💮💮❤️योग हीं प्रेम है❤️💮💮
प्रेम खुद से करो,
खुद संभल कर जग को बतायेगा।
मन मंदीर में बैठे प्रभु से
प्रेम योग से हीं कर पायेगा।।
अजपाजप सर्वश्रेष्ठ,
हर स्वास में हरिभाव आयेगा।
स्वास की गति ठीक कर
स्वर योग समझ पायेगा।।
प्रेम की परिभाषा
शब्दकोश में आज खोजें।
प्रेम का जीवन से
तात्पर्य आज तनिक सोचें।।
जीवन की अंतिम परिक्षा का
आज चिंतन करें।
परिस्थितिजन्य तर्कों का
अविलम्ब त्याग करें।।
जीवन की अंतिम परिक्षा- मृत्यु है,
ये परम सत्य मानव को गहना होगा।
हम इस नश्वर पञ्च-तत्व में आभासित,
योग से शास्वत आत्मा का दर्शन होगा।।
यह परमसत्य सबको समझना होगा।
जीवन की अंतिम परीक्षा के क्षणों में,
प्राणायाम गह प्राणवायु से भरना होगा।।
चिंतित-व्यथित मन को
दुखमुक्त करना होगा।
ट्रान्सेंडैंटल सद् गति पर
विश्वास करना होगा।।
हम विभिन्न अस्थायी
निकायों का माध्यम हैं।
गतिमान शाश्वत विचरण
करती आत्मायें हैं।।
जीवन यापन हेतु किंचित
पशुवत् कर्म भी करना होता हैं।
मानव प्रेम का आदान -
प्रदान सुनिश्चित कर जीना होता है।।
मृत्यु गह हम अनंत-
पथ की ओर अग्रसारित होते हैं।
आदि और अंत का अनुसंधान
योग में हम किया करते है।।
देवताओं ऋषि मुनियों का पथ
अनवरत्-संग चलना होता है।
कालातीत प्रभु मार्ग दर्शन करते,
देव कर्म-फलित दिनकाल में,
चंद्र चरण में निश्चित होता है।।
विरल धूम्र पिंड आत्मा
निकस लुप्त होती है।
प्राण त्याग काल-
बिधना हीं तय करती है।।
एक आत्मा को आवंटित साँस की संख्या
पिछले कर्म द्वारा पूर्व निर्धारित होती है।
श्वास आवृत्ति विनियमन से
मृत में पुनः जान आ जाती है।।
दीर्घायु समायोजन हेतु
गीता में भी वर्णन आता है।
दया- भक्ति- योग का
समर्थन कृष्ण भी करता है।।
मात्र कृष्ण के संजुज्य से यह जिजीविषा,
मृत्युंजयी बनने की एषणा पूर्ण करता है।
पूर्ण समर्पण भाव प्रचण्ड जाग्रत हो,
भक्ति- मार्ग में साधक लीन होता है।।
प्रेम- भक्ति- साधना से हीं कृष्ण की,
अहेतुकी कृपा भक्त स्वतः मिलती है।
मृत्यु- काल में परम- पुरुष का,
ध्यान आता है तो मुक्ति मिलती है।।
मानव मुक्त हो अति- सुक्ष्म बन
सप्त-लोक की ओर जाता है।
प्रेम सत्य है, गह ब्रह्मानंद पाता है।।
ध्रिणा अधोगामिता की ओर ले जाता है।
जीवन में प्रेम का महत्व
समझ भक्त पाता है।।
सद्गुरु कृपा से मानव देव बन जाता है।
ब्राह्मि भाव में विचरण कर हीं मानव,
ब्राह्मणोचित कर्म सहज कर पाता है।।
जड़ चेतन में ब्रह्म लख
ब्रह्मत्व पद मिलता है।
कवि प्रेम को श्रेष्ठ मानवीय
गुणवत्ता कहता है।।
प्रतिस्पर्धा त्याग
सौहार्दपूर्णता से सुख पाता है।
वसुधैव कुटुम्बकम्प्र
चारित कर तर जाता है।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया, बिहार
DrKavi Kumar Nirmal