*सृष्टि का मूल है प्रकृति इसके बिना जीव का कोई अस्तित्व नहीं है | प्रकृति अग्नि , जल , पृथ्वी , वायु एवं अंतरिक्ष से अर्थात पंचमहाभूते मिलकर बनी है जिसे पर्यावरण भी कहा जाता है | पर्यावरण का संरक्षण आदिकाल से करने का निर्देश हमें प्राप्त होता रहा है | हमारे देश भारत की संस्कृति का विकास वेदों से हुआ है और वेदों की प्रत्येक ऋचायें प्रकृति के संतुलन से जुड़ी हैं | जिसने वेदों को देखा होगा , उनका अध्ययन किया होगा वह यह नहीं कर सकता कि वेद हिंदुओं का मूल ग्रंथ है , क्योंकि वेद पढ़ने वाले यह जानते हैं कि वेद कोई धर्म ग्रंथ नहीं बल्कि मानव मात्र की जीवन शैली है | वेदों में पर्यावरण संरक्षण का स्पष्ट निर्देश देते हुए पंचमहाभूतों को देवतुल्य बताया गया है | यजुर्वेद में स्पष्ट लिखा हुआ है :- ॐ द्यौ:शान्तिरन्तरिक्षॅ शान्तिः, पृथ्वीशान्ति: राप:शान्तिरोषधयः शान्तिर्वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः, सर्व शान्तिः, शान्तिरेव शान्तिः, सा मा शान्तिरेधि ! ऊँ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ! सर्वारिष्टा सुशान्तिर्भवतु !! अर्थात :- शान्ति कीजिए प्रभु जल, थल और गगन में, अन्तरिक्ष में, अग्नि, पवन, औषधि, वन, उपवन में सकल विश्व में, अवचेतन में, जीव मात्र के तन, मन और जगत में कण-कण में शांति हो | प्रायः प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान के प्रारम्भ में इस शान्ति पाठ से शुरुआत होती ह | हम मंत्र रूप में इसका उच्चारण कर अथवा पुरोहित से करवाकर शान्ति की कामना तो करते हैं | सनातन के धर्म ग्रंथों में स्थान - स्थान पर प्रकृति एवं पर्यावरण के संरक्षण की बात कही गई है | अग्नि पुराण में यहां तक लिख दिया गया है यदि कोई व्यक्ति अपने वंश का विस्तार एवं धन और सुख में वृद्धि की कामना करता है तो वह फल फूल वाले वृक्षों को कदापि ना काटे | यही नहीं जिन पंचमहाभूतों से मिलकर यह प्रकृति एवं पर्यावरण बना है उन पंचमहाभूतों की पूजा वैदिक काल से लेकर आज तक सनातन धर्म में होती रही है | पर्यावरण संरक्षण का महत्व सनातन के धर्म ग्रंथों में स्पष्ट देखने को मिलता है आवश्यकता है सूक्ष्मता से इन धर्म ग्रंथों के अध्ययन की | जब तक प्रकृति सुरक्षित है तब तक इस धरती पर जीवन सुरक्षित है यह बात आज के वैज्ञानिक कह रहे हैं परंतु यही बात हमारे पूर्वजों ने बहुत पहले से ही कहते हुए अपने धर्म एवं धर्म ग्रंथों में प्रकृति एवं पर्यावरण के संरक्षण की बात रखी एवं इनके संरक्षण का नियम भी बनाया |*
*आज चारों तरफ पर्यावरण के संरक्षण की बात की जा रही है परंतु आज सिर्फ बात की जाती है पर्यावरण के संरक्षण का प्रयास नहीं किया जा रहा है | पर्यावरण प्रदूषण की समस्या आज पंचमहाभूतों की उपेक्षा एवं असंतुलन के कारण ही उत्पन्न हो रही है | इन पंचमहाभूतों की उपेक्षा जहां प्राकृतिक अथवा भौतिक पर्यावरण के लिए घातक बनती है वही मानसिक सांस्कृतिक एवं सामाजिक प्रदूषण भी मनुष्य के मस्तिष्क में भर गया है | कुछ लोग कहते हैं कि सनातन धर्म में पर्यावरण संरक्षण एवं सुरक्षा की बात नहीं देखने को मिलती है | ऐसे सभी लोगों को मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" एक छोटा सा उदाहरण देना चाहता हूं कि सनातन धर्म के प्रत्येक अनुष्ठान में कलश की स्थापना की जाती है | कलश क्या है ? कलश ब्रह्मांड का प्रतीक है | इसको सूक्ष्मता से देखा जाय तो कलश के नीचे रखे जाने वाले जौ आदि पृथ्वी के प्रतीक हैं , उसमें भरा जाने वाला जल जल तत्व का प्रतिनिधित्व करता है | कलश के समीप जलाया जाने वाला दीपक अग्नि तत्व का प्रतीक है ! कलश के ऊपर पंच पल्लव तथा कलश में डाली जाने वाली औषधियां / वनस्पतियां हमारे परिस्थितिकी तंत्र की ओर इशारा करती हैं | इस प्रकार कलश में सभी देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा कर एक प्रकार से प्रकृति को ही प्रणाम किया जाता है | प्रकृति की सुरक्षा एवं संरक्षण / पर्यावरण के संरक्षण के लिए वायु का शुद्ध होना बहुत आवश्यक है इसी का शुद्धीकरण करने के लिए जहां सनातन संस्कृति में होम यज्ञ की विधि बताई गई है वहीं प्राणवायु के मूल स्रोत वनस्पतियों के संरक्षण की बात भी कही गई है | कुल मिलाकर पर्यावरण संरक्षण सनातन धर्म के मूल में रहा है , परंतु आज हम सनातन धर्म के अनुयायी बन जाने के बाद भी उसके मूल दिशानिर्देश अर्थात पर्यावरण संरक्षण से विमुख होते जा रहे हैं यही कारण है कि समय-समय पर प्राकृतिक आपदाएं हमें देखने को मिल रही है | अपने धर्म ग्रंथों का अध्ययन करके उनके दिशा निर्देशों का पालन करने का प्रयास प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिए तभी इस धरती पर जीवन सुरक्षित रह सकता है |*
*मनुष्य की बुद्धिमानी इसी में है कि प्रकृति के इन पंचमहाभूतों को देव तुल्य सम्मान देते हुए सभी तत्वों में संतुलन स्थापित करने में सहयोग प्रदान करें क्योंकि एक के भी असंतुलित हो जाने से समस्त सृष्टि असंतुलित हो जाती है | पर्यावरण संरक्षण प्रत्येक मनुष्य का धर्म होना चाहिए |*