मुझसे अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते !
मुझसे अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते !मुझसे अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते !
(यूहन्ना 15:5)
जी हां मित्रो एक परिवार तभी सुखी रह सकता है जब वह परमेश्वर की अधीनता में अपना जीवन बिताता है परमेश्वर की उपस्थिति में जीवन बिताता है और जो परमेश्वर के साथ नहीं चलता उसकी उपस्थिति नही बैठता कभी आनंद के साथ नहीं जी सकता आज बहुत से विश्वासी दुखी हैं परेशान है प्रभु यीशु के पीछे चल रहे हैं फिर भी दुखी हैं और उनकी परेशानियों का कारण यही है कि वह परमेश्वर की उपस्थिति में नहीं बैठते हैं परमेश्वर के आधीनता में नहीं रहते वह परमेश्वर की आज्ञाकारीताक में नहीं रहते नाम तो परमेश्वर का लेते हैं!
परंतु करते अपने मन की हैं और इसीलिए यीशु मसीह ने कहां मेरे तुम कुछ नहीं कर सकते जिसके अंदर परमेश्वर ने जन्म नहीं लिया जिसके अंदर परमेश्वर के वचन ही नहीं है प्रेम नहीं अधीनता नहीं और आज्ञाकारीता नहीं वाह परिवार कभी भी सुखी और आनंदित नहीं रह सकता क्योंकि जीवन का मूल स्रोत परमेश्वर है और परमेश्वर से अलग होकर आप जीवन का सच्चा नहीं उठा सकते!
ध्यान करेंगे सबसे पहले परमेश्वर ने आदमी को बनाया फिर आदमी से औरत बनाई परमेश्वर चाहता तो आदमी और औरत दोनों को अलग-अलग बना था परंतु उसने 1 में से दो किए इसका मतलब है कि पति-पत्नी दोनों एक हैं अलग-अलग नहीं जिस तरह हमारे हाथ पैर सिर आंखें नाक कान सब एक शरीर में जुड़े हुए रहते हैं वैसे ही पति पत्नी को एक रहना चाहिए!
इसके बाद बच्चे माता-पिता के द्वारा जन्म लेते हैं वह भी एक हैं यह एक बड़ा भेद है घरों में झगड़ा इसलिए होता है क्योंकि वह सब अपने आपको अलग अलग समझते हैं पूरा परिवार एक है और हमारे साथ परमेश्वर भी जुड़ा हुआ है हम सब में उसका आत्मा है जब आदमी परमेश्वर से अलग हुआ तभी से दुखी हुआ मुसीबतें आना शुरू हुई यहां तक की मौत और बीमारी भी मनुष्य के जीवन में आ गई क्योंकि जीवन का मूल स्रोत परमेश्वर उसके जीवन से हट गया!
(उत्पत्ति 3:16-19)
यहां आदम के जीवन में दुख और मुसीबतों का कारण था आज्ञाकारीता और अधीनता में ना रहना और अपनी पत्नी की बात को मानना और स्त्री का शैतान की बात को मानना यही उनके पतन और दुख और मुसीबतों का कारण बना और यही आज हमारे समाज में होता चला जा रहा है!
स्त्री जोकि आदम से निकाली गई उसको अपने पति आदम के अधीनता में रहना था लेकिन वह अपने पति के अधीन न रही और आदम ने अपनी पत्नी की आज्ञा मांगी और आज यही पूरे समाज में हो रहा है आज स्त्रियां अपने पति की अधीनता में नहीं चल रही हैं बल्कि पति स्त्रियों के अधीन होते जा रहे हैं सिस्टम उल्टा हो रहा है और परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन हो रहा है इसी कारण से आज परिवार एक नहीं हो पा रहे हैं परिवार चल नहीं पा रहे हैं परिवार में झगड़े हैं क्योंकि घर की मुखिया आदम की जगह स्त्रियां होती जा रही हैं!
परमेश्वर ने स्त्रियों के ऊपर आदम का अधिकार क्यों रखा था? स्त्रियां कोमल हृदय की होती हैं स्त्रियां भावुक होती हैं वह निर्णय लेने में सक्षम नहीं होती क्योंकि उनके ज्यादातर निर्णय भावुकता से भरे होते हैं बुद्धि और समझदारी से नहीं अभिलाषा में घिरी रहती हैं इसलिए वह शैतान की बात में जल्दी आ जाती है वे भक्ति तो करती हैं लेकिन फिर भी कहीं न कहीं अभिलाषा में गिर जाती हैं!
(2 तीमुथियुस 3:6-7)
स्त्री को परमेश्वर ने आदम के सहायक के रूप में उत्पन्न किया था कि वह उसकी सहायक हो लेकिन आज स्त्रियां सहायक की जगह बॉस बनती जा रही हैं और इसी कारण से परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन हो रहा है स्त्रियों को हमेशा अपने पति के लिए सहायक के रूप में काम करना चाहिए सहायक का मतलब उससे काम में बराबर का हकदार मददगार लेकिन उसके सिर पर चढ़कर बॉस बन कर नहीं बैठना चाहिए!
हालांकि सभी स्त्रियां ऐसे नहीं होती कुछ समझदार स्त्रियां ऐसी होती जो अपने पति के अधीनता में रहती हैं और सहायक के रूप में पति के साथ रहती हैं और उस परिवार को आप देखो वह परिवार हमेशा सुखी रहता है लेकिन जहां स्त्रियां बॉस बन जाती हैं अपनी मनमर्जी चलाने लगती हैं अपनी मनमानी करने लगती उसी परिवार में क्लेश झगड़े होते हैं दुख होता है!
अब्राहम और सारै का जीवन देखें सारै अब्राहम के अधीनता में रहती थी जबकि सारै का कोई बच्चा ना था एक समय आया जब सारै की बात अब्राहम ने मानी और अपनी दासी हजीरा से शादी कर ली तब परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन अब्राहम ने किया और परमेश्वर ने कुछ समय के लिए अब्राहम को छोड़ दिया और जो पुत्र हजीरा से उत्पन्न हुआ वह काफी झगड़ालू स्वभाव का हुआ जो उसके दुख का कारण बना और सारै और हाजिरा के बीच में बैर उत्पन्न हुआ दुख का कारण अब्राहम का सारै की बात को मानना था जबकि परमेश्वर अब्राहम से बात कर रहा था!
(उत्पत्ति 16:1-15)
आज यही कारण है कि जब हम से परमेश्वर बात करता है कई बार हम परमेश्वर की आवाज को न सुनकर अपने घर वालों की बात मानते हैं अपनी पत्नी की बात मानते हैं अपने दोस्तों की बात मानते हैं और यही से हमारे जीवन में दुख और मुसीबत और परेशानियां शुरू होती हैं जबकि जीवन का मूल स्रोत परमेश्वर है हमें परमेश्वर की आवाज को सदैव सुनना चाहिए क्योंकि परमेश्वर जो बात बोलता है यदि उसकी आज्ञा मानेंगे तो आप हमेशा सुखी और आनंदित जीवन जिएंगे!
प्रभु आप सबको आशीष दे!
विषय- सुखी परिवार पार्ट-- 2
मुझसे अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते!
( यूहन्ना 15:5)
मित्रों एक विश्वासी परिवार तभी सुखी रह सकता है जब वह अपने परिवार में परमेश्वर को जीवन का मूल स्रोत बनाता है!
क्योंकि हम परमेश्वर से जन्मे हैं और यदि परमेश्वर से ही हम अलग हो जाए तो हम क्या कर सकते हैं हम कुछ नहीं कर सकते जड़ से अलग होकर डाली फल नहीं सकती उसी तरह परमेश्वर से अलग होकर हम कुछ कर नहीं सकते!
एक सुखी परिवार स्त्री और पुरुष के संबंधों के ऊपर निर्भर रहता है कि उनका आपसे प्रेम कैसा है क्या वह एक दूसरे की अधीनता और आज्ञाकारीता में है क्योंकि आशीष इसी में छुपी है अगर पुरुष गाड़ी का इंजन है तो स्त्री उस गाड़ी का पहिया है यानी सहायक अगर पुरुष उस गाड़ी को खींचता है तो स्त्री उस गाड़ी के पाहिए की तरह उस गाड़ी के भार को कम करने में सहायक का काम करती है जो उसके भार को कम करती हैं और दोनों कब मिल कर रहना जरूरी है!
आदमी संसार में रहकर सुख चाहता है कोई भी दुख पसंद नहीं करता फिर भी आज हर परिवार दुखी है आदमी चांद पर भी पहुंच गया फिर भी उसके दुख दूर नहीं हुए यह दुख कैसे दूर होंगे परिवार कैसे सुखी होंगे हमें इन बातों पर ध्यान देना है!
एक परिवार में दुख और अशांति कैसे आती है पिछले भाग में हमने देखा कि आदम हव्वा ने जब पाप किया और परमेश्वर की आज्ञा तोड़ी तो उनके जीवन में दुख और अशांति आ गई आज अशांति कैसे जाएगी यह शांति तभी जा सकती है यदि हम अपने परमेश्वर से मेल मिलाप कर ले और उसके साथ मिल जाए जैसा कि यीशु मसीह ने कहा तुम मुझ में बने रहो और मैं तुम्में बना रहूं तो जो तुम चाहोगे वह हो जाएगा!
(यूहन्ना 15 :7)
(2कुरिन्थियों 5:20-21)
सबसे पहले आदमी को परमेश्वर के पूरा पूरा आधीन हो जाना चाहिए क्योंकि परमेश्वर ने पहले आदम को बनाया फिर उसकी पत्नी को अपने पति के अधीन होना चाहिए परमेश्वर आदमी से बात करता था और उसकी पत्नी उस परमेश्वर की बातें मानती थी!
नूह से परमेश्वर ने कहा तू जहाज बना (उत्पत्ति 6:15:22)
और उसने वैसा ही किया उस काम में उसकी पत्नी ने उसका साथ दिया अगर वह विरोध करती तो नूह परमेश्वर का बताया हुआ काम पूरा नहीं कर पाता उसके बच्चों ने भी उसका साथ दिया यहां तक कि उसके तीन बेटों की पत्नियों ने भी उस नांव को बनाने में नूह का साथ दिया इसको सुखी परिवार कहते हैं!
परंतु आज ढाई तीन लोगों का परिवार भी एक साथ नहीं रह पाता बच्चे मां बाप के नहीं सुनते पत्नियां अपने पति की नहीं सुनती सब अपने अपने मन की करते हैं और परिवारों में आज दीवारें हैं जो परिवार को बांट रही है ताकि वे एक दूसरे को ना देखें!
और इसकी एक बड़ी वजह है परमेश्वर का घर में ना होना क्योंकि जहां परमेश्वर का प्रेम होता है वहां पर संबंध मधुर होते हैं मीठे होते हैं शांति होती है सुख होता है लेकिन जिस घर में परमेश्वर ही नहीं होता उस घर में अशांति क्लेश और बंटवारा ही होता है!
जब परिवार के सब लोग परमेश्वर की अज्ञाओं को मानकर एक मन हो कर रहते हैं तो परिवार सुखी होता है परंतु आज कोई एक मन नहीं होना चाहता क्योंकि हम को पाप पसंद है हम पाप में जीना चाहते हैं हम अभिलाषा में जीना चाहते हैं हम एक दूसरे के प्रति अपने आप को कुर्बान और बलिदान नहीं करना चाहते!
यीशु मसीह हमारे और आपके पापों के बदले सलीब पर कुर्बान हो गया और हमको पापों से छुड़ा लिया इसलिए हम सब को चाहिए कि हम सब पूरा परिवार मिलकर अपने अपने पापों को माने और छोड़ दें तो यीशु मसीह का लहू हमें सब बातों से शुद्ध करता है हमारे परिवारों को सुख और शांति देता है !
(1 यूहन्ना 1:7)
पाप खत्म हो जाएंगे तो परिवार सुख और शांति पाएंगे और आपके परिवार को देखकर लोग आपके पास आएंगे इसीलिए यीशु मसीह का हमारे आपके जीवन में होना अनिवार्य है क्योंकि बिना यीशु मसीह यह सब असंभव है और जहां यीशु है वहां सब कुछ संभव है!
प्रभु आप सबको आशीष दे!