
*सनातन धर्म में मनुष्य का मार्गदर्शन करने के लिए अनेकों ग्रंथ हमारे ऋषि - महर्षियों एवं पूर्वजों द्वारा लिखे गये है जिनका अध्ययन करके मनुष्य अपने जीवन को सुगम बनाने का प्रयास करता है | वैसे तो सनातन धर्म के प्रत्येक ग्रंथ विशेष है परंतु यदि जीवन जीने की कला सीखनी है तो गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस विशेष महत्वपूर्ण स्थान रखता है | मानस की प्रत्येक चौपाई स्वयं अमृत समान है , परंतु यदि मानव जीवन का सार देखा जाय तो गोस्वामी जी ने एक ही चौपाई मानव जीवन का निचोड़ लिख दिया है | बाबा जी लिखते हैं :- राग रोष इरिषा मद मोहू ! जनि सपनेहुँ इनके बस होहूँ !! इसी एक चौपाई में पूरे जीवन का सार मिलता है | यदि मनुष्य इसी एक चौपाई का पालन अपने जीवन में कर ले तो उसका जीवन परमज्योति से देदीप्यमान हो सकता है क्योंकि जो मनुष्य राग , क्रोध , ईर्ष्या , अहंकार एवं मोह के चक्रव्यूह में फंसा हुआ है वह अपने जीवन में ना तो प्रगति कर सकता है न हीं भगवत्प्राप्ति | इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास जी की रचना रामचरितमानस कालजयी रचना कही जाती है क्योंकि मानस में चार वेद , अठारह पुराण , छह शास्त्र तथा अन्यान्य ग्रंथों का निचोड़ बाबा जी ने लिखने का प्रयास किया है | कुछ ना करके यदि मानस का पाठ कर लिया जाए और उसमें बताए गए सूत्रों को जीवन में धारण कर लिया जाय तो यह जीवन निश्चय ही सफल हो जाएगा |*
*आज हम जिस प्रतिस्पर्धात्मक एवं भोतिक युग में जीवन यापन कर रहे हैं वहां गोस्वामी तुलसीदास जी की लिखी हुई मानस की चौपाइयां मानव मात्र को संसाररूपी भवसागर को पार करने के लिए एक मजबूत नौका का कार्य कर सकती है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बाबा जी की लिखी हुई इस चौपाई पर विचार करता हूं कि बाबाजी ने सर्वप्रथम हर राग से बचने का उपदेश दिया है किसी के भी प्रति राग इतना अधिक नहीं होना चाहिए कि उसके लिए अपने प्राण त्यागना पड़े | आज निष्फल वासनात्मक राग में अनेकों आत्महत्या होती हुई देखी जा रही है | क्रोध मनुष्य को अंधा बना देता है उसके सोचने समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है ! आज जितने भी कृत्य मनुष्य कर रहा है उसमें क्रोध स्पष्ट झलकता है | ईर्ष्या से बचने का उपदेश गोस्वामी तुलसीदास जी करते हैं क्योंकि जो दूसरों से ईर्ष्या करता है वह कभी सुखी नहीं करता परंतु आज मनुष्य किसी की सुख संपत्ति देख नहीं पाता और ईर्ष्या में ही भरा रहता है | मद का अर्थ होता है अहंकार जिस के वशीभूत होकर मनुष्य अपना सब कुछ दांव पर लगा देता है | अहंकारी व्यक्ति अपने झूठे अभिमान में अच्छे बुरे का भेद करना बंद कर देता है जिसके कारण स्वयं के साथ अपने परिवार एवं समाज को भी वह असहनीय कष्ट देता है | आज यह स्पष्ट देखने को मिल रहा है | अंतिम भाव में गोस्वामी जी ने मोह को स्थान दिया है | प्रेम एवं मोह में यही अंतर है कि मोह जब सीमा से अधिक हो जाता है तो उस मोह पर नकारात्मक प्रभाव पूरे समाज पर पड़ता है जैसे एक पुत्र के मोह में धृतराष्ट्र ने जीवन भर अधर्म का साथ दिया और कौरव कुल का विनाश करवा दिया | इन पाँच दुर्गुणों से जो भी बचा रहता है उसका जीवन उज्जवल एवं सुखी रहता है | इस प्रकार बाबा जी ने एक ही चौपाई में जीवन का सार लिखने का प्रयास किया है |*
*गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस मनुष्य को जीवन जीने की कला सिखाती है | यदि कुछ ना करके मानस को अपने जीवन में उतारने का प्रयास कर लिया जाय तो शायद और कुछ भी करने की आवश्यकता ही न रह जाय |*