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*‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️*
🚩 *सनातन परिवार* 🚩
*की प्रस्तुति*
🌼 *वैराग्य शतकम्* 🌼
🌹 *भाग - इकतालीसवाँ* 🌹
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*गताँक से आगे :---*
*अग्रे गीतं सरसकवयः पार्श्वतो दाक्षिणात्याः*
*पृष्ठे लीलावलयरणितं चामरग्राहिणीनाम् !*
*यद्यस्त्येवं कुरु भवरसास्वादने लम्पटस्त्वं नो*
*चेच्चेतः प्रविश सहसा निर्विकल्पे समाधौ !! ६१ !!*
*अर्थात्:-* हे मन ! तेरे सामने चतुर गवैये गाते हों, दाहिने-बाएं दक्खिन देश के उत्तम कवी सरस काव्य सुनाते हों, तेरे पीछे चंवर ढोलने वाली सुंदरी स्त्रियों के कंकणों की मधुर झनकार होती हो, यदि ऐसे सामान तुझे प्राप्त हों, तो तू संसार रसास्वादन में मग्न हो; नहीं तो सबका ध्यान छोड़, निर्विकल्प समाधि में लीन हो |
*अपना भाव:--*
*इस संसार से मोह करके मनुष्य अपने जीवन लक्ष्य से भटक जाता है ! या तो जीवन में सबकुछ सारे ऐश्वर्य प्राप्त हों तो उसे संचित कर्मों का भोग समझकर भोगना तो उचित है परंतु यदि यह सारे ऐश्वर्य नहीं प्राप्त हैं तो आगे के जन्मों के लिए संचित कर्मों का खाता पुण्यकर्मों एवं भगवद्भक्ति से भरने का प्रयास प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिए |*
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*विरमत बुधा योषित्सङ्गात्सुखात्क्षणभंगुरा-*
*त्कुरुत करुणामैत्रीप्रज्ञा वधूजनसंगमम् !*
*न खलु नर के हाराक्रान्तं घनस्तनमण्डलम्*
*शरणमथवा श्रोणीबिम्बम् रणन्मणिमेखलम् !! ६२ !!*
*अर्थात्:-* हे मनुष्यों ! तुम्हें ईश्वर ने बुद्धिमान बनाया है अत: कामातुर होकर स्त्री के संग से बचो, क्योंकि उनके संग से जो सुख मिलता है, वह क्षणिक है | आप मैत्री, करुणा और बुद्धिरूपी वधू के साथ संगम करो | जिस समय नरक में सजा मिलेगी, उस समय युवतियों के हारों से शोभित स्तनद्वय और घुंघरूदार कर्धनियों से सुशोभित कमर तुम्हारी सहायता न करेंगी |
*अपना भाव:--*
हे बुद्धिमानो ! नारी को सृष्टि का मूल कहा गया है | नारी नर की जन्मदात्री है , ईश्वर ने नर नारी का जोड़ा सृष्टि के संचालन के लिए ही बनाया परंतु नारी के प्रति वासनात्मक मोह की प्रबलता संसार के अन्य सभी रिश्ते - नातों से दूर कर देती है | काम भावना से उनके साथ रहने, उनके साथ संगम करने से सुख होता है; पर वह सुख नश्वर और क्षणस्थायी है | वह ऐसा सुख नहीं जो सदा रहे | परिणाम में उससे अनेक प्रकार के दुःख होते हैं | जो सुख अनित्य है, शेष में दुखों का मूल और रोगों की खान है, उस सुख को सुख समझना, बुद्धिमानो का काम नहीं | अगर आपको सङ्गंम ही करना है, तो आप सुहानुभूति, परोपकारवृत्ति एवं प्रज्ञारूपी बहू के साथ सङ्गंम कीजिये , इनके साथ सङ्गंम और प्रीति करने से आप को नित्य सुख मिलेगा; ऐसा सुख मिलेगा, जो इस लोक और परलोक में सदा स्थिर रहेगा |
*जिन लोगों ने पहले दूसरों के दुःख दूर किये हैं, जिन्होंने परोपकार के लिए जानें दी हैं, जिन्होंने ज्ञान से काम लिया है, उनका भला ही हुआ है |* अगर आप कामातुर होकर स्त्री-सुख में भूले रहोगे , उसी के कारण माता - पिता , भाई - बन्धु आदि का तिरस्कार करोगे तो जब आपको नरक की भयंकर यातनाएं भोगनी पड़ेंगी, जब आप पर यमदूतों के डण्डे पड़ेंगे, उस समय क्या स्त्रियों के हारों से सुशोभित स्तन-मण्डल और कर्धनियों से शोभायमान पतली कमर आपकी रक्षा कर सकेंगी ? *नहीं, इनसे कोई लाभ न होगा; उस समय ये आड़े न आएंगे | उस समय पर, परोपकार करके जो पुण्य संचय किया होगा, वही आपकी रक्षा करेगा |* बुद्धि से काम लोगे तो भला होगा; क्योंकि बुद्धि ही आपको नरक से बचने की राह बतावेगी; किन्तु कामपिपासु स्त्री तो आपको सीधी नरक की राह दिखावेगी | *आश्चर्य है, अज्ञानी लोग अच्छे को बुरा और बुरे को अच्छा समझते हैं | वे अपने सच्चे मित्रों से प्रीति नहीं करते, किन्तु झूठे और कुराह में ले जानेवालों से प्रीति करते हैं |*
*इसीलिए कहा गया है:---*
*तजि तरुणी सों नेह, बुद्धिबधू सों नेह कर !*
*नरक निवारत येह, वहै नरक लै जात है !!*
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*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" एकचत्वारिंशो भाग: !!*
*शेष अगले भाग में:--*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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