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प्रेरक-प्रसंग

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लक्ष्मण जी* अपनी माता सुमित्रा से विदा लेकर प्रभु श्रीराम के पास प्रमुदित मन से पहुंच गये | *गये लखन जहं जानकिनाथू !* *भे मन मुदित पाइ प्रिय साथू !!* आज श्री राम के साथ बन जाने का अवसर पाकर *लक्ष्म

*लक्ष्मण जी*  अपनी मैया सुमित्रा के सामने खड़े होकर उनके अमृतमयी वचनों को सुन रहे हैं | त्याग की प्रत्यक्ष मूर्ति मैया सुमित्रा ने कहा कि *लक्ष्मण*  मैंने सुना है कि तेरा भैया राम नारायण का अवतार है औ

*लक्ष्मण जी* श्री राम जी की आज्ञा मिलते ही दौड़ते हुए अपनी माता सुमित्रा के पास पहुंचते हैं | उन्होंने अपनी मैया को प्रणाम तो किया परंतु उनका मन राघवेंद्र सरकार में ही लगा था | अपने पुत्र *लक्ष्मण* के

एक बार जाड़ों में पहाड़ की हँकाई की ठहरी। लगान लग गए। मैं पहाड़ की तली में बैठ गया और शर्मा जी चोटी पर। बीच में अन्य मित्र लगान पर लग गए। हँकाई होते ही पहले साँभर हड़बड़ाकर निकल भागे। हँकाई में पहले

मैं संध्या के पहले ही बेतवा किनारे ढीवाले गड्ढे में जा बैठा। राइफल में पाँच कारतूस डाल लिए। कुछ नीचे रख लिए। रातभर बैठने के लिए आया था, इसलिए ओढ़ना-बिछौना गड्ढे में था। अँधेरा हुआ ही था कि एक छोटी सी

खेती को नुकसान पहुँचानेवाले जानवरों से सुअर चीतल और हिरन से कहीं आगे है। मनुष्यों के शरीर को चीरने-फाड़ने में वह तेंदुए से कम नहीं है। सुअर की खीसों से मारे जानेवालों की संख्या तेंदुए की दाढ़ों और नाख

चिंकारे का शिकार करछाल के शिकार से भी अधिक कष्टसाध्य है। चिंकारा बहुत ही सावधान जानवर होता है। उसे संकट का संदेह हुआ कि फुसकारी मारी और छलाँग मारकर गया। हिरन संकट से छुटकारा पाने के लिए दूर भागकर दम ल

'इंशा! इंशा!!' बादशाह जहाँगीर ने इधर-उधर देखकर भरे दरबार में जरा ऊँचे स्वर में अपने भतीजे को पुकारा। अलमबरदार ने बड़े अदब के साथ बतलाया कि शाहजादा शिकार खेलने चले गए हैं। 'शाहजादा - इंशा के लिए! जहाँग

चंद्रमा थोड़ा ही चढ़ा था। बरगद की पेड़ की छाया में चाँदनी आँखमिचौली खेल रही थी। किरणें उन श्रमिकों की देहों पर बरगद के पत्तों से उलझती-बिदकती सी पड़ रहीं थीं। कोई लेटा था, कोई बैठा था, कोई अधलेटा। खजु

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*लक्ष्मण जी* को यदि गोस्वामी जी *चातक* कहकर यह प्रतिपादित करते हैं कि लक्ष्मण कि ऐसे *चातक* हैं जो श्री राम रूपी स्वाति नक्षत्र के अतिरिक्त कुछ भी ग्रहण नहीं कर सकते अपितु श्री राम जी के लिए सर्वस्व

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*लक्ष्मण जी* को गोस्वामी तुलसीदास जी ने *चातक* कहा है और गोस्वामी जी का यह चतुर *चातक* देखना हो को *दोहावली* में देखा जा सकता है , क्योंकि यह *चातक* तो स्वयं गोस्वामी जी का अंतः करण हा जो *चातक* के रू

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रामायण में *लक्ष्मण जी* का चरित्र बहुत ही सूक्ष्म दर्शाया गया है |  यह भी सच है कि जितना महत्व *भरत जी* का है उससे कम *लक्ष्मण जी* का नहीं है | दोनों ही अपने स्थान पर महत्वपूर्ण हैं परंतु यदि साहित्यि

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जनकपुर में *श्री लक्ष्मण जी* के जीवन में आई उर्मिला जी | *लक्ष्मण जी* का चरित्र यदि इतना देदीप्यमान हुअा तो उसमें उर्मिला जी की प्रमुख भूमिका थी | *जिस प्रकार रामराज्य के सूत्रधार लक्ष्मण जी हा उसी प्

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महाराज जनक की सभा में *लक्ष्मण जी* एवं परशुराम जी का घनघोर वाकयुद्ध हुआ | परशुराम जी इतने ज्यादा क्रोध में थे कि *लक्ष्मण जी* के इशारे को समझना तो दूर सुनना भी नहीं चाहते थे |  *जैसा कि यह सत्य है कि

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*श्री लक्ष्मण जी* ने जो आधारशिला रखी उसी पर चलकर श्री राम ने विशाल शिव धनुष का खंडन करके सीता जी द्वारा जयमाला ग्रहण की |  जनकपुर वासियों में अपार प्रसन्नता फैल गई , महाराज जनक एवं महारानी  सुनैना का

जन्मी तो मध्य प्रदेश के भानपुरा गाँव में थी, लेकिन मेरी यादों का सिलसिला शुरू होता है अजमेर के ब्रह्मपुरी मोहल्ले के उस दो-मंज़िला मकान से, जिसकी ऊपरी मंज़िल में पिताजी का साम्राज्य था, जहाँ वे निहायत

जब कवि-सम्मेलन समाप्त हुआ तो सारा हॉल हँसी-कहकहों और तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज रहा था। शायद मैं ही एक ऐसी थी, जिसका रोम-रोम क्रोध से जल रहा था। उस सम्मेलन की अंतिम कविता थी—‘बेटे का भविष्य’। उसका सार

.... और अंततः ब्रह्म मुहूर्त में बाबू ने अपनी आखिरी साँस ली। वैसे पिछले आठ-दस दिन से डॉक्टर सक्सेना परिवार वालों से बराबर यही कह रहे थे --“प्रार्थना कीजिए ईश्वर से कि वह अब इन्हें उठा ले...वरना एक बार

“घर की चहारदीवारी आदमी को सुरक्षा देती है, पर साथ ही उसे एक सीमा में बाँधती भी है। स्कूल-कॉलेज जहाँ व्यक्ति के मस्तिष्क का विकास करते हैं, वहीं नियम-कायदे और अनुशासन के नाम पर उसके व्यक्त्वि को कुठित

प्यारी बहनो, न तो मैं कोई विचारक हूँ, न प्रचारक, न लेखक, न शिक्षक। मैं तो एक बड़ी मामूली-सी नौकरीपेशा घरेलू औरत हूँ, जो अपनी उम्र के बयालीस साल पार कर चुकी है। लेकिन उस उम्र तक आते-आते जिन स्थितियों स

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