अन्नकूट पर्यावरण प्रेम, एवं मिल बाँट कर खाने का अनुपम पर्व
डॉ शोभा भारद्वाज
वर्षा ऋतू समाप्त चुकी थी हर तरफ हरियाली
ही हरियाली थी गोकुल में घर घर उत्सव की
तैयारी चल रही थी कान्हा ग्वाल बालों के साथ संध्या को घर लौटे सोच मग्न इधर उधर डोलने लगे उनके मन में अनगिनत
प्रश्न थे लेकिन किसी के पास उनके प्रश्नों का उत्तर देने का समय नहीं थी कन्हैया
मैया के पास पहुंचे मैया बोली कान्हा मेरे
पास तेरे हर प्रश्न का उत्तर नहीं है जाओ अपने बाबा के पास जाकर उनकी समझों और
समझाओ| नन्द ड्योढ़ी में अनेक माननीय गोकुल वासियों से वार्तालाप कर रहे थे कन्हैया
ने अपना वही प्रश्न फिर से दोहराया नन्द हंस कर बोले लल्ला वही उत्सव जो हर वर्ष
हम मनाते है अच्छी वर्षा के लिए इंद्रदेवता को धन्यवाद देने का पर्व जिनकी कृपा
दृष्टि से इस वर्ष भी भरपूर वर्षा हुई है पुरानी फसल से भंडारे भरे हुए हैं अब
अगली फसल बोई जायेगी हर और हरियाली छाई है हमारी गायों की जी भर कर चारा मिलेगा
तुझे भी ग्वाल बालों के साथ दूर चारागाहों में गायें लेकर जाना नही पड़ेगा |
तू
जानता है किसान के लिए सही समय पर नियमित वर्षा कितनी जरूरी हैं हमारा पशुधन इसी
से फलता फूलता है किसान कृषि के लिए वर्षा पर ही निर्भर हैं | रिमझिम बरसते मेघों से पूरे वर्ष के लिए
कुयें तालाब झीलें भर जाती है यमुना मैया अपने पूरे उफान पर दूर प्रदेशों तक जल की
कमी को दूर करती हैं हल्की हल्की निरंतर बरसने वाली बूंदों से धरती की प्यास ही
नहीं बुझती धरती के नीचे जल इकठ्ठा हो जाता है जिससे कुछ हाथ पर पानी मिल जाता है
ग्रीष्म ऋतू में भी जल की समस्या नही आती,
दूर-दराज पानी के लिए भटकना नहीं पड़ता |जानते हो सूखा पड़ने से खेतों में खड़ी
फसल सूख जाती है इन्सान, जानवर और परिंदे प्यास से तड़फने लगते हैं | कई बार इन्सान को ज़िंदा रहने के लिए
अपना घर बार स्थान छोड़ कर परदेसी होना पड़ता है|
इसीलिए बृज चौरासी कोस में इंद्र देवता का
पूजन विधि विधान से किया जाता हैं कन्हैया ने कहा यह तो हर वर्ष होता है लेकिन
क्यों ? मैंने जब से होश सम्भाला है आयोजन देख रहा हूँ यदि बृज में गोवर्धन पर्वत
श्रंखलायें नहीं होती यह स्थान भी मरूस्थल ही होता | गर्मी
से सागर में भाफ के बादल बनते हैं हवायें उन्हें उड़ा कर दूर ले जाती हैं गोवर्धन
पर्वत के हरे भरे सघन वन और ऊँचे वृक्षों पर एक नमी रहती हैं जिससे उड़ते घनघोर
बादल आकर्षित होकर बरसते हैं | जहाँ
पर्वत और वन नहीं है वहाँ बारिश कम होती है जल के बिना धरती सूखी रह जाती है | जब मेघ नहीं बरसेंगे जल कहाँ संचित होगा ?यमुना जी
क्या किसी भी नदी में उफान नहीं आयेगा न उनके पाट चौड़े होंगे |
मूसलाधार बारिश से गिरिराज की कन्दराओं
में पानी भर जाता है पर्वत से अनेक झरने झरते हैं जिनसे आते जाते राहगीर प्यास
बुझाते हैं |यदि वन कम हो जायेंगे
या काट दिए जायेंगे बादल कैसे आकर्षित होंगे |वनों
की गोद में जीवन दायनी औषधियां और पेड़ पोधे फलते फूलते हैं यहाँ लकड़ी ही नहीं
मिलती रसीले फल और तरह-तरह की जड़ी बूटियाँ मिलती हैं जिनसे रोग निवारक औषधियाँ
बनती हैं | जल से भरी नदियाँ जल
को दूर-दूर तक ले जाती है | जल से ही जीवन है
इसीलिए नदियों के किनारे सभ्यतायें बनती बिगड़ती हैं | यदि बाढ़ें आती हैं खेती का नुक्सान होता
है लेकिन अपने साथ उपजाऊ मिटटी भी आती हैं जिससे अगली फसल शानदार होती हैं |विशाल वृक्षों में अनेक पंछियों का
बसेरा होता है |वनों मे अनेक जीव
जन्तु पलते हैं | कीट जगत , जानवरों एवं पक्षियों की प्रजातियाँ
बढ़ती हैं | गिरिराज जी प्रकृति
की अचल सम्पदा से भरपूर हैं |सुंदर दृश्य मन को
मोह लेते हैं| पर्वतों में विचरण
करते हैं सुगन्धित स्वास्थ्य वर्धक वायू तन और मन को पुलकित करती है| सुबह का सूरज उगता है चारों और प्रकाश
फैलता है पक्षी चहचहाने लगते हैं ,कोयल की मीठी कुहुक
मन मोह लेती है क्यों न हम ऐसा उत्सव मनाये जिसे बृज भूमि में सदैव याद किया जाये
कन्हैया
तुम्हारी ज्ञान भरी बातों में सच्चाई है अबकी बार क्यों न गिरिराज जी का मिल कर पूजन
और सामहिक भोज का आयोजन किया जाए जिसमें हर व्यक्ति बिना किसी भेद भाव के भाग ले
सके जिसके घर में जो है वह भोज में समर्पित करे| गोकुल
के लोगों का मुख्य व्यवसाय गो पालन , और खेती करना था | बृज की गोपिया रोज मथुरा में दूध दही
मक्खन बेचने जाती थी | बृज का चौरासी कोस पूरी तरह आत्म निर्भर नही था|
गोवर्धन
पर्वत पर सामूहिक भोज का आयोजन किया गया जिसमें हर घर ने भाग लिया जिसके घर में जो
था जिसकी जो सामर्थ्य थी लाया घी दूध , छाछ दहीं की कमी नहीं
थी खीर कढ़ी तरह-तरह के रायते मीठा दहीं माखन मिश्री चावल अनेक प्रकार की मौसमी सब्जियाँ
,दूध से बनी घरेलू मिठाईयाँ बाजरे की फसल
अभी कटी थी उसकी स्वादिष्ट खिचड़ी | जिसके घर के बाग़ में
गाजर मूली लगी थी वह वही तोड़ लाया | गोकुल का कोई
घर
ऐसा नहीं था जहाँ से कन्हैया ने दही ,माखन चुरा कर स्वयं
खाया और ग्वाल बालों को न खिलाया हो हर छींके पर बाल गोपालों के कंधों पर सवार हो
कर माखन का भोग लगाया था | | हर घर में उनके
पवित्र चरण पड़ें थे कन्हैया का एक नाम चोर ,माखनचोर है |
भोज
में हर वस्तु से हर घर व्यक्ति की साझे दारी थी| एक
चौड़े स्थान को साफ़ किया गया पूरा गोकुल धाम बिराजा सबके आगे पत्तल दोने
मिटटी के जरूरत के बर्तन लगा दिए गये |सबसे पहले अग्र पूजा
किसकी हो? गिरिराज जी का
आह्वाहन किया गया बीच में कान्हा बिराजे उनका पूजन किया गया | मंद – मंद
सुगन्धित पवन बह रही| झरनों की कल – कल संगीत का समा बना रही थी |सबके आग्रह पर उन्होंने मुरली की मधुर
तान छेड़ दी सम्पूर्ण वातावरण विभोर हो गया |
मुरली
की ध्वनि ऐसी अलौकिक थी मानों समय ठहर गया |
अब
भोज की बारी थी जो भी उपस्थित था सबकी पत्तल में सब कुछ परोसा गया सबने प्रेम से चटकारे
ले कर भोजन किया कुछ भी जूठा नहीं छोड़ा | यह गिरिराज जी का भोग
था |पर्यावरण का संरक्षण, समता वाद | कोई न बड़ा था न छोटा
सभी समान थे | विशुद्ध पर्यावरण
प्रेम |आज भी बृज वासी विश्व
में कहीं भी बसें दीपावली के अगले दिन
कान्हा का भोग लगाते हैं हम मथुरा के निवासी अन्नकूट ,गोवर्धन पूजा के लिए बहुत
समवेदन शील हैं मैने 10 अन्नकूट विदेश में श्रद्धा भक्ति से मनाये वह सब कुछ बनाने की
कोशिश की जो वहाँ मिल जाता था मुस्लिम देश था
लेकिन सभी जानकार प्रेम से प्रसाद ग्रहण करते थे उनमें अवतार या भगवान का कंसेप्ट
नहीं था वह कहते थे आज हिन्द के पैगम्बर लार्ड कृष्णा के सम्मान में ईद (ख़ुशी ) हैं मैं उनके भाव
को नमन करती हूँ |