*इस संसार में आने के बाद चौरासी योनियों में सर्वश्रेष्ठ मानव योनि पा करके मनुष्य जीवन भर सुख की तलाश में भटकता रहता है | प्रत्येक मनुष्य प्रसन्नता एवं सुख के लिए अपना जीवन व्यतीत कर देता है परंतु अंततोगत्वा परिणाम दुख के रूप में ही प्राप्त होता है | दुख इसलिए होता है क्योंकि मनुष्य सांसारिकता एवं भौतिकता में सुख की खोज करता है जबकि सत्य है की इंद्रिय जन्य सुख एवं भौतिक सुख क्षण मात्र के लिए होते हैं | मनुष्य को यह समझना चाहिए की खुशियां कहीं बाहर सांसारिक सुख उपलब्धियों एवं साधनों में नहीं बल्कि अपने ही दृष्टिकोण एवं हृदय में कहीं अंदर स्थित है | जो खुशियां बाहर सुख भोगो तथा उपलब्धियों नाम यश में आभासित हो रही हैं उनका वास्तविक स्रोत स्वयं मनुष्य के भीतर ही है | जब मनुष्य शांत स्थिर होकर भीतर उस स्रोत की ओर उन्मुख होता है , उसकी विधि को जानने - समझने लगता है तो उसे वास्तविक सुख का मर्म समझ में आने लगता है | ऐसे में उसे जीवन को संवारने के लिए बताया गया नीति मार्ग समझ में आता है और तब नैतिकता एवं सत्य जीवन शैली का स्वाभाविक रूप से जीवन में समावेश होने लगता है | ऐसा जब होता है तब मनुष्य को वास्तविक सुख की प्रतीति होती है और मनुष्य को आत्मिक प्रसन्नता प्राप्त होती है | यही वास्तविक सुख है इसी में जीवन का कल्याण है | हमारे ऋषि - नहर्षियों / पूर्वजों ने इसी आंतरिक सुख को प्राप्त करने निर्देश देते हुए अनेकानेक साधन भी बताये हैं परंतु आज हम उन निर्देशों एवं साधनों की अनदेखी करके दुख के सागर में डूब रहे हैं |*
*आज भौतिकता के अंधे युग में प्रत्येक मनुष्य खुशी की तलाश में है | जाने अनजाने व्यक्ति के हर प्रयास एवं चेष्टाओं के पीछे उद्देश्य एक ही होता है कि वह किसी प्रकार प्रसन्न रहें | आज मनुष्य के दिन भर के क्रियाकलाप इसी एक उद्देश्य के आसपास केंद्रित रहते हैं परंतु सायंकाल को जब वह दिन भर का लेखा-जोखा करता है तो उसे प्रसन्नता के स्थान पर दुख ही दिखाई पड़ता है | वास्तव में मनुष्य खुशी के लिए दो स्तर पर प्रयास करता है जिसमें सबसे पहला स्तर होता है देह का ! जिसमें इंद्रिय सुख भोग निहित रहते हैं , एवं दूसरा है संसार के धन , वैभव , नाम में सफलता आदि का जिसे हम मानसिक स्तर भी कह सकते हैं , परंतु मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि यह सभी सुख भोग एक निश्चित समय के बाद मनुष्य को नीरस लगने लगते हैं क्योंकि इंद्रिय सुख के बाद सांसारिक सुख उपलब्धियां भी व्यक्ति को तात्कालिक रूप में गहरे हर्ष एवं सुख की अनुभूति देती हैं | व्यक्ति तात्कालिक खुशी के शिखर पर स्वयं को पाता है ! धन पाकर व्यक्ति को लगता है कि जैसे वह सारा संसार पा गया है , वह जो चाहे वह खुशी खरीद सकता है परंतु ऐसा होता नहीं है क्योंकि एक समय के बाद धन के साथ अर्जित खुशी कई मुसीबतों का कारण बन जाती है और अशांति को बढ़ाने लगती है | इसलिए प्रत्येक मनुष्य को वास्तविक प्रसन्नता एवं सुख के लिए प्रयास करना चाहिए और यह तभी संभव है जब मनुष्य अंतर्मुखी होकर सारे सुख अपने भीतर ढूंढने का प्रयास करेगा क्योंकि संसार के सारे सुख मनुष्य के अंदर ही निहित हैं | बाहर ढूंढने से दुख ही प्राप्त हो सकता है सुख प्राप्त भी होगा तो कुछ क्षण के लिए | इसलिए बाहर सुख को ना ढूंढ करके अपने भीतर ढूंढना ही बुद्धिमत्ता कही जा सकती है |*
*सुख का राजमार्ग भले ही कठिन हो परंतु वह आनंद स्वरूप है | जब मनुष्य आनंदित होता है तो खुशी का वास्तविक सुख प्रकट होता है और मनुष्य यही आंतरिक सुख प्राप्त करके इस राजमार्ग पर आगे बढ़ जाता है |*