- *किसी भी राष्ट्र के निर्माण में वहां के समाज का बहुत बड़ा योगदान होता है | आदिकाल से हमारे देश भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक इकाई का एक वृहद ढांचा राष्ट्र के संस्कार और सचेतक समाज की है | अन्य देशों की अपेक्षा हमारे देश के धर्मग्रंथ और उपनिषद मनुष्य को जीवन जीने की कला सिखाते हैं साथ ही मानव संस्कार को जीवन में उतारने की एवं उसके संरक्षण की गाथा गाते हैं | आदिकाल से योग मानव जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है | आध्यात्मिक प्रक्रिया में योग का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इसी के माध्यम से शरीर , मन एवं आत्मा को एक साथ लाना सम्भव होता है | शरीर मन और आत्मा को एक साथ जोड़ने की प्रक्रिया को ही योग कहा गया है | प्राचीन भारत में भक्तियोग , हठयोग , क्रियायोग , पाशुपतियोग एवं महेश्वरयोग के साथ साथ संपूर्ण विश्व में भारत देश की महानता का परिचय देते हुए एक उच्च स्थान पर स्थापित करने का उपदेश देते हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण ने गीता में बुद्धियोग , सन्यासयोग , कर्मयोग तथा ज्ञानयोग का विस्तृत वर्णन किया है | भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं :- "योग कर्मसु कौशलम्" अर्थात योग से कर्मों में कुशलता आती है , तो वही पतंजलि ने योग दर्शन में "योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:" अर्थात चित्त की वृत्तियों के निरोध को योग कहा है | कहने का तात्पर्य यह है कि योग बुद्धि अर्थात चित्त को विभिन्न रूपों अर्थात वृत्ति लेने से अवरुद्ध करता है | योग का अर्थ सीधा - सीधा यदि माना जाय तो अपने मन को संयमित करना ही कहा जायेगा | हमारे महापुरुष यह जानते थे कि बिना मन के संयम के मनुष्य कुछ भी नहीं कर सकता है , जब तक मन को एकाग्र करके कोई कार्य नहीं किया जाएगा तब तक उस कार्य की सफलता संदिग्ध ही रहेगी | इसीलिए भगवान ने गीता में कहा है :- हे अर्जुन ! तू फल की चिंता त्याग कर अपने मन को एकाग्र करके सिर्फ अपना कर्म कर यही योग है | कुशलता पूर्वक कर्म तभी हो सकता है जब मनुष्य योगी हो और योगी वही हो सकता है जिसने अपने मन को एकाग्र कर लिया हो क्योंकि किसी भी कार्य की सफलता के लिए मन का एकाग्र होना बहुत आवश्यक है | अपने इन्ही दिव्य व्याख्यानों के माध्यम से विश्व को नई दिशा देने के कारण ही भारत विश्व गुरु कहलाता था |*
- *आज के आधुनिक काल में भी योग का महत्व कम नहीं हुआ है | हमारे देश भारत में सनातन हिंदू धर्म की ध्यान प्रक्रिया से उत्पन्न यह योग शब्द भारत से ही बौद्ध धर्म के मानने वालों के साथ चीन , जापान , तिब्बत और पूर्व एशिया तथा श्रीलंका में भी फैला है | वर्तमान युग में सभ्य जगत के सभी मनुष्य योग की महत्ता को समझते हैं | योग का जीवन बहुत ही महत्व है , तन एवं मन को बलिष्ठ बनाने एवं मन की शांति प्राप्त करने के लिए योग का आश्रय लेना एक उचित उपाय कहा जा सकता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यदि यह कहूं कि आधुनिक भारत में योग की प्रसिद्धि योग गुरु बाबा रामदेव के कारण अधिक हुई तो अतिशयोक्ति नहीं होगी | योग का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यदि प्रतिदिन योग किया जाए तो तन मन से अनेकों विकारों का समूल नाश तो होता ही है साथ ही जीवन भी स्वस्थ हो जाता है | इस जीवन को बिना किसी कठिनाई के चलाने के लिए मनुष्य का स्वस्थ होना बहुत आवश्यक है क्योंकि जीवन के सभी सुख वही प्राप्त कर सकता है जिसका शरीर स्वस्थ है | शरीर स्वस्थ रखने के लिए योग का करना परम आवश्यक है | मन का निर्मल एवं एकाग्र होना बहुत आवश्यक है और यह निर्मलता तभी प्राप्त हो सकती है जब मनुष्य योगी बनने का प्रयास करेगा | योगी बनने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि मनुष्य घर बार का त्याग करके सन्त हो जाय | योगी होने का अर्थ है कि मनुष्य योग के माध्यम से अपने शरीर को स्वस्थ तो रखें ही साथ ही अपने मन पर भी विजय प्राप्त करे | जिस दिन प्रत्येक मनुष्य ऐसा करने में सफल हो जाएगा उसी दिन भगवान कृष्ण का दिया गया "योग कर्मसु कौशलम्" का उपदेश सार्थक हो पाएगा |*
- *वर्तमान समय में मनुष्य ने योग के महत्व को समझते हुए योग करना प्रारंभ किया है | अनेक लोगों ने तो इसे अपने आय का साधन भी बना लिया है | कुछ भी हो परंतु प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में नियमित रूप से योग से जुड़े रहते हुए शरीर को स्वस्थ रखने का प्रयास करना चाहिए |*