*मानव जीवन में प्रकृति का बहुत ही सराहनीय योगदान होता है | बिना प्रकृति के योगदान के इस धरती पर जीवन संभव ही नहीं है | यदि सूक्ष्मदृष्टि से देखा जाए तो प्रकृति का प्रत्येक कण मनुष्य के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता है | प्रकृति के इन्हीं अंगों में एक महत्वपूर्ण एवं विशेष घटक है वृक्ष | वृक्ष का मानव जीवन में क्या महत्व है इस को बताने की आवश्यकता नहीं है | दैनिक जीवन में मनुष्य इन वृक्षों से फल , फूल , पत्तियां , लकड़ी एवं छाया आदि प्राप्त करके अपना जीवन संचालित करता है | देखने में साधारण से लगने वाली ये वृक्ष साधारण नहीं हैं | इनको यदि गहनता से देखा जाय तो इसमें पूरा मानव जीवन दर्शन समाया हुआ है | आध्यात्मिक दृष्टि से देखने पर यह एक साधक की भांति ही दिखाई पड़ता है | यदि कोई साधक अपनी साधना में सफल होकर जीवन लाभ लेना चाहता है तो उसे एक वृक्ष का एवं उसके जीवन का मनन चिंतन अवश्य करना चाहिए | जिस प्रकार एक वृक्ष अकेला अपने जीवन पथ पर आगे बढ़ता है उसे किसी के सहयोग की आशा और अपेक्षा नहीं रहती उसी प्रकार एक साधक भी किसी से कोई आशा न रखकर मात्र प्रकृति एवं परमेश्वर के संसर्ग की चाह रखता है तथा उन्हीं से सतत पोषण प्राप्त करता है | जिस प्रकार वृक्ष अपने लिए कुछ भी नहीं करता उसका जीवन दूसरों के लिए ही होता है उसके फूल , फल , पत्ते , टहनियां , बीज , तनी , जड़ , छाया , शीतलता , हरियाली और सुंदरता सब दूसरे के ही काम आती है ठीक उसी प्रकार एक साधक भी साधना की ओर उन्मुख होकप राग , द्वेष से निरपेक्ष अस्तित्व के परम सत्य की ओर बढ़ते हुए अपनी मूल प्रकृति में विकसित होता है तथा वृक्ष की भांति एक वरदान बनकर जीता है और पूर्ण विकसित हो जाने पर उसके अंतर में दया , करुणा एवं संवेदना का एक सागर प्रवाहित होने वाली लगता है जो प्राणी मात्र के कल्याण की चाहत से आप्लावित रहता है | इसलिए प्रत्येक साधक को वृक्ष की भांति किसी से कोई अपेक्षा न रखते हुए नित्य अपने साधना पथ पर अग्रसर रहना चाहिए क्योंकि साधक की साधना लोक कल्याण के लिए ही होती है किसी से कोई अपेक्षा रखने वाला कभी कोई साधना नहीं कर सकता क्योंकि अपेक्षाये पूरी न होने पर वह निराश होकप साधनापथ से अलग हट जाता है |*
*आज अनेकों युवा साधना पथ के पथिक बन रहे हैं या बनने की चाह रखते हैं परंतु उनको यह नहीं समझ में आता कि वे किससे मार्गदर्शन प्राप्त करें | बिना मार्गदर्शन के वे स्वयं को निर्बल एवं असहाय पाते हैं | साधक के मन में कभी निर्बलता का भाव नहीं आना चाहिए यदि उसे किसी से यथेष्ट मार्गदर्शन नहीं प्राप्त हो पा रहा है तो उसे दुखी न होकर प्रकृति से मार्गदर्शन लेने का प्रयास करना चाहिए | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूँगा कि इस धरा धाम पर अनेकों वृक्ष है कुछ एक वृक्षों की सेवा हो सकता है कि माली करता हो परंतु अनगिनत वृक्ष ऐसे भी हैं जो स्वयं इस धरा धाम पर प्रकट होते हैं और बिना किसी देखरेख के फल - फूल कर प्रकृति का सहयोग करने लगते हैं | पूर्णता को प्राप्त होने के बाद एक वृक्ष जीवो का कल्याण ही करता है , उसी प्रकार साधक को भी बिना किसी सहायता के प्रकृति एवं परमात्मा का संसर्ग प्राप्त करने का प्रयास करते हुए लोक कल्याण के लिए अपनी साधना को सफल करने का प्रयास करना चाहिए | वृक्ष का जीवन एवं उनके अंग उपांग स्वयं में अनेकों रहस्य समेटे हुए रहते हैं आवश्यकता है इनको गहनता से अध्ययन करने की | यदि ध्यानपूर्वक देखा जाय तो वृक्ष के तने जीवन का प्रत्यक्ष स्थूल स्वरूप होते हैं जिनमें भौतिक जीवन के निर्वाह के लिए उपयुक्त भोजन एवं लकड़ी आदि मिलती है ! उनकी जड़ें अदृश्य , रहस्यमय , अवचेतन अस्तित्व के रूप में देखी जा सकती है जो सपनों से लेकर जीवन के सूक्ष्मतम रहस्यमय स्थिति के लिए जिम्मेदार होते हैं | वृक्ष की पत्तियाँ वाह्य आच्छादन एवं आकाश की ओर उन्मुख टहनियां ईश्वरोन्मुख जीवन की तरह होती है | इस प्रकार वृक्ष को माध्यम बना करके उनसे सीख लेते हुए परम सत्य का चिंतन एवं मनन करते रहना चाहिए | यदि एक साधक अपना आदर्श एक वृक्ष को मानकर उसके सम्पूर्ण जीवन दर्शन का अध्ययन करते हुए उसी की भाँति परहित के लिए साधना करना प्रारम्भ कर दे तो वह कभी भी असफल नहीं हो सकता |*
*वृक्षों का मानव से गहरा सम्बन्ध है इसीलिए सनातन धर्म वृक्षों की पूजा करने का निर्देश देते हुए उनसे सीख भी लेने की प्रेरणा कथाओंके माध्यम से देता रहा है |*