अनुच्छेद 72 मेरी यादों के झरोखों से
------------------------------------------ - -----------------------------------------------------------------------------------------मधु इंद्रा के कंधे पर सिर रख कर वहुत समय तक रोती रही इस वीच इन्द्रा ने उसे हटाने का प्रयास नही किया ।
जब तक मधु के ह्रदय का दर्द आंसुओं के रूप में पिघलकर वाहर न निकला पूरी तरह से वह रोते रोते अपने आप चुप हो चुकी थी, किन्तु उसका सिर अभी तक इंद्रा के कंधे पर टिका रहा,इंद्रा ने आहिस्ता से उसे अपने कंधे का सहारा देते हुए उसे नजदीक पड़े बेड पर आहिस्ता से लिटाया और उस के चेहरे को वहुत ही गौर से देखने लगी।
मधु छोटे बच्चे की तरह कुनमुना कर सो चुकी थी,पूरे संसार की मासूमियत सिमट कर उसके चेहरे पर आ चुकी थी इंद्रा वड़े ध्यान से मधु का चेहरा निहारती रही और दिन दुनियाँ से बेखबर मधु सभी गमों को भुला कर आज चैन की नींद सो चुकी थी।
एक लम्बे अंतराल के बाद जब वह जगी तो काफी हद तक वह नॉर्मल थी।
सॉरी भावी माँ, आज अचानक मैं सो गई थी।
तो क्या हुआ, सभी लोग आराम से सोते है किसी की तुम गुलाम तो नहीं हो।
इंद्रा ने प्यार से उसका गाल थपथपाया।
भावी मां मुझ जैसे कितने लोग हैं जो अपने जीवन मे खुशियाँ वहुत कम लिखबा कर लाते है, या यूं कहा जाए तो गलत नहीं कि हम जैसे लोगों को भगवान खुशियाँ नही दुख अधिक देता है।
मधु का स्वर निराशाजनक था।
आज बेटी तुम इतनी दुखी हो ....क्या अपनी भाबी मां को अपने दुख में शामिल नहीं करोगी।
इंद्रा अति दुखित हो उस से बोली।
भाबी मां जबसे हम ने होश संभाला है ,हमेशा आपको ही अपने दुखों में साथ पाया है।
वह सिसकियों में भरी आबाज में बोली।
नही पगली, इस तरह नही कहते।
इंदिरा लम्बी श्वास छोड़ती हुई बोली।
भाबी मां,सभी लोग मेरे पीछे क्यो पड़े रहते है,क्या अब मैं आप सब पर इतना भारी बोझ हो चुकी हूं।
नहीं रे...इतनी वात तुम कैसे और क्यों सोचती हो।
इंद्रा ने उसे समझाया।
जिसे देखो,बही मेरी शादी की सोचता है ऐसा क्यो और किस लिए,क्या मैं इसी हालात में यहाँ नही रह सकती हुँ।
मधु, हर माँ और बाप का स्वप्न होता है कि वह अपनी बेटी को खुश ससुराल में देखे।
इंद्रा ने उसे समझाते हुए कहा।
तो ,वह खुशी विवाह से ही मिलेगी,...अगर हाँ तो आप सुन लें..... मेरा विवाह हो चुका है,और आप सभी उन खुशियों को ....अब तक देख.ही... चुके है।
मधु ने लम्बी श्वांश खींचते हुए कहा।
मधु, जरूरी नहीं कि हर बार तुम्हारे साथ ऐसा दुख भरा ही ब्यवहार हो।
इंद्रा ने मधु को समझाने की कोशिश की।
ठीक है भाभी माँ, ऐसा दुबारा मेरे साथ नही होगा,पर यह कैसे सम्भब है कि मैं वहाँ खुश रह सकूँगी।
मधु धीमी किन्तु स्पस्ट आबाज में बोली।
इंद्रा ने चौक कर मधु को देखा, उसके चेहरे पर दर्द की परछाइयाँ लहरा रही थी।
मधु तुम आखिर चाहती क्या हो।
जी वस इतना कि आप मेरा विवाह न करे।
पर ऐसा ही क्यो चाहती हो तुम।
इसलिए कि मैं अब कहीं भी नहीं जाना चाहतीं।
अच्छा यह बताओ क्या औरत कभी अकेली रह पाई है, अरे पगली उसे तो किसी पुरुष का मजबूत कंधे का सहारा चाहिए , जो उसकी रक्षा कर सके वरना वह समाज में बदनामी का पर्याय बन जाती है।
भाबी माँ मैं नहीं चाहती किसी का मजबूत सहारा, जो एक बार एक मर्द के साथ रहने के बाद अगर वह स्त्री किसी दूसरे मर्द के साथ रहती है तो वह बो सब कुछ उसको नही मिलता जो पहिली बार उसे अपनी ससुराल में मान सम्मान मिला था।
क्या तुम अपने पति अनन्त के साथ पुनः रहना चाहोगी।
नहीं भाबी मां यह तो श्वाप्न में भी सम्भब नही, उसे न मेने कभी अपना पति माना और न उसने मुझे अपनी पत्नी, मैं एक पल को भी मै उसके साथ पत्नी की भूमिका में झूठे को भी नही रही,पर उस इंसान ने मेरे जिस्म को औरों को परोसने की सोच बना ली थी, किन्तु यह सब मेरी इजाजत के बगैर सम्भब नही था,आप ने जो शिक्षा मुझे दी मैंने उसे निभाया, मरना मंजूर था पर आपकी इज्जत को खाक में नही मिलने दी,काश आप न आती तो आपको आपकी मधु की लाश भी देखने को नही मिलती।
वह लम्बी श्वास खींचती हुई बोली।
लेकिन इन सब पुरानी बातों को भूल कर अब तुम नए जिंदगी की ओर देखो,इसी में तुम्हारा कल्याण है।
पर कैसे भाबी माँ, मुझे तो अंधेरों में रहने की अब आदत सी पड़ गई है।
वह धीमीं आवाज में बोली।
अब बक्त अंधेरों से बाहर निकल ने का है,खुशियां भी अब तेरे जीवन मे आकर अति शीघ्र मुश्कराएँगी।
इंद्रा ने उसे आश्वाशन दिया।
भाबी माँ ,आपको नहीं पता मेने खुशियों को अपने जीवन से निकाल दिया अब वह कभी नहीं लौटकर आएंगी इस चौखट पर,मैं स्वार्थी न थी न कभी बनूँगी मैंने उन से सम्बन्ध हमेशा हमेशा के लिये तोड़ दिए।
वह स्पस्ट बोली।
अरी ....पागल ...तू किस की बात कर रही है।
इंद्रा सकपकाई सी बोली।
वही जो मेरे जीवन का सत्य है,उस सत्य के अलाबा और कुछ स्वीकार नही।
मधु के चेहरे पर एक दृढ़ इच्छाशक्ति का ओज चमक उठा।
हाय रे मधु यह तूने क्या कर दिया,मैं जानती हुँ तुझे... पर तू इतना बड़ा दुस्साहस क्यो बिना अपनी भावी माँ को बताए किया है।
इंद्रा विलखती हुई बोली।
मधु के मुहँ पर एक अनोखी तृप्ति छा चुकी थी, अव इंद्रा की आँखों मे ना चाहते हुए आँसुओ का सैलाव वह निकला वह वहुत देर तक अपने आँसुओ को बहाती रही पर मधु के चेहरे पर जो शांति उसे दिखाई दी,वह उसे अब खटकने लगी थी।
क्या तुम अपने उस निर्णय को हमसे शेयर कर सकती हो,अगर हमें जरा सा भी तुम समझो या तुम्हारे जीबन पर कुछ हक़ हमारा है तो।
इंद्रा की आबाज में बेइन्तहां दर्द झलक रहा था।
प्लीज भाबी माँ इस तरह न कहो,आपके अलाबा मेरा और कौन है,जिससे अपनी मन की कह सकूँ।
तो ऐसी तेरी क्या मजबूरी थी और तू कब गई थी उन के पास वह भी मेरे लिए उतना ही प्रिय है जितनी तू....मेने उससे एक वचन लिया था और आज भी वह उस वचन को निभा रहा है।
जानती हूं भाबी माँ आप उन्हें अपने बेटे की तरह समझती हो।
पर तुमने उनसे क्या कह दिया और क्यो कहा कुछ बोल।
इंद्रा के अंतर्मन की पीड़ा झलक उठी।
भाबी माँ, आप बताओ क्या किसी पर चढ़े हुए फूलों को पुनः चढ़ाया जाता है।
मधु ने दलील दी।
नही,वह तो उचित नही।
वस यही सोच कर मेने उन के दिल को तोड़ दिया,उन्हें इस दुनियाँ में वहुत ढेर सारी, मुझ से भी अधिक सुंदर और गुणवान लड़की मिल जाएंगी,फिर मैं क्यो उनके रास्ते की रुकाबट बनूँ।
लेकिन सोच अब तेरा क्या होना है।
वस कुछ नहीं,जो शेष जिंदगी बची है उसे उनकी यादों में गुजार देने की एक इच्छा जो पूरी हो तो ठीक , नहीं पूरी हो तो किसी के कांनो कान खबर न हो वस इस जन्म के वाद वह मेरे सदा सदा के लिए हो।
वह जज्बातो मे भरी कहती चली गई ।
मधु और इंद्रा इस बात से बेखबर थी कि उनकी हर बात को सेठ जी दीबाल से टेक लगाकर सूंन रहे थे, अपनी बेटी के त्याग पर उन्हें गर्व महसूस हो रहा था किंतु उनके ह्रदय में एक पिता का दिल भी धड़कता था जो अपनी बेटी की हित की बात सोचता.......शेषांश अगले अंक मे पढ़े।
Written by h.k.joshi. P. T. O.