महिलाओं के प्रति अपमान की भावना एक दिन में नहीं पनपती
है, ये जहर धीरे-धीरे उसके मन में पनपता है कहीं ना कहीं घर से ही इसकी शुरुआत
होती है, हमारे समाज में सारी पाबंदियां लड़कियों पर ही लगाई जाती है चाहे वो स्कूल, समाज, ऑफिस ही क्यों ना हो महिलाओं को ही हद में रहने की सलाह दी
जाती है। जैसे कि महिलाओं को अपनी निगाह नीची रखनी चाहिए, धीरे
बोलो, धीरे हंसो, अरे लड़की हो तो पूरी तरह ढके हुए कपड़े पहनों, लड़कों से दोस्ती ना
रखो, रात होने से पहले घर वापस आओ, लिस्ट काफी लंबी है। थोड़ी सी तमीज़ लड़को
को भी सिखाने की कोशिश क्यों नहीं करते है वो लोग।
अगर माता- पिता को लड़की के प्रेम प्रसंग की भनक लग जाए तो वो उसे मारने पर आमदा हो जाते है ऑनर किलिंग के कितने केस अखबार में पढ़ने को मिलते है, उसी समाज से पूछिए कि क्या उन्होंने अपने बेटे को किसी लड़की पर भद्दे कमेंट करने, घूरने या फिर सीटी बजाने पर क्या एक थप्पड़ लगाने की हिम्मत भी की है ? वो कितना कमा रहा है इसके बजाए उसका चाल चलन कैसा है ये जानने की कोशिश की है।
कुछ महिलाएं भी आज पुरातनपंथी सोच में जी रही है जिनका मानना है कि महिलाओं का काम सिर्फ पति की सेवा करना और बच्चों की लालन पालन करना है चाहे उनका पति कैसा भी बर्ताव करे उन्हें बर्दाश्त करते रहना चाहिए, अगर कोई महिला अपने पति के बुरे बर्ताव के चलते पति से अलग हो जाए तो उसकी आलोचना करने में घंटो बर्बाद कर देंगी लेकिन किसी के पति को टोकने की हिम्मत उनको नहीं होगी।
अब लगता है कि स्कूलों के पाठ्यक्रम में महिला सम्मान कैसे करे? इस विषय को भी जोड़ना होगा, जो कि हमारा समाज उन्हें सीखने से रहा, चाहे स्कूल सरकारी हो या प्राईवेट, गांव का हो या शहर हर जगह इसे जोड़ना पड़ेगा। उन्हें बताना होगा महिला भी उनकी तरह एक इंसान है कोई भोग की वस्तु या किसी की गुलाम नहीं है।
शराब, बीड़ी, तम्बाकू जैसी नशीली आदतों के प्रति आगाह करना होगा जो कि आज
फ़ैशन बन गया है और अपराधिक प्रवृत्ति पनपने में महती भूमिका निभाता है।
सिर्फ लड़कियों को संभाल कर रहने की चेतावनी से कुछ नहीं होने वाला है। क्या कोई गारंटी ले सकता है कि कौन सा स्थान उनके लिए सुरक्षित है? इलाज़ तो केवल उस पुरूषवादी कुंठित मानसिकता करना होगा जिसके चलते वो महिलाओं का अपमान करते है।