वायु प्रदूषण एक बेहद गंभीर पर्यावरणीय मुद्दा है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से करीब आधे भारत में ही है। लेकिन जब भी वायु प्रदूषण की बात होती है तो लोग हमेशा ही कारखानों व वाहनों से निकलने वाले विषैले धुएं पर ही बात करते हैं। घर के भीतर की आबोहवा पर किसी का ध्यान नहीं जाता, परंतु घर के अंदर की हवा भी इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि अब वह कई बीमारियों जैसे सिक बिल्डिंग सिन्ड्रोम आदि का कारण बनती जा रही है। हाल ही में आइआइटी के शोधार्थियों द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है। इस अध्ययन के अनुसार, घर के अंदर भी कार्बनडाइआक्साइड की मात्रा बहुत अधिक है, जो थकान, सिरदर्द, घबराहट, उलझन व त्वचा संबंधी समस्याओं का कारण बन रहा है।
वर्तमान समय में, जब लोग अपना अधिक समय घर के अंदर ही बिताते हैं तो ऐसे में इनडोर एयर क्वालिटी को लेकर जागरूकता का अभाव सीधे ही व्यक्ति की सेहत को विपरीत तरीके से प्रभावित करता है। यू.एस.ए. एन्वायरनमेंट प्रोटक्शन एजेन्सी के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार लोग लगभग 90 प्रतिशत समय घर या आॅफिस के भीतर ही व्यतीत करते हैं। भारत में जहां पिछले कई वर्षों से वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं, वहां घर के भीतर की हवा की स्वच्छता के लिए कोई मानक निर्धारित नहीं किया गया है और इनडोर एयर क्वालिटी के प्रति लोगों का जागरूक न होना उनके लिए कभी-कभी जानलेवा भी साबित होता है। भारत में तो लोग उच्च रक्तचाप के बाद घर की प्रदूषित हवा के कारण ही मरते हैं। चिकित्सा जगत की जानी मानी पत्रिका लैंसेट में प्रकाशित ‘द लैंसेट काउंटडाउनः ट्रैकिंग प्रोग्रेस ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेंट चेंज’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में घरों के भीतर वायु प्रदूषण के कारण वर्ष 2015 में 1.24 लाख लोगों की असामयिक मौत हुई। इन जानों को आसानी से बचाया जा सकता था। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट भी बताती है कि आन्तरिक वायु में उपस्थित प्रदूषक बाहरी हवा की तुलना में 1000 गुना ज्यादा आसानी से मनुष्य के फेफड़ों में पहुँच जाते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, इनडोर एयर पाल्यूशन के कारण प्रतिवर्ष विश्व स्तर पर 3.5 मिलियन लोग काल के गाल में समा जाते हैं। इस प्रकार अगर देखा जाए तो घर के भीतर की प्रदूषित हवा बाहरी प्रदूषण के मुकाबले कहीं अधिक घातक है।
ऐसी कई कारण हैं, जो घर के भीतर की हवा में कार्बनडाइआॅक्साइड के स्तर को बढ़ाते हैं जैसे- घर की रसोई से निकलने वाला धुआं, मच्छर भगाने वाले क्वाॅयल का इस्तेमाल, सिगरेट का धुआं, रूम फ्रेशनर का प्रयोग, विषैले रसायनों का इस्तेमाल, धूल के कण आदि। इतना ही नहीं, घरों में वेंटिलेशन की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं रहती, जिससे विषैली हवा को बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिलता और घर के भीतर ही बीमारियां पनपने लगती हैं। दूषित हवा के चलते कम उम्र से ही बच्चों को अस्थमा, निमोनिया की शिकायत होने लगती है। खराब हवा फेफड़ों के लिए इतनी नुकसानदायक होती है जितना एक सिगरेट भी नहीं होती। ब्रोंकाइटिस, ब्लड कैंसर, लीवर कैंसर, फेफड़ों का कैंसर व आॅटिज्म जैसी बीमारियों के मुख्य कारणों में से एक प्रदूषित हवा है।
अब समय आ गया है कि लोग अपने घरों के भीतर की हवा की क्वालिटी को सुधारने के लिए सतत प्रयास करें। इसके लिए घर के अंदर एग्जाॅस्ट फैन लगवाएं। साथ ही खिड़कियों व दरवाजों को भी खुले रखने का प्रयास करें ताकि हवा की आवाजाही हो सके। इसके अतिरिक्त घर में प्रदूषक उत्सर्जक स्त्रोत को भी नियंत्रित करने का प्रयास करंे। घर के अंदर धूम्रपान या कीटनाशकों का प्रयोग न करें और घर के भीतर इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरण जैसे एयरकंडीशनर, ओवन व रेफ्रिजरेटर की नियमित अंतराल पर सर्विस करवाएं ताकि उनसे हानिकारक गैसे उत्सर्जित न हों। साथ ही नियमित रूप से डस्टिंग करें ताकि धूल के कण घर में जमा न हों। इसके अतिरिक्त घर में पेड़-पौधे लगाना भी एक अच्छा विचार है, पौधे वायु में मौजूद प्रदूषक तत्व को अवशोषित करके हवा की गुणवत्ता को बरकरार रखते हैं।