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राग - अनुराग एवं वैराग्य :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जनवरी 2021

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*ईश्वर का बनाया हुआ यह संसार प्रेममय है | परमात्मा प्रेम के बिना नहीं मिल सकता , परमात्मा ही नहीं इस संसार में बिना प्रेम के कुछ भी नहीं प्राप्त हो सकता है | आप किसी से लड़ाई करके वह नहीं प्राप्त कर सकते जो प्रेम से प्राप्त हो सकता है | प्रेम को कई रूप में देखा जाता है मोह एवं आसक्ति इसी का दूसरा रूप है | प्रेम का शुद्ध रूप हमारे शास्त्रों में राग को बताया गया है | राग अर्थात प्रेम परिवार से प्रारंभ होता है परिवार से होते हुए यह राग समाज में फैलता है और एक दिन ऐसा आता है जब यह राग अनुराग में परिवर्तित हो जाता है | अनुराग का अर्थ है निश्छल प्रेम | यह निश्चल प्रेम मनुष्य से हो या परमात्मा से यह सब कुछ प्राप्त करा लेने में सक्षम है | अनुराग के विषय में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं :- "मिलहिं हन रघुपति बिनु अनुरागा" | राग जब अनुराग में परिवर्तित हो जाता है तो मनुष्य को परमात्मा के चरणों में निश्चल प्रेम होता है और बिना निश्चल प्रेम के ईश्वर की प्राप्ति नहीं की जा सकती | सगुण साकार रूप में अनुराग रखते हुए मनुष्य जब निराकार निर्गुण स्वरूप की उपासना करना प्रारंभ कर देता है तब यह अनुराग बैराग्य में परिवर्तित हो जाता है | जिस प्रकार मनुष्य बिना प्राथमिक शिक्षा प्राप्त किये उच्च शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकता उसी प्रकार बिना राग के अनुराग कदापि नहीं हो सकता | राग को प्राथमिक शिक्षा कहा गया है अनुराग शिक्षा का मध्य कहा जा सकता है और वैराग्य और शिक्षा की पराकाष्ठा है | अनुराग अर्थात निश्चल प्रेम करके ही अनेक भक्तों ने इस संसार में परमात्मा को प्राप्त कर लिया है | अनुराग का जन्म राग से ही होता है और राग की उत्पत्ति परिवार में ही होती है | परिवार से विमुख होकर कोई भी अनुराग रुपी परमात्मा को कभी नहीं प्राप्त कर सकता | जब तक राग नहीं होगा तब तक अनुराग की नींव नहीं पड़ेगी और अनुराग के बिना वैराग्य पा लेना दिन में सपने देखने के जैसा है | राग - अनुराग एवं बैराग्य में भेद स्पष्ट करते हुए हमारे शास्त्रों में वर्णन प्राप्त होता है कि इंद्रियों का संपर्क जब उनके विषय से होता है तब सुख की अनुभूति होती है | जैसे जब कोई स्वादिष्ठ भोज्य पदार्थ का संपर्क हमारी जीभ से होता है तब हमें बड़ा आनंद आता है | परंतु ये आनंद क्षणिक होता है | एक बार खाने के बाद वो आनंद चला जाता है | चूँकि हूमें आनंद का स्वाद लग गया है , भले ही वो क्षणिक था, इसलिए हम उसी आनंद की खोज में दोबारा उसी विषय में अपनी इंद्रिया को लिप्त करते हैं | और ये क्षणिक आनंद पाने का प्रयास करते करते जीवन चलता रहता है | और इसमें मनुष्य जितना प्रयास करता है इंद्रियों को तृप्त करने का उस क्षणिक आनंद से मोह या यूं कहे उसको पाने की इच्छा निरंतर उतनी ही और प्रबल होती जाती है | इस प्रकार से यही प्रबल इच्छा हमें विषय से और संपर्क करने के लिए अभिप्रेरित करेगी | इसी को राग कहा जाता है | जब आनंद पाने की यही प्रबल इच्छा संसारिक विषयों में ना लिप्त होकर ईश्वर, गुरु या सच्चे प्रेम के प्रति होती है तो इसे अनुराग कहा जाता है | जीवन में एक बार ऐसा अनुराग आ जाने से हम हम धीमे धीमे वैराग्य की अवस्था की ओर उन्मुख होते हैं |*


*आज संसार में प्रेम का स्वरूप ही बदल गया है | प्रेम अब मोह में परिवर्तित होता दिख रहा है | रागी तो सभी हैं , राग तो सभी करते हैं परंतु राग से आगे बढ़कर अनुराग एवं वैराग्य के पद पर चलने वाला कोई भी नहीं निकल पाता | कुछ लोग ईश्वर के प्रति अनुराग रखकर बैराग्य तो करना चाहते हैं परंतु वे यह नहीं समझ पाते बिना राग के अनुराग नहीं हो सकता | राग प्राथमिक प्रेम है जो कि परिवार से ही होता है | कुछ लोग परिवार का त्याग करके ईश्वर की प्राप्ति करना चाहते हैं परंतु यह उसी प्रकार है जैसे बिना प्राथमिक शिक्षा के उच्च शिक्षा प्राप्त करने का प्रयास करना और यह क्या कभी भी सफल नहीं हो सकता | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" अब तक जो जान पाया हूँ उसके अनुसार :- राग-विराग व अनुराग मानव अंत:करण के पहलू हैं | राग का अर्थ है लगाव और विराग का अर्थ है अलगाव अर्थात संसारी व्यक्ति | वस्तु में या तो हमें लगाव होता है या उससे हमारा विलगाव होता है | इन दोनों स्थितियों में रहने वाला मनुष्य परमात्मा की प्राप्ति नहीं कर सकता | ईश्वर तो अनुराग से मिलता है , अनुराग का मतलब लगाव-विलगाव के मध्य की स्थिति | जैसे चावल बनाते समय यह देखा जाता है कि पानी अधिक न हो जाय या फिर आग ज्यादा तेज न जले | उसी प्रकार विराग रूपी अग्नि की देखरेख आवश्यक है | जब राग व वैराग्य दोनों का सामंजस्य ठीकठाक रहेगा तो समझो हम सिद्ध हुए और परमात्मा का सच्चा सुख हमें मिला | संसार दु:खालय है और दु:खालय में सुख की खोज अल्पज्ञता का द्योतक है | सुखधाम तो राम हैं , उन्हीं से ही सच्चा सुख प्राप्त हो सकता है | परंतु आज संसार में अनेक साधक बैराग्य की साधना तो करना चाहते हैं जिसके लिए वह अपने घर परिवार को भी छोड़ देना चाहते हैं परंतु वैराग्य एवं राग दोनों में सामंजस्य नहीं बैठा पाते | यही कारण है कि अनेकों साधन कर लेने के बाद भी उनके हृदय में अनुराग अर्थात निश्चल प्रेम नहीं प्रकट हो पाता तथा जीवन भर साधना करने के बाद भी ईश्वर को नहीं प्राप्त कर पाते | ईश्वर को प्राप्त करने का सबसे सरल साधन है हृदय में परमात्मा से निश्छल प्रेम करना | परमात्मा से निश्चल प्रेम तभी हो पाएगा जब मनुष्य अपने परिवार एवं समाज से निश्चल प्रेम करना प्रारंभ कर देगा | जिसके मन में कुटिलता या तिरस्कार की भावना है , जिसका मन कलुषित है वह कभी भी परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकता | स्वयं राघवेन्द्र सरकार ने कहा है कि :- "निर्मल मन जन सो मोहि पावा" इसलिए प्रत्येक मनुष्य को राग करते हुए अनुराग की ओर बढ़ना चाहिए तभी उसे वैराग्य की प्राप्ति हो सकती है |*


*प्रेम के परावर्तित रूप राग अनुराग एवं वैराग्य के रहस्य को जो समझ लेता है उसके लिए कुछ भी प्राप्त कर पाना असंभव नहीं होता | यदि मनुष्य निश्चल प्रेम करते हुए अनुरागी बन जाता है तो अपरिचित लोगों के मध्य में भी वह प्रिय हो जाता है |*

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रचनाएँ
सनातन विचार
2.5
हमारा जीवन कैसा था , और अब कैसा होता जा रहा है ! हम अपने संस्कारों को कैसे भूलते चले जा रहे हैं इस पर विचार करने की आश्यकता है ! सत्य सनातन धर्म की मान्यतायें अलौकिक एवं दिव्य रही हैं परंतु आज का सनातनी अपनी मूल मान्यताओं से विमुख होते हुए आधुनिक कल्चर में व्यस्त होकर अपना मूल गंवाता चला जा रहा है ! हम क्या थे और क्या होते चले जा रहे हैं इसी विषय पर मन से निकले विचारों का संग्रह
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मित्र एवं मित्रता दिवस ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

6 अगस्त 2018
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*संसार में मनुष्य के लिए जितना महत्त्व परिवार व सगे - सम्बन्धियों का है उससे कहीं अधिक महत्त्व एक मित्र है | बिना मित्र बनाये न तो कोई रह पाया है और न ही रह पाना सम्भव है | मित्रता का जीवन में एक अलग ही स्थान है | मित्र बना लेना तो बहुत ही आसान है परंतु मित्रता को स्थिर रखना और जीवित रखना, सदा-सदा क

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दहेजरूपी दानव :*---- आचार्य अर्जुन तिवारी

3 सितम्बर 2018
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*सनातनकाल से इस धराधाम पर देवताओं के साथ दैत्यों का भी प्रादुर्भाव होता रहा है | और समय समय पर दानवों का वध देव पुरुषों / अवतारी पुरुषों के द्वारा होता रहा है | चाहे सतयुग रहा हो या त्रेता या फिर द्वापर इन सभी युगों में दैत्यों का तांडव हुआ है और इन तांडवों का केन्द्र रही है नारी | जिसने भी प्रकृतिस

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ज्ञान क्या है ??---+ आचार्य अर्जुन तिवारी

23 मई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस धरा धाम पर आदिकाल से लेकर वर्तमान तक अनेक शक्तिसम्पन्न विभूतियां अवतरित हुई हैं | जिनकी गणना कर पाना शायद सम्भव नहीं है | इन शक्तिसम्पन्न विभूतियों को प्राप्त शक्ति का स्रोत क्या रहा होगा , यदि इस पर विचार किया जाय तो परिणाम यही निकलेगा कि संसार भर उपस्थित सभी प्रक

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क्षमा एक उच्च गुण ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

24 जुलाई 2018
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*सनातन धर्म के ग्रंथ सदैव हमारे मार्गदर्शक रहे हैं | इन्हीं ग्रंथों में महाराज मनु द्वारा रचित "मनुस्मृति" में धर्म की विस्तृत व्याख्या करते हुए धर्म के दस लक्षण बताये हैं | यद्यपि ये दसों लक्षण महत्वपूर्ण है परंतु उसमें से एक विशेष लक्षण है क्षमा | क्षमा मांग लेने या क्षमा कर देने से मानव के जीवन क

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आत्मविश्वास ------ आचार्य अर्जुन तिवारी

30 जून 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस धराधाम पर जबसे मनुष्य की सृष्टि हुई तब से लेकर आज तक मनुष्य अनवरत संघर्षशील ही रहा है | अपनी इसी संघर्षशीलता के बल पर मनुष्य ने असम्भव को भी सम्भव बनाकर दिखाया है | इस संसार में विद्यमान शायद कोई भी ऐसा संसाधन नहीं बचा है जिसका उपयोग मनुष्य ने न किया हो | हिंसक जान

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समरथ को नहिं दोष गोसांईं----- आचार्य अर्जुन तिवारी http://acharyaarjuntiwariblogspot.com/

22 अप्रैल 2018
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*सनातन धर्म के धर्मग्रंथों ने मानव जीवन जीने के लिए अनेकानेक मार्गों का मार्गदर्शन किया है | इन मार्गों का अनुसरण करके मनुष्य अपने विवेक , बुद्धि एवं बल का अवलम्ब लेकर सामर्थ्यवान हुआ | जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मनुष्य ने अपनी समर्थता का झंडा गाड़ा है | मनुष्य समर्थ हो सकता है और हुआ भी है , परंत

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कैसे हो भगवान का दर्शन :---- आचार्य अर्जुन तिवारी

29 अगस्त 2018
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*सनातन काल से मनुष्य धर्मग्रंथों का निर्देश मान करके ईश्वर को प्राप्त करने का उद्योग करता रहा है | भिन्न - भिन्न मार्गों से भगवत्प्राप्ति का यतन किया जाता रहा है | इन्हीं में एक यत्न है माला द्वारा मंत्रजप | कुछ लोग यह पूंछते रहते हैं कि धर्मग्रंथों में दिये गये निर्देशानुसार यदि निश्चित संख्या में

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अवलम्ब परमात्मा का ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

3 फरवरी 2018
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*इस संसार में मनुष्य सदैव ही किसी न किसी अवलम्ब का सहारा लेकर ही आगे बढता रहा है | बिना कोई अवलम्ब लिए इस संसार सागर को पार कर पाना मुश्किल ही नहीं वरन् असम्भव है | जन्म के बाद माता - पिता का सहारा लेकर आगे बढने वाला बालक धीरे - धीरे अपना जीवन जैसे - जैसे आगे बढाता है उसके लिए नये नये अवलम्ब तैयार ह

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स्वर्ग एवं नर्क ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

28 मई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *सतातन धर्म एक बहुआयामी धर्म है | इस धर्म में विस्तृत जीवन दर्शन देखने को मिलता है | सनातन धर्म एकमात्र ऐसा धर्म है जहाँ आपको ग्रंथों के माध्यम से जीवन के पहले , जीवन में एवं जीवन के बाद क्या हो रहा था ? क्या हो रहा है ? और क्या होगा ? प्रयत्न करने पर सब कुछ प्राप्त हो

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ईश्वर का अस्तित्व---- आचार्य अर्जुन तिवारी

11 फरवरी 2018
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*सनातन धर्म में अनेकों देवी - देवताओं की मान्यता तो है परंतु इन सभी देवताओं के ऊपर भी एक सत्ता को प्रतिपादित किया गया है ! जिसे ईश्वरीय सत्ता , परमसत्ता या ब्रह्मसत्ता कहकर पुकारा जाता है | वेदों में भी उद्घोष किया जाता है कि ---" एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति " ब्रह्मसत्ता एक ही है जो समस्त सृष्टि का

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राम नाम ही श्रेष्ठ ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जुलाई 2018
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*इस समस्त सृष्टि में श्रीराम नाम की व्यापकता कण कण में समायी हुई है | राम कौन हैं ??? कोई अयोध्या के राजकुमार श्री राम को भजता है तो कोई निर्गुण निराकार राम को | अयोध्या में श्री राम का अवतरण त्रेतायुग में हुआ था परंतु राम नाम की व्यापकता वेदों में भी दिखाई पड़ती जो कि सृष्टि के आदिकाल से ही हैं |

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मानव जीवन में शिक्षा------ आचार्य अर्जुन तिवारी

5 जुलाई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !!*मनुष्य के जीवन में यदि देखा जाय तो संसार में सब कुछ महत्त्वपूर्ण है ! परंतु इन सभी सबसे अति महत्तवपूर्ण शिक्षा | बिना शिक्षा प्राप्त किये मनुष्य को स्वयं , समाज एवं विशेषकर मनुष्यता का बोध नहीं हो सकता | एक शिक्षित मनुष्य ही अपने भले बुरे के बारे में सही ढंग से सोच सकता

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परहित सरिस धरम नहिं भाई----- आचार्य अर्जुन तिवारी

14 मार्च 2018
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जो बाँटोगे वही मिलेगा ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

26 जुलाई 2018
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*मानव जीवन इतना विचित्र है कि इसे जान पाना शायद सबके लिए सम्भव नहीं है | यहाँ अधिकतर मनुष्य सिर्फ पाना चाहते हैं , परंतु देने वाले कुछेक ही हैं | वैसे तो मनुष्य को जीवन जीने के लिए प्राकृतिक - भौतिक संसाधन जितने मिल जायं कम ही हैं , परंतु मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि मनुष्य जीवन में मन

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सतसंग ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

23 जनवरी 2018
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*संसार में मनुष्य भगवान की कृपा या स्वयं भगवान को ही प्राप्त करने के लिए अनेकों साधनों का आश्रय लेकर उद्योग किया करता है | हमारे पुराण एवं शास्त्रों में भगवान को प्राप्त करने के अनेकों मार्ग बताये गये हैं | मनुष्य भगवान के नाम , रूप , लीला एवं धाम का अवलम्ब लेकर मुक्ति पाना चाहता है | नाम का संकीर्त

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आत्म परिष्कार :--- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 अगस्त 2018
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*इस संसार में जिस प्रकार संसार में उपलब्ध लगभग सभी वस्तुओं को अपने योग्य बनाने के लिए उसे परिमार्जित करके अपने योग्य बनाना पड़ता है उसी प्रकार मनुष्य को कुछ भी प्राप्त करने के लिए स्वयं का परिष्कार करना परम आवश्यक है | बिना परिष्कार के मानव जीवन एक बिडंबना बनकर रह जाता है | सामान्य मनुष्य , यों ही अ

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जीवन का आधार हैं वृक्ष --- आचार्य अर्जुन तिवारी

1 मई 2018
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‼ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼ जब से सृष्टि की उत्पत्ति हुई तब से ही इस धरती पर वनों एवं वृक्षों का इतिहास देखने को मिलता है | मानव सभ्यता के विकास में इन वृक्षों का बहुत बड़ा योगदान रहा है | शायद इसीलिए सनातन संस्कृति में वृक्षों को पूज्यनीय माना जाता रहा है | भिन्न - भिन्न वृक्

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सुधारें अपनी भूल :---- आचार्य अर्जुन तिवारी

3 सितम्बर 2018
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*संसार में मनुष्य एक अलौकिक प्राणी है | मनुष्य ने वैसे तो आदिकाल से लेकर वर्तमान तक अनेकों प्रकार के अस्त्र - शस्त्रों का आविष्कार करके अपने कार्य सम्पन्न किये हैं | परंतु मनुष्य का सबसे बड़ा अस्त्र होता है उसका विवेक एवं बुद्धि | इस अस्त्र के होने पर मनुष्य कभी परास्त नहीं हो सकता परंतु आवश्यकता हो

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आत्मबल--**** आचार्य अर्जुन तिवारी

7 जनवरी 2018
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ईश्वरीय सृष्टि में समस्त चराचर जीवों में सर्वश्रेष्ठ मानव हुआ | इसका कारण यह है कि मानव को बुद्धि एवं विवेक रूपी ऐसी शक्ति मिली जिसके बल पर वह जितना उतना ऊँचा उठ सकता है | और मानव ने इसी बुद्धि एवं विवेक के बल पर समस्त प्राणियों पर शासन किया है | संसार का कोई भी असम्भव कार्य हो मानव ने उसे अपनी बुद्

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देश के भविष्य - युवा :---- आचार्य अर्जुन तिवारी

7 सितम्बर 2018
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*आदिकाल से ही समाज व देश के विकास में युवाओं का अप्रतिम योगदान रहा है | समय समय पर सामाजिक बुराईयों का अन्त करने का बीड़ा युवाओं ने ही युठाया है | अपनी युवावस्था में ही मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम ने ताड़कादि का वध तो किया साथ वन को जाकर रावण आदि दुर्दांत निशाचरों का वध करके विकृत होती जा रही संस्कृत

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सृष्टि के पालक नारायण------ आचार्य अर्जुन तिवारी

7 फरवरी 2018
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*सनातन धर्म में अनेक देवी - देवताओं के मध्य मुख्यरूप से त्रिदेवों की प्रधानता मानी गयी है | पितामह ब्रह्मा - सृष्टिकर्ता ! जिनके द्वारा समस्त सृष्टि रची गयी | श्रीहरि नारायण - जो सकल सृष्टि का पालन करते हैं | और भूतभावन भोलेनाथ ! जिन्हें संहारक कहा गया है | अब विचार किया जाय कि इन तीनों में प्रमुख क

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अर्द्धनारीश्वर ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 जून 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! इस धराधाम पर विधाता ने अद्भुत मैथुनी सृष्टि की है | नर एवं नारी का जोड़ा उत्पन्न करके दोनों को एक दूसरे का पूरक बनाया | बिना एक दूसरे के सहयोग के सृष्टि का सम्पादन नहीं हो सकता | नर एवं नारी की महत्ता को दर्शाते हुए भगवान शिव ने भी अर्द्धनारीशवर का स्वरूप धारण किया है

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सबसे बड़ा धन ------ आचार्य अर्जुन तिवारी

9 जनवरी 2018
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सृष्टि में मनुष्य के लिए अनेक सम्पदायें और अनेकानेक धन विद्यमान हैं | इन सभी धनों का उपयोग करने के लिए मनुष्य को उसका उपयोग कैसे किया जाय इसका ज्ञान होना परमावश्यक है | अत: मनुष्य को ज्ञान की नितान्त आवश्यकता है | इससे यह सिद्ध होता है कि ज्ञान संसार की सर्वश्रेष्ठ व बहुमूल्य सम्पत्ति है | यदि मनुष्

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ईश्वर की व्यापकता ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

1 जुलाई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !!*सनातन धर्म में परमपिता परमेश्वर को सर्वज्ञ एवं सर्वशक्तिमान कहा गया है | परमात्मा के स्वरूप का वर्णन करते हुए पुरुषसूत्र में कहा गया है ----- "सहस्रशीर्षा: पुरुष: सहस्राक्ष: सहस्रपात्" ! अर्थात उस परम पुरुष के सहस्रों शीश , आँखें एवं पैर हैं , वह परमात्मा सर्वव्यापक है

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संस्कार----- आचार्य अर्जुन तिवारी

15 फरवरी 2018
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*मानव जीवन जितना ही सरल लगता है यह उतना ही रहस्यों से परिपूर्ण है | मनुष्य जीवन जीने के लिए हमारे पूर्वजों ने कुछ नियम बनाये थे उनमें से मुख्य थे मानव के संस्कार | मनुष्य के उद्भव , विकास एवं ह्रास में संस्कारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है | प्रत्येक समस्या का समाधान करने की क्षमता संस्कारों में ह

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जीवन में आवश्यक है नियमबद्धता ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

14 जुलाई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! इस सृष्टि का निर्माण परमात्मा ने बहुत ही सूझ बूझ के साथ किया है | इस सम्पूर्ण सृष्टि का कण - कण परमात्मा द्वारा प्रतिपादित नियम का पालन करते हुए अपने - अपने क्रिया - कलापों को गतिमान बनाये हुए हैं | बिना नियम के सृष्टि चलायमान नहीं हो सकती है | सूर्य , चन्द्र , वायु आद

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बिना बिचारे जो करै ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

6 जुलाई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस सकल ब्रह्माण्ड में चौरासी लाख योनियों का वर्णन मिलता है | इन चौरासी लाख योनियों के चार प्रकार बताये गये हैं :- जरायुज, स्वेदज, अण्डज और उद्भिज | जिसमें मनुष्य शरीर एक श्रेष्ठतम् और सर्वोत्तम आकृति है | चौरासी लाख आकृतियों में मनुष्य रूप आकृति के समान अन्य कोई आकृ

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प्रकृति का सौन्दर्य ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 फरवरी 2018
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मोह एवं विषाद --- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जुलाई 2018
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*सनातन धर्म के आदिग्रन्थ (चारों वेद ) का अध्ययन करके वेदव्यास जी ने उनका विन्यास किया और पुराण लिखे उन पुराणों एवं वेदों को आत्मसात करके हमारे ऋषियों अनेक उपनिषद लिखे ! इन तमाम धर्मग्रंथों में जीवन का सार तो है ही साथ ही जीवन की गुत्थियों को सुलझाने का रहस्य भी छुपा हुआ है | सनातन धर्म में भगवान श्र

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स्वयं को बदलो---- आचार्य अर्जुन तिवारी

17 जनवरी 2018
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*मानव जीवन विचित्रताओं से परिपूर्ण है | आज अक्सर लोगों को यह कहते सुना जाता है कि --- यह संसार बहुत ही बुरा हो गया है , लोग बहुत ही बुरे हो गये हैं | कभी कभी तो लोग यह भी कह देते हैं कि -- अब यह दुनिया भले लोगों के लायक बची ही नहीं हैं | क्योंकि यहाँ अच्छे लोगों के लिए जगह ही नहीं बची है आदि | जबसे

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कर्तव्य पालन ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

26 जुलाई 2018
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*चौरासी लाख योनियों में मनुष्य यदि सर्वश्रेष्ठ बना है तो उसका कारण है कि प्रारम्भ से ही अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए विकास करता रहा है | मानव जीवन में मुख्य है कर्तव्यों का सकारात्मकता से पालन करना | यदि कर्तव्य पालन में अपनी भावनाओं , इच्छाओं का दमन भी करना पड़े तो नि:संकोच कर देना चाहिए , ऐसा क

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बहुमूल्य समय ------ आचार्य अर्जुन तिवारी

1 अप्रैल 2018
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*इस सृष्टि में ईश्वर प्रदत्त कई अनमोल उपहार हमें प्राप्त हुए हैं | जिनकी गिनती कर पाना शायद हमारे लिए सम्भव नहीं है | यहाँ हमें मिले इन उपहारों में सर्वश्रेष्ठ है हमारा जीवन | इस प्रकृति में सब कुछ परिवर्तनशील है | जीवन का अर्थ है गतिशीलता , इस प्रकृति में सूर्य, चन्द्र, तारे, पृथ्वी सबके सब सदैव गत

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गुरु पूर्णिमा ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

28 जुलाई 2018
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*सनातन संस्कृति में समय समय पर्वों त्यौहारोंं के माध्यम से अपने आदर्शों को स्मृति में बनाये रखने की अलोकिक परम्परा रही है | इसी क्रम में एक महत्वपूर्ण पर्व है - "गुरू पूर्णिमा" | प्रत्येक मनुष्य के जीवन में गुरु का महत्वपूर्ण योगदान होता है | गुरु की व्याख्या कर पाना

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जिज्ञासु मन-------- आचार्य अर्जुन तिवारी

21 दिसम्बर 2017
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*मानव जीवन में मनुष्यसबज जिज्ञासु प्रवृत्ति का होता है !निरंतर नई खोज करना या नये-नये ज्ञान प्राप्त करना मानव का स्वभाव होता है!स्वयं कुछ न समझ पाने या भ्रमित हो जाने की स्थिति में वह अपनी जिज्ञासा अपने वरिष्ठों के समक्ष प्रस्तुत करता है! तब उसके मित्रो

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आज का समाज :--- आचार्य अर्जुन तिवारी

13 अगस्त 2018
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*धरती पर मनुष्य के विकास में मनुष्य का मनुष्य के प्रति प्रेम प्रमुख था | तब मनुष्य एक ही धर्म जानता था :- "मानव धर्म" | एक दूसरे के सुख - दुख समाज के सभी लोग सहभागिता करते थे | किसी गाँव या कबीले में यदि किसी एक व्यक्ति के यहाँ कोई उत्सव होता था तो वह पूरे गाँ का उत्सव बन जाता था , और यदि किसी के यह

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कैसे प्राप्त हो दिव्य दृष्टि----- आचार्य अर्जुन तिवारी

1 मई 2018
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‼ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼ सनातन धर्म एक वैज्ञानिक धर्म है ! प्राय: लोग कथाओं में जब "दिव्यदृष्टि" का वर्णन पढते हैं तो उन्हें यह बकवास व कोरी कल्पना से अधिक कुछ भी नहीं प्रतीत होता | जबकि मैं दावा करता हूँ कि आज भी यदि मनुष्य चाहे तो दिव्यदृष्टि प्राप्त कर सकता है | यह दिव्य

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जीवन में लक्ष्य :--- आचार्य अर्जुन तिवारी

27 अगस्त 2018
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*मानव शरीर को गोस्वामी तुलसीदास जी ने साधना का धाम बताते हुए लिखा है :--- "साधन धाम मोक्ष कर द्वारा ! पाइ न जेहि परलोक संवारा !! अर्थात :- चौरासी लाख योनियों में मानव योनि ही एकमात्र ऐसी योनि है जिसे पाकर जीव लोक - परलोक दोनों ही सुधार सकता है | यहाँ तुलसी बाबा ने जो साधन लिखा है वह साधन आखिर क्या ह

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स्नान के प्रकार

30 जनवरी 2018
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🌸🌻🌸🌻🌸🌻🌸🌻🌸🌻🌸 ‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼ 🍃🏵🍃🏵🍃🏵🍃🏵🍃🏵🍃 *मान्त्रं भौमं तथाग्नेयं,* *वायव्यं दिव्यमेव च !* *वारुणं मानसं चैव,* *सप्त स्नानान्यनुक्रमात् !!* *आपोहिष्ठादिभिर्मंत्रं,* *मृदालम्भस्तु पार्थिवम् !* *आग्न

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भगवान श्री कृष्ण :-- आचार्य अर्जुन तिवारी

2 सितम्बर 2018
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*यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवतिभारत ! अभियुत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ! परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ! धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे - युगे !! भगवान श्री कृष्ण एक अद्भुत , अलौकिक दिव्य जीवन चरित्र | जो सभी अवतारों में एक ऐसे अवतार थे जिन्होंने यह घोषणा की कि मैं परमात्मा हूँ

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पिता ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

13 मई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस सकल सृष्टि में मां ईश्वर की अनोखी और अद्भुत देन हैं | वह अपने बच्चे को नौ महीने तक अपनी कोख में पाल-पोस कर उसे जन्म देने का अद्भुत काम करती है | अपना दूध पिलाकर उस नींव को सींचती और संवारती है | कहा जाता है कि माँ के पैरों के नीचे स्वर्ग होता है परंतु उस स्वर्ग तक

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विश्वासघात :----- आचार्य अर्जुन तिवारी

3 सितम्बर 2018
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*मानव जीवन में गुरु का कितना महत्त्व है यह आज किसी से छुपा नहीं है | सनातन काल से गुरुसत्ता ने शिष्यों का परिमार्जन करके उन्हें उच्चकोटि का विद्वान बनाया है | शिष्यों ने भी गुरु परम्परा का निर्वाह करते हुए धर्मध्वजा फहराने का कार्य किया है | इतिहास में अनेकों कथायें मिलती हैं जहाँ परिवार / समाज से उ

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श्रद्धा एवं विश्वास -----

4 अक्टूबर 2017
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आज का मनुष्य जितना ज्यादा ज्ञानी होता व साक्षरहोता जा रहा है उतना ही भटक रहा है क्योंकि कहीं न कहीं से उसके भीतर श्रद्धा व विश्वास की कमी दिख रही | मनुष्य चांद पर तो पहुँच गया परंतु यह सृष्टि एवं ईश्वरीयसत्ता इतनी अलौकिक एवं विचित्रताओं से भरी ह

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अनुभव बुजुर्गों का :---- आचार्य अर्जुन तिवारी

4 सितम्बर 2018
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*सनातन काल से हमारे समाज के सृजन में परिवार के बुजुर्गों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है | हमारे ज्येष्ठ एवं श्रेष्ठ बुजुर्ग सदैव से हमारे मार्गदर्शक रहे हैं चाहे वे शिक्षित रहे हों या अशिक्षित | बुजुर्ग यदि अशिक्षित भी रहे हों तब भी उनके पास अपने जीवन के खट्टे - मीठे इतने अनुभव होते हैं कि वे उन अनुभ

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संस्कृति एवं संस्कार ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

23 मई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *सनातन काल से भारतदेश देवताओं की भूमि कहा गया है | सम्पूर्ण संस्कृतियाँ भारत भूमि से ही होकर सम्पूर्ण विश्व में फैलीं | हमारे ऋषि महात्माओं ने अनेकानेक कीर्तिमान स्थापित किये जिनका लाभ आज भी समस्त विश्व ले रहा है | इन्हीं ऐश्वर्य के कारण भारत देश विश्वगुरु कहलाया | भार

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नियम बद्धता ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 मई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *परमपिता परमेश्वर ने इस संसार का निर्माण बहुत ही सोच-समझ कर संतुलन के आधार पर किया है | पूरे ब्रह्मांड की एक-एक वस्तु, एक-एक कण परमात्मा द्वारा निर्धारित नियमों के अंतर्गत चल रहा है | अनादिकाल से यह क्रम चलता आ रहा है, क्योंकि प्रत्येक वस्तु अपनी गति के अनुरूप चल रही ह

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मनुष्य के शत्रु ------- आचार्य अर्जुन तिवारी

8 जनवरी 2018
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इस संसार में जब मनुष्य का जन्म होता है तो उसका मन बहुत ही निर्मल होता है | वह दुनिया के प्रपंचों से दूर एक नया जीवन प्रारंभ करने का प्रयास करता है |अपने विकास क्रम में जैसे जैसे मनुष्य बड़ा होता जाता है इस संसार में उसके अनेकों मित्र बनते हैं और अनेकों शत्रु भी बन जाते हैं | सांसारिक मित्रों और शत्र

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सकारात्मक व नकारात्मक ---+ आचार्य अर्जुन तिवारी

5 जून 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस सृ्ष्टि में ईश्वर ने समस्त प्राणिमात्र को सारी ऊर्जायें समान रूप से प्रदान की हैं | सूर्य का प्रकाश , चन्द्रमा की शीतलता , नदियों का जल , हवा , प्राकृतिक सम्पदायें आदि समस्त प्राणिमात्र को समानरूप से मिल रही हैं | अनेक प्राकृतिक संसाधन मनुष्य को यहाँ प्राप्त हुए है

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मुस्कराना एक जीवंत कला ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

11 फरवरी 2018
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मनुष्य के कर्म ------; आचार्य अर्जुन तिवारी

30 जून 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! इस सृष्टि में परमपिता परमात्मा ने मनुष्य को जो भी बल, बुद्धि एवं विवेक दिया है, उसके हृदय में दया, करुणा, सहृदयता, सहानुभूति अथवा संवेदना की भावनायें भरी हैं, वे इसलिये नहीं कि वह उन्हें अपने अन्दर ही बन्द रखकर व्यर्थ चला जाने दे | उसने जो भी गुण और विशेषता मनुष्यों को

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कर्म-क्षेत्र है यह संसार आचार्य अर्जुन तिवारी

6 दिसम्बर 2017
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हमारी अनेक ग्रंथों में इस संसार सागर को कर्म क्षेत्र कहा गया है यहां मनुष्य जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल प्राप्तहोता है आपके यहां जैसा कर्म क करेंगे वैसा ही फल आप को प्राप्त होना हैकर्मों के लिए जाना जाने वाला ही संसार इस बात का द्योतक है कि यहां कोई किसी को न सुख देता है न दुख देता है प्रत्ये

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स्वयं की खोज ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 जून 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! इस असार संसार में आने के बाद मनुष्य जैसे खो जाता और उसकी एक यात्रा प्रारम्भ हो जाती है | मनुष्य द्वारा नित्यप्रति कुछ न कुछ खोजने की प्रक्रिया शुरू होती है | मनुष्य का सम्पूर्ण जीवनकाल एक खोज में ही व्यतीत हो जाता है | कभी वह वैज्ञानिक बनकर नये - नये प्रयोगों की खोज कर

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कैसे मिले प्रभु दर्शन----- आचार्य अर्जुन तिवारी

15 फरवरी 2018
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*इस संसार में आकर मनुष्य अपने परिवार के साथ भगवान के विषय में भी जानने उनका दर्शन करने का इच्छुक बना रहता है | कुछ लोग तो भगवान को जानने के लिए उनका दर्शन पाने के लिए बहुत ही कठिन से कठिन उद्योग भी करते हैं | परंतु भगवान का दर्शन करने से पहले आवश्यक यह है कि भगवान के स्वरूप व स्वभाव के विषय में जान

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अमरनाथ की अमर गुफा ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

1 जुलाई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *आदिकाल से ईश्वर की सत्ता सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विद्यमान है | परंतु सृष्टि के प्रारम्भ से ही ईश्वरीय सत्ता को मानने वाले भी इसी ब्रह्माण्ड में रहे हैं जिन्हें असुर की संज्ञा दी गयी है | समय समय पर इस धरती पर ईश्वर की उपस्थिति का प्रमाण मिलता रहा है | उन्हीं प्रमाणों

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३३ कोटि या ३३ करोड़ ------ आचार्य अर्जुन तिवारी

12 जनवरी 2018
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जब से सृष्टि का प्रादुर्भाव हुआ तब से ही सकारात्मक एवं नकारात्मक शक्तियों का अभ्युदय एक साथ ही हुआ | आदिकाल से ही अच्छी संस्कृति , सभ्यता एवं आदिधर्म सनातन का विरोध करने वाले भी इसी सृष्टि में रहे हैं | किसी भी विषय पर कोई संशय होने पर उस विषय का गहनता से अवलोकन करके ही उस संशय से बाहर निकला जा सकता

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दुष्ट संग जनि देंहिं विधाता ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

6 जुलाई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस संसार में भाँति भाँति प्रकार के मनुष्य समाज में रहते हैं जिनकी प्रवृत्तियां भी भिन्न ही होती हैं ! कुछ लोग सद्प्रवृत्तियों के होते हैं जो सदैव प्रेम , सौहार्द्र , एवं लोककल्याण में प्रयासरत होते हैं , तो कुछ दुष्प्रवृत्ति के होते हैं जो सदैव विध्वंसक , ईर्ष्या - द्

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आज का आधुनिक समाज ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

19 फरवरी 2018
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*भारतीय सनातन संस्कृति सदैव से पूरे विश्व के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करती आई है | समस्त विश्व भारतीय आदर्शों को अपनाकर प्रत्येक क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित कर रहा है | परंतु आज हम भारतीय अपनी संस्कृति और अपने आदर्शों को भूलते जा रहे हैं | पुरातन काल में जब घर में कोई वैवाहिक कार्यक्रम होता था तब घ

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स्वार्थ एवं परमार्थ ------- आचार्य अर्जुन तिवारी

14 जुलाई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! मानव जीवन में दो चीजे मनुष्य को प्रभावित करती हैं पहला स्वार्थ और दूसरा परमार्थ | जहाँ स्वार्थ का मतलब हुआ स्व + अर्थ अर्थात स्वयं का हित , वहीं परमार्थ का मतलब हुआ परम + अर्थ अर्थात परमअर्थ | परमअर्थ के विषय में हमारे मनीषी बताते हैं कि जो आत्मा के हितार्थ , आत्मा के

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मृत्युलोक का सच ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

10 जुलाई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *यह संसार परिवर्तनशील है ! यहाँ कभी भी कुछ भी एक जैसा न रहा है और न ही रहेगा | नित्यप्रति परिवर्तन ही सृष्टि का नियम है | जिस प्रकार प्रात:काल सूर्योदय होता है और दिनभर सारे संसार को प्रकाशित करने के बाद वह पुन: समयनुकूल अपने पीछे एक गहन

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वर्तमान को सुधारें ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

24 फरवरी 2018
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*मानव जीवन सदैव से भविष्य की योजनायें बनाते हुए बीतता है | हमारे पास जो बीत गया वह भूतकाल , जो चल रहा है वह वर्तमानकाल और जो आने वाला है वह भविष्यकाल कहा जाता है | अक्सर मनुष्य अपने बीते हुए स्वर्णिमकाल की याद या आने वाले भविष्य की योजनाओं में हीं स्वयं को उलझाये रखता है | वर्तमान में मनुष्य का मन

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त्याग क्या है ????? आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जुलाई 2018
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*इस संसार में प्राय: लोगों के मुख से दो शब्द सुनने को मिल जाया करते हैं :- १- त्याग , २- तपस्या | त्याग एक अनोखा शब्द है , त्याग में ही जीवन का सार छुपा हुआ है | त्याग करके ही हमारे महापुरुषों ने जीवनपथ को आलोकित किया है | जिसने भी त्याग की भावना को अपनाया उसने ही जीवन में उच्च से उच्च मानदंड स्थापि

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आत्मिक ज्ञान------ आचार्य अर्जुन तिवारी

16 जनवरी 2018
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*चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ योनि मानव की कही गयी है | इस सर्वोच्च योनि को पाकर भी मनुष्य अपने मूल कर्तव्यों से भटककर संसार के मोह - माया में लिप्त है | यह स्वाभाविक भी है क्योंकि यह संसार ही माया है | परंतु इसी माया में ही रहते हुए भी हमारे महापुरुषों ने इससे किनारा करते हुए संसार के दुर्लभ

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जीवन में मनुष्य की आदतों का प्रभाव --- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जुलाई 2018
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*मनुष्य का स्वभाव है कि जिस काम को वह एक बार कर लेता है उसी काम को वह पुन: करना चाहता है | जो विचार एक बार उसके मन में आ जाता है वही विचार वह अपने मन में बार - बार लाता रहता है | अपने अनुभवों की आवृत्ति से उसे तृप्ति मिलती है | इस प्रकार जब कोई भाव चित्त में ठहर जाता है और मनुष्य द्वारा उसे बार - ब

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पितृऋण-------- आचार्य अर्जुन तिवारी

5 मार्च 2018
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*सनातन धर्म में सदैव मान्यता रही है कि आत्मा अमर है | यह अविनाशी आत्मा एक शरीर को छोड़ने के बाद दूसरा शरीर धारण कर लेती है | गीता में भगवान श्रीकृष्ण उद्घोष करते हैं --- जिस प्रकार मनुष्य पुराने कपड़ों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है |

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तपस्या बड़ी है या सतसंग ----:आचार्य अर्जुन तिवारी

24 जुलाई 2018
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*सनातन धर्म में प्रभु प्राप्ति के कई साधन बताये गये हैं ! जैसे कि :- जप , तप , पूजा , पाठ , सतसंग आदि | कभी कभी मनुष्य दिग्भ्रमित हो जाता है कि वह प्रभु को प्राप्त करने के लिए कौन सा मार्ग चुने | प्राचीनकाल की कथाओं को पढकर ऐसा लगता है कि सबसे महत्तपूर्ण साधन जप एवं तप ही रहे होंगे | परंतु किसी भी ज

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आज के व्रत---------- आचार्य अर्जुन तिवारी

20 दिसम्बर 2017
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हमारे सनातन धर्म में जीवन जीने के लिए अनेक साधन बताए गए हैं! प्रत्येक कार्य के लिए प्रत्येक कार्य के लिए अलग-अलग विधान सनातन धर्म बताया गया है! धर्म की साधना करना हो या कोई अन्य कार्य इसके लिए आवश्यक है शरीर का स्वस्थ रहे रहे!क्योंकि जब तक हमारा शरीर स्वस्थ नहीं रहेगा तब तक हम कोई भी साधना या मेह

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काहु न कोउ सुख दुख कर दाता ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

26 जुलाई 2018
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*मानव जीवन इतना विचित्र है कि इसमें मनुष्य को अनेक अनुभव होते रहते हैं | मनुष्य की मन:स्थिति ऐसी होती है कि वह क्षण भर दु:खी और दूसरे क्षण सुखी हो जाता है | विचित्र बात यह है कि मनुष्य दु:खी हो जाता है तो सारा दोष दूसरों को या फिर परमात्मा को दे देता है और सुखी होने पर सारा श्रेय स्वयं ले लेता है |

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नव संवतसर ------- आचार्य अर्जुन तिवारी

18 मार्च 2018
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इस संसार में सनातन धर्म अपने आप में एक महान जीवन दर्शन प्रस्तुत करने वाला धर्म कहा जाता है | धन्य हैं हमारे रीति - रिवाजों एवं त्यौहारों की नींव रखने वाले सनातन धर्म के पुरोधा हमारे ऋषिगण ! हम सब जिनकी संतान हैं | सनातन हिन्दू धर्म के प्रत्येक रीति रिवाज , मान्यतायें एवं त्यौहारों में वैज्ञानिकता भी

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संयोग - वियोग ------- आचार्य अर्जुन तिवारी

26 जुलाई 2018
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*इस सृष्टि के चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ मानवयोनि प्राप्त करके मनुष्य अपने जीवनकाल में अनेकों प्रकार के अनुभव प्राप्त करता है ! इसी क्रम में मनुष्य को मोह , क्रोध , प्रेम , मिलन , वियोग आदि के भी खट्टे - मीठे अनुभव होते रहते हैं | जहाँ संयोग है वहीं वियोग भी है क्योंकि वियोग का प्रादुर्भाव स

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सतसंग की आवश्यकता ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

23 जनवरी 2018
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*मानव जीवन में जितना महत्व अन्न , वस्त्र एवं मकान का है उससे कहीं अधिक महत्व है सतसंग का | सतसंग मनुष्य को परिमार्जित करता है | अक्सर लोग सतसंग का अर्थ कथा - प्रवचन आदि से लगा लेते हैं | क्या इसे सही माना जा सकता है | शायद नहीं | सतसंग का सीधा सा अर्थ है सज्जनों का संग करना , अब जब मनुष्य सज्जनों का

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आज के स्वघोषित विद्वान ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

28 जुलाई 2018
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*आज तक इस सृष्टि में अनेकानेक ऋषि - महर्षि / विद्वान हुए हैं जिनके मारिगदर्शन में यह सृष्टि गतिमान हुई | आज हमारे पास जो भी संसाधन उपलब्ध हैं इन सबका श्रेय हमारे पूर्व के विद्वानों को ही जाता है | यह उन सभी विद्वानों की विद्वता ही है जो कि हमें जीवन के प्रत्येक विषय का ज्ञान उपलब्ध कराने वाले ग्रंथ

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जीवन में सामूहिक भोजन का महत्व

10 अप्रैल 2018
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*हमारी सनातन संस्कृति रही है साथ में बैठकर भोजन करना | क्योंकि ऐसा हमारे महापुरुषों एवं आधुनिक वैज्ञानिकों दोनों का मानना है कि साथ में बैंठकर भोजन करने से आपस में प्रेम बढता है | साथ में परिवार के साथ बैठकर भोजन करने से दिन भर की थकान गायब हो जाती थी | अपने दिन भर के क्रिया - कलापों को परिवार के सद

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आत्मकृपा की आवश्यकता ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

3 अगस्त 2018
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*सनातन साहित्यों में मनुष्यों के लिए चार पुरुषार्थ बताये गये हैं :- धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष | इनमें से अन्तिम एवं महत्वपूर्ण है मोक्ष , जिसकी प्राप्ति करना प्रत्येक मनुष्य का लक्ष्य होता है | मोक्ष प्राप्त करने के लिए भगवत्कृपा का होना परमावश्यक है | भगवत्कृपा प्राप्त करने के लिए भक्तिमार्ग का अनु

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सिद्ध महात्मा /ढोंगी संत और हम ----- आचार्यअर्जुनतिवारी

3 सितम्बर 2017
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आज जिधर देखो एक ही चर्चा सुनाई पड़ती है --- बाबाओं ने यह किया , बाबाओं ने वह किया | आज इन तथाकथित साधुओं/संतों के कारण अनेक सिद्ध महात्मा भी संदेह के घेरे में आ गये हैं | आज इनकी दुर्दशा या आत्मसम्मान/साधुता को कुछ गिने-चुने ढोंगी बाबाओं के कारण

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नम्रता ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

6 अगस्त 2018
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*ईश्वर की अनुपम कृति है मानव | अनेक गुणों का समावेश करके ईश्वर ने मनुष्य की रचना की है | इस धराधाम पर आकर इन्हीं गुणों के माध्य से मनुष्य ने अपना नाम इतिहास पुराणों में स्वर्णाक्षरों में लिखाया है | वैसे तो मनुष्य के सभी गुणों का बखान कर पाना तो सम्भव नहीं है परंतु जो गुण मनुष्य को मनुष्य बनाये रखने

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संगति का असर-------- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 अप्रैल 2018
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http://acharyaarjuntiwariblogspot.com/ 🌸🌞🌸🌞🌸🌞🌸🌞🌸🌞🌸 ‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼ 🔴 *आज का प्रात: संदेश* 🔴 🌻☘🌻☘🌻☘🌻☘🌻☘🌻 *मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है | और प्रत्येक मनुष्य को इस समाज में जिन्दा रहने एवं अपनी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के

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मन होना चाहिए सुंदर :---- आचार्य अर्जुन तिवारी

19 अगस्त 2018
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*इस संसार में मनुष्य को शक्तिशाली बनाने के अनेक साधन हैं परन्तु मुख्यरूप से मनुष्य को तीन प्रकार की शक्तियों के माध्यम से शक्तिशाली माना जाता है ! वह शक्तियां है मानसिक , शारीरिक एवं आध्यात्मिक | इन तीनों में भी सर्वश्रेष्ठ है मानसिक शक्ति | प्रत्येक मनुष्य के तन के साथ - साथ मन का भी स्वस्थ होना पर

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विश्व का कल्याण हो ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

28 जनवरी 2018
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*इस सकल संसार में सनातन धर्म ही सभी धर्मों का जनक माना जाता है | आदिकाल में इस पृथ्वी पर सनातन के अतिरिक्त अन्य कोई संस्कृति नहीं थी | धीरे - धीरे अनेक लोगों ने अपने धर्म की अलग नींव रखते हुए अपनी मान्यतायें स्थापित कीं | आज पृथ्वी पर अनगिनत धर्म एवं सम्प्रदाय देखे जा सकते हैं | इन अन्य धर्मों ने सद

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लक्ष्य का निर्धारण आवश्यक है :---- आचार्य अर्जुन तिवारी

27 अगस्त 2018
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*मानव शरीर को गोस्वामी तुलसीदास जी ने साधना का धाम बताते हुए लिखा है :--- "साधन धाम मोक्ष कर द्वारा ! पाइ न जेहि परलोक संवारा !! अर्थात :- चौरासी लाख योनियों में मानव योनि ही एकमात्र ऐसी योनि है जिसे पाकर जीव लोक - परलोक दोनों ही सुधार सकता है | यहाँ तुलसी बाबा ने जो साधन लिखा है वह साधन आखिर क्या ह

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बनें जिज्ञासु ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

1 मई 2018
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‼ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼ इस समस्त संसार में कोई भी ऐसा मनुष्य न हुआ है और न ही होगा जिसके मन में कभी कोई जिज्ञासा न प्रकट हुई हो | प्रत्येक मनुष्य के हृदय प्रतिपल नये - नये प्रश्न उठा करते हैं | प्रश्न मनुष्य के अन्तर्मन में उपजे हुए वे सवाल होते हैं जिनका समाधान पाने के लिए म

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रक्षाबंधन :----- आचार्य अर्जुन तिवारी

27 अगस्त 2018
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*सनातन संस्कृति इतनी मनोहारी है कि समय समय पर आपसी प्रेम सौहार्द्र को बढाने वाले त्यौहार ही इसकी विशिष्टता रही है | शायद ही कोई ऐसा महीना हो जिसमें कि कोई त्यौहार न हो , इन त्यौहारों के माध्यम से समाज , देश एवं परिवार के बिछड़े तथा अपनों से दूर रह रहे कुटुंबियों को एक दूसरे से मिलने का अवसर मिलता है

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साकार और निराकार ------ आचार्य अर्जुन तिवारी

5 जनवरी 2018
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🌸🌞🌸🌞🌸🌞🌸🌞🌸🌞🌸 ‼ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼ 🌻☘🌻☘🌻☘🌻☘🌻☘🌻 इस ब्रह्ममय सृ्ष्टि में वह परमपिता परमात्मा कण-कण में समाया है | भारतीय वांग्मय में ईश्वर की पूजा दो प्रकार से की जाती रही है | साकार एवं निराकार | जो कुछ इस संसार में इन भौतिक आ

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बहुला चौथ का व्रत :---- आचार्य अर्जुन तिवारी

29 अगस्त 2018
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*हमारा देश भारत अपने गौरवशाली इतिहास के लिए जाना जाता है | यहाँ देवी - देवता की पूजा तो होती है परंतु साथ ही साथ पशु पक्षियों एवं प्रकृति की पूजा भी होती रही है | कोई भी व्रत या पूजन अपने आप में एक इतिहास एक गाथा छुपाये हुए है आवश्यकता है इन्हें जानने की | हमारे देश में कहा जाता है कि यहाँ "हर दिन द

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सापत ताड़त परुष कहंता ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

6 मई 2018
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‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼ *सापत ताड़त परुष कहंता ! विप्र पूज्य-----?????* *सर्वप्रथम तो यह ध्यान देने योग्य है कि तुलसीदास जी ने यहाँ ब्राह्मण न लिखकर "विप्र" लिखा है | इसका अर्थ यह हुआ कि ब्राह्मण और विप्र में यहाँ बाबा जी द्वारा भेद किया गया है ! हमारे शास्त्रों में कहा गया है --- "वेदपाठी भवेत्

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श्री कृष्ण जन्मोत्सव :----; आचार्य अर्जुन तिवारी

3 सितम्बर 2018
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*इस धराधाम पर भगवान के अनेकों अवतार हुए हैं , इन अवतारों में मुख्य एवं प्रचलित श्री राम एवं श्री कृष्णावतार माना जाता है | भगवान श्री कृष्ण सोलह कलाओं से युक्त पूर्णावतार लेकर इस धराधाम पर अवतीर्ण होकर अनेकों लीलायें करते हुए भी योगेश्वर कहलाये | भगवान श्री कृष्ण के पूर्णावतार का रहस्य समझने का प्रय

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मानव की मुक्ति ------- आचार्य अर्जुन तिवारी

2 फरवरी 2018
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सनातन साहित्यों में ८४ लाख योनियों का वर्णन मिलता है | इन ८४ लाख योनियों मानव योनि को छोड़कर शेष भोग योनियाँ कही गयी हैं | मानव योनि में जन्म लेकर मनुष्य अपने कर्मों के द्वारा अगले जन्म की योनि निर्धारित करता है | जैसा जिसका कर्म होता है उसी अनुसार उसकी अग्रिम योनि में जन्म लेने का विधान बनता है | इ

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कहाँ गये वो दिन :---- आचार्य अर्जुन तिवारी

3 सितम्बर 2018
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*इस संसार में समाज के प्रमुख स्‍तम्‍भ स्त्री और पुरुष हैं | स्त्री और पुरुष का प्रथम सम्‍बंध पति और पत्‍नी का है, इनके आपसी संसर्ग से सन्‍तानोत्‍प‍त्ति होती है और परिवार बनता है | कई परिवार को मिलाकर समाज और उस समाज का एक मुखिया होता था जिसके कुशल नेतृत्व में वह समाज विकास करता जाता था | इस विकास के

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कहनियाँ ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

19 मई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *मनुष्य का हृदय बहुत ही संवेदनशील होता है | हृदय में विचारों का संकलन एवं अनुभूतियों की उत्पत्ति बचपन से ही होने लगती है | बच्चों के हृदय में सकारात्मकता एवं स्फूर्ति भरने के लिए हमारे पूर्वजों ने कहानियों को आधार बनाया था | बच्चों में कहानियाँ सुनने के प्रति एक अद्भुत

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प्रसन्नता :----- आचार्य अर्जुन तिवारी

3 सितम्बर 2018
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*इस धरती पर मनुष्य का प्रसन्न होना एक मानसिक दशा है | प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए धन - ऐश्वर्य का होना आवश्यक नहीं है | प्राय: देखा जाता है कि मध्यमवर्गीय लोग धनी लोगों से कहीं अधिक प्रसन्न रहते हैं , अपने परिवार व मित्रों के बीच उनके खुशी के ठहाके सुने जा सकते हैं | प्रसन्न रहने का रहस्य यही है क

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हमारे बुजर्ग------ आचार्यअर्जुनतिवारी

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सनातनकाल से हमारी संस्कृति बहुत ही उच्च आदर्शों वाली रही है | हमारे मनीषियों ने "मातृदेवोभव" "पितृदेवोभव की सूक्ति हमें पढायी है | जिसे पढते हुए श्रद्धा से हमारे शीश झुक जाते हैं और हम स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं | माता माता-पिता हमारे

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क्या है भगवान की कला ?? आचार्य अर्जुन तिवारी

4 सितम्बर 2018
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*भगवान श्री कृष्ण का अवतार पूर्णावतार कहा जाता है क्योंकि वे १६ कलाओं से युक्त थे | "अवतार किसे कहते हैं यह जानना परम आवश्यक है | चराचर के प्रत्येक जड़ - चेतन में कुछ न कुछ कला अवश्य होती है | पत्थरों में एक कला होती है दो कला जल में पाई जाती है | अग्नि में तीन कलायें पाई जाती हैं तो वायु में चार क

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हमारे संस्कार ------ आचार्य अर्जुन तिवारी

23 मई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *सनातन काल से भारतदेश देवताओं की भूमि कहा गया है | सम्पूर्ण संस्कृतियाँ भारत भूमि से ही होकर सम्पूर्ण विश्व में फैलीं | हमारे ऋषि महात्माओं ने अनेकानेक कीर्तिमान स्थापित किये जिनका लाभ आज भी समस्त विश्व ले रहा है | इन्हीं ऐश्वर्य के कारण भारत देश विश्वगुरु कहलाया | भार

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सुंदरता मन की :----- आचार्य अर्जुन तिवारी

6 सितम्बर 2018
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*मनुष्य इस संसार में अपने क्रिया - कलापों से अपने मित्र और शत्रु बनाता रहता है | कभी - कभी वह अकेले में बैठकर यह आंकलन भी करता है कि हमारा सबसे बड़ा शत्रु कौन है और कौन है सबसे बड़ा मित्र ?? इस पर विचार करके मनुष्य सम्बन्धित के लिए योजनायें भी बनाता है | परंतु क्या मनुष्य का शत्रु मनुष्य ही है ?? क्

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नामजप का महत्व------ आचार्य अर्जुन तिवारी

6 फरवरी 2018
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*इस संसार में जन्म लेने के बाद जैसे जैसे मनुष्य बढता है वैसे वैसे उसकी आवश्यकतायें भी बढने लगती हैं | अपनी आवश्यकता के अनुसार वस्तुओं का संग्रह करना मानव प्रवृत्ति एवं आवश्यकता भी है | मनुष्य का हृदय चंचल व चलायमान होता है | अपनी चंचलता के चलते वह सदैव अतृप्त ही रहता है | यदि मनुष्य को कुछ धन मिल जा

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न भूलें मूल को :--- आचार्य अर्जुन तिवारी

7 सितम्बर 2018
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*भगवान श्री कृष्ण की प्रत्येक लीला में एक रहस्य तो छुपा ही है साथ ही आम जनमानस के लिए एक संदेश भी उनकी लीला के माध्यम से मिलता है | जैसा कि ग्रंथों के माध्यम से यह बताया जाता है कि पूर्व जन्मोक्त कर्मों के आधार पर गोप ग्वाल या राक्षस बने प्राणियों का उद्धार भगवान ने "कृष्णावतार" में किया था ! इसी क्

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अंधा मनुष्य------- आचार्य अर्जुन तिवारी

7 फरवरी 2018
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*मनुष्य जीवन भर भगवान को ढूँढा करता है | उनकी एक झलक पाने के लिए अनेकों उद्योग किया करता है | यहाँ तक कि मनुष्य अपना भरा - पूरा परिवार छोड़कर संत बन जाता है , संयासी बन जाता है | हिमालय की कंदराओं में जाकर तपस्या करता रहता है , परंतु उसे परमात्मा के दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं | अनेकों यज्ञ - अनुष्ठान

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सृजन एवं प्रलय ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

28 मई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *सनातन धर्म में सृष्टि की रचना एवं प्रलय का वृहद वर्णन पढ़ने को मिलता है | मानव मन सदैव यह जानने को उत्सुक रहता है कि आखिर प्रलय क्या है ?? कैसी होगी प्रलय ?? इस विषय में अनेकानेक प्रश्न मनुष्य के मस्तिष्क में गूंजा करते हैं | प्रलय के पहले सृष्टि के विषय में जानना परम

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पराधीनता -------- आचार्य अर्जुन तिवारी

4 दिसम्बर 2017
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सनातन काल से ही मनुष्य ने स्वतंत्र ही रहना चाहा है | पराधीनता को अभिशाप मानते हुए बाबा जी मानस में लिखते हैं------- "पराधीन सपनेहुं सुख नाहीं" अर्थात---- परधीन रहकर सुख की अभिलाषा करना मूर्खता मात्र है |आज संसार में कोई भी सुखी नहीं है | कहने को

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दूल्हा दूल्हन मिल गये ------ आचार्य अर्जुन तिवारी

4 जून 2018
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‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼ *सनातन धर्म जितना वृहद एवं रहस्यात्मक उतना ही वृहद एवं रहस्यात्मक सनातन साहित्य भी है | भारत भूमि में अनेकों साहित्यकार एवं चिंतक तथा कवि हुए हैं | उनकी रचनाओं में कहीं ना कहीं अद्भुत रहस्य छुपा होता है | किसी कवि ने लिखा है ------- सुना सुनी की

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मनुष्य को लोभ ही ले डूबता है----- आचार्य अर्जुन तिवारी

7 फरवरी 2018
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*मानव जीवन एक चूहे की तरह है जो कि चूहेदानी में लगी हुई रोटी को देखकर आकर्षित होता रहता है , और उस रोटी को प्राप्त करने के लिए चूहेदानी के चारों ओर घूमता है | अंततोगत्वा उसको दरवाजा मिल जाता है और वह चूहेदानी में प्रवेश कर जाता है परंतु रोटी में मुख लगाते ही चूहेदानी का दरवाजा बंद हो जाता है और फिर

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हे ग्राम देवता नमस्कार

30 जून 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !!संसार के सभी धर्मों ने देवी - देवताओं के अस्तित्व को स्वीकारा है | देवता एवं मनुष्य दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं | पहले देवताओं ने मनुष्य को बनाया फिर मनुष्य देवताओं के अस्तित्व को सहेजने का कार्य कर रहा है | सभी धर्मों ने अपने - अपने देवताओं की स्वधर्मानुसार पूजा , प्र

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पतन के कारण------ आचार्य अर्जुन तिवारी

9 जनवरी 2018
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इस संसार में मनुष्य आज तक समस्त प्रणियों को हराकर सब पर शासन करता आया है | जितने भी जीव इस सृष्टि में सभी को येन केन प्रकारेण अपने वश में करके मनुष्य ने अपने अधीन किया है | मनुष्य की विजय यात्रा अनवरत् जारी है | वह किसी से भी नहीं हारा | परंतु एक ऐसा समय मनुष्य के जीवन में उपस्थित हुआ कि मनुष्य सिर्

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ईश्वर की सच्ची आराधना ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 जून 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! पारब्रह्म परमेश्वर ने इस सुंदर सृष्टि की रचना की , मैथुनी सृष्टि करके मनुष्य को इस धराधाम पर उतारा | मनुष्य ईश्वर के प्रति कृतज्ञ होकर उसकी आराधना करने का वचन देता है | पुराण बताते है कि माँ के गर्भ में बालक की स्थिति उत्तानपाद होती है ! अर्थात सर नीचे तथा पैर ऊपर को ह

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स्वार्थीपन----- आचार्य अर्जुन तिवारी

11 फरवरी 2018
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*इस संसार में उपस्थित चौरासी लाख योनियों में मनुष्य ही सामाजिक प्राणी है | अपने परिवार से अपने जीवन की यात्रा प्रारम्भ करने वाले मनुष्य ने समाज में स्थापित होने का प्रयास किया | परंतु यहाँ उसके अन्दर एक दोष प्रमुखता से उत्पन्न हो गया - स्वार्थ | मनुष्य इतना ज्यादा स्वार्थी हो गया कि उसे अपनी प्रशंसा

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आधुनिकता एवं भारतीय संस्कृति ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 जून 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! सनातन काल से भारत की संस्कृति संपूर्ण विश्व के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभाती आई है | भारत देश में माता पिता और गुरु का स्थान मानव जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण होता है | माता पिता के बिना जहां जीवन मिलना संभव नहीं है , वहीं गुरु के बिना जीवन के विषय में जानना या कोई भी

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विकृत समाज में तार तार होती मर्यादा / आचार्य अर्जुन तिवारी

1 सितम्बर 2017
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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है |कोई भी राष्ट्र, समाज, या परिवार एक मर्यादा में बंधा होता है | रिश्ते, प्रेम, व्यवहार, मित्रता सब मर्यादा पर ही आधारित होते हैं क्योंकि "मर्यादा मनुष्य का आभूषण होती है | अपना सम्पूर्ण जीवन मर्यादित होकर व्यतीत कर देना

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अध्यात्म क्या है ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 जून 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! हमारे ऋषियों - महर्षियों/महापुरुषों ने प्रारम्भ से अध्यात्म का मार्ग चुना एवं सभी को आध्यात्मिक बनाने का प्रयास करते रहे | प्रत्येक व्यक्ति आध्यात्मिक बनना भी चाहता है | आध्यात्मिक बनने के लिए सर्वप्रथम आवश्यकता यह जानने की है कि आखिर "अध्यात्म" है क्या ?? अध्य + आत्म

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धरती के भगवान------- आचार्य अर्जुन तिवारी

12 फरवरी 2018
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*संसार में जितने भी मनुष्य हैं सबकी उत्पत्ति माता - पिता के संयोग से ही होती है | जन्म लेकर समझदार होने के बाद मनुष्य अपने परिवार के द्वारा बताये गये धर्म का पालन करने लगता है | संतों की कथाओं एवं प्रवचनों के माध्यम से यह जानता है कि इस संसार को ईश्वर ने उत्पन्न किया है वही इस संसार का पालन करता है

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स्वयं का ज्ञान ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 जून 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! आदिकाल से भारत देश में सतसंग , चर्चा - परिचर्चा का बड़ा महत्व रहा है | इन सतसंग कथाओं , परिचर्चाओं मे लोगों की रुचि रहा करती थी , एक विशाल जन समूह एकत्र होकर इन भगवत्कथाओंं (सतसंग) को बड़े प्रेम से श्रवण करके अपने जीवन में उतारने का प्रयास करता था तब भारत को विश्वगुरु

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मनुष्य की नकारात्मकता ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

10 जनवरी 2018
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मनुष्य का मस्तिष्क विचारों का केन्द्र है | इन्हीं विचारों के माध्यम से मनुष्य अपने जीवन की दिशा निर्धारण करता है | जिसके मस्तिष्क में जैसे विचार उत्पन्न होते हैं वह उन्हीं के मायाजाल में मकड़ी की तरह फंस जाता है | जैसे मकड़ी स्वयं जाल बनाकर उसी में फंसी रहती है उसी प्रकार मनुष्य एवं उसके आस पास की प

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निर्जला एकादशी ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

1 जुलाई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! सनातन धर्म में मनुष्य को सत्मार्ग पर चलने एवं हृदय में सद्विचार उत्पन्न करने के लिए हमारे ऋषियों - महर्षियों ने समय समय पर मार्गदर्शन करते हुए अनेकों व्रत - त्यौहार एवं यम - नियम के पालन करने का निर्देश करते रहे हैं | प्रत्येक मनुष्य हर नियम का पालन नहीं कर सकता इसको द

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भोजन का महत्व----- आचार्य अर्जुन तिवारी

15 फरवरी 2018
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*संसार में मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जिसने सामाजिक एवं संस्कारिक होने का स्थान प्राप्त किया है | मनुष्य ने जहाँ एक ओर वेदों के तथ्य को मानते हुए वैज्ञानिक अनुसंधान किये हैं वहीं दूसरी ओर अनेक सिद्ध पुरुषों ने भक्तिमार्ग में भी उच्च स्थान प्राप्त किया है | मनुष्य के जीवन की दिशा का निर्धारण उसके संस

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भटकते युवा ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

3 जुलाई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! इस समस्त संसार में किसी भी देश का भविष्य युवाओं का कहा जाता है | भारत देश में वैदिक काल से लेकर कुछ दिन पूर्व तक युवाओं ने अपने कार्यों से देश को गौरवान्वित किया है | जहाँ त्रेतायुग में युवा श्री राम ने पिता के वचन का पालन करने के लिए पहले विश्वामित्र जी के साथ वनयात्र

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आज का मनुष्य--------- आचार्य अर्जुन तिवारी

6 दिसम्बर 2017
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आदिमानव मातमी जिज्ञासाओं का एक अंबार लगा देखा जा सकता है जिज्ञासाएं भी ऐसी ऐसी होती हैं जिसका समाधान वह स्वयं कर सकता है परंतु अज्ञानतावश वह उस स्थिति में नहीं पहुंच पाता है और भटकता रहता है अक्सर लोग पूछते हैं भगवान कहां रहते हैं भगवान ने दुख अंधकार एवं बीमारियां क्यों बनाई आदि आदि हमारे सरपंच

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संतोषम् परमं धनम्---- आचार्य अर्जुन तिवारी

5 जुलाई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस संसार में जन्म लेकर प्रत्येक मनुष्य संसार में उपलब्ध सभी संसाधनों को प्राप्त करने की इच्छा मन में पाले रहता है | और जब वे संसाधन नहीं प्राप्त हो पाते तो मनुष्य को असंतोष होता है | किसी भी विषय पर असंतोष हो जाना मनुष्य के लिए घातक है | इसके विपरीत हर परिस्थिति में स

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जय श्री राम

16 फरवरी 2018
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श्री राम रमापति राघव की जय

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ऊर्जा का स्रोत मनुष्य ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

6 जुलाई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *यह सकल सृष्टि ऊर्जाओं का समन्वय स्रोत है | इनहीं ऊर्जा के स्रोतों में मुख्य है ऊर्जा का स्रोत है सूर्य | सूर्य में असीम ऊर्जा है इसी ऊर्जा से संसार के सभी कार्य सम्पादित होते हैं | हम सभी नित्य ही सूर्य का साक्षात्कार करते हैं परंतु उसके क्रिया कलाप पर शायद कभी ध्यान

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मोह एवं प्रेम ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

12 जनवरी 2018
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सनातन साहित्य में मनुष्य के छ: शत्रुओं का वर्णन मिलता है | यह षडरिपु हैं --- काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और मात्सर्य | इन छ: शत्रुओं में सबसे प्रबल मोह को कहा गया है | मोह के कई रूप होते हैं , यह मानव जीवन में जगह-जगह पर मनुष्य के कार्य को अवरोधित करता रहता है | संसार की व्याधियों की जड़ मोह को ही

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नियमबद्धता ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

10 जुलाई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! इस सृष्टि का निर्माण परमात्मा ने बहुत ही सूझ बूझ के साथ किया है | इस सम्पूर्ण सृष्टि का कण - कण परमात्मा द्वारा प्रतिपादित नियम का पालन करते हुए अपने - अपने क्रिया - कलापों को गतिमान बनाये हुए हैं | बिना नियम के सृष्टि चलायमान नहीं हो सकती है | सूर्य , चन्द्र , वायु आद

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ये कहाँ आ गये हम------- आचार्य अर्जुन तिवारी

19 फरवरी 2018
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*भारतीय संस्कृति के आदर्श सदैव से हमारे साहित्य एवं महापुरुष रहे हैं | भारत के सभी धर्मों में साहित्यों व आदर्श प्रस्तुत करने वाले महापुरुषों की कमी नहीं रही है | इन महापुरुषों के पदचिन्हों पर चलकर अनेक पुरुषों ने स्वयं महापुरुष होने का गौरव प्राप्त किया है | प्रचीनकाल के साहित्यों व जीवन दर्शन में

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मनुष्य की विचित्रता ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

14 जुलाई 2018
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!! भगवत्कृपा हि के वलम् !! *यह संसार विचित्रताओं से भरा पड़ा है | यहाँ भाँति - भाँति के विचित्र जीव देखने को मिलते हैं | कुछ जीव तो ऐसे - ऐसे कभी देखने को मिल जाते हैं कि अपनी आँखों पर भी विश्वास नहीं होता | और मनुष्य विचार करने लगता है कि :- परमात्मा की सृष्टि भी अजब - गजब है | हमारे वैज्ञानि

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गुप्त नवरात्र ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

14 जुलाई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! सनातन काल से भारत देश अपनी आध्यात्मिकता के लिए प्रसिद्ध रहा है | यहाँ समय समय पर लोक कल्याणार्थ अनेक साधन हमारे मनीषियों द्वारा बताये गये हैं | इन्हीं साधनों में एक मुख्य साधन बताया गया है आदिशक्ति के पूजन का पर्व नवरात्र | उन्हीं नवरात्रों के अन्तर्गत आज से गुप्त नवरा

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आज के भस्मासुर ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

20 फरवरी 2018
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*सनातन साहित्यों में काम , क्रोध , मद , लोभ , और अहंकार को मनुष्य का शत्रु कहा गया है यह विद्यमान सबमें रहता है | इन पांचों में घातक तो सभी हैं परंतु सबसे ज्यादा घातक लोभ कहा जा सकता है | लोभ का अर्थ लालच कहा गया है | अक्सर लोग धन के लिए लालायित रहने वालों को ही लोभी कहते हैं पर यह कहना कि सिर्फ धना

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मोह की प्रबलता ------- आचार्य अर्जुन तिवारी

14 जुलाई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस संसार में भगवान की माया बहुत ही प्रबल होकर समस्त प्राणिमात्र को नचाती रहती है | इसी माया के वशीभूत होकर मनुष्य लोभ, मोह, क्रोध, काम अहंकार, मात्सर्य आदिक गुणों के आधीन होकर अपने क्रिया कलाप करने लगता है | इन षडरिपुओं में सबसे प्रबल एवं घातक मोह को बताते हुए गोस्वाम

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मकर - संक्रान्ति ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

14 जनवरी 2018
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*हमारा देश भारत विविध पर्वों एवं त्यौहारों का देश है | विभिन्न संस्कृतियों को अपने आप में समेटे हुए भारत देश में समय समय पर अनेकों त्यौहार आम जनमानस को अपार खुशियाँ प्रदान कर जाते हैं | सनातन संस्कृति के प्रत्येक त्यौहारों (पर्वों) में वैज्ञानिकता एवं पौराणिक इतिहास छुपा हुआ है | वैसे ही एक पर्व है

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नकलची मनुष्य ------ आचार्य अर्जुन तिवारी

14 जुलाई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! मनुष्य इस सृष्टि का मुकुटमणि है | मनुष्य के लिए यदि अद्भुत , अलौकिक , अद्विती़य , अविस्मरणीय प्राणी कहा जाय तो ये उपमायें भी छोटी ही प्रतीत होती हैं | मनुष्य ने एक ओर जहाँ अपने श्रेष्ठ कार्यों से स्वयं को स्थापित किया है वहीं कुछ नकारात्मक कार्य मनुष्य के लिए घातक भी स

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टूटते रिश्ते ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

24 फरवरी 2018
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*सनातन धर्म मेंं जन्म से मृत्यु पर्यन्त मनुष्यों के लिए सोलह संस्कारों का विधान वर्णित है | वैसे तो इन सोलह संस्कारों में अपने स्थान पर सभी महत्वपूर्ण हैं , परंतु इनमें विवाह संस्कार अति महत्वपूर्ण स्थान रखता है | क्योंकि मनुष्य जब इस संस्कार को पूर्ण करता है तो धीरे - धीरे उसकी दिशा और दशा परिवर्ति

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अर्थोपार्जन कैसो करें --- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जुलाई 2018
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*इस धरती पर मनुष्यों के लिए चार पुरुषार्थ बताये गये है | धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष | इन चारों पुरुषार्थों को पुरुषार्थचतुष्टय भी कहा जाता है | धर्म के बाद दूसरा स्थान अर्थ का है | अर्थ के बिना, धन के बिना संसार का कार्य चल ही नहीं सकता | जीवन की प्रगति का आधार ही धन है | उद्योग-धंधे, व्यापार, कृषि आ

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अहंकार ------------------ आचार्य अर्जुन तिवारी

20 दिसम्बर 2017
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सकल सृष्टि में मानो निरंतर विकास करते हुए प्रगतिशील ही रहा हैइस प्रगत के क्रम में वह कई आयामों को पार करता हुआ सफलता के उच्च शिखर को प्राप्त करता हैपरंतु जब मनुष्य को कोई ज्ञान या कोई सफलता प्राप्त हो जाती है तो उसके अंदर एक दुर्गुण उत्पन्न होने लगता है वह है अहंकार यह दुर्गुण मनुष्य में इतने चुपके

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बुरे का अंत सदैव बुरा ही होता है ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जुलाई 2018
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*मानव जीवन बहुत रंग बिरंगा है ! इस जीवन में मनुष्य तरह तरह के व्यवहार इस संसार में करता रहता है | इन्हीं में एक है छल करना या धोखा देना | मनुष्य किसी को धोखे में रखकर बहुत प्रसन्न होता रहता है | जबकि धोखा देने या छल करने वालों का क्या परिणाम होता है इसे लगभग सभी जानते हैं | मनुष्य यह सोंचकर प्रसन्न

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जीवन में निरन्तरता ------ आचार्य अर्जुन तिवारी

5 मार्च 2018
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*यह सकल सृष्टि अपने उत्पत्तिकाल से सदैव प्रगतिशीलता एवं निरन्तरता के लिए ही जानी जाती है | जबसे सृष्टि का सृजन हुआ तब से आज तक नित्य प्रात:काल उदय होने वाला सूर्य निरन्तर अपने नियत समय पर निकल रहा है | चाहे गर्मी हो , सर्दी हो या फिर घोर बरसात सूर्य अपनी निरन्तरता को कभी बाधित नहीं करता | घोर कुहरा

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दरिद्रनारायण ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जुलाई 2018
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*सनातन धर्म की उन्नति में सतसंग कथाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है | जहाँ एक ओर सतसंग करके हमारे पूर्वजों ने नित्य नये ज्ञान अर्जित करते रहे हैं वहीं सदैव से कुछ लोग सतसंग कथाओं में विघ्न भी डालते आये हैं | यह आवश्यक नहीं है कि वे ऐसा जानबूझकर करते हों परंतु कुछ ऐसा अवश्य कर जाते हैं जिससे सतसंग भंग

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चारों युगों का ज्ञान----- आचार्य अर्जुन तिवारी

16 जनवरी 2018
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जब सृष्टि के आदि में परमपिता परमात्मा ने सृष्टि की रचना की तभी से समस्त सृष्टि का काल विभाजन करते हुए उसी के अनुसार मनोवृत्ति उत्पन्न करने की व्यवस्था की | सनातन धर्म में सृष्टि से महाप्रलय पर्यन्त चार युगों का वर्णन मिलता है | ये चारों युग है -- सतयुग , त्रेतायुग , द्वापरयुग और कलियुग | इन चारों यु

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हारिये न हिम्मत , बिसारिये न राम --- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 जुलाई 2018
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*मानव जीवन एक संघर्ष है | इसमें उतार चढाव लगे रहते हैं | जीवन में सफलता का मूलमंत्र है :- साहस | जिसके पास साहस है वह कभी असफल नहीं होता है | साहस के ही बल पर संसार में मनुष्य ने असम्भव को भी सम्भव कर दिखाया है | कहते हैं कि ईश्वर भी उसी की सहायता करता है जिसके पास साहस होता है | इतिहास में उन्हीं क

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आधुनिक उपदेशक ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

5 मार्च 2018
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*जब से इस सृष्टि का प्रादुर्भाव हुआ तब से ही इस सृष्टि को सही दिशा देने के लिए समय-समय पर उपदेशकों ने सुंदर मार्गदर्शन करके सृष्टि क्रम को आगे बढ़ाया है | मानव जीवन मैं एक उपदेशक एवं मार्गदर्शक का बहुत बड़ा योगदान है , इनके बिना जीवन में आगे बढ़ पाना असंभव है | जन्म लेने के बाद मनुष्य का सबसे पहला म

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साधु कौन ------ आचार्य अर्जुन तिवारी

24 जुलाई 2018
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*प्राचीनकाल से ही सनातन धर्म के साधु - संतों , ऋषियों - महर्षियों ने समाज के उत्थान के लिए सदैव प्रयास किया है | इस क्रम में कइयों ने तो स्वयं के प्राणों की आहुति भी दे दी | कुछ लोग समझते हैं कि घर छोड़ कर जंगल में रहने वाला ही साधप हो सकता है | किसी संत या साधु की चर्चा आते ही आँखों के आगे एक गेरुव

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आधुनिकता के लिए दोषी कौन ?? आचार्यअर्जुनतिवारी

2 सितम्बर 2017
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आज हर विद्वान व सचेतक पतनोन्मुखी हो रही भारतीय संस्कृति की दुर्गति का दोष पाश्चात्य सभ्यता को दे रहा है | परंतु यदि इस पर विचार किया जाय तो लगता है कि कि इसके दोषी पश्चिमी सभ्यता कम और हम सब ज़्यादा ही हैं | ज जगह जगह पर सरकारों ने देशी विदेशी

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तपस्या का मर्म ------ आचार्य अर्जुन तिवारी

24 जुलाई 2018
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*सनातन धर्म में तपस्या का महत्वपूर्ण स्थान रहा है | हमारे ऋषियों - महर्षियों एवं महापुरुषों ने लम्बी एवं कठिन तपस्यायें करके अनेक दुर्लभ सिद्धियां प्राप्त की हैं | तपस्या का नाम सुनकर हिमालय की कन्दराओं का चित्र आँखों के आगे घूम जाती है | क्योंकि ऐसा सुनने में आता है कि ये तपस्यायें घर का त्याग करके

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सतसंग की आवश्यकता -----/-- आचार्य अर्जुन तिवारी

16 मार्च 2018
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*इस सृष्टि में जितने भी जीव हैं उन सभी जीवों में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है | क्योंकि मनुष्य को जो सुविघायें प्राप्त हैं वह किसी अन्य जीव को कदापि नहीं मिल पाई हैं | प्रकृति की ओर से तो सभी जीवों का पोषण समान रूप से किया जाता है | सूर्य सबको बराबर प्रकाश देता है तो हवा , पानी , अग्नि आदि प्रकृति प्रदत्त

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संस्कार का महत्व ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

26 जुलाई 2018
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*धरती पर पुण्यभूमि भारत में जन्म लेने के बाद मनुष्य ने उत्तरोत्तर - निरन्तर विकास करते हुए एक आदर्श प्रस्तुत किया है | आदिकाल से हमारी संस्कृति हमारे संस्कार ही हमारी पहचान रहे हैं | बालक के जन्म लेके के पहले से लेकर मृत्यु होने के एक वर्ष बाद तक संस्कारों की एक लम्बी श्रृंखला यहाँ रही है | इन्हीं स

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मनुष्य की खोज------- आचार्य अर्जुन तिवारी

23 जनवरी 2018
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*इस असार संसार में आने के बाद मनुष्य जैसे खो जाता और उसकी एक यात्रा प्रारम्भ हो जाती है | मनुष्य द्वारा नित्यप्रति कुछ न कुछ खोजने की प्रक्रिया शुरू होती है | मनुष्य का सम्पूर्ण जीवनकाल एक खोज में ही व्यतीत हो जाता है | कभी वह वैज्ञानिक बनकर नये - नये प्रयोगों की खोज करता है तो कभी विद्वान बनकर नये

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मोह से मुक्ति कैसे मिले ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

26 जुलाई 2018
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*सनातन धर्म के आदिग्रन्थ (चारों वेद ) का अध्ययन करके वेदव्यास जी ने उनका विन्यास किया और पुराण लिखे उन पुराणों एवं वेदों को आत्मसात करके हमारे ऋषियों अनेक उपनिषद लिखे ! इन तमाम धर्मग्रंथों में जीवन का सार तो है ही साथ ही जीवन की गुत्थियों को सुलझाने का रहस्य भी छुपा हुआ है | सनातन धर्म में भगवान श्र

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जीवन में संतुष्टि ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

19 मार्च 2018
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ईश्वर द्वारा बनाई इस विचित्र सृष्टि में तरह तरह की रचनायें हैं ! यहाँ तक कि एक ही तरह का शरीर होते हुए भी भिन्न - भिन्न प्रकार के स्वभाव वाले मनुष्य इस पृथ्वी पर विद्यमान हैं | सृष्टिकर्ता ने सबको एक तरह के हाथ , पैर , आदि तो प्रदान कर दिये परंतु विचारों एवम् स्वभाव में भिन्नता दे दी है | प्रत्येक म

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अहम को मिटाकर ही जीवन सरल हो सकता है ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

26 जुलाई 2018
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*परमात्मा ने बड़े विचित्र संसार की रचना की है | इस संसार का नियम ऐसा है कि कुछ बनने के लिए , कुछ पाने के लिए स्वयं को , स्वयं के अहम को मिटाना पड़ता है | विनाश से ही सृजन होता है | नित्य मनुष्य कुछ न कुछ प्राप्त करता रहता है परंतु पुरुष से महापुरुष बनने के लिए स्वयं को मिटाना पड़ता है | स्वयं को मिट

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आनंद------------- आचार्य अर्जुन तिवारी

20 दिसम्बर 2017
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इस शक्ल सृष्टि में आनंद एक ऐसी वस्तु है जिसे चींटी से लेकर के हाथी तक प्राप्त करना चाहते हैं!अर्थात इस सृष्टि में जितने भी जीव हैं सभी आनंद प्राप्त करना चाहते हैं!इस संसार में मनुष्य अनेकों बार जन्म ले करके मां बनाता है पत्नी बनाता है पति बनकर के अरबपति तक बन जाता है परंतु से आनंद नहीं प्राप्त होत

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जीवन जीने का मार्ग ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

28 जुलाई 2018
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*इस पृथ्वी पर सकल सृष्टि में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ माना गया है | मनुष्य का जीवन उसकी श्वांसों पर निर्भर है , जब तक श्वांस चल रही है तब तक उसे जीवित माना जाता है और श्वांस बन्द होते ही वह मृतक घोषित कर दिया जाता है | क्या श्वांसे बन्द होने पर ही मनुष्य की मृत्यु होती है ????? शायद नहीं | कुछ मनुष्य ज

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मानव जीवन का लक्ष्य --- आचार्य अर्जुन तिवारी

3 अप्रैल 2018
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*पारब्रह्म परमेश्वर ने जब सृष्टि का विस्तार किया तो मनुष्य सहित चौरासी लाख योनियों का सृजन किया और उनमें जीवन का संचार किया | प्रत्येक जीवों के जीवन का लक्ष्य भी निर्धारित किया | कभी - कभी अन्तर्मन में एक प्रश्न अकस्मात् उठने लगता है कि --- आखिर मानव जीवन का लक्ष्य क्या है ????? वैसे तो आज के मनुष्य

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ग्रहण ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

28 जुलाई 2018
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*इस सृष्टि की अद्भुत घटना है ग्रहण | जहाँ वैज्ञानिकों के लिए यह एक खगोलीय घटना के साथ साथ अलोकिक रहस्यों का अध्ययन करने का सुनहरा अवसर है वहीं सनातन धर्मावलम्बियों के लिए यह एक पारम्परिक घटना है | हमारे ग्रंथों में समुद्र मंथन की अद्भुत कथा है जिसका मंथन देव और दैत्यों ने मिलकर किया ! क्यों ?? क्यों

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मनुष्य का अहंभाव ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

23 जनवरी 2018
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इस सृष्टि में मानव ने बहुत विकास किये | आदिकाल से मानव प्रतिभावान व प्रगतिशील रहा है | संसार में अपने विवेक के बल पर अपना भला - बुरा , मित्र - शत्रु आदि को पहचानने में भी मनुष्य प्रारम्भ से ही सफल रहा है | संसार के शत्रुओं को तो वह पहचान जाता है परंतु स्वयं के भीतर ही बैठे अहं को पहचानने में असफल रह

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गरीबी एवं अमीरी ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

30 जुलाई 2018
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*इस धराधाम पर भाँति भाँति के मनुष्य देखने को मिलते हैं कोई जन्म से राजकुमार होता है तो कोई निर्धन | कुछ लोग इसे ईश्वर का अन्याय भी कहते हैं , जबकि यह ईश्वर का अन्याय नहीं बल्कि मनुष्य के कर्मों का फल होता है | जो जैसा कर्म करता है उसका पुनर्जन्म उसी प्रकार होता है | हमारे शास्त्र बताते हैं कि मृत्

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स्वास्थ्य एवं आहार --- http://acharyaarjuntiwariblogspot.com/ http://acharyaarjuntiwariblogspot.com/ http://acharyaarjuntiwariblogspot.com/

22 अप्रैल 2018
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*मानव जीवन में मनुष्य की सबसे बड़ी पूंजी उसका स्वास्थ्य है | अनेकों प्रकार की सम्पत्तियों को इकट्ठा करने के बाद यदि मनुष्य का स्वास्थ्य साथ नहीं देता है तो फिर वह सारी सम्पत्तियां व्यर्थ ही लगती हैं क्योंकि स्वास्थ्य की समग्रता सुखी एवं प्रसन्न जीवन का आधार है | मनुष्य का उत्तम स्वास्थ्य जीवन के विक

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धर्म ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

3 अगस्त 2018
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*सनातन धर्म में प्राय: तीन विषय चर्चा का केन्द्र बनते हैं :- धर्म , दर्शन , अध्यात्म ! इनमें सबका मूल धर्म ही है | धर्म क्या है ? धर्म का रहस्य क्या है ? इस विषय पर प्राय: चर्चायें होती रहती हैं | सनातन धर्म में प्रत्येक मनुष्य के लिए चार पुरुषार्थ बताये गये हैं :- धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष | इनमें

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समाज की पथ प्रदर्शक नारी ----- आचार्यअर्जुनतिवारी

31 अगस्त 2017
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ईश्वर ने सृष्टि की सुंदर रचना की, जीवों को उत्पन्न किया | फिर नर-नारी का जोड़ा बनाकर सृष्टि को मैथुनी सृष्टि में परिवर्तित किया | सदैव से पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली नारी समय समय पर उपेक्षा का शिकार होती रही है | और इस समाज को पुर

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अहंभाव का त्याग करने पर कल्याण ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

6 अगस्त 2018
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*पुण्यभूमि भारत की संस्कृति एवं संस्कार सम्पूर्ण विश्व के लिए आदर्श प्रस्तुत करते आये है | ऐसी दिव्य संस्कृति एवं महान संस्कार विश्व के किसी भी देश में देखने को नहीं मिलते | हमारे संस्कार हमें यही शिक्षा देते हैं कि मनुष्य चाहे जितना उच्च पदस्थ हो परंतु उसका भाव सदैव छोटा ही बने रहने का होना चाहिए |

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कन्यादान------ आचार्य अर्जुन तिवारी

23 अप्रैल 2018
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*आदिकाल से सनातन धर्म में नारी को सदैव सर्वोच्च स्थान प्राप्त था | हमारे सनातन ग्रंथों में यदि यह लिखा है कि --- "अपुत्रस्तो गतिर्नास्ति" अर्थात जिसके यहाँ पुत्र का जन्म नहीं होता उसे सद्गति नहीं प्राप्त होती | मनुष्य का तर्पण एवं पिण्डदान पुत्र ही करता है | वहीं संसार के जितने भी दान बताये गये हैं

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आज के सतसंग :--- आचार्य अर्जुन तिवारी

10 अगस्त 2018
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*सनातन धर्म इतना व्यापक एवं वृहद है कि मनुष्य के जीवन की सभी आवश्यक आवश्कताओं की पूर्ति एवं प्रयोग कैसे करें यह सब इसमें प्राप्त हो जाता है | अंत में मनुष्य को मोक्ष कैसे प्राप्त हो यह विधान भी सनातन ग्रंथों में व्यापक स्तर पर दृश्यमान है | यह कहा जा सकता है कि सनातन धर्म अर्थात "जीवन के साथ भी , जी

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मानव धर्म ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 जनवरी 2018
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*इस संसार में आदिकाल में जब पृथ्वी पर एकमात्र "सनातन धर्म" ही था तब हमारे महापुरुषों ने सम्पूर्ण धरती को अपना घर एवं सभी प्राणियों को अपना परिवार मानते हुए "वसुधैव - कुटुम्बकम्" का संदेश प्रसारित किया था | चूंकि समय परिवर्तनशील है तो धीरे - धीरे पृथ्वी पर अनेकों धर्मों की आधारशिला रखकर उनके प्रणेताओ

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क्या हम आजाद हैं ???:--- आचार्य अर्जुन तिवारी

14 अगस्त 2018
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*इस पृथ्वी पर जन्मा प्रत्येक जीव को स्वतंत्रता का अधिकार है एवं प्रत्येक जीव स्वतंत्र रहना भी चाहता है | पराधीनता के जीवन से मृत्यु अच्छी है | मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी की चौपाई "पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं" यह प्रमाणित करती है कि पराधीनता में रहकर मोहनभोग भी खाने को मिल जाय तो वह तृप्ति नहीं मिल प

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वाणी का संयम /---- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 अप्रैल 2018
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*परमपिता परमात्मा ने मनुष्य को सुंदर शरीर देकर सुंदर - सुंदर अंग प्रदान किये | इन अंगों में एक अतिमहत्वपूर्ण अंग जिह्वा देकर मनुष्य को अभिव्यक्ति का अधिकार दिया | मनुष्य को सदैव इस जिह्वा का प्रयोग सावधानी से करना चाहिए क्योंकि ---- श्रीमद्भागवत में तीन प्रकार के तपों की चर्चा है। इनमें शारीरिक तप,

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प्रणाम का महत्त्व :----- आचार्य अर्जुन तिवारी

21 अगस्त 2018
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*हमारी भारतीय संस्कृति सदैव से ग्राह्य रही है | हमारे यहाँ आदिकाल से ही प्रणाम एवं अभिवादन की परम्परा का वर्णन हमारे शास्त्रों में सर्वत्र मिलता है | कोई भी मनुष्य जब प्रणाम के भाव से अपने बड़ों के समक्ष जाता है तो वह प्रणीत हो जाता है | प्रणीत का अर्थ है :- विनीत होना , नम्र होना या किसी वरिष्ठ के

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परम सत्ता के अधिकार------- आचार्य अर्जुन तिवारी

4 जनवरी 2018
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सुख एवं दुख :--- आचार्य अर्जुन तिवारी

22 अगस्त 2018
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*इस संसार में जब से मानवी सृष्टि हुई तब से लेकर आज तक मनुष्य के साथ सुख एवं दुख जुड़े हुए हैं | समय समय पर इस विषय पर चर्चायें भी होती रही हैं कि सुखी कौन ? और दुखी कौन है ?? इस पर अनेक विद्वानों ने अपने मत दिये हैं | लोककवि घाघ (भड्डरी) ने भी अपने अनुभव के आधार पर इस विषय पर लिखा :- "बिन व्याही ब

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मनुष्य के विचार*---- आचार्य अर्जुन तिवारी

1 मई 2018
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‼ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼ मानव जीवन में उसका जीवन किस दिशा में जाता है यह उसकी सोच पर निर्भर करता है | मनुष्य में दो प्रकार की सोच होती है पहली सकारात्मक और दूसरी नकारात्मक | मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही बन जाता है | इस तरह से मनुष्य की सोच ही उसके व्यक्तित्व के निर्माण में

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हमारे त्यौहार :----- आचार्य अर्जुन तिवारी

27 अगस्त 2018
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*हमारा देश भारत विविधताओं का देश है , इसकी पहचान है इसके त्यौहार | कुछ राष्ट्रीय त्यौहार हैं तो कुछ धार्मिक त्यौहार | इनके अतिरिक्त कुछ आंचलिक त्यौहार भी कुछ क्षेत्र विशेष में मनाये जाते हैं | त्यौहार चाहे राष्ट्रीय हों , धार्मिक हों या फिर आंचलिक इन सभी त्यौहारों की एक विशेषता है कि ये सभी त्यौहार

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नारी

30 जनवरी 2018
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🌸♻🌷♻🌸♻🌷♻🌸♻🌸 *‼ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼* 🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃 *किसी भी समाज के सुसंस्कृत होने की पहचान नारी से होती है। जब-जब नारी का गौरवमय स्थान अपनी महत्ता छोडने लगा है, तब-तब नारी ने उस महत्ता को प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया है !* *नारी को छः गुणों से युक्त माना गया है।* *

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रक्षाबंधन की सार्थकता :----- आचार्य अर्जुन तिवारी

27 अगस्त 2018
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*राखी के बंधन का जीवन में बहुत महत्त्व है | राखी बाँधने का अर्थ क्या हुआ इस पर भी विचार कर लिया जाय कि राखी का अर्थ है रक्षण करने वाला | तो आखिर यह रक्षा कि जिम्मेदारी है किसके ऊपर /? अनेक प्रबुद्धजनों से वार्ता का सार एवं पुराणों एवं वैदिक अनुष्ठानों से अब तक प्राप्त ज्ञान के आधार पर यही कह सकते है

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मूर्ख ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

1 मई 2018
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‼ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼ इस संसार में भाँति - भाँति के मनुष्य हैं | ईश्वर द्वारा मनुष्य की अनोखी रचना की यह विशेष विशेषता है कि सारे अंग - उपांग एक ही तरह के होने पर भी प्रत्येक मनुष्य के हाव भाव , व्यवहार एवं आचरण में भिन्नता पाई जाती है | मनीषी लोग मनुष

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जिज्ञासा :----- आचार्य अर्जुन तिवारी

29 अगस्त 2018
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*इस सृष्टि में चौरासी लाख योनियां बताई गयी हैं जिनमें सबका सिरमौर बनी मानवयोनि | वैसे तो मनुष्य का जन्म ही एक जिज्ञासा है इसके अतिरिक्त मनुष्य का जन्म जीवनचक्र से मुक्ति पाने का उपाय जानने के लिए होता अर्थात यह कहा जा सकता है कि मनुष्य का जन्म जिज्ञासा शांत करने के लिए होता है , परंतु मनुष्य जिज्ञास

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मर्यादा पुरुष की

5 सितम्बर 2017
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पुरुष प्रधान समाज ने सदैव से नारी को एक निश्चित मर्यादा में बांधकर रखने का प्रयास किया है, जबकि स्वयं वह बिना किसी बन्धन के स्वतंत्रता के साथ खुले आसमान में उड़ने की इच्छा रखता है | जबकि हमारे शास्त्रों ने स्त्री के लिए यदि मर्यादा की सीमा तय की ह

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काम प्रवृत्ति :----- आचार्य अर्जुन तिवारी

29 अगस्त 2018
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*इस धराधाम पर मनुष्य अपने जीवनकाल में अनेक शत्रु एवं मित्र बनाता रहता है , यहाँ समय के साथ मित्र के साथ शत्रुता एवं शत्रु के साथ मित्रता होती है | परंतु मनुष्य के कुछ शत्रु उसके साथ ही पैदा होते हैं और समय के साथ युवा होते रहते हैं | इनमें मनुष्य मुख्य पाँच शत्रु है :- काम क्रोध मद लोभ एवं मोह | ये

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प्रलय ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

1 मई 2018
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‼ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼ सनातन शास्त्रों में मूल रूप से प्रलय के चार प्रकार बताए गए | पहला किसी भी धरती पर से जीवन का समाप्त हो जाना, दूसरा धरती का नष्ट होकर भस्म बन जाना, तीसरा सूर्य सहित ग्रह-नक्षत्रों का नष्ट होकर भस्मीभूत हो जाना और चौथा भस्म का ब्रह्म में लीन हो जाना अर्थात फिर भस्म भी नहीं रहे

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परोपकार :----- आचार्य अर्जुन तिवारी

29 अगस्त 2018
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*संसार में मनुष्य ने अपने दिव्य गुणों के कारण सदैव लोगों के हृदयों में राज करता आया है | मनुष्य के इन्हीं दिव्य गुणोंं में एक दिव्य गुण है , जिसे परोपकार कहा जाता है | परोपकार एक महान दैवीय आध्यात्मिक गुण है | यह कुछ और नहीं वरन् देवत्व की अभिव्यक्ति है | साथ ही यह करुणा , प्रेम , पवित्रता एवं संवेद

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दुख में मत घबराना ------ आचार्य अर्जुन तिवारी

1 फरवरी 2018
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जब से इस धरा धाम पर मानव की उत्पत्ति हुई तब से ही उसका सामना दुखों एवं परेशानियों से होना प्रारम्भ हो गया है | प्रत्येक मनुष्य के जीवन में सुख - दुख , लगे रहते हैं , महापुरुषों का कथन है कि मनुष्य को दुख में घबराना नहीं चाहिए वरन् साहस से काम लेते हुए बुरे समय के व्यतीत हो जाने की प्रतीक्षा करनी चाह

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श्री कृष्ण जन्माष्टमी :---- आचार्य अर्जुन तिवारी

3 सितम्बर 2018
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*यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवतिभारत ! अभियुत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ! परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ! धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे - युगे !! भगवान श्री कृष्ण एक अद्भुत , अलौकिक दिव्य जीवन चरित्र | जो सभी अवतारों में एक ऐसे अवतार थे जिन्होंने यह घोषणा की कि मैं परमात्मा हूँ

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धरती पर भगवान --- आचार्य अर्जुन तिवारी

13 मई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *सनातन धर्म में ३३ कोटि देवताओं सहित त्रिदेवों (ब्रह्मा - विष्णु - महेश) के साथ - साथ "भगवान" की भी मान्यता है | ब्रह्मा जी सृष्टि करते हैं , विष्णु जी पालन एवं शिव जी कल्याणकारी के साथ - साथ संहारक भी कहे गये हैं | ऐसा माना जाता है कि इस सृष्टि का सृजन "भगवान" ने किया

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हमारे संस्कार :---- आचार्य अर्जुन तिवारी

3 सितम्बर 2018
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*सनातन वैदिक धर्म ने मानव मात्र को सुचारु रूप से जीवन जीने के लिए कुछ नियम बनाये थे | यह अलग बात है कि समय के साथ आज अनेक धर्म - सम्प्रदायों का प्रचलन हो गया है , और सनातन धर्म मात्र हिन्दू धर्म को कहा जाने लगा है | सनातन धर्म जीवन के प्रत्येक मोड़ पर मनुष्यों के दिव्य संस्कारों के साथ मिलता है | जी

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मनुष्य एवं परमात्मा-------- आचार्य अर्जुन तिवारी

5 जनवरी 2018
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परमात्मा द्वारा बनाई सृष्टि में अनेक जीवों के बीच सबसे शक्तिशाली बनकर उभरा मानव | धरती पर जितने जीव या जड़ पदार्थ हैं सब पर आज मानव अपनी बुद्धि एवं कुशलता के बल पर शासन कर रहा है | हमारे महापुरुषों द्वारा प्रदत्त ज्ञान-विज्ञान का अध्ययन करके मानव ने जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के नये-नये आयाम स्थाप

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हलछठ का व्रत एवं नारी :---- आचार्य अर्जुन तिवारी

3 सितम्बर 2018
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*सनातन धर्म में त्यौहारों की कमी नहीं है | नित्य नये त्यौहार यहाँ सामाजिक एवं धार्मिक समसरता बिखेरते रहते हैं | ज्यादातर व्रत स्त्रियों के द्वारा ही किये जाते हैं | कभी भाई के लिए , कभी पति के लिए तो कभी पुत्रों के लिए | इसी क्रम में आज भाद्रपद कृष्णपक्ष की षष्ठी (छठ) को भगवान श्री कृष्णचन्द्र जी के

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माँ ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

13 मई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *परमात्मा ने अनेक बार सृष्टि किया परंतु जब नहीं सफल हुए तो मैथुनीसृष्टि की | मैथुनीसृष्टि में मनुष्य का जन्म माता - पिता के संयोग से होती है | परमात्मा की मैथुनी सृष्टि सफल हुई और संसार फलने - फूलने लगा | जन्म लेने के बाद से लेकर आज तक मनुष्य ने अनेक कीर्तिमान स्थापित

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कृतज्ञ एवं कृतघ्न :**--- आचार्य अर्जुन

3 सितम्बर 2018
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*इस संसार में समाज के प्रमुख स्‍तम्‍भ स्त्री और पुरुष हैं | स्त्री और पुरुष का प्रथम सम्‍बंध पति और पत्‍नी का है, इनके आपसी संसर्ग से सन्‍तानोत्‍प‍त्ति होती है और परिवार बनता है | कई परिवार को मिलाकर समाज और उस समाज का एक मुखिया होता था जिसके कुशल नेतृत्व में वह समाज विकास करता जाता था | इस विकास

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माता - पिता का महत्व ---- आचार्य अर्जुन तिवारी

3 फरवरी 2018
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सनातन धर्म में विघ्नहरण गणेश जी को प्रथमपूज्य माना जाता है | अनेक देवी - देवताओं में गणेश को ही पूज्य क्यों माना गया है ?? इसके पीछे बहुत ही गहरा एवं सरल कारण छुपा हुआ है | जब कार्तिकेय एवं गणेश के विवाह की बात चली तो शंकर जी ने कहा कि दोनों में जो पहले ब्रह्माण्ड की परिक्रमा कर लेगा उसका विविह पहले

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पहचानो स्वयं को :------ आचार्य अर्जुन तिवारी

3 सितम्बर 2018
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*इस सकल सृष्टि में उत्पन्न चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ , इस सम्पूर्ण सृष्टि के शासक / पालक ईश्वर का युवराज मनुष्य अपने अलख निरंजन सत चित आनंग स्वरूप को भूलकर स्वयं ही याचक बन बैठा है | स्वयं को दीन हीन व दुर्बल दर्शाने वाला मनुष्य उस अविनाशी ईश्वर का अंश होने के कारण आत्मा रूप में अजर अमर अव

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चिंता एवं शोक ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

23 मई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *मानव जीवन बड़ा विचित्र है ! मनुष्य को जीवनकाल में अनेकानेक अनुभूतियां प्राप्त होती हैं ! इनमें से कुछ सुखद एवं कुछ दुखद होती हैं | जब मनुष्य के मन का कार्य होता है तो वह सुख एवं प्रसन्नता का अनुभव करता है , वहीं यदि उसकी सोंच के विपरात कार्य होता है तो वह दुखी (शोकमग

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नारी :---- आचार्य अर्जुन तिवारी

3 सितम्बर 2018
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*ईश्वर ने सृष्टि की सुंदर रचना की, जीवों को उत्पन्न किया | फिर नर-नारी का जोड़ा बनाकर सृष्टि को मैथुनी सृष्टि में परिवर्तित किया | सदैव से पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली नारी समय समय पर उपेक्षा का शिकार होती रही है | और इस समाज को पुरुषप्रधान समाज की संज्ञा दी जाती रही है | जबकि यह न तो सत्य

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संस्कार-------- आचार्य अअर्जुन तिवारी

30 अगस्त 2017
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मानव जीवन में संस्कारों का बड़ा महत्व होता है और यह संस्कार मानव में गर्भकाल से ही आने प्रारम्भ हो जाते हैं| गर्भावस्था में माँ का जैसा आचरण होता है नवजात शिशु वही आचरण लेकर संसार में पदार्पण करता है | इसका उदाहरण है भक्त प्रहलाद , इन्द्र द्वारा

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भगवान का पूर्णावतार :----- आचार्य अर्जुन तिवारी

3 सितम्बर 2018
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*भगवान श्री कृष्ण का नाम मस्तिष्क में आने पर एक बहुआयामी पूर्ण व्यक्तित्व की छवि मन मस्तिष्क पर उभर आती है | जिन्होंने प्रकट होते ही अपनी पूर्णता का आभास वसुदेव एवं देवकी को करा दिया | प्राकट्य के बाद वसुदेव जो को प्रेरित करके स्वयं को गोकुल पहुँचाने का उद्योग करना | परमात्मा पूर्ण होता है अपनी शक्त

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अहंभाव का त्याग ------ आचार्य अर्जुन तिवारी

23 मई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *भारत देश सदैव से अपनी विद्वता के लिए जाना जाता रहा है | इस महान देश में एक से बढकर एक विद्वान हुए हैं जिन्होंने अपनी विद्वता से भारत देश को महान बनाने में योगदान दिया | पढ लिखकर विद्वता प्राप्त कर लेना ही किसी को विद्वान नहीं बना सकता है | विद्वान बने रहने के लिए एवं

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भगवान की पूर्णता :---- आचार्य अर्जुन तिवारी

4 सितम्बर 2018
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!! भगवत्कृपा हि के वलम् !! *भगवान श्री कृष्ण का चरित्र इतना अलौकिक है कि इसको जितना ही जानने का प्रयास किया जाय उतने ही रहस्य गहराते जाते हैं , इन रहस्यों को जानने के लिए अब तक कई महापुरुषों ने प्रयास तक किया परंतु थोड़ा सा समझ लेने के बाद वे भी आगे समझ पाने की स्थिति में ही नहीं रह गये क्

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माँ परमात्मा और हम----- आचार्य अर्जुन तिवारी

5 फरवरी 2018
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सनातन धर्म में प्रत्येक मनुष्य परमात्मा का ही अंश बताया गया है | बाबा तुलसीदास जी लिखते हैं ---- "ईश्वर अंश जीव अबिनासी " ! अर्थात प्रत्येक जीवात्मा उस परमपिता परमात्मा का ही अँश है , और यह शरीर मनुष्य को संसार से मिला है | जिन माता - पिता से हमें यह शरीर प्राप्त हुआ उनकी सेवा करके उन्हें सुख पहुँच

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महत्व ज्ञान का :----- आचार्य अर्जुन तिवारी

4 सितम्बर 2018
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*इस धरा धाम पर आदिकाल से लेकर वर्तमान तक अनेक शक्तिसम्पन्न विभूतियां अवतरित हुई हैं | जिनकी गणना कर पाना शायद सम्भव नहीं है | इन शक्तिसम्पन्न विभूतियों को प्राप्त शक्ति का स्रोत क्या रहा होगा , यदि इस पर विचार किया जाय तो परिणाम यही निकलेगा कि संसार भर उपस्थित सभी प्रकार की शक्तियों का स्रोत है -- ज

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जीवन में निरंतरता ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

23 मई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !!*जब से इस सृष्टि का सृजन हुआ तब से यह सृष्टि निरंतर चलायमान है | निरंतरता ही इसकी पहचान है | इस सृष्टि में सूर्य , चन्द्र , तारे यहाँ तक यह पृथ्वी भी निरंतर बिना रुके चलती ही चली जा रही है | समय सतत् प्रवाहमान है | ठीक इसी प्रकार मानव जीवन भी चलते रहने के लिए ही मिला हुआ

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मनुष्य के विचार , वचन एवं व्यवहार :--- आचार्य अर्जुन तिवारी

7 सितम्बर 2018
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*इस सकल सृष्टि में अनेकों प्राणियों के मध्य मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जिसमें कुछ विशेष विशेषतायें हैं जो कि अन्य प्राणियों में नहीं मिलती हैं | मनुष्य की तीन विशेष मौलिक विशेषतायें हैं :- विचार , वचन एवं व्यवहार | किसी अन्य प्राणी की अपेक्षा किसी भी विषय पर विचार करने की जो क्षमता है वह अन्य में नहीं

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मुक्ति क्या है ???? आचार्य अर्जुन तिवारी

7 जनवरी 2018
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*इस संसार में जन्म लेने वाले सभी प्राणियों का अन्तिम लक्ष्य होता है -- आवागमन से मुक्ति पाना अर्थात मोक्ष की प्राप्ति करना | परंतु कुछ लोग होते हैं जो कि मुक्ति या मोक्ष नहीं चाहते हैं | परमपूज्यपाद बाबा तुलसीदास जी ने मानस में भी संकेत दिया है -------- "सगुनोपासक मोक्ष न लेहीं" ! जैसे ही भकिति का व

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हंसना आवश्यक है ----- आचार्य अर्जुन तिवारी

25 मई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *मनुष्य को ईश्वर ने अनेक उपलब्धियाँ प्रदान की हैं | मनुष्य के व्यवहार का जीवन में बहुत बड़ा पिरफाव पड़ता है | जहाँ मनुष्य में सौम्यता एवं गम्भीरता का होना आवश्यक है वहीं प्रत्येक मनुष्य को समय समय पर हंसना भी आवश्यक है | ईश्वर ने मनुष्य को जो अनमोल उपहार दिये हैं उनमें

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मानव का मानव मानवकादुख

29 अगस्त 2017
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! आज के युग में जबाँ तक दृष्टि दोड़ाइये वहाँ तक हर व्यक्ति दुखी ही दिखाई पड़ता है | त चाहे वह गरीब भिक्षुक हो या बहुत ही धनी | प्रत्य प्रत्येक व्यक्ति को कोई न कोई दुख अवश्य घेरे रहता है इसका सबसे बड़ा कारण है , " आत्मस

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अज्ञान का अंधेरा----- आचार्य अ

31 अगस्त 2017
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परमपिता परमात्मा ने मानव को एक दिव्य आलोकित जीवन देकर धराधाम पर भेजा | परंतु मानव ने स्वयं इस दिव्य प्रकाशमय जीवन को अपनी अ ज्ञान ता के द्वारा ही अंधकारमय बना लेता है | ड जिससे सांसारिक जीवनरूपी सुख के पौधे पर दुखरूपी फल लग

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मनुष्य की सोंच ही उसके दुख का कारण | आचार्य अर्जुन तिवारी

1 सितम्बर 2017
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मानव जीवन में शत्रु-मित्र , सुख- दुख स्वयं मनुष्य की सोंच के अनुसार मिलते रहते हैं | यह मनुष्य की सोंच के ऊपर निर्भर करता है कि वह सुखी रहना चाहता है या दुखी | क्योंकि सुख एवं दुख मनुष्य की सोंच के अनुसार ही मिलते

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आज की विद्वता --------- आचार्य अर्जुन तिवारी

17 दिसम्बर 2017
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समस्त विश्व में अपने ज्ञान के कारण ही भारत ने कीर्तिमान स्थापित किया हैयहां के विद्वानों ने आपसी सामंजस्य से अपने ज्ञान को निरंतर प्राकृत किया है किसी भी विषय पर नवीन ज्ञान प्राप्त होने पर उसके विषय में आप से चर्चा करके उस ज्ञान को और मजबूती के साथ समाज में प्रसारित किया हैजिससे समाज को नई दिशा मिल

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गहना कर्मणो गति: ------ आचार्य अर्जुन तिवारी

13 जनवरी 2018
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*हमारे सनातन साहित्यों में लिखा है ----- "गहना कर्मणो गति:" | अर्थात - मनुष्य के कर्म उसे छोड़ते नहीं हैं | यह समस्त सृष्टि उस परमपिता परमात्मा की ही अभिव्यक्ति है | यहाँ पर दिखाई देने वाली धरती, आकाश, पर्वत, पहाड़, समुद्र, वनस्पतियां एवं समस्त प्राणिजगत , यहाँ तक कि इस सृष्टि का कण-कण उसी परमपिता प

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जीवन में समय का महत्व ------ आचार्य अर्जुन तिवारी

19 फरवरी 2018
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*इस संसार में सबसे अनमोल मनुष्य का जीवन कहा जाता है | मनुष्य अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में अनेक अमूल्य सम्बंधों एवं वस्तुओं का संग्रह करता रहता है | परंतु इस संसार में सबसे ज्यादा अनमोल और जीवन में सिर्फ एक बार मिलने वाले को सभी लोग पहचान नहीं पाते | और वह है समय | समय ही जीवन है और जीवन ही समय है | इसी

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अहंकार एवं स्वाभिमान ------- आचार्य अर्जुन तिवारी

14 जुलाई 2018
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!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *हमारे मनीषियों ने मनुष्य के षडरिपुओं का वर्णन किया है | जिसमें से एक अहंकार भी है | अहंकार मनुष्य के विनाश का कारण बनता देखा गया है | इतिहास गवाह है कि अहंकारी चाहे जितने विशाल साम्राज्य का अधिपति रहा हो , चाहे वह वेद - वेदान्तों में पारंगत कियों न रहा हो उसका विनाश अ

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