*सनातन धर्म आदिकाल से ही अपनी दिव्यता के लिए जाना जाता है | सनातन का सिद्धांत है कि ईश्वर सर्वत्र समान रूप से व्याप्त है | इसी को प्रतिपादित करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा कि :- "ईश्वर सर्व भूतमय अहई" इसी सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए हमारे महापुरुषों में सनातन के सिद्धांत बनाये थे | सनातन की मान्यता रही है कि मनुष्य एवं प्रकृति एक - दूसरे के अभिन्न अंग हैं | इसी कारण पशु -/पक्षी , वृक्ष - वनस्पति आदि के साथ आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रयास किया है | हमारे यहां यदि गाय को माता मानते हुए पूजा जाता है तो "वृषभोत्सव" के दिन बैल की भी पूजा होती है | कोयल के लिए "कोकिल व्रत" किया जाता है तो "बट सावित्री" के नाम पर बरगद को भी पूजा जाता है | इसी क्रम में नाग पंचमी के दिल नागों की भी पूजा की जाती है |\जब हम नाग का पूजन करते हैं तो सनातन संस्कृति विशिष्टता की पराकाष्ठा पर पहुंच जाती है | नागपंचमी अर्थात श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन अष्टनागोंं की पूजा करने का निर्देश "भविष्योत्तर पुराण" में देते हुए वेदव्यास जी लिखते हैं कि :--- इस दिन अपने घर पर अक्षत पुञ्जों या धरती पर नागों की आकृतियां बनाकर उनका पूजन करके निम्न मंत्र का पाठ करना चाहिए :--- "वासुकिः तक्षकश्चैव कालियो मणिभद्रकः ! ऐरावतो धृतराष्ट्रः कार्कोटकधनंजयौ !! एतेऽभयं प्रयच्छन्ति प्राणिनां प्राणजीविनाम् !! अर्थात :-- वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्रक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कार्कोटक और धनंजय - ये प्राणियों को अभय प्रदान करते हैं | आज के दिन गाँवों में सावन की मनोहारी छटा के मध्य पेड़ों की डालियों में झूले पड़ जाते हैं तो अनेक गाँव - कस्बों में शारीरिक बल को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए कुश्ती , दंगल एवं कबड्डी जैसे खेलों का आयोजन किया भी किया जाता रहा है | घर - घर में अनेकों प्रकार के सुस्वादु भोजन (पूड़ी - कचौड़ी - गुझिया आदि) बनते हैं | लोग एक दूसरे से मिलकर नाग पंचमी की बधाईयां भी अर्पित करते हैं जिससे किसी भी कारण हृदय में एक -दूसरे के प्रति जमी हुई नकारात्मकता भी समाप्त हो जाती है |*
*आज की स्थिति यह है कि लोग जैसे - जैसे आधुनिक होते जा रहे हैं वैसे - वैसे अपनी संस्कृति एवं पर्वोत्सवों की धारणा एवं प्रासंगिकता को भी भूलते जा रहे हैं | नाग पंचमी क्यों मनाई जाती है ? यह शायद ही सबको पता हो ! इनके विषय में न जानने का कारण यही है कि आज के लोग भेड़चाल में चले जा रहे हैं उन्होंने कभी जानने का प्रयास ही नहीं किया | आज अनेक आधुनिक बुद्धिजीवी यह तर्क देते हैं कि :-- गाय, बैल, कोयल इत्यादि का पूजन करके उनके साथ आत्मीयता साधने का हम प्रयत्न करते हैं , क्योंकि वे उपयोगी हैं। लेकिन नाग हमारे किस उपयोग में आता है, उल्टे यदि काटे तो जान लिए बिना न रहे | हम सब उससे डरते हैं | नाग पूजा क्यों की जाय ??? ऐसे सभी बुद्धिजीवियों से मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इतना ही कहना चाहूँगा कि :- आदिकाल से भारत देश कृषिप्रधान देश था और है | ( नाग) सांप खेतों का रक्षण करता है, इसलिए उसे क्षेत्रपाल कहते हैं | जीव-जंतु, चूहे आदि जो फसल को नुकसान करने वाले तत्व हैं, उनका नाश करके सांप हमारे खेतों को हराभरा रखता है | साँप हमें कई मूक संदेश भी देता है। साँप के गुण देखने की हमारे पास गुणग्राही और शुभग्राही दृष्टि होनी चाहिए | मनुष्य को सदैव सकारात्मकता ग्रहण करनी चाहिए | आज के दिन ग्रामीणांचलों में "गुड़िया" भी पीटने की रस्म मनाई जाती है | बहनें गुड़िया बनाकर , सजाकर चौराहों पर ले जाकर डालती हैं और भाई लोग उसे पीटते हैं | सनातन के पर्व - त्यौहारों में अनेक कथायें एवं उन कथाओं में तथ्यात्मत प्रासंगिकता छुपी हुई है आवश्यकता है उसको जानने एवं समझने की |*
*सनातन धर्म ने समस्त विधान मानव जाति के कल्याण के लिए ही समस्त विधान बनाये हैं परंतु आज हम अज्ञानता एवं आधुनिक चकाचौंध में आज उन विधानों के रहस्य को समझ नहीं पाते हैं |*