अनुच्छेद 12 मेंरी यादों के झरोखों से -----------------------------------------------------------------------वह अनाम सुन्दरी षोडस वर्षीय सुकुमारी , किशोर की मनो स्थिति का आनन्द मन ही मन लेती हुई मुश्कराई ,पर बोली कुछ नहीं ,वह किशोर को कनखियों से यदा कदा निहार लेती थी ।
किशोर किंकर्तब्य-बिमूढ़ था,मन मष्तिष्क भाव शून्य,वह क्या करे ? क्या न करे .?.....अभी वह यह सोच ही रहा था , कि तभी उस के कानों में उस अनिंद्य सुन्दरी की मधुर कोमल आवाज उसके कानों में पुनः सुनाई पड़ी ।
किशोर को लगा कि दूर कहीं किसी मंदिर की घंटियों की सुरीली आबाज आ रही हो,जो सीधी दिल की धड़कनों पर सवार होकर सीधें दिल की गहराइयों में उतरती हुई दिल की धड़कनों को तेज कर रही हो।
बह किसी बुत की तरह बना हुआ आश्चर्य से खड़ा उस अनिंद्य सुंदरी को तो कभी अपनेआप को तिरछी नजरों से देख लेता था और अपनें मन में उठनें बालें उस सबाल का जबाब भी वह उसी से पूँछना चाहता था जिसकों लेकर वह खुद सबाल पैदा हुए थे,।
कैसी विचित्र विडंबना थी?
लेकिन वह चाह कर भी उसका हल नहीं कर पा रहा था।
हे भगवान ! इस समस्या को लेकर वह कैसे ? एकाएक उस स्वप्नसुंदरी से सबाल करे जिसका कारण वह स्वप्नसुंदरी स्वयं ही है ?,
अतः कैसे करे वह सबाल उस से ?
और पता नहीं वह उसे जबाब देगी भी या नहीं ?
वह अभी अपनें उन प्रश्नों में उलझा ही था कि वह उसकी साथी उस से बोली।
ठीक है...... मत बोलो .......हम से....आप.....।
एकाएक उस लढ़की की मधुर आवाज पुनः किशोर के कानों में गुंजी।
उसकी मधुर आवाज सुन किशोर का मुहूं आश्चर्य से खुला का खुला रह गया था, किंतु शव्द अब तक नदारित थे ,
उसके मुहँ में..... मानों वह गूँगा हो।
वह सुंदरी पुन: उस की ओर मुखातिब हो कर बोली।
यह हमारी ही .....तो भूल थी,.... जो हम ने ......आप पर विश्वास कर ने .....के साथ यहाँ....इतनी दूर अपनी सहेली के साथ.......आप से मिलने चले आये।
क....क,...क क्या ssssssss।
अस्फुट शब्दों में किशोर पुनः बोल पड़ा।
आप हमें अपना गांव नहीं दिखाएंगे क्या ?।
वह पुन: इठलाती हुई उस से बोली।
मेरीं एक उलझन को प्लीज सुलझाने में आप मेरी मदद कर सकती हैं।
किशोर हिचकता हुआ उस से अपनी मन की बात बोला।
दोस्त होनें के नातें मैं आप की हर उलझन को सुलझाने में पूरी तरह सहायता करूँगी।
जी थैंक्यू , आपनें मेरें हृदय का भारी बोझ हल्का कर दिया।
किशोर ने उसका आभार व्यक्त किया।
कहो कैसी उलझन है ।
वह किशोर की ओर उत्सुकता से देखती हुई बोली।
जी आप मेरे से वायदा करों कि मेरीं बात का मज़ाक तो नहीं उड़ाएंगीं।
दोस्ती में और मजाक उड़ाना मैंने कभी सीखा नहीं।
वह किशोर का हाथ अपनें हाथ में लेकर हमदर्दी भरे लहज़े में बोली।
मैं जब भी आपको देखता हूँ तो ऐसा क्यों मुझें लगता है कि मैं आपको शायद वहुत पहिले से ही जानता हूँ ,जबकि मैंने कभी कॉलिज आने से पहिलें आपको देखा ही नहीं है।
किशोर अपनी रौ में बोलता चला गया, वह स्वप्नसुंदरी उसे अनवरत मुग्ध स्थिति में देखे जा रही थी।
आपनें मेरें प्रश्न का उत्तर नहीं दिया।
किशोर नें उसे पुनः टोका।
जी क्या प्रश्न है, दुवारा बताइएगा।
वह किशोर की ओर देखकर मुश्कराती हुई बोली।
आप जब भी मुश्कराती हो तो मुझें ऐसा क्यों लगता है कि मैनें पहिलें कहीं आपको देखा है।
ओह ! माई गॉड यह ....यह....आपको ही नहीं मुझें भी एसा ही फील होता है, बिल्कुल ऐसा ही ...पता है, जब मैंने आपको देखा तो....मुझें लगा मेरीं आप से कोई पुरानीं जान पहिचाँन हो।
ओह !तो क्या आपकी भी यही समस्या है।
हाँ जी बिल्कुल आप जैसी ?।
फिर इसका समाधान क्या आपको मिला।
जी नहीं , अभी तक तो नहीं।
तो फिर मिलेगा भी नहीं,।
किशोर एकाएक मायूस होकर बोला।
देखिये हमारा और तुम्हारा इस बात में कोई जरूर जरूर गहरा राज हो सकता है जो बक्त से पहिलें कभी नहीं खुलेगा।
तो क्या करें हम।
वह सुंदरी किशोर की ओर देखती हुई बोली।
सिर्फ और सिर्फ बक्त का इंतज़ार करना है।
किशोर अपनी गम्भीर आबाज़ में बोला।
ठीक है, और इस से ज्यादा हम कर ही क्या सकतें हैं।
वह स्वप्नसुंदरी नें अपनी अनमोल राय किशोर को दी।
आओ दोस्त ,मैं तुम्हें एक सुंदर रहष्य इस प्रकृति का दिखाऊँ।
किशोर उसके ओर अपनें हाथ का इशारा करता बोला।
किशोर की ओर देखती हुई वह सुन्दरी उसके पीछें पीछै चली।
देखो यह चट्टान पर खड़ी होकर आप तीन बार मेरा नाम लेकर पुकारों।
क्या यह लड़कों की कोई नई चाल नहीं हो सकती है ,किसी लड़की को अपनीं ओर आकर्षित करने की ?
वह आश्चर्य और विस्मय से किशोर को देखती हुई बोली।
नहीं यह कोई छल नहीं है, प्लीज एक बार कहोंगी तो तुम्हें स्वयं क्या आबाज़ सुनाई देगी।
अच्छा, ध्यान रखना अगर आपनें मुझें कभी झूठ बोला तो।
ठीक है फिर हम दोनों कभी नहीं मिलेंगें।
किशोर नें उसे आश्वासन दिया।
वह सर्वांगसुन्दरी उस चट्टान पर खड़ी होकर बोली।
किशोर,...... किशोर.... किशोर.....।
और अगलें पल उसके कानों में प्रतिध्वनि गूँजी, आई लव यू......आई लव यू.....आई लव यू....।
ओह माई गॉड !
वह अपनें कानों पर हाथ रखकर पुनःबोली।
कैसा अद्भुत..... चमत्कार है यह।
वह किशोर की ओर आश्चर्य से देखती हुई आगे बड़ी।
अब हम दोनों फिर कभी एक दूसरे सेअलग अलग नहीं होंगें।
किशोर अपनीं बात उसे बताता हुआ बोला।
चलों अब मंदिर की ओर चलें।
वह सर्वांगसुन्दरी किशोर का हाथ पकड़कर बोली।क्या आप अब भी अपना नाम मुझें नहीं बताओगी।जी अभी नहीं।
मगर क्यूँ।
इसलिए कि लड़के अक्सर उस लड़की का नाम लेकर अपनें दोस्तों को झूठे किस्से सुनाया करतें हैं।
लेकिन मैं उनमें से नहीं हूँ।
किशोर गम्भीर आवाज़ में बोला।
कोई प्रमाण है आपकी शराफ़त का।
वह तुरन्त किशोर से बोली ।
तो, ठीक है ....आपको हमारीं बात पर विश्वाश नहीं, मेरे सपनों पर विश्वास नहीं।
किशोर उसकी ओर देखता हुआ बोला।
अच्छा अब आप अपना स्वप्न देखो .....और.मैं चली।
बह कहती हुई थोड़ा पीछे घूमी और आगे की ओर बड़ी।
किशोर को एक तेज झटका लगा,.... उसकी तन्द्रा भंग हो चुकीं थी ।
बह तेजी से उस के पीछे लपका ,।
परिणामस्वरूप दोनो के सिर आपस में टकरा गए और फिर दोनों ओर से दोनो चहेरों पर एक मधुर मुश्कान नाच उठी।
ये मिस्टर अब तो सपना नही देख रहे हो.....।
उसकी पुन: खनकदार हस्ँने की आवाज गूँजी।
किशोर.....किशोर ......नाम है मेरा।
वह तेजी से उसके सामने जाकर बोला।
और .....तुम...अपना नाम.. क्या मुझें नहीं बताओगी।
मेरा नाम ....क्यों पूछ ते हो? क्या कोई काम है।
वह अदा से इठलाती हुई मुश्कराई।
बस यूं ही .....।
किशोर ने अपने सूखे होटों पर जीभ फेरी।
देखो.... मिस्टर,किशोर.......जानते हो अक्सर लड़के मीठी ...मीठी ...बात कर के हम जैसी भोली भाली लड़कियों का दिल जीत लेते है और फिर उन्हें बदनाम कर देते है पता है हमारी भावीमां ऐसा ही कहती हैं।
वह सर्वांगसुन्दरी अत्यंत सीरियस हो कर बोली।
ठीक है...... अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास ही नही,... तो....,तुम्हारी इच्छा।
किशोर ने अपना मुहूं दूसरी ओर घुमा लिया।
...अब उस स्वप्न सुंदरी की ओर किशोर की पीठ थी, वह पुनः बोला।
मैं... वायदा करता हूँ ,.....जब तक तुम अपना नाम स्वयं न बताओगी ......,तब तक मैं तुम से तुम्हारा नाम नही पूछूँगा।
उसका... स्वर ...तीखा और.... कडबाहट से भरा था।
वेरी गुड़ ,....मुझे आपका यह अंदाज वहुत अच्छा लगा।
वह फिर आगे बढ़ती हुई खनखनाती हंसी के साथ एक बार पुनः हँसी।
आ.....,बेटी ..आओ अब..घर....चलें।
किशोर ने देखा एक पचपन वर्सिय वृद्ध महिला, उसके कुछ दूर फांसले से खडी हो उसकी स्वप्नसुंदरी को जोर से पुकार रही थी।
सुनो.....,ये मिस्टर,....सॉरी ..... फ्रेड ....किशोर,...वह मेरी ....माँसीजी ...मुझे बुला ......रही है,अब ....चलती ...हूँ।
उसने हाथ हिलाया और धीरे धीरे ऊधर बढ़ने लगी जिधर एक बृद्धि महिला उसे हाथ के इशारे से अपने पास आने को कह रही थी।
ओ..... सिट.,..यार .......यह ...सब.... मेरे साथ ही...... क्यों.....होता है?
किसोर झुंझलाता हुआ भुन्भुनाया।
उस के मन मे असंख्य प्रश्न उभरे.....,किन्तु उनका उत्तर वहाँ कहीं भी नहीं था।
वह बेबस नजरो से उस अनुपम रूप की रानी को जाते हुए बेवसी से देख रहा था ......उसे लगा उसकी कोई अमूल्य चीज उस से अलग होकर उस से दूर जा रही हो।
अरे... यार जाते जाते.. बता दो अब...... कब........ . मिलोगे......,।
किशोर जोर से बोला,।
किन्तु उसकी आबाज उसके कंठ में ही रुंध गयी।
वह लढ़की अपनी मदमस्त चाल से चली जा रही थी..और...किशोर टक टकी बाँधे उसे घूर रहा था,।अचानक वह लड़की एक पल को पीछे की ओर मुड़कर पलट गई ,और साथ ही उसने अपना एक हाथ हिलाया मानो किशोर को कुछ कहना चाहती हो।
लेकिन किशोर उसके हाथ के इशारे को नही देख पाया।
वह तब तक वही खड़ा रहा जब तक वह उसकी आँखों से ओझल न हो गई।
किशोर ने एक लम्बी श्वाश खीची और दूर जाती अपने सहपाठी लड़की को देखने का प्रयास करने लगा किन्तु वह उसकी आँखों से अब ओझल हो चुकी थी।
शेष,....... आगले अंश में,...।
Written By H.K Joshi। P.T.O.