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*‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️*
🚩 *सनातन परिवार* 🚩
*की प्रस्तुति*
🌼 *वैराग्य शतकम्* 🌼
🌹 *भाग - बयालीसवाँ* 🌹
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*गताँक से आगे :---*
*प्राणाघातान्निवृत्तिः परधनहरणे संयमः सत्यवाक्यं*
*कालेशक्त्या प्रदानं युवतिजनकथामूकभावः परेषाम् !*
*तृष्णास्त्रोतोविभङ्गो गुरुषु च विनयः सर्वभूतानुकम्पा*
*सामान्यः सर्वशास्त्रेष्वनुपहतविधि:श्रेयसामेष पन्थाः !! ६३ !"*
*अर्थात् :-* किसी भी जीव की हिंसा न करना, पराया माल न चुराना, सत्य बोलना, समय पर सामर्थ्यानुसार दान करना, परस्त्रियों की चर्चा में चुप रहना, गुरुजनो के सामने नम्र रहना, सब प्राणियों पर दया करना और भिन्न भिन्न शास्त्रों में समान विश्वास रखना - ये सब नित्य सुख प्राप्त करने के अचूक रस्ते हैं |
*अपना भाव :--*
यदि आप मोक्ष की अचूक राह चाहते हो, यदि आप चिरस्थायी कल्याण चाहते हो, तो *आप किसी भी प्राणी का विनाश मत करो अपने पेट के लिए किसी की प्राण हरण मत करों* जब अवसर मिले अपनी शक्ति अनुसार गरीबों और असहायों को दान दो, उनके दुःख दूर करो; उनके दुखों को अपना दुःख समझकर उनका कष्ट निवारण करो | *जहाँ पराई स्त्रियों की चर्चा होती हो, वहां मत बैठो; यदि बैठना ही पड़े, तो तुम अपनी वाणी से कुछ मत कहो |* माता-पिता और गुरु के सामने सदा नम्र रहो, उनकी आज्ञा का पालन करो, उनका मान-सम्मान करो; भूल कर भी उनका अपमान न करो | छोटे बड़े सभी प्राणियों पर दया करो । *सभी शास्त्रों को समान समझो; किसी में विश्वास और किसी में अविश्वास न करो, क्योंकि सभी का ध्येय एक ही है, सभी वहीँ (भगवत्पथ पर) पहुँचते हैं |* जिस तरह नदियां, टेढ़ी-सीढ़ी बहती हुई समुद्र में ही जा मिलती हैं; उसी तरह सभी शास्त्र अपनी-अपनी राहों से मोक्ष या परमात्मा की ही राह बताते हैं | *जो ऐसा विश्वास नहीं रखते, तर्क-वितर्क के झमेले में पड़ते हैं, वे वृथा भटकते और अपना परमलक्ष्य - परमपद - तक नहीं पहुँचते |*
*तुलसीदास जी ने ये सब विषय संक्षेप में ही कह दिया हैं -*
*सदा भजन गुरु साधु द्विज, जीव दया सम जान !*
*सुखद सुनै रत सत्यव्रत, स्वर्ग-सप्त सोपान !!*
*वञ्चक विधिरत नर अनय, विधि हिंसा अतिलीन !*
*तुलसी जग मँह विदित वर, नरक निसैनी तीन !!*
*अर्थात् :-* *१-* ईश्वर-भजन ! *२-* गुरु, साधु-महात्मा और ब्राह्मणो की सेवा करना ! *३-* जीवों पर दया करना ! *४-* लोक में समदृष्टि रखना - सबको एक दृष्टि से देखना ! *५-* सबको सुख देना ! *६-* सुनीति पर चलना और *७-* सत्यव्रत धारण करना - ये सातों स्वर्ग में जाने की सात सीढ़ियां हैं | *जो इन कामों को वासना के साथ करते हैं - इन कामों का पुरस्कार चाहते हैं, वे स्वर्ग में जाते हैं और जो इन कामों को बिना वासना के करते हैं, वे भगवान् में मिल जाते हैं |*
कहने का तात्पर्य यह है कि *जो लोग परमात्मा का भजन करते हैं, गुरु, महात्मा और ब्राह्मणो को सेवा करते और उनसे उपदेश लेते हैं, जीवों पर दया करते हैं, अपनी भरसक किसी भी जीव को दुःख नहीं होने देते, सबको एक दृष्टि से देखते हैं, किसी से दोस्ती और किसी से दुश्मनी नहीं रखते; सभी को सुख देते हैं - किसी को भी नहीं सताते; न्याय और नीति के मार्ग पर चलते हैं - अनीति से बचते और अत्याचार नहीं करते तथा सदा सत्य बोलते हैं - सपने में भी झूठ नहीं बोलते - वे स्वर्ग में जाते हैं, क्योंकि ये सात स्वर्ग की सीढिया हैं |*
गोस्वामी जी ने ऊपर स्वर्ग में चढ़ने की सात सीढ़ियाँ बताई हैं, *अब वह नरक की तीन नसैनी भी बताते हैं -* जो लोग चोरी, जोरी और ठगी अथवा और तरह से धोखा देकर पराया धन हड़पते हैं, जो लोग अनीति और अन्याय करते हैं - पराई स्त्रियों को भोगते हैं, पराई निन्दा या बदनामी करते हैं, पराया काम बिगाड़ते हैं, जुआ खेलते हैं, वेश्यागमन करते हैं, जो लोग अपने सुख के लिए जीवों को मारते हैं अथवा मोह के वश में होकर जीवहत्या करते हैं ! *अर्थात्:- छल, अनीति और हिंसा का आश्रय लेते हैं, वे निश्चय ही नरकों में जाते हैं; क्योंकि ये तीनो काम नरक की नसैनी हैं |*
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*मातर्लक्ष्मि भजस्व कंचिदपरं मत्काङ्क्षिणी मा स्म भूः*
*भोगेभ्यः स्पृहयालवो न हि वयं का निस्पृहाणामसि !*
*सद्यःस्यूतपलाशपत्रपुटिकापात्रे पवित्रीकृते*
*भिक्षासक्तुभिरेव सम्प्रति वयं वृत्तिं समीहामहे !! ६४ !!*
*अर्थात्:-* हे मां लक्ष्मी ! अब किसी और को खोज, मेरी इच्छा न कर; अब मुझे विषय-भोगों की चाह नहीं है; मेरे जैसे निस्पृह - इच्छा-रहितों के सामने तू तुच्छ है , क्योंकि अब मैंने हर ढाकके पत्तो के दोनों में भिक्षा के सत्तू से गुज़ारा करने का संकल्प कर लिया है |
*अपना भाव :--*
जो अपनी इच्छा का नाश कर देता है, जो किसी भी पदार्थ की इच्छा नहीं रखता - वह लक्ष्मी क्या - संसार के बड़े बड़े सुख-भोग और धन-दौलत को तुच्छ समझता है; वह बादशाहों को भी माल नहीं समझता | जो जंगल के फल मूलों पर गुज़र कर लेता है या भिक्षा के सत्तू को ढाक के पात में पानी से घोल कर पी जाता है, वस्त्र की भी जरुरत नहीं रखता, उसे कैसी परवाह ? उसे दुःख कहाँ ? *यदि मनुष्य सच्चा सुख चाहे, परमपद या परमात्मा को चाहे तो "इच्छा" को त्याग दे । सब दु:खों की जड़ "इच्छा" ही है !*
*किसी ने लिखा है :--*
*मौकों तजि भजि और कों, ऐरी लक्ष्मी मात !*
*हैं पलाश के पात में, मांग्यो सतुआ खात !!*
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*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" द्वाचत्वारिंशो भाग: !!*
*शेष अगले भाग में:--*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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