*सृष्टि के आदिकाल से ही इस धराधाम पर सनातन धर्म की नींव पड़ी | तब से लेकर आज तक अनेकों धर्म , पंथ , सम्प्रदाय जो भी स्थापित हुए सबका मूल सनातन ही है | जहाँ अनेकों सम्प्रदाय समय समय बिखरते एवं मिट्टी में मिलते देखे गये हैं वहीं सनातन आज भी सबका मार्गदर्शन करता दिखाई पड़ता है | सनातन धर्म अक्षुण्ण इसलिए है क्योंकि इसकी प्रत्येक मान्यता प्पकृति से जुड़ी हुई है | जहाँ अन्य धर्मों ने अपनी मनमानी मान्यतायें स्थापित कीं वहीं सनातन ने प्रकृति से ही जुड़कर मान्यताओं की स्थापना की है | इन्हीं मान्यताओं में एक है सनातन का सम्माननीय भगवा रंग | प्राय: लोग प्रश्न कर देते हैं कि सनातन में भगवा रंग महत्तवपूर्ण क्यों है ? उन सभी को सनातन पर यह प्रश्न उठाने से पहले सम्पूर्ण सृष्टि को ध्यान से देखना चाहिए | यदि सृष्टि का सूक्ष्मावलोकन किया जाय तो सम्पूर्ण सृष्टि ही भगवा रंग की है | यदि न समझ में आये तो ऐसे सभी लोगों का मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" ध्यानाकर्षण कराते हुए बताना चाहता हूँ कि विचार कीजिए कि इस सृष्टि को ऊर्जा कहाँ से प्राप्त होती है ? इस सम्पूर्ण सृष्टि को ऊर्जा प्रदान करने वाला है सूर्य , सम्पूर्ण सृष्टि सूर्य से ही पोषण प्राप्त करती है | यदि सूर्य गतिमान न हो तो सृष्टि भी गतिमान नहीं हो सकती | सूर्य का तत्व है अग्नि , अग्नि के भी दो गुण होते हैं :- प्रकाशकता एवं दाहकता , और उसका भी रंग है भगवा एवं केसरिया | संसार को सूर्य की प्रकाशकता दृष्टव्य बनाती है और सम्पूर्ण संसार को उसकी दाहकता भस्म भी कर सकती है | सूर्य ही जीवन दायक है और उसका रंग भगवा एवं उसके तत्व अग्नि का रंग केसरिया है | जिस प्रकार बिना सूर्य के जीवन की संकल्पना ही नहीं की जा सकती उसी प्रकार इस पृथ्वी पर बिना सनातन के संस्कृतियों का संरक्षण भी असम्भव है | प्रकृति के इसी रहस्य को समझते हुए सनातन का सम्माननीय वस्त्र एवं रंग है भगवा |*
*आज जिस प्रकार सम्पूर्ण संसार में ओछी राजनीति का प्रचार हो रहा है तथा कुछ लोग निजी स्वार्थसिद्धि के लिए सनातन की मान्यताओं का दुष्प्रचार करते हुए भगवा रंग को एक धर्म का प्रतीक बताते हुए भारत का भगवाकरण करने का आरोप लगा रहे हैं वे सभी लोग या तो सृष्टि एवं प्रकृति के रहस्य को ही नहीं समझ पाये हैं या फिर समझते हुए भी समझना नहीं चाहते हैं | सनातन धर्म सृष्टि के आदिकाल से भगवामय है और रहेगा क्योंकि जब यह सृष्टि ही भगवामय है तो हम सृष्टि के बाहर भला कैसे जा सकते हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" सनातन की दिव्य मान्यता का पोषक हूँ क्योंकि हमारी दिव्य मान्यता रही है कि जब हम संसार से परांगमुख होते हैं अर्थात सांसारिकता को होम कर देते हैं , संयासी होते हैं तो अग्निरूप केसरिया धारण करते हैं और जब देह त्याग करते हैं अग्निरूप केसरिया का आलिंगन करते हुए यह नश्वर शरीर उसी को समर्पित कर देते हैं | जब एक सैनिक वीरगति को प्राप्त होता है तो वह भी केसरिया बाना धारण करता है | कल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भगवा प्रकाश (सूर्य) ही हमारा (सृष्टि का) जीवन है और भगवा अग्नि ही हमारा अंतिम आश्रय | सूर्य का तत्व कही जाने वाली अग्नि ही सृष्चि का मूल है और अग्नि ही सृष्टि का समापन | भगवा का इतिहास सृष्टि के आदिकाल से है , सृष्टि के कण कण में भगवा विद्यमान है इसे धारण करने से कोई भी न तो बचा है और न ही बचेगा क्योंकि जिस सूर्य के प्रकाश में सभी अपना जीवनयापन करते हुए , उसी से ऊर्जा प्राप्त करते हुए भगवा का विरोध करते हैं वह सूर्य भी भगवामय ही है तो बताओ भगवामय होने से बचा कौन ? मानवमात्र को इस तथ्य पर विचार करना चाहिए कि भगवा किसी विशेष धर्म का प्रतीक न हो करके सृष्टि एवं प्रकृति का प्रतीक होते हुए सृष्टि का ही मूल है | जिस प्रकार कुछ लोग अपने ही जन्मदाता माता पिता का विरोध करते हुए कृतघ्न हो जाते हैं उसी प्रकार भगवामय सृष्टि में पैदा होकर भगवा का विरोध करने वाले कृतघ्न ही कहे जा सकते हैं |*
*इस संसार में आने के बाद कोई भी भगवाकरण होने से बच नहीं सकता | हमें गर्व है कि हमारा जन्म सनातन में हुआ है जहाँ भगवा को धारण करके भगवान को पूजा जाता है |*