*इस सृष्टि में माननीय व्यक्तित्व के तीन आयाम सर्वविदित हैं :-- शरीर , मन एवं आत्मा | शरीर को पोषण देने के लिए आहार की , प्राणवायु की आवश्यकता पड़ती है | अन्न , जल एवं वायु ना मिले तो शरीर को लंबे समय तक जीवित रख पाना संभव नहीं हो पाता है | मन को पोषण देने के लिए सद्विचारों की , सद्भावनाओं की जरूरत होती है , तो आत्मा की आवश्यकता सद्ज्ञान से ही पूरी हो पाती है | सद्ज्ञान का संबल मिलने पर मनुष्य के गुण कर्म एवं स्वभाव को पोषण मिल पाता है | गुण कर्म स्वभाव की उत्कृष्टता ही आत्मा को पोषण देती है वह समुन्नत जीवन की आधारशिला रखती है | जीवन में मनुष्य को चाहे जितना कुछ भी उपलब्ध करा दिया जाए तमाम सुख अकल्पनीय सुविधाओं के अंबार लगा दिए जाए परंतु इन सबके बाद भी यदि सद्ज्ञान उपलब्ध ना हो सका जीवन में एक बड़ी भारी रिक्तता का अनुभव होता है , इसी कारण समस्त सुविधाओं के होते हुए भी युवराज सिद्धार्थ सर्वस्व त्याग कर
ज्ञान की प्राप्ति की राह को निकल पड़ते हैं | महाराज भर्तृहरि बैराग्य को प्राप्त होते हैं , एवं राजा जनक आत्मज्ञान की प्राप्ति के उपरांत ही जीवन की पूर्णता कीलअनुभव कर पाते हैं | यह कहा जा सकता है कि सद्ज्ञान का अवलंबन ही मनुष्य को जीवन में ऊंचा उठाता है एवं आगे बढ़ाता है | सद्ज्ञान की प्राप्ति मनुष्य को संतोष सम्मान एवं समुन्नति के ऐसे आभूषणों से सुशोभित करती है कि जिसके आगे स्वर्ग की सुख संपदा भी तुच्छ प्रतूत होती है | बिना सद्ज्ञान के मनुष्य का जीवन पशुवत् ही माना जा सकता है | प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में सद्ज्ञान का संचय प्रतिपल करते रहने का प्रयास करते रहना चाहिए , क्योंकि यही वह धन है जो आपको निर्धनता में भी धनी बनाए रखता है | इससे बढ़कर कोई दूसरा धन इस संपूर्ण सृष्टि में ना है और ना हो सकता है |* *आज मनुष्यों का आंकलन उनके सद्ज्ञान से नहीं अपितु उनका धन एवं ऐश्वर्य को देखकर किया जाने लगा है | परंतु
विचार कीजिए कि जो धन आपको दिख रहा है वह पता नहीं सद्मार्ग से आया है या कुमार्ग से ?? क्या चोरी , डकैती , छिनैती आदि करके धन का संचय करने वाले को महापुरुष माना जा सकता है ?? मेरे विचार से तो नहीं | धन के संचय कर लेने मात्र से कोई सुखी नहीं हो सकता , मनुष्य को आंतरिक सुख प्राप्त होता सद्ज्ञान से | जिसने आत्मज्ञान से अपने दृष्टिकोण को सुसंस्कृत कर लिया है वह चाहे साधन सम्पन्न हो चाहे न हो, हर हालत में सुखी रहेगा | परिस्थितियाँ चाहे कितनी ही प्रतिकूल क्यों न हों वह प्रतिकूलता में अनुकूलता का निर्माण कर लेगा | उत्तम गुण और उत्तम स्वभाव वाले मनुष्य बुरे लोगों के बीच रहकर भी अच्छे अवसर प्राप्त कर लेते हैं | अब विचारणीय यह है कि यह सद्ज्ञान मिलेगा कहाँ से ?? मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूँगा कि :- वैसे तो सद्ज्ञान प्राप्ति के लिए अनेकों मार्ग बताए गए परंतु सबसे सरल स्वाध्याय एवं सत्संग का पथ कुछ ऐसा है कि इसको अपनाने वाले निजी जीवन में महानता के अधिकारी बनते हैं | सच पूछा जाए तो मानवीय महानता का सारा श्रेय सद्ज्ञान को ही देने की आवश्यकता है , क्योंकि उसकी प्राप्ति ही मनुष्य के जीवन को अनुकरणीय बनाती है |* *जिसे सद्ज्ञान न मिल सका वह जन्म जन्मांतर तक पतन एवं पराभव की वीथियों में भटकता रहता है , जबकि सद्ज्ञान प्राप्त कर लेने वाले अपने जीवन को एक प्रेरणा में परिवर्तित कर देते हैं | सद्ज्ञान की उपलब्धि ही मनुष्य जीवन का श्रेष्ठतम सौभाग्य है |*