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प्रेरक-प्रसंग

hindi articles, stories and books related to Prerak-prasang


सब पर मानो बुआजी का व्यक्तित्व हावी है। सारा काम वहाँ इतनी व्यवस्था से होता जैसे सब मशीनें हों, जो कायदे में बँधीं, बिना रुकावट अपना काम किए चली जा रही हैं। ठीक पाँच बजे सब लोग उठ जाते, फिर एक घंटा बा

मई की साँझ! साढ़े छह बजे हैं। कुछ देर पहले जो धूप चारों ओर फैली पड़ी थी, अब फीकी पड़कर इमारतों की छतों पर सिमटकर आयी है, मानो निरन्तर समाप्त होते अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए उसने कसकर कगारों क

सोमा बुआ बुढ़िया है। सोमा बुआ परित्यक्ता है। सोमा बुआ अकेली है। सोमा बुआ का जवान बेटा क्या जाता रहा, उनकी जवानी चली गयी। पति को पुत्र-वियोग का ऐसा सदमा लगा कि व पत्नी, घर-बार तजकर तीरथवासी हुए और प

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*श्री लक्ष्मण जी* भगवान श्री राम को पूर्णता प्रदान करते हैं , यदि *लक्ष्मण* ना होते तो शायद भगवान श्री राम एवं भगवती सीता का मिलन कदाचित कठिन था | पुष्प वाटिका जब *लक्ष्मण जी* ने देखा कि:--- *"भये

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*लक्ष्मण जी* के बिना श्री राम जी का चरित्र अधूरा है | भगवान श्रीराम यदि पूर्ण परमात्मा है तो उनको पूर्णत्व प्रदान करते ही *श्री लक्ष्मण जी* | *लक्ष्मण जी* के बिना श्री राम जी का जीवन भी वैसे ही है

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हम *लक्ष्मण जी* के जीवन के रहस्यों को उजागर करने का प्रयास करते हुए उनकी विशेषताओं पर चर्चा कर रहे हैं !  *लक्ष्मण सों वीर धीर साहसी प्रतापवान ,*                     *अतुलित बलशाली न देखा जहान में

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एक मानव की मर्यादा क्या होती है इसका चित्रण हमको *लक्ष्मण जी* के चरित्र में विधिवत देखने को मिलता है ! यदि *समर्पण भाव* की झलक देखने की लालसा हो तो हमें *लक्ष्मण जी* के चरित्र में देखने को मिलती है |

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सनातन धर्म में *रामायण एवं महाभारत* दो महान ग्रंथ है , जहां महाभारत कुछ पाने के लिए युद्ध की घोषणा करता है वही रामायण त्याग का आदर्श प्रस्तुत करती है |  मनुष्य का आदर्श क्या होता है ?  अपने जीवनकाल मे

एक राजा की पुत्री के मन में वैराग्य की भावनाएं थीं।  जब राजकुमारी विवाह योग्य हुई, तो राजा को उसके विवाह के लिए योग्य वर नहीं मिल पा रहा था। राजा ने पुत्री की भावनाओं को समझते हुए बहुत सोच-विचार करके

एक बहुत ही घना जंगल था। उस जंगल में एक आम और एक पीपल का पेड़ था। एक बार मधु मक्खियों का एक झुण्ड उस जंगल में रहने आया। उन मधु मक्खियों के झुण्ड को रहने के लिए एक घना पेड़ चाहिए था। रानी मधुमक्खी की न

सुंदरकांड का एक प्रसंग है-    अशोक वाटिका में जब रावण क्रोध में भरकर, तलवार लेकर, सीता माँ को मारने के लिए दौड़ा। तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीन कर इसका सर काट लेना चाहिए।   किन्तु अगले ही क्ष

एक जंगल में एक गर्भवती हिरनी बच्चे को जन्म देने वाली  थी। वह एकांत जगह की तलाश में घूम रही थी...कि उसे नदी किनारे ऊँची और घनी घास दिखाई दी। उसे वह स्थान शिशु को जन्म देने के लिए उपयुक्त लगा।    उस स्

एक राजा सायंकाल में महल की छत पर टहल रहा था। अचानक उसकी दृष्टि महल के नीचे बाजार में घूमते हुए एक सन्त पर पड़ी। संत तो संत होते हैं, चाहे हाट बाजार में हों या मंदिर में अपनी धुन में खोए रहते हैं। राजा

मुक्तक----कांटों में भी रास्ता मिल सकता है।सहरा में भी पुष्प खिल सकता है।।अगर सकारात्मक भाव मन में हो तो।एक कंकर से आसमां हिल सकता है।।स्वरचित मुक्तक--रामसेवक गुप्ता ✍️✍️आगरा यूपी

प्रश्न-सार: 1—परमात्मा शब्द ही मेरी समझ में नहीं आता है। परमात्मा यानी क्या? 2—वैसे गत पंद्रह वर्षों से आप निरंतर प्रेरणा के स्रोत रहे हैं, परंतु यहां आपके ऊर्जा-क्षेत्र में रहते हुए कुछ माह में ह

कल्याण-पथ पर खड़ा है भिक्षु भिक्षु-सूत्र : 4 न परं वइज्जासि अयं कुसीले, जेणं च कुप्पेज्ज न तं वएज्जा। जाणिय पत्तेयं पुण्ण-पावं, अत्ताणं न समुक्कसे जे स भिक्खू।। न जाइमत्ते न य रूवमत्ते, न लाभमत

भिक्षु कौन? भिक्षु-सूत्रः 3 उवहिम्मि अमुच्छिए अगिद्धे, अन्नायउंछं पुलनिप्पुलाए। कयविक्कयसन्निहिओ विरए, सव्वसंगावगए य जे स भिक्खू।। अलोल भिक्खू न रसेसु गिद्धे, उंछं चरे जीविय नाभिकंखे। इडिंढ़

अस्पर्शित, अकंप है भिक्षु भिक्षु-सूत्रः जो सहइ हु गामकंटए, अक्कोस-पहारत्तज्जणाओ य। भय-भेरव-सद्द-सप्पहासे, समसुह-दुक्खसहे अ जे स भिक्खू हत्थसंजए पायसंजए,वायसंजए संजइन्दिए। अज्झप्परए सुसमाहि

वर्णभेद जन्म से नहीं, चर्या से ब्राह्मण—सूत्र : 3 न वि मुंडिएण समणो, न ओंकारेण बंभणो । न मुणी रण्णवासेणं, कुसचीरेण ण तावसो ।। समयाए समणो होइ, बंभचेरेण बंभणो। नाणेण उ मुणी होइ, तवेण होइ तावस

अलिप्तता है ब्राह्मणत्व ब्राह्मण-सूत्र : 2 दिव्व-माणुसत्तेरिच्छं, जो न सेवइ मेहुणं। मणसा काय-वक्केणं, तं वयं बूम माहणं ।। भजहा पोम्मं जले जायं, नोवलिप्पइ वारिणा। एवं अलित्तं कामेहिं, तं वयं बूम म

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