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मेरीं यादों के झरोंखों से। भाग08

6 अप्रैल 2022

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अनुच्छेद  08      मेरी यादों के झरोखों..से                                            _______________________________________________________________________________किशोर के मन में उस सर्वांगसुन्दरी को देखकर अनगिनत सबाल उठते और बैठते  रहे थे, किन्तु उन प्रश्नों का उत्तर उसके पास नहीं था। वह अपनें मन के प्रश्नों को किस से शेयर करे, वह समझ नहीं पा रहा था, बैसे तो उसका एक लगोंटिया दोस्त भास्कर भी था, किन्तु वह भाष्कर को अपनें मन की बात शेयर करना ही नहीं चाहता था। 
जिसका कारण यह था कि भाष्कर शुरू से ही दिलफैंक किसोर  था,उसे अपनें गोरे रंग पर बेहद अभिमान था वह समझता था कि हर एक लड़की उसके गोरे रंग पर फ़िदा होती है, जबकि किशोर एक साँवला रंग का लंबा छरहरे मजबूत कदकाठी का  किसोर था, और वह अनिन्द्य सुंदरी  भी किशोर को प्रेंम मूक नयनों से प्रेंम करती थी।
किन्तु उसनें कभी भी अपनें मूक प्रेंम का  प्रदर्शन किशोर से नहीं किया ।
किशोर चाहता था कि वह उसे प्यार का इज़हार करें।पर ऐसा असम्भव था।
एक दिन किशोर नें अपनें मित्र भाष्कर को  कॉलिज की दूसरी मंजिल के गवाक्षों से बालिका कक्ष की ओर फुशफुसाते हुए कहा देख वह गोरी सी सुंदर बालिका को देख रहा है, वह तुझे कैसी लगती है, भाष्कर नें एक और सांवले रंग की लड़की मिथलेश की ओर इशारे से बतातें हुए कहा, ।
इस से अधिक वह  साँवली सी लड़की  सुंदर दिखती है।
भाष्कर नें मिथलेश की ओर संकेत कर बोला।
किशोर मन में सोचनें लगा ।
चलो अच्छा है, इसे मेरीं मन मोहिनी पसन्द नहीं, अतः किशोर अब निश्चित तौर पर मान बैठा था कि वह  भाष्कर अब कम से कम उस अनिंद्य सुंदरी की ओर आकर्षित नहीं होगा,।
इस लिए वह भाष्कर से अपनें मन की फीलिंग्स  पर डिस्कस करनें के उद्देश्य से  उसके घर  पर गया। भाष्कर उस समय अपनें कमरें में बैठा हुआ कैरम खेल रहा था अपनी बड़ी भावी के साथ, अपनें यहाँ वह किशोर को आया हुआ देखकर बोला।
आजा यार कैरम खेलतें हैं।
मुझें तो इनडोर गेम खेलनें में कोई मजा नहीं, तू ही खेल अरे यार हमतो फील्ड के खिलाड़ी हैं।
किशोर की बात पर भाष्कर की भावी खिलखिला कर हँसनें लगीं ।
इस पर भाष्कर किशोर के साथ घर से रूष्ट होकर निकल आया और बोला।
 अरे तू मेरा मित्र है या शत्रु ?।
क्यों भाई इस में शत्रु और मित्रों की बात कहां से आ गई।
किशोर मुश्करातें हुए  भाष्कर से बोला।
भाई तूनें मेरीं, भावी के सामनें पूरी तरह  किरकिरी करादी, देखा? कैसे खिल खिला कर हँसी थीं वह।
भाष्कर नें अपनी बात पूरी की।
सॉरी यार माफ़ करना, मेरा यह उद्देशय  नहीं था।
ठीक है, चल माफ़ कर दिया, अब बोल कैसे आना हुआ।
तुझसे एक गम्भीर विषय पर बात करनी थी।
अच्छा कितना गम्भीर विषय है, यह तो मुख्य विषय पर बात होनें पर पता चलेगा।
भाष्कर किसी महान विश्लेषक की तरह अपना सीना तानकर बोला।
ठीक है चलो हम दोनों झील के निकट माता के मंदिर की ओर चलतें है।
यह ठीक है, चलों ,।
दोनों एक साथ बोलें ।
और गाँव से कुछ दूर बनें माँ दुर्गा के अति प्राचीन मंदिर के निकट पाँच सौ कदम दूर निर्मित झील के निकट एक चट्टान पर दोनों बैठ कर वार्तालाप करनें लगें।
बोल यार तेरी क्या समस्या है ?
भाष्कर खुल कर बोला।
भाष्कर हम दोनों बचपन से एक साथ बड़े हुए और एक साथ ही खेलें हैं।
किशोर भूमिका बनाता हुआ बोला।
ठीक है यार इतनीं लंबी चौड़ी भूमिका क्यों बना रहा है, जरा शॉर्टकट में नहीं बता सकता।
भाष्कर उसकी ओर देखकर बोला।
बिना भूमिका के तू समझ नहीं पायेगा।
अच्छा ऐसा क्या है जो इतनीं बड़ी भूमिका बनाने लगा।
तूनें कभी किसी से प्यार किया है।
किशोर असली मुद्दे पर आता हुआ बोला।
भाष्कर उसकी बात पर हँसकर बोला।
अरे  ! बेबकूफ़ प्यार व्यार कुछ नहीं  यह सब की सब बेबकूफ़ी की बातें हैं।
भाष्कर इठलाकर बोला।
उस दिन की बात याद है, भाष्कर तुझें।
किस दिन की बात करता है।
एक बार मैनें कॉलिज की दूसरी मंजिल से एक लड़की दिखाई थी तुझें बालिका कक्ष में।
किशोर उसकी आँखों में झांकते हुए बोला।
मुझें कुछ याद नहीं। 
भाष्कर  अपनें मस्तिष्क पर दबाब डालकर याद करता हुआ बोला।
तेरी याद वहुत कमज़ोर है।
पर तू आगे बोलेगा कि बस इसी बात पर अटका रहेगा।
सुन, मुझें कॉलिज की उस सुंदर लड़की को देखकर पता नहीं कैसे कैसे विचार मेरे मन में उठतें हैं।
अरे यार लगता है तुझमें जरूर देवदास की आत्मा घुस गई है,अबे साले!केबल मौज ले बस इन कॉलिज की तितलियों से बस और कुछ नहीं रखा है,इन सब में।
नहीं ,ऐसी कोई बात मैं उस अनिंद्य सुंदरी के बारे में कभी सोच भी नहीं सकता।
किशोर नें एक लंबी श्वांश ली।
छोड़ भी यार, अभी हमारीं आयु मौज मस्ती की है, प्यार बयार के लफ़ड़ा में नहीं पडना चाहिए।
तू उस फ़ीलिंग्स को नहीं समझेगा।
किशोर ने अपनें दोनों कंधे उचकाए।
देख इसके पीछे मात्र सैक्स ही छिपा है बस और कुछ नहीं।
मैं नहीं मानता, मैं जब भी उस सुंदरी को देखता हूँ तो ,वासना नहीं मेरे मन में उसे देखकर अपार श्रद्धा के साथ,मन वेहद अजीबोगरीब स्थिति में आजाता है और नई नई  कुछ अलग फीलिंग्स होंतीं है, मन चाहता है उसे बस देखता रहूँ,  और उसे कोई ना देख पाये।
अबे यार यह सब फीलिंग्स तो तू अपनी बीबी को बचा कर रख, उसके काम आएंगी,अबे अच्छा यह बता क्या वह भी तुझे एसी फ़िलिग्स रखती है।
पता नहीं यह सब।
किशोर संक्षिप्त रूप से बोला।
वाह बेटा, उसके मन की बात पता नहीं और चला प्यार करनें।
तो क्या हुआ, वह मान लो मुझें नहीं चाहें  वह,कोई बात नहीं, पर मुझें तो उसके बारे में फीलिंग्स हैं और जीवन भर इसी फीलिंग्स का अहसास करता रहूँगा।
किशोर सीरियस आवाज में बोला।
चल ठीक है, कल हम दोनों उसके प्यार की गहराई नापेंगे।
वह कैसे ?
किशोर ने आश्चर्य से पूँछा।
और उसनें अपना प्लान किशोर को कान में बताया।
ततपश्चात दोनों अगलें पल वह वहाँ से उठकर अपनें अपने घर की ओर चल पड़ें।
और फिर अगलें दिन किशोर और भाष्कर कॉलिज में सिक्स पीरियड में निकलकर उस सर्वांगसुन्दरी के घर की ओर एक चक्कर लगाकर वापिस आ रहे थे कि रास्तें में वह सर्वांगसुन्दरी अपनी सहेली,रमा मिथलेश, आभा आरती, और प्रिया के साथ आती किशोर को दिखीं।
देख वह आरही है।
किशोर नें भाष्कर को समझाया।
और जैसे ही वह चारों लड़कियाँ  उनके पास से गुजरीं , उस से पहिलें भाष्कर नें अपना  कॉलिज का आईकार्ड में सौ सौ के पाँच नोट रखकर आइडेंटिटी कार्ड को ज़मीन पर गिरा दिया,मिथलेश नें वह कार्ड उठाने के बाद उस सर्वांगसुन्दरी को दिया।
उस सर्वांगसुन्दरी नें वह लेकर अपने हाथ में रखकर उल्टा पुल्टा किया,उसमें रखें रुपयों को देख कर अपनीं सहेलियों से कहा।।
इसे यहीं डाल दो।
और अगलें पल वह आइडेंटिटी कार्ड जमीन पर आगे डालकर बड़ चुकी थीं।
किशोर के  मित्रों ने  समझा की वह  पैसों के लालच में उसे लेकर जा चुकी है,पर किशोर के सलाह देनें पर, " कि वह आइकार्डस अपनी जगह पड़ा मिलेगा"।
 और फ़िर वह आई कार्ड्स  उन्होनें जाकर देखा तो वह वहीं  रुपयों सहित मिला।
अब बोल , क्या समझा तू इस फीलिंग्स को।
कल और नया फॉर्मूला अपनाऊंगा।
ठीक है। 
किशोर नें  गर्दन हिलाकर सहमति दी।
और फिर वह  भाष्कर दूसरे दिन बिना किशोर को साथ लिए वह अपनें अन्य दोस्तों के साथ उस सर्वांगसुन्दरी के पिताजी की दुकान पर गया, वहाँ से वापिस आते में उसे वह लड़की अपनी सहेली रमा के साथ आती हुई दिखी, एक नज़र भाष्कर ने उसे अपनी ओर आकर्षित करने के उद्देश्य से जोर से किशोर का नाम लेकर पुकारा।
और अगलें पल वह प्रतिक्रिया स्वरूप पलट कर देखनें लगी , और यह क्रम उसनें कई बार किया।
किशोर को दूसरे दिन बताया गया कि वह भाष्कर की ओर अट्रैक्टिव है।पर किशोर के दिल पर इस बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ा,हाँ वह अब भी उस सर्वांगसुन्दरी को छिप छिप कर अकेला देखता, और जैसे ही वह सर्वांगसुन्दरी उसे देखती तो वह उसके सामनें से ओझल होजाता, कैसा विचित्र प्रेंम था यह, वह स्वयं नहीं समझ पाया ,बक्त के साथ साथ उसका प्रेंम और बढ़ता गया। अब वह प्रतिदिन उसे छुप छुप कर देखता था, सारी की सारी फीलिंग्स वह अपने आप के अलावा किसी से नहीं शेअर करता उस का मन बार बार उस से पूँछना चाह रहा था, कि वह उस  अपरिचित सर्वांग सुन्दरी से क्यो अपनापन लगने लगा है उसे ?
 पता नहीं क्यूँ  वह उसे एक एसा अनोखा सुखद अहसास दे रही थी मानों उसका किशोर से जन्म जन्मान्तरों का ही नहीं बलिक उसका उस से  उसका चिर जन्मों का संग हो ?, 
मन में उसे देखने की प्रवल उत्कंठा बारबार जाग्रत होती थी, आज से पहले उसने  अपने मन से कभी किसी लड़की के बारें में ना कभी सोचा और न  कभी देखने की कोई धृष्टता भी नहीं की  थी।
अचानक उस के पैर कालिज में बने बालिका कक्ष की ओर बढ़ चले। 
यह बालिका-कक्ष टीचर स्टाफ रूम के बगल में बना हुआ था ।
इस तरफ अध्यापकों के अलाबा किसी भी छात्र को जाने की अनुमति  ही नही थी ।
किशोर थोड़ा ठिठका,मन ने सबाल किया कोई पूछेगा तो क्या जबाब दोगे  ?। 
और इसी कशमकश में किशोर फँसा हुआ था ,तभी पीछे से किसी की खिलखिलाती हुई आबाज उसके कानों में शहद घोलती हुई एक दम से चली गई।
वह चिहुँक कर पीछे को मुडा उस के ठीक सामने बही लढ़की होठों पर मधूर मुस्कान लिए अकेली खड़ी थी ,।
किशोर न जाने किन बिचारो में खो गया उसकी  आँखे उस षोडश वर्षिय सर्वांगसुंदरी के चेहरे पर जमी की जमीं रह गई थी।
सुनिए......जी ......।
उस लढ़की ने किशोर के कंधे पर धीरे से हाथ रख कर कहा , क्यों जी किसे तलाश रहें हैं आप।वह उसके ठीक सामने खड़ी मुश्कराती हुई कहे जा  रही थी पर किशोर  कहीं खो चुका था।
...............।
लेकिन किशोर ने  उसे कोई उत्तर नही दिया।
आप......आप .....यहां,....क्यो आये है............ देखिये......आपको कोई देख लेगा, तो हमें... बड़ी मुश्किल.... होगी।
उसने किशोर के हाथ को हलके से  स्पर्श किया।
अचानक किशोर को लगा कि उसके  जिस्म में चार सौ चालीस का करंट लग गया हो ,और ठीक यही स्तिथि उस अनुपम रूप की रानी की थी उसे लगा की उसका शरीर मे कुछ अनोखा अहसास से भरा स्पंदन हो रहा है।
तुम क क क,,का,कोंन हो।
किशोर अपनी लरजती आवाज में बुदबुदाया।                                                         देखिये....,कोई... आ गया तो ....प्लीज......,।
वह शीघ्रता से बोली।
तुम कोंन हो.....म ....मम ....मुझे ऐसा क्यों लगता है कि.......,कि.....मेने तुम्हें कहीं वहुत पहले से देखा है। 
वह अटक अटक कर बोला।
प्लीज....., आप.... यहां....से शीघ्र चले जाइए।..... उसने किशोर को पीछे की ओर जाने के लिए उंगली से इशारा किया।
लेकिन तुम....तुम...अपना नाम तो.....।
ठीक ...,है,...मैं ,,अपना नाम भी बता दूंगी.....लेकिन कल.....और,....अब प्लीज ....जाओ ।
उसने किशोर के कंधे पर अपना सुंदर गोरा हाथ रखा।
कल ....कहाँ...... मिलोगी  ?।
किशोर की आबाज लड़खड़ा रही थी। 
में आपको ढूंढ लुंगी ...ओ. के. वाय वाय ।
और बह तेजी से वालिका कक्ष में चलकर विलीन हो गयी।
किशोर उसे देखता ही रहा।
शेष अगले पृष्ठ पर........
Written by H.K.Joshi.              P.T.O.
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★ मेरीं यादों के झरोंखों से ★
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