*इस धरा धाम पर ब्रह्मा जी ने अनेकों प्रकार की सृष्टि की जिससे कि मानव जीवन सुगमता से व्यतीत हो सके | ब्रह्मा जी को चतुर्मुख कहा जाता है | ब्रह्मा जी ने अपने चारों मुख से मनुष्य के जीवन निर्वाह के लिए चार प्रकार की विद्याओं का सृजन किया वेदव्यास जी महाराज श्रीमद्भागवत महापुराण में लिखते हैं :--- "आन्वीक्षिकी त्रयी वार्ता दंडनीतिश्तथैव च ! एवं व्याहृतयश्चासन् प्रणवो ह्यास्य दह्नत: !, अर्थात ब्रह्मा जी के चार मुखों से १- आन्वीक्षिकी , २- त्रयी , ३- वार्ता और ४- दंड नीति यह चार प्रकार की विद्याएं उत्पन्न हुई जिनके माध्यम से मनुष्य अपने संपूर्ण जीवन काल में क्रियाकलाप करता है | आन्वीक्षिकि अर्थात मोक्ष प्राप्त कराने वाली आत्मविद्या | त्रयी का अर्थ वेदव्यास जी ने बताया है स्वर्गादि फल देने वाली कर्म विद्या | वार्ता का अर्थ हुआ खेती व्यापार आदि संबंधी विद्या और दंड नीति राजनीति को कहा गया है | इस प्रकार यह चार प्रकार की प्रमुख विद्याएं ब्रह्मा जी के चारों मुखों से उत्पन्न हुई जिनके बिना मानव जीवन पूर्ण नहीं हो सकता | पूर्व काल में हमारे पूर्वजों ने आत्मविद्या एवं कर्म विद्या के प्रभाव को समझते हुए इसको अपने जीवन में उतारने का प्रयास करते रहे जिसके कारण उनका जीवन तो दिव्य बना ही साथ ही संपूर्ण मानव जाति को इस जीवन को सफल बनाने के लिए एक सुंदर मार्ग प्राप्त हुआ | आत्मविद्या एवं कर्मविद्या के बिना मनुष्य सब कुछ पाकर भी अधूरा ही रह जाता है इसलिए प्रत्येक मनुष्य को इन चारों दिशाओं के महत्व को समझकरके तथा इन को अपनाकर स्वयं के जीवन को धन्य बनाने का प्रयास करते हुए मोक्ष प्राप्त करने के लिए प्रयासरत होना चाहिए |*
*आज कि इस चकाचौंध भरे युग में मनुष्य वेद पुराणों की बातों को , उसने दिए गए उपदेशों को हंसी में उड़ाते हुए देखे जाते हैं | आज के लोग विद्या के नाम पर तरह-तरह की उपाधियां तो अर्जित कर रहे हैं परंतु सृष्टि के आदिकाल में मानव कल्याण के लिए ब्रह्मा जी ने जो चार प्रमुख विद्याएं प्रकट की उनमें से प्रथम दे विद्याओं को (आत्मविद्या एवं कर्म विद्या) आज मनुष्य ने त्याग दिया है | वह सिर्फ व्यापार आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली विद्या एवं राजनीति पर ही ध्यान दे रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूंगा कि चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करने के बाद यह सुंदर मानव का जीवन प्राप्त होता है और इस मानव जीवन को सफल बनाने के लिए आत्मविद्या जो कि मोक्ष प्रदान करने वाली होती है एवं कर्मविद्या जो इसी संसार में रहकर स्वर्ग के सुख भोगने का अवसर प्रदान करती है यह जानना परम आवश्यक है परंतु आज मनुष्य इन दोनों से परे हटकर मात्र विद्या एवं राजनीति के चक्रव्यूह में फंसकर इस दुर्लभ मानव जीवन क व्यर्थ ही गंवाता चला जा रहा है | बिना आत्मविद्या के इस जीवन का कल्याण नहीं होना है यह बात आज हमें समझने की आवश्यकता है | सकारात्मकता से कर्म करना ही कर्मविद्या है | इसी कर्मविद्या अर्थात कर्म के द्वारा मनुष्य इस संसार में रहकर स्वर्ग के सुख को प्राप्त कर सकता है | इसे जानने का प्रयास करने वाला ही इस जीवन में आनंद भोग कर अंत में मोक्ष को प्राप्त कर पाता है |*
*शिक्षा एवं विद्या दो अलग-अलग विषय हैं , परंतु आज उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले स्वयं को विद्वान या विद्यावान की श्रेणी में गिनने लगते हैं यही उनकी मूर्खता है | शिक्षा प्राप्त करके विद्या कभी नहीं प्राप्त की जा सकती है विद्या प्राप्त करने के लिए मनुष्य को आत्ममंथन करने की आवश्यकता होती है |*