*इस धराधाम पर सर्वश्रेष्ठ योनि मनुष्य की कही गई है , देवताओं की कृपा एवं पूर्वजन्म में किए गए सत्संग के फल स्वरुप जीव को माता-पिता के माध्यम से इस धरती पर मनुष्य योनि प्राप्त होती है | इस धरती पर जन्म लेने के बाद मनुष्य तीन प्रकार से ऋणी हो जाता है जिन्हें हमारे शास्त्रों में ऋषिऋण , देवऋण एवं पितृऋण कहा गया है | प्रत्येक मनुष्य को इन तीन प्रकार के ऋणों से उऋण होने का प्रयास करना चाहिए | जिस प्रकार मनुष्य किसी से उधार के रूप में धन ले लेता है तो उसे चुकाने की चिंता लगी रहती है उसी प्रकार इन तीन प्रकार के ऋणों को भी प्रत्येक मनुष्य को चुकाने की चिंता करनी चाहिए | जिन मनुष्यों के द्वारा इन ऋणों को नहीं चुकाया जाता है उनके जीवन में अनेकों प्रकार की व्याधियों असमय उत्पन्न हो जाती है | वैसे तो पितृऋण के विषय में लिखा है कि संतान उत्पन्न कर देने के बाद मनुष्य पितृऋण से उऋण हो जाता है परंतु इतना ही पर्याप्त नहीं है | जो मनुष्य पितृऋण नहीं उतारने का प्रयास करता वह जीवन भर पितृदोष से पीड़ित रहता है | पूर्वकाल में मनुष्यों का संस्कार इतना दिव्य था कि वे अपने माता-पिता एवं अपने सगे संबंधियों का आदर सम्मान एवं सेवा करके पितृदोष से बचे रहते थे , पूर्व काल में बहुत कम ही लोग ऐसे मिलते हैं जो पितृदोष से पीड़ित रहे हो | पितृऋण कई प्रकार का होता है जैसे हमारे कर्मों का , आत्मा का , पिता का , भाई का , बहन का , मां का , पत्नी का , बेटी और बेटे का | आत्मा के ऋण को स्वयं का ऋण भी कहते हैं यह सभी पितृदोष के रूप में मनुष्य को पीड़ित करते रहते हैं , इसलिए प्रत्येक मनुष्य को अपनी माता पिता के प्रति एवं परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी से करते रहना चाहिए और यह तभी संभव है जब मनुष्य के भीतर ऐसा करने के संस्कार विद्यमान होंगे , अन्यथा मनुष्य अनेक प्रकार की आधि - व्याधियों से पीड़ित होकर कष्टमय जीवन व्यतीत करने पर विवश रहेगा |*
*आज के आधुनिक युग में जिस प्रकार संस्कारों का लोप हो रहा है उसी अनुपात में लोग पितृदोष से पीड़ित भी मिल रहे हैं , इसका मुख्य कारण यही है कि आज लोगों ने अपने सम्माननीयों एवं आदरणीयों का आदर करना लगभग बंद कर दिया है | जिस माता-पिता के माध्यम से इस संसार में मनुष्य का जन्म हुआ है उन्हीं को आज तिरस्कृत होकर जीवन जीने पर विवश होना पड़ रहा है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का स्पष्ट कथन है कि पितृदोष से यदि बचना है तो पितृऋण से उऋण होने का पूरा प्रयास करना चाहिए | आज का मनुष्य धन वैभव से परिपूर्ण तो दिखाई पड़ता है परंतु सुखी भी हो यह आवश्यक नहीं | आज यदि चारों ओर दुख ही दुख दिखाई पड़ रहा है तो उसका कारण यही है कि मनुष्य अपने संस्कारों से दूर हो रहा है | आज प्राय: कुंडलियों में देवदोष व पितृदोष देखने को मिलता है इसका कारण यही है कि मनुष्य सनातन से चले आ रहे अपनी तीनो ऋणों को चुकता करना भूलता चला जा रहा है | अपने माता - पिता , सगे - संबंधी , देवताओं एवं ऋषियों की अवहेलना करके सुख की कामना करना महज मूर्खता के अतिरिक्त और कुछ नहीं है | जीवित माता-पिता को असहनीय कष्ट देकर उनके मरने पर उनके नाम से विशाल भंडारा करवाकर कोई भी पितृदोष से बच नहीं सकता है | आज समाज में वृद्ध माता - पिताओं का जो हाल है वह प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में पितृदोष पैदा करने के लिए पर्याप्त हैं | यदि पितृदोष नामक घातक बीमारी से बचना है तो समय-समय पर पितृऋण को चुकता करने का प्रयास तो करना ही चाहिए साथ ही अपने माता-पिता के प्रति पूर्ण समर्पण भाव से उनकी सेवा करके भी इस दोष से बचा जा सकता है |*
*मनुष्य अनेकों प्रकार के कृत्य समाज को दिखाने के लिए तो करता रहता है परन्तु अपने परिवार एवं माता - पिता के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर पा रहा है , यही कारण है कि आज अधिकांश लोगों की कुण्डली में पितृदोष मिल रहा है |*