*इस सृष्टि में सामंजस्य बैठाने के लिए ईश्वर ने एक साथ नर नारी की सृष्टि की और इस सृष्टि को चलायमान किया | नारी के बिना पुरुष का कोई भी अस्तित्व नहीं है , नारी के सम्मान एवं उनके गुणगान से हमारे शास्त्रों के पन्ने भरे पड़े हैं | "यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता" की घोषणा हमारे शास्त्रों में ही हुई है | कुछ लोग शब्दों के रहस्य को न समझ पाने के कारण हमारे शास्त्रों का उंगली उठा देते हैं | आदि गुरु शंकराचार्य ने नारी को नर्क का द्वार क्यों कहा ? यह प्रश्न प्राय: सुनने को मिलता है | किसी एक शब्द को पकड़कर हम उनके गूढ़ार्थ को नहीं समझ सकते | हमारे शास्त्रों में भक्ति में बाधक माया को बताया गया है और माया को नारी की हू संज्ञा दी गई है | आदि गुरु शंकराचार्य जी ने इसी माया रूपी नारी को नर्क का द्वार कहां है , परंतु हम इसे समझ नहीं पाते और अपने ही शास्त्रों का प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं | माया साधकों के मार्ग का सबसे बड़ा कंटक है | इस माया से नारद जैसा तपस्वी नहीं बच पाया , विश्वामित्र जैसे उग्र तपशील महर्षि को भी इस माया रुपी नारी ने पथभ्रष्ट कर दिया | तो सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए आदि गुरु शंकराचार्य नारी अर्थात माया को नर्क का द्वार कहां है | इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि सम्माननीय - पूजनीय नारी जो हमें मां के रूप में जन्म देती है , बहन के रूप में लाड लड़ाती है , पत्नी के रूप में जीवन के संघर्षों में साथ देती है तथा पुत्री के रूप में जीवन को आनंद से भर देती है वह नरक का द्वार हो गई | कदापि नहीं | नारी सदैव से सम्मानीय रही है और रहेगी परंतु अर्थ का अनर्थ करने वालों ने शास्त्रों की भाषा को तोड़ मरोड़ कर समाज में प्रस्तुत करके हमें अपने ही धर्म ग्रंथों से विमुख करने का कार्य किया जो | लोग इस षडयंत्र को नहीं समझ पाते हैं वही भ्रमित होकर के अनेक प्रकार के प्रश्न खड़े कर देते हैं | किसी भी विषय को सुनने के बाद उसकी गहराई में जाकर विचार करने की आवश्यकता होती है क्योंकि बिना विचार किए कुछ भी नहीं जाना जा सकता है | विचार विवेक से होता है और विवेक तभी जागृत होता है जब मनुष्य नित्य सत्संग का सेवन करता है |*
*आज अनेक नारी संगठन एवं कुछ पढ़ी-लिखी महिलाएं गोस्वामी तुलसीदास जी एवं आदि गुरु शंकराचार्य जी को गलत सिद्ध करने का प्रयास करती हैं कि इन्होंने तो संपूर्ण नारी जाति का अपमान कर दिया ! उनको नर्क का द्वार कह दिया जबकि उक्त महापुरुषों ने नारी की बड़ाई भी की है | बिना नारी के पुरुष प्रधान समाज का कोई अस्तित्व नहीं है | ऐसा कहने वाली सभी मातृ शक्तियों को मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहता हूं कि नारी नरक का द्वार अवश्य है परंतु किसके लिए है यह भी जान लेना परम आवश्यक है | नारी नरक का द्वार उनके लिए है जो अपनी पत्नी के अतिरिक्त सभी नारियों को भोग सामग्री समझते हुए कामेच्छा पूर्ति का साधन मात्र मानते हैं | नारी नरक का द्वार उनके लिए है जो अपनी मां एवं पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करते हुए उन्हें उपेक्षित तथा तिरस्कृत कर देते हैं | नरक का द्वार इसलिए कहा गया है क्योंकि मनुष्य जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल भोगना पड़ता है | यदि शास्त्रीय भाषा में माया अर्थात नारी को नरक का द्वार अर्थात साधना में बाधक कहा गया है तो भौतिक जगत में नारी के साथ वासनात्मक व्यवहार नर्क का द्वार ही है | कहने का तात्पर्य है कि हमारे शास्त्रों में कुछ भी गलत नहीं लिखा है आवश्यकता है उन्हें समझने की , परंतु आज हम स्वयं को वैज्ञानिक युग का प्राणी मानते हुए अपने धर्म ग्रंथों का अध्ययन ही नहीं करना चाहते हैं और ना ही उनके मूल अर्थों को समझने का प्रयास करते हैं | यही हमारे भ्रम का मुख्य कारण है और यह भ्रम अर्थ का अनर्थ करके प्रस्तुत करने वाले सनातन विरोधियों के परिश्रम का परिणाम है | सनातन धर्म ने नारी जाति को सदैव पूजनीय माना गया है इसका प्रमाण है हमारे धर्म ग्रंथों में है | यह अलग विषय है इसी समाज में यदि पतिव्रता स्त्रियों ने उदाहरण प्रस्तुत किया है तो इतिहास में अनेक पतित नारियों का वर्णन भी मिलता है जिससे इनकार नहीं किया जा सकता | जहां अच्छाई होती है बुराई भी वही निवास करती है , सकारात्मकता के साथ सदैव नकारात्मकता जुड़ी रही है परंतु आवश्यकता है कि किसी भी विषय के सकारात्मक पक्ष को देखा जाय जिससे कि भ्रम की स्थिति ना उत्पन्न हो | जो भी नारी को नर्क का द्वार कहे जाने का विरोध करते हैं उनको सर्वप्रथम यहीं समझने की आवश्यकता है कि ऐसा कहा गया तो क्यों कहा गया ? जिस दिन उनकी समझ में यह आ जाएगा उसी दिन उनका भ्रम स्वत: दूर हो जाएगा |*
*नर एवं नारी को मिलाकर परमात्मा ने इस समाज एवं संसार की रचना की परंतु इसी संसार में अच्छे एवं बुरे लोग एक साथ निवास करते हैं | कुछ इन्हीं अच्छे कार्यों के लिए अमर हो जाता है तो कुछ अपने बुरे कार्यों के लिए युग युगांतर तक जाने जाते हैं |*