
आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में हर व्यक्ति हमेशा ही किसी न किसी तरह की परेशानी से जूझता है। कई बार काम की चिंता इस हद तक बढ़ जाती है, कि व्यक्ति डिप्रेशन में चला जाता है। तनाव को पूरी तरह जीवन से दूर करना तो संभव नहीं है लेकिन योगासन के जरिए इसे काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। जो लोग नियमित रूप से योगाभ्यास करते हैं, तनाव उन पर नहीं बल्कि वह व्यक्ति तनाव पर भारी पड़ते हैं। तो चलिए जानते हैं तनाव को दूर करने के लिए करें कौन से योगासन-
सूर्य नमस्कार
सूर्य नमस्कार के दौरान 12 पोज किए जाते हैं जो शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ते हैं। इससे कई तरह की शारीरिक बीमारियां दूर होती हैं, साथ ही इससे तनाव व चिंता पर भी नियंत्रण पाया जा सकता है। सूर्य नमस्कार के 12 पोज कुछ इस प्रकार हैं-
प्रणामासन- इसके लिए सर्वप्रथम छाती को चैड़ा और मेरूदंड को खींचें। एड़ियां मिली हुई हो और दोनों हाथ छाती के मध्य में नमस्कार की स्थिति में जुड़े हो और गर्दन तनी हुई व नजर सामने हो। अब आराम से श्वास लें और इस मुद्रा में केवल कुछ क्षण ही रूकें।
हस्तउत्तानासन- अब सांस को धीरे से अंदर खींचते हुए हाथों को उपर की ओर ले जाएं और हथेलियों को मिलाएं रखें। अब जितना ज्यादा हो सके, कमर को पीछे की ओर मोड़ते हुए अर्धचन्द्राकार बनाएं। जितनी देर संभव हो, श्वास को रोकने का प्रयास करें। यह आसन फेफड़ों के लिए काफी अच्छा माना जाता है।
पादहस्तासन- अब श्वास छोड़ते हुए व कमर को आगे झुकाते हुए दोनों हाथों से अपने पंजों को पकडें। इस दौरान पैरों को जितना ज्यादा हो सके, सीधा रखें। अब दोनों पैरों को मजबूती से पकड़कर सीधा रखें और नीचे झुकने की कोशिश करें।
अश्वसंचालन आसन- अब श्वास भरते हुए दोनों हाथों को मैट पर रखें और नितंबों को नीचे करंे। सीधे पैर को खींचते हुए जितना ज्यादा हो सके, पीछे की ओर रखें। अब पैर को सीधा मैट के उपर रखें और वजन पंजों पर रखें। आप चाहें तो घुटना मोड़कर भी मैट पर रख सकते हैं। अब उपर देखते हुए गर्दन पर खिंचाव को महसूस करें। यह बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने में मददगार है।
संतोलासान- धीरे-धीरे श्वास छोड़ें और उल्टे पैर को पीछे लेकर जाएं। इस दौरान हाथों को सीधा कंधों की चैड़ाई के बराबर मैट पर रखें। अब कूल्हे की तरफ से स्वयं को उपर उठाएं। इस पोज में आपका शरीर उल्टे वी के समान दिखाई देगा। इस समय आपका पेट अंदर व कसा हुआ हो और नाभि अंदर मेरूदंड की तरफ खिंची हुई हो। यह आसन पेट को मजबूत बनाता है।
अष्टांग नमस्कार- श्वास को रोकते समय दोनों हाथों को कोहनियों से मोड़ें। अब दोनों घुटनों व छाती को मैट पर लगाएं। दोनों कोहनियों को छाती के नजदीक लाएं। अब छाती, दोनों हथेलियां, पंजे, और घुटने जमीन पर छूने चाहिए और शेष अंग हवा में हों।
भुंजगासन- सबसे पहले मैट पर उल्टे होकर लेते जाएं। अब श्वास लेते हुए कोहनियों को कसें। अब छाती को उपर की ओर उठाएं व कंधों को पीछे की तरफ कसें। लेकिन घुटनों व पंजों को मैट पर देखें। आपकी दृष्टि उपर की ओर होनी चाहिए।
पर्वतासन- धीरे से श्वास छोड़ते हुए पंजों को अंदर करें, कमर को उपर की ओर उठाएं और हथेलियों, पंजों को मैट पर रखें। निश्चित करें कि एड़ियां मैट पर रहें। ठुड्डी को नीचे की ओर करें।
अश्वसंचालन आसन- श्वास भरते हुए दाएं पैर को आगे दोनों हाथों के बीच में लाएं। बाएं पैर को पीछे पंजे पर ही रहने दें व घुटनों को नीचे मैट पर रख लें। दाएं पैर को 90 डिग्री के कोण पर मोड़ें और जांघ को मैट के समानांतर रखें। अपने हाथों को सीधे मैट पर रखें। सिर व कमर को उपर की ओर उठाएं ताकि आप उपर की ओर देख सकें।
पादहस्तासन-अब श्वास छोड़ते हुए व कमर को आगे झुकाते हुए दोनों हाथों से अपने पंजों को पकडें। इस दौरान पैरों को जितना ज्यादा हो सके, सीधा रखें। अब दोनों पैरों को मजबूती से पकड़कर सीधा रखें और नीचे झुकने की कोशिश करें।
हस्तउत्तानासन- श्वास भरते हुए दोनों हाथों को एक साथ उपर की ओर लेकर जाएं। जितना ज्यादा हो सके, कमर के निचले हिस्से को आगे की ओर तथा उपरी हिस्से को पीछे की ओर लेकर जाएं। जैसे ही आप हाथों को अपने सिर के उपर से पीछे की ओर लेकर जाएंगे, उसी समय आप संवेदना के साथ उर्जा का संचार महसूस करेंगे।
प्रणामासन- अंत में श्वास छोड़ते व कमर को सीधा करते हुए हाथों को अपनी छाती के पास नमस्कार मुद्रा में लेकर आएं। कुछ क्षण इसी देर में रूकें।
शवासन
शवासन में व्यक्ति का शरीर एकदम शिथिल हो जाता है, इस दौरान व्यक्ति खुद को काफी रिलैक्स महसूस करता है, जिससे उसके भीतर का तनाव भी कम होता है। साथ ही तन, मन और आत्मा में एक नई उर्जा का संचार होता है। अगर आपके पास समय की कमी है तो आप सूर्य नमस्कार के बाद शवासन के जरिए खुद को रिलैक्स कर सकते हैं। इस आसन का अभ्यास करने के लिए पहले पीठ के बल लेट जाएं। इस अवस्था में आपके पैर जमीन पर बिल्कुल सीधे होने चाहिए। साथ ही अपने दोनों हाथों को शरीर से कम से कम 5 इंच की दूरी पर रखें। हाथो को इस तरह रखे की दोनों हाथ की हथेलियां आसमान की दिशा में हो। अब धीरे-धीरे शरीर के हर अंग को ढीला छोड़ दें और आँखों को भी बंद करना है। हल्की-हल्की साँसे लें। इस वक्त आपका पूरा ध्यान श्वासों पर होना चाहिए। मन में दूसरे किसी भी विचार को आने ना दे। जिन लोगों को शवासन का अभ्यास करते वक्त यदि आपको कमर या रीढ़ में किसी प्रकार की परेशानी मेहसूस होती है तो घुटने के नीचे कम्बल या तकिया रख सकते हैं।