*किसी भी देश का निर्माण समाज से होता है और समाज की प्रथम इकाई परिवार है | परिवार में आपसी सामंजस्य कैसा है ? यह निर्भर करता है कि हमारा समाज कैसा बनेगा | परिवार में प्राप्त संस्कारों के माध्यम से ही मनुष्य समाज में क्रियाकलाप करता है | हम इस भारत देश में पुनः रामराज्य की स्थापना की कल्पना किया करते हैं , इस कल्पना को फलीभूत करने के लिए सर्वप्रथम में समझना होगा कि रामराज्य क्या है ? रामराज्य भारतीय संस्कार को अपने आप में समावेशित करने का नाम है | यदि हम त्रेतायुगीन अयोध्या की बात करें तो भगवान राम के आदर्श हमें एक उच्च शिक्षा प्रदान करते हैं | प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर के सर्वप्रथम अपने माता-पिता को एवं गुरु को प्रणाम कर उनकी आज्ञा लेकर ही कोई कार्य करना , महारानी कैकेई के द्वारा भगवान राम को चौदह वर्षों का वनवास मांग लेने पर कौशल्या के द्वारा प्रतिरोध ना करना और अपने भाई की सेवा करने के लिए लक्ष्मण जैसे योद्धा का साथ में जाना तथा अपने भाई के अधिकारों पर स्वयं का स्वामित्व ना जमाते हुए भरत द्वारा चौदह वर्षों तक बनवासी की भांति जीवन व्यतीत करना हमें यह शिक्षा प्रदान करता है कि परिवार का सामंजस्य इतना अच्छा होना चाहिए | चौदह वर्षों के उपरांत भगवान राम के अयोध्या वापस आने पर जब उनका राज्याभिषेक हुआ तो जहां सारी प्रजा उनके स्वर्ण मुकुट को निहार रही थी तो भरत की दृष्टि भगवान राम के चरणों पर थी | कहने का तात्पर्य यह है कि परिवार में आपसी सामंजस्य एवं एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना के साथ-साथ अपने कर्तव्यों का आभास प्रत्येक मनुष्य को होना चाहिए तभी रामराज्य की परिकल्पना की जा सकती है | रामराज्य की परिकल्पना आज प्रत्येक राजनेता के भाषण में सुनने को मिल जाती है परंतु अपने कृत्यों को कोई नहीं देखना चाहता | रामराज्य की स्थापना करने के लिए मनुष्य को ज्यादा कुछ नहीं करना है उसे सिर्फ अपने आचरण में सुधार करने की आवश्यकता है और जिस दिन प्रत्येक मनुष्य के आचरण में संस्कार समावेशित हो जाएगा उसी दिन रामराज्य पुनः स्थापित हो जाएगा |*
*आज के आधुनिक युग में जहां रामराज्य की परिकल्पना की जाती है वहीं हमारे समाज के प्रबुद्ध जनों से लेकर के जन-जन तक पाश्चात्य संस्कृति का इतना गहरा प्रभाव पड़ चुका है कि हम अपनी संस्कृति सभ्यता एवं संस्कार को तिलांजलि देते चले जा रहे हैं | सुबह उठकर माता-पिता को प्रणाम करने की बात तो छोड़ दीजिए आज अधिकतर घरों में माता-पिता की उपेक्षा एवं तिरस्कार देखा जा रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज में यह भी देख रहा हूं कि भाई ही भाई से संपत्ति के लिए न्यायालय का सहारा ले रहा है और अपने ही भाई को परास्त करके वह गांव में मिठाई बाँटता है | आज हमारे संस्कारों का यह हाल है कि हम अधिकतर समय यही विचार करने में लगा देते हैं कि किसी दूसरे का हिस्सा किस प्रकार ले लिया जाय | क्या यही हमारे संस्कार थे ?? क्या यही शिक्षा हमारे महापुरुषों ने हमको दी थी ?? यदि रामराज्य की स्थापना करने की बात सोची जाय तो उसके लिए प्रत्येक परिवार को महाराज दशरथ के परिवार की तरह आचरण करना होगा जहां पुत्र का पिता के प्रति , भाई का भाई के प्रति एवं एक बहू का सास - ससुर के प्रति क्या कर्तव्य है इसको सीखना पड़ेगा | ऐसा नहीं है कि हमारे देश में सभी एक प्रकार हो गए हैं परंतु यह भी सत्य है कि आज अधिकतर परिवारों में आपसी सामंजस्य एवं एक दूसरे का सम्मान करने की भावना विलुप्त हो गई है , जिसके चलते हमारा समाज विकृत होता जा रहा है | आज हमने विकास तो बहुत कर लिया है परंतु इस विकास के पीछे हमने अपनी सभ्यता , संस्कृति एवं संस्कारों का बलिदान भी दे दिया है उनके पुनः स्थापन की आवश्यकता है तभी रामराज्य की परिकल्पना करना सार्थक हो सकता है |*
*जिस दिन मनुष्य एक दूसरे से बैर करना बंद कर देगा , एक दूसरे से ईर्ष्या खत्म करके आपसी सौहार्द बनाने का प्रयास करने लगेगा उसी दिन से इस भारत देश में रामराज्य की पुनर्स्थापना होने लगेगी |*