*मानव जीवन में उसका जीवन किस दिशा में जाता है यह उसकी सोच पर निर्भर करता है | मनुष्य में दो प्रकार की सोच होती है पहली सकारात्मक और दूसरी नकारात्मक | मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही बन जाता है | इस तरह से मनुष्य की सोच ही उसके व्यक्तित्व के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है , क्योंकि किसी के विचारों को जानकर सहज ही उसके व्यक्तित्व के स्तर का पता चल जाता है | अच्छे या बुरे व्यक्ति की पहचान उसके विचारों से होती है ! किसी भी व्यक्ति की सुव्यवस्थित सोच उसे महान वैज्ञानिक बना देती है तो वही उसकी उत्कृष्ट सोच उसे महामानव बना देती है | निकृष्ट सोच उसे मनोरोगी व सामान्य सोच उसे सामान्य इंसान बना देती है | दिन भर में हम जितना कुछ करते हैं उससे कहीं अधिक सोचते हैं , लेकिन जितना भी हम सोचते हैं उतना कर नहीं पाते | क्योंकि सोच को व्यवहारिक धरातल पर उतरने में कुछ समय लगता है | हम जो भी सोचते हैं वह एक प्रवाह की तरह हमारे मन-मस्तिष्क में आता है लेकिन उसमें से कुछ ऐसे ही होते हैं जिसे हम संजो पाते हैं | एक दिन में व्यक्ति के मस्तिष्क में कई विचार आते हैं लेकिन वह उन सभी विचारों का उपयोग नहीं कर पाता | इस तरह के विचार मस्तिष्क में आकर चले जाते हैं | मानवीय चेतना की कई परतों में से एक परत विचार मंडल की भी होती है जिसमें कई तरह के विचार मौजूद है | व्यक्ति जिस दिशा में सोचता है उससे संबंधित विचारों को अपनी और आकर्षित करने लगता है | अगर व्यक्ति विचारों को नियंत्रित करना ना सीखे तो ये सभी नकारात्मक विचार उसके व्यक्तित्व को सदा के लिए नकारात्मक बनाने की पूर्ण सामर्थ रखते हैं |*
*आज समाज में नकारात्मकता कुछ अधिक ही दिखाई पड़ रही है | भरे समाज में स्वयं को सकारात्मक एवं शेष सभी को नकारात्मक मानने वालों की संख्या बढ़ती चली जा रही है | सकारात्मकता एवं नकारात्मकता समान रूप से सबमें ही होती है यह मनुष्य के ऊपर निर्भर करता है कि वह किस ओर स्वयं को मोड़ता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूँगा कि जैसे - एक सिक्के के दो पहलू होते हैं वैसे ही विचार भी सकारात्मक व नकारात्मक दोनों तरह के होते हैं | हम जिस तरह के विचारों को अपनाते हैं उनसे ही हमारे जीवन की दिशा धारा तय होती है | यदि इन विचारों पर संयम कर लिया जाए अर्थात मस्तिष्क में यूं ही आने वाले विचारों पर रोकथाम लगाई जा सके और अपनी इच्छा अनुसार विचारों को आमंत्रित किया जा सके तो यह प्रक्रिया हमारे मानसिक शक्तियों और क्षमताओं के द्वार खोल देती है | जीवन की दिशा धारा बदलने के लिए एक विचार ही पर्याप्त होता है ! बस आवश्यकता यह होती है कि उस विचार को अपनाया जाए | सकारात्मक व नकारात्मक विचारों में से सकारात्मक विचार जहां व्यक्ति के मन को प्रसन्नता , उत्साह व शांति प्रदान करते हैं तो वहीं नकारात्मक विचार व्यक्ति को उद्विग्न व अशांत बना देते हैं | व्यक्ति के मन में नकारात्मक विचार हैं तो उसका सब कुछ बिखरते ही चला जाता है | नकारात्मक विचार रखने वाला स्वयं को तो नुक्सान पहुँचाता ही है साथ ही संपर्क क्षेत्र में आने वालों को भी अपनी नकारात्मकता से प्रभावित करता है | जबकि सकारात्मक विचारों से व्यक्ति स्वयं तो मानसिक रुप से सफल बनता ही है साथ ही अन्य के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन जाता है | इसलिए सबसे पहले हमें सकारात्मक और नकारात्मक विचारों में अंतर करना आना चाहिए ! और सदैव सकारात्मक विचारों का ही चयन करना चाहिए |*
*जहां नकारात्मक विचार किसी भी रुप में हमारे लिए लाभप्रद नहीं होते वही सकारात्मक विचार किसी भी रुप में हमें नुकसान नहीं पहुंचाते |*