राजयोग या सिर्फ योग महर्षि पतंजलि का योग सूत्र इसका मुख्य ग्रंथ है। स्वामी विवेकानंद ने राजयोग का प्रारंभ किया था। राजयोग सभी योगों का राजा है क्योंंकि इसमें सब प्रका
ऐ रब! ऐसा दिन कभी न दिखाना,कि खुद के ग़ुरूर में खो जाऊँ,पल दो पल अपनों के साथ बैठ न सकूँ,अपने आप में इतना मगरूर हो जाऊँ।न देना दुनियाँ भर की दौलत मुझे,पर बख़्श देना इतनी खुशियाँ ज़िन्दगी में,कि दिन भर का
भाग-12 उदय की शिक्षा (अंतिम भाग) उदय और अनीता का गृहस्थ जीवन बहुत सुखमय में चल रहा था। दोनों का एक दूसरे के प्रति आत्मिक स्नेह था...दोनों के विचार भी एक दूसरे से बहुत मिलते थे। सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत
मेरा यह कहानी संग्रह , कहानियों के उन सभी जीते जागते पात्रों को ( क्षमा याचना के साथ ) समर्पित है जो मेरे जीवन मे आये और अपने व्यक्तित्व तथा कारनामों से जाने अनजाने मे मुझे लिखने की प्रेरणा दे गये ।
एक छोटा-सा उपहार बहुत बड़े वचन से बढ़कर होता है। बैल सींग तो आदमी को उसकी जबान से पकड़ा जाता है।। मेढ़कों के टर्र-टर्राने से गाय पानी पीना नहीं छोड़ती है। कुत्ते भौंकते रहते हैं पर हवा जो चाहे उड
दंड भोगना नहीं अपराध करना शर्म की बात होती है। जीभ में हड्डी नहीं फिर भी वह हड्डियाँ तुड़वा देती है।। लाभ की चाहत में बुद्धिमान भी मूर्ख बन जाते हैं। उधार के कपड़े तन पर कभी सही नहीं आते हैं।। द
समझ न आने वाला हमेशा अनोखा होता है। सबसे ज्यादा जानकार बहुत काम बोलता है।। खोटा सिक्का और बेटा वक्त पर काम आता है। महल नहीं कुटिया में संतोष पाया जाता है।। एक झूठ के पीछे से दूसरा भी चला आता
शक्कर सफेद हो या भूरी उसमें उतनी ही मिठास रहेगी। गुलाब को कुछ भी कहो उससे उतनी ही सुगंध आयेगी।। सेब भीतर कीड़ा लगने पर किसी काम नहीं आता है। शाही पोशाक पहना देने पर बंदर-बंदर ही रहता है।। किसी
वक्त से एक टांका लगा लें तो बाद में नौ टाँके नहीं लगाने पड़ते हैं। खेल ख़त्म तो बादशाह व प्यादे को एक ही डिब्बे में बंद करते हैं।। हाथी को कितना भी नहला दो वह अपने तन पर कीचड मल देगा। भेड़िये क
अपना ही जूता पैर के लिए ठीक रहता है। हर ताला अपनी ही चाबी से खुलता है।। हर लकड़ी तीर के उपयुक्त नहीं रहती है। सब चीजें सब लोगों पर नहीं जँचती है।। हर मनुष्य की अपनी-अपनी जगह रहती है ।। हरेक
"अरे और लो ना तुमने तो । अभी कुछ खाया ही नही " यह कह कर मुकर्जी गिन्नी ने डाक्टर दीपांकर की प्लेट मे थोड़ा और माछेर झोल डाल दिया । "नही नही मेरे पेट मे अब बिलकुल भी जगह नही है " यह कह कर दीपांकर ने
प्रोफेसर मोहन के घर महफिल जमी थी । १५-२० लेखक कवि और पत्रकार लोग पधारे थे । मोहन ने अपनी ओर से पार्टी दी थी । एक मशहूर पत्रिका मे उनका लेख जो छपा था , और उनके एक मित्र की लिखी बहुचर्चित पुस्तक बाजार म
“ मम्मी जल्दी से यहाँ आओ “ टीना ने जैसे ही अपना चेहरा दर्पण मे देखा तो , घबरा कर एक चीख मार कर अपनी माँ को पास बुलाया । अपनी बेटी टीना की ऐसी घबराई हुई आवाज सुन कर माँ लिली तो एकदम डर ही गई और जल्दी
“ हेलो ! पामेला ! मै रीना बोल रही हूँ “ “ गुडमार्निंग रीना ! कैसी हो ? कहो कैसे याद किया ?” “ जी मै अच्छी हूँ । आपको याद दिलाने के लिए फोन किया है कि बुधवार को किटी पार्टी है । समय - दोपहर के तीन ब
“अरे पढ़ लो, पढ़ लो, परीक्षा सिर पर है । तुम दोनो अभी तक खेले ही जा कहे हो । इतनी शाम हो गई और तुम दोनो ने किताब तक ना खोली । मै कहता हूँ कि जिन्दगी मे बस पढ़ाई ही काम आने वाली है ये फालतू की उछल कूद
उसका असली नाम पता नही क्या था । पर उस इलाके के लोग उसे बकरी बाई के नाम से जानते थे । वो इसलिये कि वो सालों से बकरियाँ चराने का काम करती थी ।उसे अपने इस अजीब से नाम से कोई शिकायत नही थी ।वो इस नाम की
सुनो दिल्ली से फूफाजी का फोन आया था , वे और मुनिया बुआ दोनो अगले हफ्ते यहाँ आ रहे हैं ।उन्हे कोई काम है और वे लोग हमारे घर तीन दिन तक रूकेगे " विकास ने अपनी पत्नी गीता को यह खबर सुनाई " दिल्ली वाले बु
प्रत्येक सद्गुण किन्हीं दो अवगुणों के मध्य पाया जाता है। अच्छाई सीखने का मतलब बुराई को भूल जाना होता है।। धन-सम्पदा, घर और सद्गुण मनुष्य की शोभा बढ़ाता है। सद्गुण प्राप्ति का कोई बना-बनाया रा
एक पक्ष की नम्रता बहुत दिन तक नहीं चल पाती है। एक बार शालीनता छोडने पर लौटकर नहीं आती है।। दूध में उफान आने पर वह चूल्हे पर जा गिरता है। शालीन व्यक्ति नम्रता धृष्ट व्यक्ति से सीखता है।। वह कभी
अति परिचय से अवज्ञा होने लगती है। बहुत तेज हवा से आग भड़क उठती है।। अति बुराई का रूप धारण कर लेती है। उचित की अति अनुचित हो जाती है।। कानून की अति अत्याचार बढाता है। अमृत की अति से विष बन जाता