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*‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️*
🚩 *सनातन परिवार* 🚩
*की प्रस्तुति*
🌼 *वैराग्य शतकम्* 🌼
🌹 *भाग - उन्तालीसवाँ* 🌹
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*गताँक से आगे :---*
*पुण्यैर्मूलफलैः प्रिये प्रणयिनि प्रीतिं कुरुष्वाधुना*
*भूशय्या नववल्कलैरकर्णैरुत्तिष्ठ यामो वनं !*
*क्षुद्राणांविवेकमूढमनसां यत्रेश्वराणाम् सदा*
*चित्तव्याध्यविवेकविल्हलगिरां नामापि न श्रूयते !! ५९ !!*
*अर्थात्:-* ऐ प्यारी बुद्धि ! अब तू पवित्र फल-मूलों से अपनी गुज़र कर; बानी बनाई भूमि-शय्या और वृक्षों की छाल के वस्त्रों से अपना निर्वाह कर | उठ, हम तो वन को जाते हैं | वहां उन मूर्ख और धनगर्वित अमीरों का नाम भी नहीं सुनाई देता, जिन की ज़बान, धन की बीमारी के कारण उनके वश में नहीं है |
*अपना भाव :-*
जिन धनवानों की जुबान में लगाम नहीं है, जो अपनी धन की बीमारी के कारण मुंह से चाहे जो निकाल बैठते हैं, ऐसे मदान्ध और नीच धनी जंगलों में नहीं रहते, इसलिए बुद्धिमानो को वहाँ चला जाना चाहिए | वहां काहे का अभाव है ? खाने को फलमूल हैं, पीने को शीतल जल है, रहने को वृक्षों की शीतल छाया है और सोने को पृथ्वी है | वहाँ दुःख नहीं है, अशान्ति नहीं है; किन्तु और सभी जीवनधारणोपयोगी पदार्थ हैं |
*जो आशा को त्याग देंगे, वह तो धनियों के दास होंगे ही क्यों ? पर धनियों को भी इतराना न चाहिए | यह धन सदा उनके पास न रहेगा | इसे वे अपने साथ न ले जायेंगे | सम्भव है, यह उनके सामने ही नष्ट हो जाय | फिर ऐसे चञ्चल धन पर अभिमान किसलिए ?*
*इसीलिए कविराय ने गिरिधर कहा हैं -*
*दौलत पाय न कीजिये, सपने में अभिमान !*
*चञ्चल जल दिन चारिकौ, ठाउँ न रहत निदान !!*
*ठाउँ न रहत निदान, जियत जग में यश लीजै !*
*मीठे वचन सुनाय, विनय सब ही की कीजै !!*
*कह गिरधर कविराय, अरे यह सब घट तौलत !*
*पाहुन निशिदिन चारि, रहत सब हीके दौलत !!*
*अर्थात:-* धनवान होकर सपने में भी घमंड न करना चाहिए | जिस तरह चञ्चल जल चार दिन ठहरता है, फिर अपने स्थान से चला जाता है; उसी तरह धन भी चार दिन का मेहमान होता है, सदा किसी के पास नहीं रहता | *ऐसे चञ्चल, ऐसे अस्थिर और क्षणिक धन के नशे से मतवाले होकर वाणी को अनियंत्रित न रखना चाहिए और सभी के साथ शिष्टाचार दिखाना और नम्रता का व्यवहार करना चाहिए |* जब तक देह में प्राण रहे, जब तक ज़िन्दगी रहे, यश कमाना चाहिए; बदनामी से बचना चाहिए | अपनी वाणी से किसी को कड़वी और बुरी लगनेवाली बात न कहनी चाहिए | ज़बान का ज़ख्म तीर के ज़ख्म से भी भारी होता है । *तीर का ज़ख्म मिट जाता है, पर बोली का ज़ख्म नहीं मिटता |* इस जगत में जो जैसा करता है, वह वैसा ही पाता है | जो जौ बोता है वह जौ काटता है; और जो गेंहू बोता है वो गेंहू काटता है; जो दूसरों का दिल दुखाता है, उसका दिल भी दुखाया जायेगा; जो जैसी कहेगा, वह वैसी सुनेगा |
*इसीलिए कहा गया है:-*
*ऐसी बानी बोलिये मन का आपा खोय !*
*औरन को शीतल करे, आपौ शीतल होय !!*
अभिमान त्यागकर ऐसी बात कहनी चाहिए, जिससे औरों के दिल ठण्डे हों और अपने दिल में भी ठण्डक हो |
*तुलसीदास जी ने कहा है -*
*ज्ञान गरीबी गुण धरम, नरम बचन निरमोष !*
*तुलसी कबहुँ न छाँड़िये, शील सत्य सन्तोष !!*
*कहने का तात्पर्य यह है कि* नित्य-अनित्य के विचार का ज्ञान, यौवन और धनादि के घमण्ड का त्याग, सतोगुण, प्रभु में निश्छल प्रीती का धर्म, मीठे और नर्म वचन, निराभिमानता, शील, सत्य और सन्तोष, इनको कभी न छोड़ना चाहिए | *अज्ञानता, घमण्ड, रजोगुण, तमोगुण, अधर्म, कड़वे वचन, मान, कुशीलता, झूठ और असन्तोष - इनको छोड़ देना चाहिए |*
*बकल बसन फल असन कर, करिहौं बन विश्राम !*
*जित अविवेकी नरन को, सुनियत नाहीं नाम !!*
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*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" नवत्रिंशो भाग: !!*
*शेष अगले भाग में:--*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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