*इस धरा धाम पर आकर जीव अनेक योनियाँ प्राप्त करके अपना समय व्यतीत करता है | यहाँ प्रत्येक जीव को गिनती की साँसों के साथ एक निश्चित समय मिला हुआ है उसी समयावधि में वह जो चाहे वह कर ले | धरती पर जीवों का सिरमौर मनुष्य है | मानव जीवन पाकर हम जो चाहे वह कर रहे हैं परंतु यह ध्यान नहीं दे पा रहे हैं कि हमको भी एक निश्चित समय ही इस धरती पर व्यतीत करना है उसके बाद एक अनन्त यात्रा पर निकलना है | जब हम यह जानते हैं कि एक क्षण का भी अतिरिक्त समय हमको नहीं मिलना है तो यह आवश्यक हो जाता है कि हम समय को सुनियोजित ढंग से प्रयोग में लायें | मनुष्य को समय ईश्वरप्रदत्त एक ऐसी सम्पदा है जिसका सदुपयोग करने पर मनचाही सम्पदा का अर्जन किया जा सकता है | इतिहास साक्षी है कि जितने भी महापुरुष हुए हैं उनके जीवन में अनेक भिन्नताओं के बाद भी एक समानता तथा विशेषता देखने को मिलती है कि उन्होंने समय के एक एक पल का सार्थक नियोजन किया , अपनी पात्रता का अभिवर्द्धन किया और अपने लक्ष्य की ओर सतत् बढ़ते रहे | जीवन में यह निश्चित करना आवश्यक होता है कि हमें किस समय क्या करना चाहिए | किसी भी मनुष्य को अपने का सदुपयोग करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से उसका नियोजन करना होता है जिससे कि उसका एक भी क्षण व्यर्थ न जाय | मानव जीवन की सार्थकता एवं लक्ष्य है कि सद्कार्य करते हुए अपने जीवन को चरमोत्कर्ष तक ले जाना | जीवन की सफलता इसी में है कि समय समय पर हरिचर्चा एवं सतसंग करके अपने जीवन रहस्यों को समझा जाय और उसी के अनुरूप जीवन को ढाला जाय | बिना ज्ञान के विवेक का विस्तार नहीं होता और ज्ञान हमें सतसंग के माध्यम से ही प्राप्त हो सकता है | प्रत्येक मनुष्य को जीवन के अनेक कार्य सम्पन्न करते हुए नित्य ही कुछ पल के लिए सतसंग अवश्य करना चाहिए जिससे कि जीवन के अर्थ को समझा जा सके | समय का उचित सदुपयोग तभी हो सकता है जब हम एक निश्चित समय पर सतसंग करते हुए कुछ नवीन जीवन तथ्यों का ज्ञान प्राप्त करके उस पर क्रियान्वयन करते रहें |*
*आज मनुष्य अंधाधुंध दौड़ता चला जा रहा है | समय के महत्त्व को समझते हुए भी वह इसका सदुपयोग नहीं कर पा रहा है | आज सतसंग को मात्र भगवद्चर्चा से जोड़कर देखा जाने लगा है | जबकि सतसंग जीवन के किसी भी विषय पर किया जा सकता है | एक विद्यार्थी को जब कुछ समझ में नहीं आता तो वह ज्ञान प्राप्त करने के उद्धेश्य से अपने अध्यापक से जो विचार विमर्श या वार्तालाप करता है वह सतसंग ही है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज के मनुष्यों को देख रहा हूँ कि यदि वे कहीं सतसंग में आ भी गये हैं तो सतसंग की गूढ़ता को न समझते हुए उसे मनोरंजन का साधन बना लेते हैं | ऐसे लोग शायद यह नहीं जानते कि यह जो समय वे व्यर्थ में गंवा रहे हैं वह उनको दुबारा नहीं मिलना है | मनुष्य को यह समझना होगा कि ईश्वरप्रदत्त एक एक क्षण मूल्यवान है इसको व्यर्थ में गंवाकर वह अपना जीवन बरबाद कर रहा है | परंतु आज स्वयं को सबसे अधिक बुद्धिमान समझने वाला मनुष्य अपना समय व्यर्थ में इधर उधर बैठकर गंवा रहा है | समय के मूल्य को न समझने वाले समय व्यतीत हो जाने पर सिर्फ सिर पर हाथ रखकर पछताने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं कर पाते हैं | बाद में हमको पछताना न पड़े इसलिए समय पर समय का सदुपयोग करना ही बुद्धिमत्ता है | आज के अधिक पढ़े लिखे लोग इन बातों को सुनकर हंसी उड़ाते हैं और सतसंग को व्यर्थ का साधन मानते हैं परंतु यही लोग जब किसी विषय पर कुछ विषम परिस्थितियों में फंसते हैं तब वे किसी वृद्ध का मार्गदर्शन प्राप्त करने को उतावले दिखाई पड़ने लगते हैं | यदि ये लोग समय समय पर उचित मार्गदर्शन लेते रहें तो शायद उनको ऐसी विषम परिस्थिति में फंसें ही न | ऐसे लोगों को अपने समय के महत्त्व को समझने की आवश्यकता है | मनोरंजन के समय पर मनोरंजन और सतसंग के समय पर सतसंग , पढ़ाई के समय पर पढ़ाई और खेलकूद के समय पर खेलकूद अर्थात प्रत्येक कार्य का समय निश्चित करके ही जीवन को सार्थक किया जा सकता है |*
*जिसने अपने जीवन में समय के मूल्य को नहीं जाना वह सबकुछ जानकर भी अज्ञानी ही रह जाता है | कितना भी पढलिखकर विद्वान बन जायं परंतु यदि समय को नहीं पहचान पाया तो उसकी विद्वता व्यर्थ है |*