*सनातन धर्म में अनेकों ग्रंथ मानव जीवन में मनुष्य का मार्गदर्शन करते हैं | इन्हीं ग्रंथों का मार्गदर्शन प्राप्त करके मनुष्य अपने सामाजिक , आध्यात्मिक एवं पारिवारिक जीवन का विस्तार करता है | वैसे तो सनातन धर्म का प्रत्येक ग्रंथ एक उदाहरण प्रस्तुत करता है परंतु इन सभी ग्रंथों में परमपूज्यपाद , कविकुलशिरोमणि प्रातःस्मरणीय गोस्वामी तुलसीदास जी की कालजयी रचना श्रीरामचरितमानस सर्वोपरि है | जीवन जीने की कला रामचरितमानस में देखने को मिलती है | जीवन के प्रत्येक अंग , प्रत्येक संबंध का निर्वाहन कैसे किया जाय ? यह अगर सीखना है तो हमें श्रीरामचरितमानस में प्राप्त होता है | सभी ग्रंथों में जिस प्रकार श्रीरामचरितमानस मुकुट मणि है उसी प्रकार श्रीरामचरितमानस के सभी पात्रों में सर्वश्रेष्ठ पात्र यदि ढूंढा जाय तो वह पात्रता भरत जी में दिखाई पड़ती है | पूरी मानस में भारत जी का चरित्र सर्वोपरि है | यदि भरत जी का चरित्र सर्वोपरि हुआ है तो उसके एक नहीं अनेकों कारण है उन कारणों में प्रमुख कारण है उनके द्वारा अयोध्या के सर्वैश्वर्य का त्याग करके भगवान श्री राम को मनाने के लिए चित्रकूट तक पैदल यात्रा करना | अपना अपराध ना होने पर भी अपने प्रिय भैया को मनाने के लिए प्रेम में विह्वल होकर नंगे पैरों चित्रकूट तक जाने का उद्योग भरत जी के अतिरिक्त और कोई कर भी नहीं सकता | परिवार में सामंजस्य एवं एक दूसरे के प्रति निष्ठा का दर्शन हमें पग-पग पर श्री रामचरितमानस में देखने को मिलता है | मानस को पढ़कर उस से शिक्षा लेने की आवश्यकता है | समाज एवं परिवार में अपनों से रूठना एवं अपनों को मनाना जीवन का अभिन्न अंग है , यद्यपि भगवान श्री राम के मन में भरत के प्रति कोई भी द्वेष भावना नहीं थी परंतु लक्ष्मण के मन में विष भरा हुआ था | जब भरत जी उनको मनाने गए तो लक्ष्मण के मन का सारा विष आंसू बनकर निकल गया | कहने का तात्पर्य है कि रूठना एवं मनाना अभिन्न अंग है परिवार को जोड़े रहने के लिए समय-समय पर अपनों को मना लेने में मनुष्य छोटा नहीं हो जाता इसलिए इसका पालन अवश्य करना चाहिए |*
*आज समाज में रूठना तो चल रहा है परंतु मनाने की प्रक्रिया कम ही देखने को मिलती है शायद यही कारण है कि आज समाज एवं परिवार दिनों दिन टूटते चले जा रहे हैं | प्रत्येक मनुष्य किसी रूठे हुए को मनाने के लिए तैयार नहीं है क्योंकि उसे लगता है कि जब हमारा कोई अपराध नहीं तो हम किसी को क्यों मनाने जायं और रूठने वाला विचार करता है कि यदि भावावेश में आकर हम रूठ गए हैं तो हमें यदि कोई झूठे भी कह दे तो हम परिवार से जुड़ सकते हैं , परंतु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज के समाज को देख रहा हूं कि कोई भी झुकने को तैयार नहीं है | राम जैसा भाई तो सभी चाहते हैं परंतु भरत जैसा त्याग कोई भी नहीं दिखाना चाहता है | यदि राम जैसा भाई पाना है तो भरत जैसा त्यागी एवं समर्पित व्यक्तित्व स्वयं में उतारना ही होगा | आज समाज की जो दुर्दशा है उसका यही कारण है कि कोई भी अपने अहम के पायदान से नीचे नहीं उतारना चाहता और रूठे हुए को ना मनाने के कारण ही समाज अनवरत विघटन की ओर अग्रसर है | यदि कुछ क्षण के लिए बड़े होने पर भी छोटा बन जाने से कोई कार्य संपन्न हो जाता है या किसी को मनाया जा सकता है तो मनुष्य को छोटा बन जाने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए क्योंकि उस समय वह छोटा नहीं बल्कि बड़ा हो जाता है , परंतु मनुष्य आज यही समझ नहीं पा रहा है जिसके कारण अनेकों प्रकार के वाद-विवाद एवं पारिवारिक विघटन प्रतिदिन देखने को मिल रहा है | इससे बचने का प्रयास तभी हो सकता है जब हम अपने अंदर छोटे होने का भाव उत्पन्न करेंगे |*
*तोड़ने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण जोड़ने वाला होता है ! मानस में जहाँ कैकेयी ने तोड़ने का काम किया वहीं भरत जी ने जोड़ने का | यही कारण है कि मानस में भरत जी के जैसा कोई दूसरा चरित्र ना कहा जाता है और ना ही सुना जाता है |*