जब तुम मेरा कहना नहीं मानते तो क्यों मुझे हे प्रभु हे प्रभु कहते हो!
जब तुम मेरा कहना नहीं मानते तो क्यों मुझे हे प्रभु हे प्रभु कहते हो!जब तुम मेरा कहना नहीं मानते तो क्यों मुझे हे प्रभु हे प्रभु कहते हो!
(लूका 6:46)
मित्रों आज्ञाकारीता ही आशीष के द्वार खोलती है इसीलिए यीशु मसीह ने कहा जब तुम मेरा कहना ही नहीं मानते हो तो क्यों मुझे हे प्रभु हे प्रभु कहते हो कहना मानना और सुनना यह तीनों अलग-अलग बातें हैं लेकिन यह तीनों बातें जब तक एक ही समावेश में एकत्रित नहीं होती तब तक परमेश्वर की आशीष से हमारे जीवन में नहीं फलती !
जिसमें कहना और सुनना तो हमारे जीवन में लगभग लागू रहता है लेकिन मानना हर एक विश्वासी के जीवन में लागू नहीं होता क्योंकि ज्यादातर विश्वासी परमेश्वर की आज्ञा को नहीं मानते या उसके अनुसार अपने जीवन को नहीं जीते विश्वास करते हैं काम करते हैं पर मानते नहीं चलते नहीं है!
आज हमारा क्या हाल है अगर परमेश्वर आपको इस्तेमाल कर रहा है आप बड़े बड़े चमत्कार कर रहे हैं तो इससे खुश मत हो चेलों ने बड़े-बड़े चमत्कार किए परंतु यीशु ने कहा इससे खुश मत हो परंतु इससे खुश हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग में जीवन की पुस्तक में लिखे हो!
(लूका 10:20)
आज हर एक विश्वासी प्रभु की सेवा करना चाहता है मिनिस्ट्री करना चाहता चाहे प्रभु ने उसे चुना हो या ना चुना हो मिनिस्ट्री तो करना चाहता है परंतु परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानना चाहता मन चाहे फिरा हो चाहे ना फिरा हो चाहे तोबा की होना की हो प्रभु की सेवा एक फैशन और व्यापार और नाम और शोहरत का हिस्सा बन चुकी है वहीं कुछ ऐसे प्रभु के चुने हुए सेवक है जो प्रभु की सेवा के साथ क्रूस का दुख उठा के अपने जीवन को तकलीफ में देकर प्रभु की सेवा कर रहे हैं!
परंतु यीशु मसीह अपने चेलों को सचेत करते हुए कह रहे हैं इससे खुश मत हो कि तुम मेरी सेवा करते हो परंतु इस बात से खुश हो क्या तुम्हारे नाम स्वर्ग की पुस्तक में लिखे हैं!
और स्वर्ग की पुस्तक में नाम तभी लिखा होगा जब आप परमेश्वर की चुनी हुई संतान होंगे आपका मन फिर चुका होगा और आप परमेश्वर की आज्ञा पर अपना जीवन बिता रहे होंगे ना कि अपने मन के अनुसार प्रभु की सेवा का कोई भी प्रकार आपके जीवन में हो सकता है चाहे तन से मन से धन से या एक गिलास किसी को पानी पिला कर लेकिन यदि आप परमेश्वर की अज्ञाओं को नहीं मानते और उस पर नहीं चलते तो यह सब हमारे लिए व्यर्थ ही होगा!
(1यूहन्ना 1:7)
जैसा वह ज्योति में है वैसा ही हम भी ज्योति में चलें और एक दूसरे से प्रेम और सहभागिता रखें और आज्ञा माने तभी हमारे नाम जीवन की पुस्तक में लिखे होंगे तभी हमारा हे प्रभु हे प्रभु कहना सफल हो पाएगा अन्यथा हम कितना भी है प्रभु हे प्रभु कहते रहे लेकिन उससे हमें कोई लाभ नहीं!