब तुम्हारे जीवन मे संकट टल गया है जाओ अपने प्रियजनो का स्वागत करना।
महाराज जी ने मधु को आशीर्वाद दिया।
 प्रेम भी महाराज जी के चरणों का स्पर्श कर चुका था। अतः दोनो वहिंन भाई मंदिर से घर की ओर चल दिये कुछ क्षणोंपरांत जब वह घर पहुचे तो एक महिला पुलिस इंस्पेक्टर और एक कॉन्स्टेबिल कोठी में अंदर उसकी प्रतीक्षा करते मिले।
 मधु का ह्रदय किसी अनहोनी आशंका में  पुनः धड़क उठा।
वह अपने बड़े भाई की ओर ध्यान आकर्षित कर बोली।
बड़े भैया क्या बात है।
वह आशंकित होकर अधीरता से बोली।
कोई बात नहीं बेटी यह आपके पास एक पुराने केश कें सिलसिले में कुछ जानकारी चाहते है।
मधु वहीं एक कुर्सी पर बैठ चुकी थी।
जी पूछिये।
वह  सशंकित होकर बोली।
लेडी इंस्पेक्टर ने  उससे पूछा।
आपका नाम।
जी मधु।
आपका विवाह किससे और कहाँ हुआ।
जी मेरे पिताजी के द्वारा मेरा विवाह देहली में अनन्त के साथ हुआ था।
क्या आप को अपने पति के व्यबसाय की जानकारी थी।
जी नही,
पर हमारी जांच टीम ने जो रिपोर्ट सौपी है उसमें, आपभी अपने पति के किसी कार्य मे संलग्न थी।
मधु कुछ समय तक सोचती रही फिर बोली।
देखिये मेडम,मेरी शादी होने के बाद मेरा पति अपने बिजनैस में ही व्यस्त रहता,मेरा मन अकेले उस बड़े पैलेस में नही लगता था अतः मैंने भी अपने समय को बिताने के लिए अनन्त के होटल में बैठना और  उसका हाथ बटाना आरम्भ किया,किन्तु उन लोगों के व्यबहार से मुझे दुख हुआ,उन जैसे घृणित लोगो से मुझे सदा सदा के लिए घृणा हो चुकी थी।
क्यो ऐसा क्या कारण था।
जी मेरा पति मुझ से वह सब कुछ कराने को मजबूर कर चुका था,जिसे करने को मेरे संस्कारों ने उन्हें करनें की कभी अनुमति नहीं दी। 
 मैंने कभी भी उसकी जानकारी होने पर उस गलीज विजनेस में उसका सहयोग नही किया।
यू आर राइट, बाद की इन्वेस्टिगेशन में आपका कोई भी रोल नहीं दिख रहा है।
जी धन्यबाद, मधु बोली।
एक मिनट, मैं अपने अधिकारी से बात करती हूँ।
उस  महिला इंस्पेक्टर ने कहा।
वह महिला इंस्पेक्टर अपने ट्रांस्मिटर पर सम्पर्क साधने की कोशिश करने लगी। 
सम्बन्ध होने पर वह बोली।
सर में अंनु प्रिया बोल रही हुँ ।
दूसरी ओर से किशोर की आवाज आई। 
हाँ बोलिये  अनु।
सर में मेडम अनन्त का बयान ले चुकी हुँ, वह शुरुआत में बिना जानकारी के सहयोग करती रही थी लेकिन जब उन्हें इस बारे में जानकारी हुई तो इन्होंने उनका बिरोध किया।
ओ के क्या वह अपनी ओर से गवाही दे सकती है।
सर आप बात करे।
आप मुझ से मेरे नम्बर पर बात कराओ।
यस सर,उस लेडी इंस्पेक्टर ने वीडियो कॉलद्वारा मधु को अपना एंड्रॉइड सेटआँन कर बात करने को दिया।
जी सर आप मुझ से क्या चाहते है।
ओह........ ,तुम ........।
अचानक मधु को वह आवाज जानी पहिचानी लगी पर वह समझ नहीं पाई थी।
दूसरी ओर से फोन उस महिला अधिकारी को देने को कहा गया।
मधु ने फोन उसे दिया और उसे लगा कि सारी दुनिया घूम रही है,वह अगले पल चक्कर खाकर बेहोश हो जाएगी और हुआ भी वही वह अचानक कुर्सी से नीचे की ओर झुकती चली गईं थी।
चलिये इन्हें निकट के हॉस्पिटल में भर्ती करें , इनको कोई अचानक शॉक लगा है।
वह महिला अधिकारी ने प्रेम और इन्द्रप्रकाश की ओर देखकर कहा।
प्रेम ने गेराज से अपनी इण्डिका निकाल कर मधु को  कार मे लिटाया और अगले पल इण्डिका तेज गति से बड़ती हुई कंचनपुर के सरकारी हॉस्पिटल में दाखिल हो चुकी थी साथ ही उसके आने से पहिले  किशोर के कहने पर तुरंत ओक्सिजन आदि आपातकाल सुबिधा उपलब्ध कराई गई।
लेडी इंस्पेक्टर द्वारा सारी जानकारी देने के बाद किशोर स्वयं अपनी स्विफ़्ट डिज़ायर से एक घण्टे में हॉस्पिटल आ चुका था।
वह सिबिल ड्रेस में था, इंद्रा को देखकर वह उसके पैरो में झुका किन्तु इंद्रा ने भाबुक हो उसे अपने सीने से लगाया और हाथ जोड़कर बोली ।
उसे वचा लो, बेटा किशोर जीबन भर तुम्हारी मैं ऋणी रहूंगी।
भाबी माँ आप हमारी हिम्मत हैं, आप निश्चिंत रहें उसे मौत भी मुझ से नहीं छीन पाएगी।
प्रेम ने किशोर के पैर छुए इन्द्रप्रकाश ने किशोर को अपने गले लगा लिया।
तभी उस इमरजेंसी वार्ड से एक नर्स ने उनका ध्यान आकर्षित कर कहा।
देखिये आपका पेशेंट्स कोमा की स्तिथि में है,वह केबल एक नाम पुकारता है,किशोर ....किशोर.... किशोर...वह आप में से कौन हैं.।
किशोर बेचैनी से भर उठा, वह केबल ईधर उधर विना उद्देश्य घूमने लगा।
मिस अनुप्रिया आप हॉस्पिटल के बड़े अधिकारी से बात करो ,अगर केस कब्रेज कर सकतीं है तो  ठीक है अन्यथा रेफ़र करने को बोले।
ओ के सर।
वह तेजी से बड़े डॉक्टर से मिली अगले पल वह डॉक्टर के साथ बाहर निकली  डॉक्टर ने इमरजेंसी का दौरा किया उसने किशोर को निरीक्षण कर बताया।
पैसेन्ट कभी भी होश में आसकता है कृपया उसे ज्यादा डिस्टर्ब न करें, कभी कभी मानव को अचानक मिली खुशी भी हानिकारिक होती है।
जी क्या मैं उसके पास जासकती हूं।
इंद्रा बोली।
जी हाँ, अभी होश आये और वह अपनी इच्छा से जिस से  भी मिले वस वही उसके पास जाए।
अभी डॉक्टर कह ही रहा था कि नर्स ने डॉक्टर को सूचित किया कि मरीज को होश आ  चुका है।
ओ के , ।
डॉक्टर लपकते हुए अंदर नर्स के साथ गया और मधु से पूछा किस से पहले मिलना चाहती हो।
जी मैं अपनी भाबी माँ से।
डॉक्टर ने सँकेत से नर्स से कुछ कहा नर्स वाहर से इंद्रा के साथ आई और वही मधु के निकट बैठी उसके सर पर हाथ फेरने लगी।
भाबी माँ वह इंस्पेक्टर है या गई।
क्यों तुम क्यो परेशान हो।
जी भाबी मेरा पुराना इतिहास आज उनके सामने आ जायेगा।
हिसससस पगली तू तो कभी नहीं हारी थी अपनी जंग ,फिर जीबन से फिर अचानक क्यों ऐसा सोचती है  क्यों?
भाबी माँ अगर किशोर को पता लग गया तो मैं कैसे उन से मुहँ छिपाउंगी...वह क्या सोचेंगे मेरे बारे में।
मधु अपनी शंका प्रकट करती हुई बोली।
चल हट, और भी कुछ अच्छा सोच, तेरे और भी अपने तुझसे मिलना चाहतें हैं। 
कहती हुई बह उस रूम से निकल कर बाहर आई।
और बोली।
जाइये आप दोनो भाई भी मिल लो वह अब ठीक है।इस तरह सब से अंत मे किशोर उसकी ओर बड़ा तो दोनों दिलों की धड़कन एक गति से आंदोलित होती हुई एक दूसरे की वहां उपस्तिथि प्रकट कर रही थी।किशोर आहिस्ता आहिस्ता उसके नज़दीक पहुँचा और उसके बालो का स्पर्श कर उसका माथा सूंघने लगा।वह वन्द आँखों से उसे महशूस करती रही धड़कने एक, स्पर्श एक, और अगले पल दोनो के शब्द भी एक जैसे शब्द एक साथ मुहँ से निकले।
अब कैसे है।
हम ठीक है।
किशोर उसका हाथ अब अपने हाथ मे पकड़ चुका था।
एक बात पूछूं ? यहाँ क्यो आये.?...।
एक साथ दो प्रश्न किये मधु ने।
कुछ लोग इतने जिद्दी होते है कि उन्हें कितना भी दिल से निकालो,पर वह निकलते ही नही,वह यादें बनकर दिल के किसी कोने मे पडे ही रहते है।
वह बोला।
मधु के होंठो पर एक झीनी सी मुस्कान पल भर में उभरी किन्तु वह बोली कुछ नहीं।
और ...कुछ शिक़ायत हो या कोई ज़िद।
किशोर ने उसकी ओर प्रश्न किया।
हैं...पर  अभी कहूँगी नहीं।
वह धीमे से बोली।
अब  और आगे ....।
किशोर ने कहा।
आगे क्या...आप अपनी शादी करलो।
वह हंसी।
शादी तो करली।
किशोर बुदबुदाया।
अब कब मिलाओगे मुझें मेरे अपने से।
वह चेहरे पर मुस्कन भरती बोली।
पर हमारी शर्त है कि हम कभी भी उस से आपको मिलबा नही सकते।
आपकी हर शर्त मंजूर,अब मैं चैन से अकेली खुश रह लूँगी।
यह अकेले रहने की सलाह किस ने दी तुमको वह बोला।
पर मैं आप को देखना चाहूं तो देख सकती हूँ, कभी अकेले में एक मित्र से अपने ह्रदय की बातों को बाँट सकती हूँ।
किशोर ने लम्बी स्वांस खींची।
और बोला।
हाँ पर मन की आँखों से।
मन तो है ही नहीं उसे तो बक्त बे बक्त के थपेड़ों ने कब कहा चूर चूर कर उसको दुःखो के झँझावात के हवाले कर दिया और वही उड़ाकर अपने साथ ले गया मेरा अपना सपना।
मधु पुनःबोली।
यह भी तो जरूरी नही की जिसे हम प्यार करें वह हमकों मिल ही जाए ,।
वह पुनः बोली।
पर हम उसको अकेला भी तो यूँ नही छोड़ सकते वह हमारे जीबन में एक अच्छा दोस्त भी तो बन सकता है क्या दोस्त की दोश्ती जरूरी नही की वह पवित्र हो,यह सम्बन्ध तो कृष्ना और राधा के भी तो थे।
हाँ वह जमाना और था,और अब और।
मधु मन को और मकान को समय समय पर साफ स्वच्छ करने से उस मकान में दूषित कूड़ा और मन मे दूषित बिचार एकीत्रित नही होता।
किशोर ने कहा।
फिर वह अभी अभी जो अहसास मेरे ह्रदय में जागा वह सब क्या था ?...उसने एक लंबी श्वांस छोड़ते हुए कहा कुछ समय रुक कर मधु पुनः बोली।
मुझे......नहीँ.... पता....वह पुनः सीरियस होगई।
कोई बात नहीं अगर ईस्वर को यही मंजूर है तो यही सही,।
तुझे पा न सके तो कोई बात नही 
पर तुझे  यूँ ही सदा चाहते रहेंगे।
किशोर लम्बी श्वास भरता  हुआ बोला।
मुझे तुम से कोई  शिकायत नही बल्कि किसी और से भी कोई शिकायत नही।
मैं तो हूं ही आपकी मित्र। 
किशोर ने उसे अपने ह्रदय से लगा लिया.............. .शेषांश अगले  अंक  में । 
written by h.k.joshi.                     P. T. O.
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रचनाएँ
★ मेरीं यादों के झरोंखों से ★
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यह उपन्यास ग्रामीण आँचल से एक प्रेंम की विशुद्ध गाथा है, जिसका प्रारम्भ नाइक और नायिका के अचानक प्रथम बार आमना सामना होनें से होता है, दोनों एक दूसरे को देखकर सोचतें हैं कि वह दोनों तो पहिलें कभी मिलें हैं पर नायक किशोर अपनीं नायिका को देख कर अपनीं सुध बुध खो बैठता है, उसे लगता है , वह उसे वहुत पहिलें से जानता है पर उसे याद नहीं। यहीं से दोनों एक दूसरें को देखनें हेतु लालायित रहते हैं, पर कॉलिज की भी अपनीं एक मर्यादा है, अतः दोनों मन लगाकर पढ़ते हुए भी दोनों हैं
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मेरीं यादों के झरोंखों से भाग03

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मेरीं यादों के झरोंखों से भाग 04

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मेरीं यादों के झरोंखों से भाग 07

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