
*इस सृष्टि के आदिकाल में जहाँ सनातन धर्म के अतिरिक्त कोई अन्य धर्म नहीं था वहीं सनातन धर्म के विद्वान ऋषि वैज्ञानिकों ने ऐसे - ऐसे रहस्यों को संसार के समक्ष रखा जिसको आज के वैज्ञानिक अभी तक नहीं समझ पा रहे हैं | मानव जीवन में समय के महत्त्वपूर्ण स्थान एवं योगदान को समझते हुए हमारे पूर्वज ऋषि वैज्ञानिकों ने समय मापन की प्रणाली विकसित की , ऐसी दिव्य एवं अद्भुत प्रणाली संसार के किसी भी अन्य धर्म या पंथ में देखने को नहीं मिलती है | सूर्य ही जगत का आधार है , सूर्य को ही मूल में रखकर काल गणना की गयी , "सूर्यसिद्धांत" नामक ग्रन्थ में समय मापन की विस्तृत विधि वर्णित की गयी है उसके अनुसार :-- एक परमाणु मानवीय चक्षु के पलक झपकने का समय = लगभग ४ सैकिण्ड , एक विघटि = ६ परमाणु = २४ सैकिण्ड , एक घटि या घड़ी = ६० विघटि = २४ मिनट , एक मुहूर्त = २ घड़ियां = ४८ मिनट , एक नक्षत्र अहोरात्रम या नाक्षत्रीय दिवस = ३० मुहूर्त (दिवस का आरम्भ सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक, ना कि अर्धरात्रि से) | इसी सिद्धांत से मनुष्य ने समय को मापना सीखा | सनातन धर्म में सूर्य को ही आधार मानकर सारे कार्य एवं गणना सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक की मानी गयी है | आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार अर्द्धरात्रि को समय व तारीख बदल जाती है परंतु प्राचीन समय में तिथि व दिन परिवर्तित होने का आधार सूर्य एवं सूर्योदय ही था , इसीलिए आज भी सनातन धर्मावलम्बी "उदयातिथि" को ही महत्त्व देते चले आ रहे हैं | दिन , महीने , वर्ष , युग , मन्वन्तर एवं कल्पों की गणना हमारे ऋषि वैज्ञानिकों के द्वारा बहुत पहले कर दी गयी थी , दिव्यद्रष्ट्रा ऋषियों ने मनुष्य ही नहीं बल्कि देवताओं के दिन एवं रात्रि की गणना भी मानव समाज के उपलब्ध कराई ! इसीलिए सनातन धर्म आदि एवं महान कहा जाता है |*
*आज हम आधुनिक युग में जीवन यापन कर रहे हैं | आज का मनुष्य आधुनिक वैज्ञानिकों के द्वारा प्रतिपादित नियमों को मान लेता है परंतु शायद उसका अर्थ नहीं जानता है | आज प्राय: सभी लोग अर्द्घरात्रि को ही तारीख एवं दिन बदल जाने का पक्ष लेते हैं | ऐसे सभी लोगों को मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूँगा कि समय का मापन प्रारम्भ एक सूर्योदयसे और अहोरात्रका मापन का समापन अपर सूर्योदयसे होता है |अर्द्घरात्रि से नहीं होता है| जैसा कि कहा है- " सूर्योदयप्रमाणेन अहःप्रामाणिको भवेत् ! अर्धरात्रप्रमाणेन प्रपश्यन्तीतरे जनाः !!" परंतु आज हम अपने सनातन ग्रंथों का अध्ययन करना ही नहीं चाहते | आज समय मापन में ए०एम० एवं पी०एम० को बहुत महत्त्व दिया जा रहा है परंतु इन दो शब्दों (ए०एम , पी०एम०) का अर्थ आधुनिक वैज्ञानिक भी नहीं समझ पाये हैं ` हमे बचपन से ये रटवाया गया, विश्वास दिलवाया गया कि इन दो शब्दो, (ए०एम० और पी०एम० ) का मतलब होता है :- ए०एम० = एंटी मेरिडियन एवं पी०एम० = पोस्ट मेरिडियन | एंटी अर्थात पहले, लेकिन किसके ? और पॉस्ट अर्थात बाद में, लेकिन फिर वही प्रश्न किसके पहले और किसके बाद ? ये कभी स्पष्ट नही किया गया क्योंकि ये चुराय गये शब्द का लघुतम रूप था | जहाँ आज के वैज्ञानिक इस रहस्य को समझ ही नहीं पाये वहीं हमारे प्राचीन संस्कृत वैज्ञानिकों ने इस संशय को अपनी आंधियो में उड़ा दिया और अब, सबकुछ साफ साफ दृष्टिगत है | हमारे ऋषि वैज्ञानिकों के अनुसार :- ए०एम० = आरोहनम मार्तण्डस्य , पी०एम० = पतनम मार्तण्डस्य | सूर्य, जो कि हर आकाशीय गणना का मूल है, उसीको गौण कर दिया, कैसे गौण किया ये सोचनीय है | भ्रम इसलिये पैदा होता है कि अंग्रेजी के ये शब्द संस्कृत के उस 'मतलब' को नही इंगित करते जो कि वास्तविक में है | आरोहणम् मार्तडस्य अर्थात सूर्य का आरोहण (चढ़ाव) और पतनम् मार्तडस्य् अर्थात सूर्य का ढलाव | दिन के बारह बजे के पहले सूर्य चढ़ता रहता है आरोहनम मार्तण्डस्य (ए०एम०), बारह के बाद सूर्य का अवसान, पतन होता है 'पतनम मार्तण्डस्य' (पी०एम०) | यह है सनातन धर्म की दिव्यता एवं वैज्ञानिकता | आवश्यकता है इसके रहस्यों को समझने की |*
*सम्पूर्ण सृष्टि में प्रसारित ज्ञान का स्रोत सनातन साहित्य ही है परंतु हम अपने इन दुर्लभ ग्रंथों का अध्ययन करके अन्यत्र झांकने का प्रयास करते हैं | यही हमारा दुर्भाग्य है |*