*इस पृथ्वी पर आदिकाल से लेकर वर्तमान काल तक एक से बढकर एक बलवान हुए हैं जिन्होंने अपने जनबल , धनबल एवं बाहुबल का प्रदर्शन करके संसार में सर्वश्रेष्ठ बनने का प्रयास किया है | अनेकों वीर तो ऐसे हुए हैं जिन्होंने तीनों लोकों को जीतने का श्रम किया और सफल भी हुए | परंतु तीनों लोकों में सबसे बलवान एक ही होता आया है जिसे
समय कहा जाता है | समय से बढकर बलवान आज तक न कोई हो पाया है और न ही भविष्य में हो पायेगा | समय के गर्भ में अनेकों सृजन एवं विनाश देखने को मिल सकते हैं | यदि किसी को समय ने त्रैलोक्य विजयी बनाया है तो समय ने ही उसका समूल विनाश भी कर दिया है | समय के आगे आज तक किसी की भी नहीं चल पाई है | महाराज दशरथ ने मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम को अयोध्या का महाराज बनाने की घोषणा तो कर दी परंतु समय की प्रबलता के आगे उनकी एक भी नहीं चली और अयोध्या का राज्यसिंहासन चौदह वर्षों तक बिना किसी राजा के ही रहा | इतिहास में ऐसे कई उदाहरण एवं कथायें देखने / सुनने को मिलती हैं जहाँ समय के आगे सभी बौने होते देखे जा सकते हैं | अच्छे - अच्छों का
ज्ञान , धन , एवं परिवार समय के समक्ष गौण हो जाया करते हैं | सुख दुख जीवन के अभिन्न हिस्से हैं ! ये मनुष्य के जीवन में समयचक्र के अनुसार आते रहते हैं | इस संसार में मनुष्य अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए सुदृढ योजनायें बनाता रहता है परंतु समय यदि प्रतिकूल होता है तो सारी योजनायें ध्वस्त हो जाती हैं और फिर वही होता है जो समय चाहता है |* *आज चाहे इतिहास उठाकर देख लिया जाय या फिर अपने आस या
देश में वर्तमान समय में भी अनेक उदाहरण देखने को मिल जायेंगे | अपने स्वर्णिमकाल में देश की जनता पर राज करने वाले (चाहे राजनीतिक हों या धार्मिक) समय की मार खाकर गुमनामी के अंधेरों में बैठे स्वयं को या अपने समय को दोष दे रहे हैं | आज अनेकों विद्वान व प्रखर कथावाचक भी समय की मार झेलकर हतास एवं निराश होकर सिर धुन रहे हैं | प्रत्येक मनुष्य के जीवन में एक स्वर्णिम समय अवश्य आता है परंतु वह समय वैसे ही बना रहेगा यह नहीं कहा जा सकता | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" समय की प्रबलता को देखते हुए सद्गुरुओं से प्राप्त ज्ञानानुसार यही कहूँगा कि मनुष्य को यदि सुनहरा समय मिला है तो उन्हें बुरे समय में भी जीवन यापन करना पड़ता है | कुसमय में कभी भी निराश न होकर अपने कर्मपथ पर दृढता से डटे रहते हुए एक अच्छे समय की प्रतीक्षा कर लेना ही बुद्धिमानी है | जब मनुष्य का बुरा समय आता है तो उसके सबसे प्रिय भी उससे मुंह मोड़ लेते हैं , कभी पल पल साथ रहने वाले भी बगल से चुपचाप निकल जाते हैं | ऐसे समय के लिए "रहीम" जी ने लिख दिया है :-- रहिमन चुप हो बैठिये , देखि दिनन के फेर ! नीके दिन जब आयेंगे , बनत न लगिहैं देर !! अर्थात जब बुरे समय हों तो मनुष्य को प्रतीक्षा करनी चाहिए , क्योंकि जब अच्छा समय आयेगा तो पिरत्येक बिगड़ी बातें , बिगड़े सम्बन्ध स्वयं बन जायेंगे | अत: समय की प्रबलता को देखते हुए निराश नहीं होना चाहिए , क्योंकि समय के आगे नतमस्तक होने से कोई भी बच नहीं पाया है |* *मनुष्य स्वयं को बलवान कह तो सकता है परंतु यह भी सत्य है कि समय से बलवान कभी नहीं हो पाया है |