*मानव जीवन में प्राय: एक शब्द सुनने को मिलता है सहिष्णुता एवं असहिष्णुता | आज यह शब्द अधिकतर प्रयोग किया जा रहा है , तो इसके विषय में जान लेना परम आवश्यक है कि सहिष्णुता कहा किसे कहा जाता है | सहिष्णुता का तात्पर्य है सहनशीलता ! किसी दूसरे के विचारों से सहमत ना होने के बाद भी उसे समझना एवं उसका सम्
*इस धरा धाम पर मनुष्य के लिए वैसे तो अनेक प्रकार के सुख ऐश्वर्य एवं संपत्ति विद्यमान है परंतु किसी भी मनुष्य के लिए सबसे बड़ा धन उसका स्वास्थ्य होता है | अनेकों प्रकार के ऐश्वर्य होने के बाद भी यदि स्वास्थ्य नहीं ठीक है तो वह समस्त ऐश्वर्य मनुष्य के लिए व्यर्थ ही हो जाता है इसलिए मनुष्य को सबसे पहल
*आदिकाल से समस्त विश्व में हमारी पहचान हमारी सभ्यता और संस्कृति के माध्यम से होती रही है | समस्त विश्व नें हमारी पहचान का लोहा भी माना है | विदेशों में हमें "भरतवंशी" कहा जाता है | हमारे पूर्वजों ने अपनी पहचान की कीर्ति पताका समस्त विश्व में फहराई है | मनुष्य की पहचान उसके देश समाज एवं परिवार से होत
🔥⚜🔥⚜🔥⚜🔥⚜🌸⚜🔥 ‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼ 🏹 *अर्जुन के तीर* 🏹🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻🌹 *युवा शक्ति राष्ट्र शक्ति का नारा भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक "स्वामी विवेकानन्द जी" ने दिया था | आज के युवा कि दिशा और दशा परिवर्तित हो गयी है | आज अधिकतर युवा गांजे , भाँग ,
*इस सृष्टि का सृजन परमात्मा ने पंच तत्वों को मिलाकर के किया है , यह पांच तत्व मिलकर प्रकृति का निर्माण करते हैं | प्रकृति एवं पुरुष मे ही सारी सृष्टि व्याप्त है , पुरुष के बिना प्रकृति संभव नहीं है और प्रकृति के बिना पुरुष का कोई अस्तित्व भी नहीं है | इस प्रकार नर नारी के सहयोग से सृष्टि पुष्पित पल्
*भारत देश अपनी महानता , पवित्रता , सहृदयता एवं अपनी सभ्यता / संस्कृति के लिए संपूर्ण विश्व में जाना जाता रहा है | लोक मर्यादा का पालन करके ही हमारे महापुरुषों ने भारतीय सभ्यता की नींव रखी थी | मानव जीवन में अनेक क्रियाकलापों के साथ लज्जा एक प्रमुख स्थान रखती है लोक लज्जा एक ऐसा शब्द माना जाता था जिस
*इस विश्व का सबसे प्राचीन एवं पुरातन धर्म यदि कोई है तो वह सनातन है | सनातन धर्म की प्रत्येक मान्यता एवं परंपरा मानव मात्र के कल्याण के लिए तो है ही साथ ही सनातन धर्म के प्रत्येक क्रियाकलाप में प्रकृति का सामंजस्य एवं वैज्ञानिकता का समावेश भी रहता है | यह सृष्टि निरंतर चलायमान है दिन बीतते जाते हैं
दोस्तों ,मेरी यह कविता समाज के उन वहशी गुनहगारों के लिए है, जो वहशियत की सीमाएँ लाँघने के बाद भी स्वयं के लिए माफ़ी की उम्मीद रखते हैं। गुहार क्यों ?साँप तुम सभ्य तो हुए नहीं ,फिर ये दया की गुहार क्यों ?हाँ , यह तेरा ज़हर ही है ,जो तुझे असभ्य बनाता है ,जो तेरे मस्तिष्क के साथ , हलक में आकर वहशियत फै
*आदिकाल से ही संपूर्ण विश्व में विशेषकर हमारे देश भारत में सत्ता प्राप्ति के लिए मनुष्य के द्वारा अनेक प्रकार के क्रियाकलाप किए जाते रहे हैं | कभी तो मनुष्य को उसके सकारात्मक कार्यों एवं आम जनमानस में लोकप्रियता के कारण सत्ता प्राप्त हुई तो कभी मनुष्य सत्ता प्राप्त करने के लिए साम-दाम-दंड-भेद आदि क
*किसी भी देश का निर्माण समाज से होता है और समाज की प्रथम इकाई परिवार है | परिवार में आपसी सामंजस्य कैसा है ? यह निर्भर करता है कि हमारा समाज कैसा बनेगा | परिवार में प्राप्त संस्कारों के माध्यम से ही मनुष्य समाज में क्रियाकलाप करता है | हम इस भारत देश में पुनः रामराज्य की स्थापना की कल्पना किया करते
*आदिकाल से मनुष्य में सद्गुण एवं दुर्गुण साथ - साथ उत्पन्न् हुए इस धराधाम पर अनेकों सदुगुणों को जहाँ मनुष्य ने स्वयं में आत्मसात किया है वहीं दुर्गुणों से भी उसका गहरा सम्बन्ध रहा है | मनुष्य में सद्गुण एवं दुर्गुण उसके पारिवारिक परिवेश एवं संस्कारों के अनुसार ही प्रकट होते रहे हैं | सम्मान , सदाचार
*परमात्मा ने सुंदर सृष्टि की रचना की तो मनुष्य ने इसे संवारने का कार्य किया | सृजन एवं विनाश मनुष्य के ही हाथों में है | हमारे पूर्वजों ने इस धरती को स्वर्ग बनाने के लिए अनेकों उपक्रम किए और हमको एक सुंदर वातावरण तैयार करके सुखद जीवन जीने की कला सिखाई थी | मनुष्य ने अपने बुद्धि विवेक से मानव जीवन मे
*इस धराधाम पर मनुष्य कर्मशील प्राणी है निरंतर कर्म करते रहना उसका स्वभाव है | मनुष्य शारीरिक श्रम के साथ-साथ मानसिक श्रम भी करता है जिससे उसे शारीरिक थकान के साथ-साथ मानसिक थकान का भी आभास होता है | इस थकान को दूर करने का सबसे सशक्त साधन कुछ देर के लिए मन को मनोरंजन में लगाना माना गया है | पूर्वकाल
*इस संपूर्ण विश्व में प्रारंभ से ही भारत देश अपने क्रियाकलापों एवं दूरदर्शिता के लिए जाना जाता रहा है | विश्व के समस्त देशों की अपेक्षा भारत की सभ्यता , संस्कृति एवं आपसी सामंजस्य एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता रहा है | यहां पूर्व काल में एक दूसरे के सहयोग से दुष्कर से दुष्कर कार्य मनुष्य करता रहा है
*सनातन धर्म की मान्यता है कि महाराज मनु से मनुष्य की उत्पत्ति इस धराधाम पर हुई है इसीलिए उसे मानव या मनुष्य कहा जाता है | मनुष्यों के लिए अनेकों प्रकार के धर्मों का पालन करने का निर्देश भी प्राप्त होता है | प्रत्येक मनुष्य में दया , दान , शील , सौजन्य , धृति , क्षमा आदि गुणों का होना परमावश्यक है इन
*इस धरा धाम पर जन्म लेकर मनुष्य अपने जीवन में अनेकों क्रियाकलाप करता है परंतु इस मानव जीवन को उच्च शिखर पर ले जाने के लिए मनुष्य में दो आस्थायें प्रकट की जानी चाहिए प्रथम तो यह है कि अपने जीवन में विवेकवान , चरित्रवान सुसंस्कृत और प्रतिभावान बने | क्योंकि ऐसा करके ही मनुष्य सभ्य समुदाय का प्राणी गि
*मानव जीवन में इस संसार में उपस्थित समस्त पदार्थ किसी न किसी रूप में महत्वपूर्ण है परंतु यदि इनका सूक्ष्म आंकलन किया जाय तो सबसे महत्वपूर्ण हैं मनुष्य के संस्कार | इन्हीं संस्कारों को अपना करके मनुष्य पदार्थों से उचित अनुचित व्यवहार करने का ज्ञान प्राप्त करता है | हमारे देश भारत की संस्कृति संस्कार
*हमारे देश की संस्कृति इतनी महान रही है कि समस्त विश्व ने हमारी संस्कृति को आत्मसात किया | सनातन ने सदैव नारी को शक्ति के रूप में प्रतिपादित / स्थापित करते हुए सम्माननीय एवं पूज्यनीय माना है | इस मान्यता के विपरीत जाकर जिसने भी नारियों के सम्मान के विपरीत जाकर उनसे व्यवहार करने का प्रयास किया है उसक