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*‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️*
🚩 *सनातन परिवार* 🚩
*की प्रस्तुति*
🌼 *वैराग्य शतकम्* 🌼
🌹 *भाग - सत्तावनवाँ* 🌹
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*गताँक से आगे :---*
*प्रिय सखि विपद्दण्डव्रतप्रताप परम्परा-*
*तिपरिचपले चिन्ताचक्रे निधाय विधिः खलः !*
*मृदमिव बलात्पिण्डीकृत्य प्रगल्भकुलालवद्-*
*भ्रमयति मनो नो जानीमः किमत्र विधास्यति !! ९४ !!*
*अर्थात्:--* हे प्यारी सखी बुद्धि ! कुम्हार जिस तरह गीली मिटटी के लौंदे को चाक पर चढ़कर डंडे से चाक को बारम्बार घुमाता है और उससे इच्छानुसार बर्तन तैयार करता है; उसी तरह संसार को गढ़नेवाला ब्रह्मा हमारे चित्त को चिन्ता के चाक पर चढ़ा कर, विपत्तियों के डंडे से चाक को लगातार घुमाता हुआ, हमारा क्या करना चाहता है, यह हमारी समझ में नहीं आता ?
*अपना भाव:---*
यदि मनुष्य को चिन्ता न होती तो जीवन कितना सुखद होता परंतु मनुष्य के पीछे भगवान् ने चिन्ता बुरी लगा दी है | *बात यह है, कि मनुष्य के पूर्व जन्म के कर्मो के कारण या इस जन्म की भूलों के कारण, उसे विपत्तियां भोगनी ही पड़ती है |* विपत्तियों से पार होने के लिए, मनुष्य रात-दिन चिन्तित रहता है | चिन्ता या फ़िक्र से मनुष्य का रूप-रंग सब नष्ट होकर शीघ्र ही बुढ़ापा आ जाता है | *आजकल चालीस बरस की उम्र में ही लोग बूढ़े हो जाते हैं, इसका कारण चिन्ता ही है , अगर चिन्ता न होती, तो मनुष्य को कुछ दुःख न होता |* जहाँ तक हो, मनुष्य को चिन्ता को अपने पास न आने देना चाहिए; क्योंकि:--
*चिन्ता है बड़ी चिता से भी नर को निर्जीव बनाती है !*
*मुर्दे को चिता जलाती है चिन्ता जीते को खाती है !!*
चिन्ता, चिता से भी बुरी है , चिता मरे हुए को भस्म करती है, पर चिन्ता जीते हुए को ही जलाकर ख़ाक कर देती है; अतः चिन्ता से दूर रहो | स्त्री, पुत्र और धन की चिन्ता में अपनी अमूल्य दुर्लभ काया को नाश न करो; क्योंकि ये स्त्री-पुत्र प्रभृति तुम्हारे कोई नहीं | *अगर चिन्ता और विचार ही करना है, तो इस बात का करो कि तुम कौन हो और कहाँ से आये हो ?*
*जगदगुरु स्वामी शंकराचार्य ने मोहमुद्गर में कहा है -*
*का तव कान्ताः कस्ते पुत्रः संसारोऽयमतीव विचित्रः !*
*कस्य त्वम् वा कुत आयातः तत्त्वं चिन्तय तदिदं भ्रातः !!*
*अर्थात् :--* कौन तेरी स्त्री है ? कौन तेरा पुत्र है ? यह संसार अतीव विचित्र है | तू कौन है ? कहाँ से आया है ? *हे भाई ! इस तत्व की चिन्ता कर; अर्थात न कोई तेरी स्त्री है और न कोई तेरा पुत्र है, वृथा चिन्ता क्यों करता है ?*
*अपना भाव :--*
तू कौन है ? कहाँ से आया है ? क्यों आया है ? तूने अपना कर्तव्य पालन किया है या नहीं ? तेरा अन्तिम परिणाम क्या है ? इत्यादि विचारों द्वारा अपने स्वरुप को पहचान जाने अथवा ईश्वर की शरण में चले जाने से ही चिन्ता से पीछा छूटेगा और शान्ति मिलेगी | *निश्चय ही चिन्ता और विपत्तियों से बचने के लिए भगवान् का आश्रय लेना सर्वोपरि उपाय है | विपत्ति रुपी समुद्र में डूबते हुए के लिए भगवान् का नाम ही सच्चा सहारा है |*
*गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है -*
*तुलसी साथी विपति के, विद्या विनय विवेक !*
*साहस सुकृत सत्यव्रत, राम भरोसो एक !!*
*तुलसी असमय के सखा, साहस धर्म विचार !*
*सुकृत शील स्वाभाव ऋजु, रामशरण आधार !!*
*खेलत बालक व्याल संग, पावक मेलत हाथ !*
*तुलसी शिशु पितु मातु इव, राखत सिय रघुनाथ !!*
*तुलसी केवल रामपद, लागे सरल सनेह !*
*तौ घर घट बन बाट मँह, कतहुँ रहै किन देह !!*
*सारांश यह कि* जो हमारे चित्त को चिन्ता के चाक पर चढ़ा कर विपत्तियों के डंडे से घुमाता है, यदि हम उसकी ही शरण में चले जाएँ, उसी से प्रेम करें, तो वह हमारे चित्त को चिन्ता के चाक पर न रक्खे; अर्थात हमें चिंताग्नि में न जलना पड़े; सुख-शान्ति सदा हमारे सामने हाथ बांधे खड़े रहे | यह बाला उन्हीं को खाती है, जो भगवान् से विमुख रहते हैं | *इसलिए यदि इस चिन्ता-डायन से बचना चाहो तो परमात्मा को भजो |*
*सारांश:--*
*मन को चिंताचक्र धर, खल विधि रह्यौ घुमाय !*
*रचि है कहा कुलालसम, जान्यौ कछु न जाय ? !!*
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*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" सप्तपञ्चाशत्तमो भाग: !!*
*शेष अगले भाग में:--*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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