*मानव जीवन में मनुष्य के शब्दों का परिवार , समाज एवं स्वयं पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है | मनुष्य के क्रियाकलाप में सबसे महत्वपूर्ण है मनुष्य की वाणी और वाणी से निकले हुए शब्द | इन शब्दों के बिना मनुष्य की जिंदगी अधूरी है क्योंकि यह शब्द ही है जो मनुष्य और समाज को एक दूसरे के साथ जोड़ते हैं | शब्द शक्ति के बिना मनुष्य का जीवन कोरे कागज की भाँति ही होता है | अक्षरों की बिना मनुष्य की जिंदगी उस मरुस्थल की भांति है जिसमें कोई नदी नहीं या यूं कहें इस शब्दों के बिना मानव जीवन पशु जीवन के बराबर ही है | पूर्वकाल में आध्यात्मिक महापुरुषों ने शब्दों की शक्ति को समझा , शब्द इतने प्रभावशाली होते हैं कि कभी इनकी मृत्यु नहीं होती है | इनके अर्थों का संदेश दिमाग में कीटाणुओं की भाँति प्रवेश करके प्रभाव डालता है | प्रायः देखा जाता है कि जब कोई अभिवादन की मुद्रा में झुक कर प्रणाम करता है तो उसका संदेश इतना विनम्र तथा शांत होता है कि उस समय शरीर पूर्ण रोमांचित होता है , यह शब्दों की ही शक्ति है ! और वहीं दूसरी ओर जब कोई विरोधी या शत्रु आपके प्रति बुरे शब्दों का प्रयोग करता है तो निश्चय ही उन गंदे शब्दों के संदेश के कीटाणुओं का प्रभाव नकारात्मक होगा | यह गन्दे शब्द मस्तिष्क में प्रवेश करते हैं तो मन दुखी हो जाता है और कभी-कभी तो यह होता है यह हम शब्दों के अर्थ को समझने में भूल कर बैठते हैं जिसके परिणाम स्वरूप हमारे द्वारा ऐसे क्रियाकलाप हो जाते हैं जो कि नहीं होनी चाहिए | कभी इस पर विचार किया जाय कि आध्यात्मिक पुरुष , साधु , संतुलित मस्तिष्क के स्वामियों पर शब्दों का संदेश इतनी जल्दी प्रभावी नहीं होता क्योंकि वह शब्दों के संदेश को सुनकर उन शब्दों पर विवेकपूर्ण विचार करते हैं | विधिवत विचार करने के बाद उन शब्दों के प्रभाव को विवेक रूपी तराजू में तौल कर तब कोई निर्णय लेते हैं ! परंतु आज ऐसा देखने में नहीं मिल रहा है शब्द भी वही है , मनुष्य जीवन भी वही है बदला है तो सिर्फ मनुष्य के बोलने और उसके समझने का ढंग |*
*आज संसार में यह चारों त्राहि-त्राहि मची हुई है लोग एक दूसरे को मरने मारने पर उतारू है तो इसका कारण कहीं ना कहीं से शब्द ही है | मनुष्य के शब्द यदि अमृत बनकर किसी को प्राण दान दे रहे हैं तो यही शब्द विष बनकर के लोगों के जीवन का हरण भी कर रहे हैं | परंतु मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि जो संतुलित मस्तिष्क के पुरुष होते हैं वे अपने विरोध में कहे गए शब्दों पर भी त्वरित निर्णय नहीं लेते क्योंकि वे विरोधाभास की अग्नि को दवा देने में सक्षम होते हैं | अपने प्रति कहे गए शब्दों की मिसाइलों को वे अपनी संतुलन की मिसाइलों के साथ मस्तिष्क में प्रवेश होने से पूर्व ही नष्ट कर देते हैं | क्योंकि मिसाइलों की भांति शब्द भी मस्तिष्क में प्रवेश करके तोड़फोड़ कर तबाही मचा देते हैं | प्रेम पूर्ण शब्दों से अपनत्व जबकि घृऩायुक्त शब्दों से दुराव पैदा होता है | बहुत से लोग ऐसे भी हैं जिन्हें शब्दों की शक्ति पता ही नहीं है क्योंकि वह दैनिक जीवन में दिन-रात इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्होंने इस बारे में कभी सोचने का प्रयास ही नहीं किया | आज जो परिवारों में झगड़े , युद्ध , वाद-विवाद , ईर्ष्या इत्यादि देखने को मिल रहा है वह सब इन्हीं शब्दों की शक्ति का ही परिणाम है | प्रेम , श्रद्धा , आध्यात्मिकता सब का स्रोत शब्द ही है , इनकी अभिव्यक्ति शब्दों से ही की जा सकती है | जो लोग शब्दों की शक्ति को समझ लेते हैं वह बहुत कम दुखी होते हैं और बुरे लगने वाले शब्दों को मस्तिष्क में प्रविष्ट ही नहीं होने देते | इससे उनका संतुलन बना रहता है तथा विपरीतार्थी शब्दों का प्रभाव ग्रहण ही नहीं करते | ऐसा करके वह अपनी ओर आने वाले अनेक संकटों से स्वयं का बचाव तो करते ही हैं साथ ही अपने आसपास रहने वाले समाज को भी सहेजने में सफल होते हैं | किसी भी शब्द को सुनकर उन्हें विवेक रूपी तराजू पर तोलने के बाद ही कोई निर्णय लेना चाहिए |*
*अंततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं किस शब्दों की शक्ति को समझना ही जीवन है जिसके पास चाबी है वह प्रत्येक तरह के दिमागी तारों को खोल सकने की सामर्थ्य रखता है !*