*किसी भी समाज और राष्ट्र का निर्माण मनुष्य के समूह से मिलकर होता है और मनुष्य का निर्माण परिवार में होता है | परिवार समाज की प्रथम इकाई है | जिस प्रकार परिवार का परिवेश होता है मनुष्य उसी प्रकार बन जाता है इसीलिए परिवार निर्माण की दिशा में एक विकासशील व्यक्तित्व का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित होना चाहिए | किसी भी मनुष्य के संस्कार एवं स्वभाव परिवार की पाठशाला में पढ़ा और प्रयोगशाला में समझा जा सकता है | संसार में मनुष्य दिन प्रतिदिन कुछ ना कुछ निर्माण किया करता है परंतु इन सब में सबसे महत्वपूर्ण है परिवार का निर्माण | संसार की सेवा करने का प्रथम पायदान है परिवार , इस तरह परिवार का निर्माण करना सबसे महत्वपूर्ण है | इतिहास साक्षी है आदिकाल से लेकर आज तक ऐसे कई प्रसंग देखने को मिलते हैं जिनमें परिवार निर्माण के लिए प्रयत्नशील व्यक्तियों ने महान सृजनकर्ताओं की तरह ही संसार की पहली सेवा साधना संपन्न की है | परिवार निर्माण विशेष स्तर की साधना है , कोई भी कलाकार कोई कलाकृति बनाने से पहले स्वयं को साधता है परंतु परिवार के निर्माता को एक समूह के , समुदाय के विभिन्न प्रकृति और स्थित के लोगों का निर्माण करना पड़ता है , यह कार्य वही कर सकता है जिसमें योगी जैसी प्रज्ञा और तपस्वी जैसी प्रतिभा हो , क्योंकि परिवार निर्माण करने के लिए सघन आत्मीयता , समग्र दूरदर्शिता एवं समर्थ तत्परता की परम आवश्यकता होती है | परिवार के मुखिया को धरती जैसी सहनशीलता , पर्वत जैसी धैर्य धारणा और सूर्य की प्रखरता आदि का परिचय देना होता है | जिस परिवार का मुखिया इन गुणों से परिपूर्ण होता है वह परिवार निर्माण करने में सफल हो जाता है | जिस देश में परिवार निर्माण की प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता है वह राष्ट्र कभी भी संस्कारित नहीं हो सकता है | हमारे देश भारत में आदिकाल से ही परिवार निर्माण पर बल दिया गया है शायद इसीलिए आज इतनी आधुनिकता प्रसारित होने के बाद भी संपूर्ण विश्व में हमारी पारिवारिक पृष्ठभूमि मजबूत दिखाई पड़ती है |*
*आज के आधुनिक एवं वैज्ञानिक युग में विकसित होने के लिए लोग अनेक प्रकार के निर्माण तो कर रखें परंतु परिवार निर्माण की ओर से उनका ध्यान भंग हो रहा है | आज समाज में संयुक्त परिवार ही नहीं देखने को मिलते हैं तो परिवार निर्माण की नींव भी पड़ना बंद हो गई है | आज समाज में जो भाँति भाँति के अनाचार एवं दुराचार दिखाई पड़ रहे हैं उसका कारण यही है कि आज के युवाओं को पारिवारिक संस्कार नहीं मिल पा रहे हैं | शिक्षा प्रणाली एवं पारिवारिक परिवेश अपना पूरा प्रभाव आज समाज पर डाल रहा है | किसी भी राष्ट्र में परिवार का बहुत बड़ा महत्व होता है | मेरे "आचार्य अर्जुन तिवारी" के दृष्टिकोण से पारिवारिकता देखने सुनने में तो बहुत ही साधारण एवं बाल बच्चों के पालन पोषण जैसी सरल कार्यपद्धती होती है परंतु परिवार वह पाठशाला है जिसमें भाव संवेदनाओं का ही सर्वोपरि महत्व है | परिवार समरसता का प्रतीक है जहां पर अभिभावकों के द्वारा संतान का भरण पोषण , माता के द्वारा शिशुओं के प्रति वात्सल्य भाव , भाई और बहन के मध्य पवित्रता , पितृजनों के प्रति श्रद्धा , पत्नी का पति को परमेश्वर मानना , पति का पत्नी को अर्धांगिनी की मान्यता देना , परिवार की किसी भी उपलब्धि पर समान रूप से सबका अधिकार होना , यह भारतीय परिवार की परिपाटी रही है | इस प्रकार परिवार का निर्माण करके ही एक संस्कारी राष्ट्र का निर्माण हो सकता है | पूर्व काल में हमारे परिवार इसी प्रकार हुआ करते थे परंतु आज हम अपने प्राचीन मान्यताओं से अलग होते चले जा रहे हैं यही कारण है कि आज परिवार बिखरते जा रहे हैं एवं समाज में कटुता एवं स्पष्ट दिखाई पड़ रही है | यदि सुंदर समाज का निर्माण करना है तो पुनः परिवार निर्माण की ओर लौटना होगा क्योंकि जब तक नींव मजबूत नहीं होगी तब तक एक सुदृढ़ महल का निर्माण नहीं हो सकता और समाज की नींव परिवार को कहा गया है इसलिए परिवार निर्माण पर पुन: ध्यान देने की आवश्यकता है |*
*परिवार निर्माण एवं परिवार में सामंजस्य बना के रखना स्वयं में एक तपस्या है जो भी तपस्वी की भांति अपनी इस जिम्मेदारी का निर्वहन करता है उसकी तपस्या सफल हो जाती है और उसका परिवार संस्कारित होकर के समाज में स्थापित होता है |*