*सनातन धर्म में मानव जीवन को चार आश्रमों में बांटा गया है , जिनमें से सर्वश्रेष्ठ आश्रम गृहस्थाश्रम को बताया गया है , क्योंकि गृहस्थ आश्रम का पालन किए बिना मनुष्य अन्य तीन आश्रम के विषय में कल्पना भी नहीं कर सकता | मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है समाज का निर्माण परिवार से होता है | व्यक्ति के जीवन में परिवार की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होती है , परिवार में रहकर ही व्यक्ति सेवा , सहकार , सहिष्णुता और मानवीय गुणों को सीखता है तथा उसे अपने जीवन में धारण करता है | इसीलिए जन्म लेने के बाद मनुष्य के निर्माण में परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है , और जीवन निर्माण / व्यक्ति निर्माण की प्रथम पाठशाला परिवार को ही कहा जाता है | किसी भी परिवार में यदि सच्चरित्रता , सहयोग , संतोष , सादगी एवं एक दूसरे के प्रति सम्मान जैसे सद्गुणों का परिवेश होता है तो उस परिवार में पलने बढ़ने और रहने वाले लोग स्वत: ही उन सद्गुणों को सीखते है व अपने जीवन में उतारने का प्रयास करके ही सफल होते हैं | एक आदर्श परिवार से ही समाज व राष्ट्र को सभ्य , सुशील , सच्चरित्र व सदाचारी महापुरुष प्राप्त हो सकते हैं | परिवार से ही समाज बनता है और समाज से राष्ट्र का निर्माण होता है | जिस परिवार में एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना नहीं होती है , प्रत्येक सदस्य स्वयं के अहंकार में भरा होता है , असहयोग की भावना होती है वह परिवार बहुत जल्द बिखर जाता है और उस परिवार के सदस्यों की मानसिकता नकारात्मक हो जाती है , जो कि चिंताजनक है | प्राचीनकाल में परिवारों में जो सहयोग , समन्वय एवं एकजुटता देखने को मिलती थी वह अपने अपने एक दिव्य उदाहरण प्रस्तुत करती थी | आपसी प्रेम एवं सहयोग की भावना के कारण ही घर को मंदिर कहा जाता था और उस मंदिर में रहने वाले प्रत्येक सदस्य देव स्वरूप माने जाते थे , इसीलिए भारतीय समाज ने प्रारंभ से ही परिवार को महत्व दिया था , क्योंकि परिवार ही वो उपवन है जिसका मुखिया माली के रूप में अपने उपवन के सभी पौधों की बराबर देखभाल करते हुए उनकी उन्नति के प्रति सदैव मननशील रहा करता था और मुखिया की स्वीकृति के कारण परिवार सफल भी रहते थे |*
*आज पाश्चात्य संस्कृति का पूरा प्रभाव भारतीय समाज में भी देखने को मिल रहा है | जहां गृहस्थाश्रम अर्थात परिवार को एक तपोवन कहा जाता था वही आज परिवार में कलह , हिंसा , असहयोग एवं असहिष्णुता तथा स्वयं का मद प्रभावी दिख रहा है | इसका प्रमुख कारण यह भी कहा जा सकता है कि आज मनुष्य परिवार के महत्व को नहीं समझ पा रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज में हो रहे ऐसे कृत्यों को देख कर के यह कहने पर विवश हो रहा हूं कि आज मनुष्य का अहंभाव आपस में टकरा रहा है जिससे परिवार बिखराव की स्थिति को प्राप्त हो रहा है | जहां पूर्वकाल में परिवार की बागडोर परिवार के मुखिया के पास रहा करती थी उसका प्रत्येक निर्णय सम्मान के साथ पालन किया जाता था वही आज ना तो परिवार का कोई नियम रह गया है और ना ही मुखिया ही कोई रह गया है | आज एकल परिवारों का महत्व बढ़ गया है छोटी-छोटी बातों पर परिवार से अलग अपना घर बसाने की होड़ सी लग गई है जबकि इसका दूरगामी परिणाम बहुत सुखद नहीं होता है परंतु मनुष्य स्वयं पर नियंत्रण न कर पाने के कारण ऐसे कृत्य कर रहा है | ऐसा नहीं है कि वह परिवार से अलग हो जाने पर पश्चाताप नहीं करता , जब मनुष्य एकांत में होता है तब उसे अपने किए पर पश्चाताप अवश्य होता है परंतु वह उसे प्रकट नहीं कर पाता क्योंकि उसे ऐसा प्रतीत होता है कि पश्चाताप कर लेने से हम छोटे हो जाएंगे | परिवार सब के भाग्य में नहीं होता है माता - पिता का स्नेह एवं भाई बंधुओं का सहयोग मिलता रहे तो समझ लो यह मानव जीवन धन्य है | परिवार टूटने का सबसे बड़ा कारण आपसे कलह एवं संदेह की भावना ही होती है | बात - बात पर तर्क - कुतर्क में फंसने से ही कलह और क्लेश को पनपने का अवसर मिलता है और जिसका परिणाम संबंध विच्छेद के रूप में सामने आता है | जिस परिवार में एक दूसरे के प्रति सम्मान एवं तर्क कुतर्क नहीं होता है वह परिवार उन्नति करने के साथ ही समाज में एक आदर्श भी प्रस्तुत करता है परंतु यह दुर्भाग्य है कि आज ऐसा बहुत ही कम देखने को मिल रहा है , और आने वाले समय के लिए यह स्थिति बहुत सुखद नहीं कही जा सकती है क्योंकि आपसी फूट का लाभ सदैव विरोधियों ने लिया है | इसलिए मनुष्य को अपने परिवार का साथ कदापि नहीं छोड़ना चाहिए |*
*आज प्रत्येक परिवार में संयम , सहिष्णुता , आपसी विश्वास जैसे सद्गुणों की आवश्यकता है जिससे मनुष्य ना सिर्फ कलह, क्लेश से मुक्त रह सकता है बल्कि परिवार में शांति , समरसता , समृद्धि , सौभाग्य व खुशहाली भी ला सकता है |*