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समाज

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प्रेम❤

जिनके शब्द ही अधूरे है

वो कैसे मिले पूरा सब को

अगर देखना हो सच्चा प्र

भाग रहे है..लेकिन क्यों?


क्या आपको भी डिसमेनोरिया है?



क्यों घबराती है तु, होती है जब


दरअसल आज मै आपको अपनी जिंदगी में घटी एक घटना सुनाने आया हूं जिसका सीधा संबंध हमारे दे

कभी कभी सोचता हूँ

तुम्हारी हमारी जिंदगी 

एक फ़ाइल की तरह है

जिनमें तमाम

इस किनारे से उस किनारे तक का सफर बाकी हैI

एक मल्ला की कश्ती के सहारे तक का सफर बाकी हैII</

प्रकृति को आज परेशा हमने देखा है...

जो कल पेड लगा गए थे उन्हें काट

मझधार में हूं मझधार में रहने दो किनारे की जरूरत नहीं! 

सफर में हूं सफर करने दो सहारे

मझधार में हूं मझधार में रहने दो किनारे की जरूरत नहीं! 

सफर में हूं सफर करने दो सहारे

"तेज़ तरार" एक तेज़ -तर्रार और गतिशील डिजिटल समाचार प्ले


नया पंचतंत्र - सारस और लोमड़ी की कहानी

चालाक लोमड़ी सभी से मीठा बोलकर विश्वास ज

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*मानव जीवन में सत्संग का होना परम आवश्यक है क्योंकि सत्संग ही मानव जीवन का दायित्व है | सत्संग से

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*मानव जीवन पाकर की मनुष्य अपने जीवन भर में अनेको क्रिया कलाप करता है , अनेकों शत्रु एवं मित्र जीव

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*संसार में वैसे तो अनेक प्रकार के धर्म देखे जाते हैं ! इन धर्मों को मानने वालों की संख्या भी बहुत अधिक है जो अपने - अपने धर्म के लिए प्राण लेने और देने के लिए भी तैयार होते दिख जाते हैं | परंतु ऐसा करने वाले शायद धर्म की परिभाषा ही नहीं जानते | इन सभी प्रकार के धर्मों से ऊपर भी एक धर्म है जिसे मानवध

प्रोकिसी भी प्रोफेशन में सफलता हासिल करने के लिए पूर्ण समर्पण और तन्मयता बेहद आवश्यक है। समाज में महिलायों की भागीदारी हर क्षेत्र में बढ़ रही है| इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि किसी भी परिवार के लिए महिला एक महत्वपूर्ण व्यक्ति है जो एक माँ, बहन, बेटी, पत्नी किसी भी रूप में हो सकती है | इस

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*इस संसार में जन्म लेने के बाद एक मनुष्य को पूर्ण मनुष्य बनने के लिए उसके हृदय में दया , करुणा , आर्जव , मार्दव ,सरलता , शील , प्रतिभा , न्याय , ज्ञान , परोपकार , सहिष्णुता , प्रीति , रचनाधर्मिता , सहकार , प्रकृतिप्रेम , राष्ट्रप्रेम एवं अपने मह

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*सृष्टि का मूल है प्रकृति इसके बिना जीव का कोई अस्तित्व नहीं है | प्रकृति अग्नि , जल , पृथ्वी , वायु एवं अंतरिक्ष से अर्थात पंचमहाभूते मिलकर बनी है जिसे पर्यावरण भी कहा जाता है | पर्यावरण का संरक्षण आदिकाल से करने का निर्देश हमें प्राप्त होता रहा है | हमारे देश भारत की संस्कृति का विकास वेदों से हुआ

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*इस संसार में जन्म लेने के बाद मनुष्य अनेक प्रकार के क्रियाकलाप करता रहता है , अपने क्रियाकलाप एवं कर्मों के आधार पर मनुष्य को यहां सम्मान एवं अपमान प्राप्त होता है | कोई भी संतान संस्कारी तभी हो सकती है जब उसके माता-पिता में भी संस्कार हो | सबसे बड़ा संस्कार है सुशील होना | संतान सुशील तभी हो सकती

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*मानव जीवन को सुचारू ढंग से जीने के लिए जहां अनेक प्रकार की आवश्यक आवश्यकता होती है वही समाज एवं परिवार में सामंजस्य बनाए रखने के लिए मनुष्य को एक दूसरे से सलाह परामर्श लेते हुए दूसरों का सम्मान भी करना चाहिए | ऐसा करने पर कभी भी आत्मीयता मे कमी नहीं आती | जहां परिवार में परामर्श नहीं होता है उसी पर

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