
*सृष्टि के आदिकाल में ब्रह्मा जी ने मैथुनी सृष्टि करते हुए नर नारी का जोड़ा उत्पन्न किया , जिनके समागम से सन्तानोत्पत्ति हुई और सृष्टि गतिशील हुई | मानव जीवन में सन्तान उत्पन्न करके पितृऋण से उऋण हेने की परम्परा रही है | सन्तान उत्पन्न करने के लिए पुरुष एवं नारी वैवाहिक सम्बन्ध में बंधकर पति - पत्नी के रूप में जीवन यापन करते रहे हैं | दो अन्जान जब एक एक साथ मिलकर जीवन पथ पर अग्रसर होते हैं तो गृहस्थी का निर्माण होता है | गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए मानव समाज निरंतर उन्नतिशील रहा है | सनातन धर्म में पति - पत्नी के संबंध को बहुत ही पवित्र एवं महत्वपूर्ण माना गया है | हमारे यहां पत्नी को धर्मपत्नी कहा जाता है श्रीरामचरितमानस गोस्वामी तुलसीदास जी ने चार प्रकार के नारियों की व्याख्या की है जिसमें उत्तम , मध्यम , निम्न एवं निकृष्ट श्रेणियां प्रतिपादित की है | इन चारों श्रेणियों में धर्मपत्नी किसे माना जाय ? यह विचारणीय विषय है | हमारे महापुरुषों ने बताया है कि धर्मपत्नी वही होती है जो उत्तम श्रेणी की होती है जैसा कि बाबा जी ने बताया है :-- "उत्तम के अस बस मन माही ! सपनेहुं आन पुरुष जग नाहीं !!" जो नारियाँ स्वप्न में भी पर पुरुष का विचार नहीं करती हैं उन्हें उत्तम श्रेणी में रखते हुए धर्मपत्नी की संज्ञा दी गई है , शेष मध्यम श्रेणी की नारियों को पत्नी कहा गया है | कहने को तो उत्तम से लेकर निकृष्ट तक सभी को भी धर्मपत्नी कहकर पुकारा जाता है परंतु धर्मपत्नी उसे ही बताया गया है जो अपने पति को छोड़कर की किसी अन्य पुरुष के विषय में विचार भी ना करें और इस प्रकार की नारियां हमारे भारत देश के इतिहास में देखने को मिलती हैं | विश्व के किसी भी देश धर्म में आपको पत्नी , जोरू , बीबी , आदि मिल सकती हैं परंतु धर्मपत्नी मात्र भारत देश एवं सनातन धर्म में ही देखने एवं सुनने को मिलती हैं | अग्नि , वैश्वानर , देवताओं , ब्राह्मण , एवं स्वाजातीय बन्धुओं को साक्षी मानकर पातिव्रत धर्म का पालन कपने की प्रतिज्ञा करके अपने कर्तव्यों (धर्म) का अक्षरश: पालन करने वाली ही धर्मपत्नी कही गयी है | परंतु यहाँ विचार करने वाली बात यह है कि पुरुषप्रधान कहे जाने वाले समाज में धर्मपत्नी की व्याख्या एवं उसके कर्तव्यों का ज्ञान कराने वाले अनेकों लोग मिल जाते है लेकिन क्या कभी किसी ने धर्मपति की चर्चा की ?? जब पत्नी धर्मपत्नी हो सकती है तो पति को भी धर्मपति कहा जाना चाहिए |*
*आज के समाज में पत्नी एवं धर्मपत्नी पर चर्चा तो बहुत सुनने को मिल जाती है , परंतु इस प्रकार की चर्चा करने वाले क्या कभी धर्मपति के विषय में भी चर्चा करते होंगे ?? धर्मपति के विषय में कभी कोई चर्चा सुनने को नहीं प्राप्त होती ऐसा इसलिए है क्योंकि किसी भी साहित्य में "धर्मपति" शब्द ही नहीं लिखा गया है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यह कह सकता हूँ कि आज भी हमारे देश में धर्म का पालन करने वाली नारियाँ हैं परंतु अपने पतिधर्म का पालन करने वाले पुरुषों की संख्या कितनी है यह विचारणीय है | यदि पत्नी को धर्मपत्नी बनते हुए देखना चाहते हैं तो पुरुषों को सर्वप्रथम मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की ही भाँति एकपत्नीव्रत का पालन करते हुए "धर्मपति" बनने का प्रयास करना होगा | परंतु आज का समाज स्वयं किसी धर्म / कर्तव्य का पालन करने की अपेक्षा उसका उपदेश देने में कुछ अधिक ही विश्वास रखता दिख रहा है | यद्यपि यह सत्य है कि आज आधुनिकता की चपेट में आकर नारियों ने अपनी श्रेष्ठता का ध्यान देना बन्द कर दिया है परंतु यह भी सत्य है कि इसका दोषी भी पुरुष समाज को ही माना जा सकता है | आज भी सती , सीता , अनुसुइया जैसी नारियाँ देखने को मिल सकती हैं परंतु इनका दर्शन करने के लिए सर्वप्रथम पुरुष समाज को शिव , राम , एवं अत्रि की भाँति बनना पड़ेगा |*
*यदि नारियाँ सृष्टि का मूल हैं तो पुरुष उनका अवलम्ब इसलिए दोनों को एक दूसरे के प्रति अपने धर्म का पालन करते रहना चाहिए |*