जी हां मित्रों आज यह बहुत बड़ा सवाल है कि आखिर हमारी प्रार्थना अनसुनी क्यों है जबकि परमेश्वर ने हमें चुना है हमने विश्वास किया है प्रभु को ग्रहण किया है और प्रभु से उसके बदले बहुत से दान वरदानों को प्राप्त भी किया है जैसा की वचन में लिखा है!
(यूहन्ना 1:12-13) की संतान होने का अधिकार दिया अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं वे ना तो लहू से ना शरीर की इच्छा सेना मनुष्य की इच्छा से परंतु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं!
जी हां मित्रों हमारी प्रार्थना सूनी या अनसुनी होना हमारे चरित्र और व्यक्तित्व पर निर्भर करता है की हमारा चरित्र और व्यक्तित्व कैसा है क्योंकि परमेश्वर हमारे चरित्र को और हमारे व्यक्तित्व को देखता है!जी हां मित्रों हमारी प्रार्थना सूनी या अनसुनी होना हमारे चरित्र और व्यक्तित्व पर निर्भर करता है की हमारा चरित्र और व्यक्तित्व कैसा है क्योंकि परमेश्वर हमारे चरित्र को और हमारे व्यक्तित्व को देखता है!
हमारी प्रार्थनाए सुनी जाए इसके लिए हमें नम्र व दीन होना बड़ा जरूरी है हमारी जुबान पर सच्चाई का होना बड़ा जरूरी है क्योंकि जिसके मन के अंदर शुद्धता और सुंदरता है उसके बाहरी रुपी शरीर में भी सुंदरता और शुद्धता बनी रहेगी और उसे ईश्वरत्व की प्राप्ति होती है परमेश्वर शुद्धता पवित्रता और सिद्धता जिसके अंदर होती उसी के अंदर वास करता है!हमारी प्रार्थनाए सुनी जाए इसके लिए हमें नम्र व दीन होना बड़ा जरूरी है हमारी जुबान पर सच्चाई का होना बड़ा जरूरी है क्योंकि जिसके मन के अंदर शुद्धता और सुंदरता है उसके बाहरी रुपी शरीर में भी सुंदरता और शुद्धता बनी रहेगी और उसे ईश्वरत्व की प्राप्ति होती है परमेश्वर शुद्धता पवित्रता और सिद्धता जिसके अंदर होती उसी के अंदर वास करता है!
आज हमारे मनों का शुद्धिकरण ना होने की वजह से ही हमारी प्रार्थना नहीं सुनी जाती इसीलिए वचन कहता है!
(मत्ती 23:27)
हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय; तुम चूना फिरी हुई कब्रों के समान हो जो ऊपर से तो सुन्दर दिखाई देती हैं, परन्तु भीतर मुर्दों की हिड्डयों और सब प्रकार की मलिनता से भरी हैं।हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय; तुम चूना फिरी हुई कब्रों के समान हो जो ऊपर से तो सुन्दर दिखाई देती हैं, परन्तु भीतर मुर्दों की हिड्डयों और सब प्रकार की मलिनता से भरी हैं।
प्रभु ने कपटी शास्त्री और फारिसियों की तुलना एक कब्र से की जब कब्र बनाई जाती है तो ऊपर से उसमें टाइल पत्थर और कुछ लोग तो चूने से पुतवाते हैं ताकि वह खूबसूरत देखे लेकिन हम सब जानते हैं की कब्र के अंदर एक सड़ी हुई लाश होती है जिससे अंदर कीड़े पड़ चुके होते हैं और बदबू आती है इसी तरह परमेश्वर इंसान की तुलना एक कब्र के अंदर पड़ी हुई सड़ी हुई लाश से करता है क्योंकि इंसान अपने आप को तो ऊपर से निखारने के लिए अच्छे कपड़े अच्छा मेकअप अच्छा सब कुछ करता है लेकिन अंदर से वह अपने मन को कभी शुद्ध व सुंदर करने की कोशिश नहीं करता जिसमें अनेक प्रकार का कोढ़ लगा हुआ है जिसको देखकर परमेश्वर कहता है!प्रभु ने कपटी शास्त्री और फारिसियों की तुलना एक कब्र से की जब कब्र बनाई जाती है तो ऊपर से उसमें टाइल पत्थर और कुछ लोग तो चूने से पुतवाते हैं ताकि वह खूबसूरत देखे लेकिन हम सब जानते हैं की कब्र के अंदर एक सड़ी हुई लाश होती है जिससे अंदर कीड़े पड़ चुके होते हैं और बदबू आती है इसी तरह परमेश्वर इंसान की तुलना एक कब्र के अंदर पड़ी हुई सड़ी हुई लाश से करता है क्योंकि इंसान अपने आप को तो ऊपर से निखारने के लिए अच्छे कपड़े अच्छा मेकअप अच्छा सब कुछ करता है लेकिन अंदर से वह अपने मन को कभी शुद्ध व सुंदर करने की कोशिश नहीं करता जिसमें अनेक प्रकार का कोढ़ लगा हुआ है जिसको देखकर परमेश्वर कहता है!
(याशायाह 59:2-3)
2परन्तु तुम्हारे अधर्म के कामों ने तुम को तुम्हारे परमेश्वर से अलग कर दिया है, और तुम्हारे पापों के कारण उस का मुँह तुम से ऐसा छिपा है कि वह नहीं सुनता।
3क्योंकि तुम्हारे हाथ हत्या से और तुम्हारी अंगुलियां अधर्म के कर्मों से अपवित्र हो गईं हैं; तुम्हारे मुंह से तो झूठ और तुम्हारी जीभ से कुटिल बातें निकलती हैं।3क्योंकि तुम्हारे हाथ हत्या से और तुम्हारी अंगुलियां अधर्म के कर्मों से अपवित्र हो गईं हैं; तुम्हारे मुंह से तो झूठ और तुम्हारी जीभ से कुटिल बातें निकलती हैं।
कपटी पन कुटिलता और अधर्म वह काम है जो उसे जमाने में शास्त्री और फरीसियों के अंदर हुआ करते थे जो बाइबल के जानकार हुआ करते थे जो परमेश्वर के लोग हुआ करते थे परंतु उनकी प्रार्थना सुनी नहीं जाती थी यह ऊपर से तो अपने आप को बड़ा साफ सुथरा और धर्मी बनाकर रखते थे परंतु उनके मन के अंदर कोढ़ लगा हुआ था मैल भरा था इसी कारण से परमेश्वर इनहे कपटी कहता है!
और आज यह कपटीपन हर मनुष्य के अंदर पाया जाता है इसीलिए आज परमेश्वर प्रार्थना को नहीं सुनता!और आज यह कपटीपन हर मनुष्य के अंदर पाया जाता है इसीलिए आज परमेश्वर प्रार्थना को नहीं सुनता!
(मत्ती 23:25)
हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय, तुम कटोरे और थाली को ऊपर ऊपर से तो मांजते हो परन्तु वे भीतर अन्धेर असंयम से भरे हुए हैं।हे कपटी शास्त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय, तुम कटोरे और थाली को ऊपर ऊपर से तो मांजते हो परन्तु वे भीतर अन्धेर असंयम से भरे हुए हैं।
भीतर अंधेर और असहयम जी हां मित्रों परमेश्वर हमारे बाहरी रूप को नहीं परंतु अंदरुनी रूप को देखता है कि भीतर से हम कैसे हैं क्योंकि भीतर से सुंदर होंगे तो बाहर से भी सुंदर होंगे भीतर से शुद्ध होंगे तो बाहर से भी शुद्ध होंगे क्योंकि जो अंदर होता है वहीं बाहरी उसकी प्रकृति कारण होता है!भीतर अंधेर और असहयम जी हां मित्रों परमेश्वर हमारे बाहरी रूप को नहीं परंतु अंदरुनी रूप को देखता है कि भीतर से हम कैसे हैं क्योंकि भीतर से सुंदर होंगे तो बाहर से भी सुंदर होंगे भीतर से शुद्ध होंगे तो बाहर से भी शुद्ध होंगे क्योंकि जो अंदर होता है वहीं बाहरी उसकी प्रकृति कारण होता है!
ना तो हमारी जीभ वश में है ना तो हमारा मन वश में है और ना तो हमारे काम धर्म के हैं तो परमेश्वर हमारे प्रार्थना को कैसे सुने हम कहने को तो आप कितना भी अपने आपको विश्वास ही कर ले परंतु हमारा पुराना मनुष्यत्व को आज भी जीवित है!ना तो हमारी जीभ वश में है ना तो हमारा मन वश में है और ना तो हमारे काम धर्म के हैं तो परमेश्वर हमारे प्रार्थना को कैसे सुने हम कहने को तो आप कितना भी अपने आपको विश्वास ही कर ले परंतु हमारा पुराना मनुष्यत्व को आज भी जीवित है!
नए मनुष्यत्व की चाल नहीं चल पा रहे हैं यीशु मसीह की समानता में इसीलिए हमारा जीवन परिवर्तन नहीं हो रहा है हम शास्त्री फरीसी तो बनते जा रहे हैं ज्ञान तो बटोरते जा रहे हैं पर अपने नए मनुष्यत्व की चाल नहीं चल पा रहे हैं यीशु मसीह की समानता में इसीलिए हमारा जीवन परिवर्तन नहीं हो रहा है हम शास्त्री फरीसी तो बनते जा रहे हैं ज्ञान तो बटोरते जा रहे हैं पर अपने
चरित्र के ऊपर ध्यान नहीं देते कि हमारा चरित्र कैसा है!
आज हम ज्ञान की पीएचडी करते चले जा रहे हैं पर नम्र व दीन बनने की कोशिश नहीं कर रहे हैं ज्यादा ज्ञान घमंड उत्पन्न करता है आज्ञाकारी व अधीनता से हमको दूर ले जाता है और यही हमारे नाश होने का हमारी प्रार्थना अनसुनी होने का कारण बन जाता है जैसे आदम हव्वा को कम समय में शैतान ने ज्ञान का फल खिलाकर परमेश्वर से दूर कर दिया और परमेश्वर उनको अदन की वाटिका से निकाल दिया उनकी सुनना बंद कर दिया!आज हम ज्ञान की पीएचडी करते चले जा रहे हैं पर नम्र व दीन बनने की कोशिश नहीं कर रहे हैं ज्यादा ज्ञान घमंड उत्पन्न करता है आज्ञाकारी व अधीनता से हमको दूर ले जाता है और यही हमारे नाश होने का हमारी प्रार्थना अनसुनी होने का कारण बन जाता है जैसे आदम हव्वा को कम समय में शैतान ने ज्ञान का फल खिलाकर परमेश्वर से दूर कर दिया और परमेश्वर उनको अदन की वाटिका से निकाल दिया उनकी सुनना बंद कर दिया!
इसलिए मित्रों ज्ञान का होना जरूरी है लेकिन ज्ञान के साथ हमारा चरित्र हमारा व्यक्तित्व सही होना बड़ा जरूरी है जो परमेश्वर को भाई तब परमेश्वर हमारे प्रार्थना को सुनेगा!
प्रभु आप सबको आशीष दे!